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धारा 19 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: अपीलीय किराया न्यायाधिकरण और लंबित मामलों में किराया भुगतान– भाग 2
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) का उद्देश्य किरायेदार (Tenant) और मकान मालिक (Landlord) के बीच विवादों का त्वरित और न्यायसंगत निपटारा करना है। इस अधिनियम के तहत, किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) और अपीलीय किराया न्यायाधिकरण (Appellate Rent Tribunal) स्थापित किए गए हैं, ताकि किरायेदारी से जुड़े मामलों को सुलझाया जा सके।धारा 19 (Section 19) और धारा 19-A (Section 19-A) इस प्रक्रिया का विस्तार करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि किराया विवादों का न्यायिक...
वाद में दावे के कुछ भाग का त्याग और लिखित बयान पर शुल्क: धारा 13 और 14 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में शुल्क निर्धारण (Fee Determination) एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के तहत मुकदमों में वादपत्र (Plaint) और लिखित बयान (Written Statement) पर शुल्क निर्धारित करने की प्रक्रिया विस्तार से बताई गई है।पहले की धाराओं (Sections 10, 11 और 12) में वाद की विषय-वस्तु का मूल्यांकन, शुल्क में संशोधन और अतिरिक्त मुद्दों पर शुल्क लगाने की व्यवस्था की गई थी। इसी संदर्भ में धारा 13 और धारा 14 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम,...
मुकदमे में मुद्दों के निर्धारण पर अतिरिक्त शुल्क : धारा 12 राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में मुकदमे की सुनवाई के दौरान कई बार ऐसे मुद्दे (Issues) उत्पन्न होते हैं, जिनके कारण पक्षकार को अतिरिक्त शुल्क (Additional Fee) जमा करना पड़ता है।राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) की धारा 12 (Section 12) में इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान किया गया है। यह धारा कहती है कि यदि मुकदमे के दौरान कोई नया मुद्दा जुड़ता है, जिससे किसी पक्षकार को अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता...
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: अपीलीय किराया न्यायाधिकरण, अपीलऔर उनकी सीमाएं – भाग 1 धारा 19
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के तहत, किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) के निर्णयों के विरुद्ध अपील (Appeal) करने के लिए अपीलीय किराया न्यायाधिकरण (Appellate Rent Tribunal) का प्रावधान किया गया है। धारा 19 (धारा 19) यह निर्धारित करता है कि राज्य सरकार (State Government) आवश्यकतानुसार अपीलीय न्यायाधिकरणों का गठन करेगी, उनके अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करेगी, और उनकी कार्यवाही से संबंधित नियम बनाएगी।अपीलीय किराया न्यायाधिकरण का गठन (Constitution of...
दंडित व्यक्ति को निर्णय की प्रति देने का अधिकार: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 404
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में पारदर्शिता (Transparency) और न्याय के अधिकार (Right to Justice) को सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्त (Accused) को उसके खिलाफ दिए गए निर्णय (Judgment) की जानकारी पूरी तरह से उपलब्ध कराई जाए।भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 404 यह प्रावधान करती है कि यदि किसी अभियुक्त को कारावास (Imprisonment) या मृत्युदंड (Death Sentence) दिया जाता है, तो उसे न्यायालय द्वारा पारित निर्णय की प्रमाणित प्रति (Certified Copy) तुरंत और मुफ्त में प्रदान की...
क्या Homebuyer को Consumer कानून होते हुए भी Arbitration में जाने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
Experion Developers बनाम Sushma Ashok Shiroor (2022) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने consumer अधिकारों, arbitration (मध्यस्थता) और real estate agreements (अचल संपत्ति समझौते) में arbitration clauses की वैधता से जुड़े अहम कानूनी मुद्दों पर विचार किया।इस मामले में यह तय किया गया कि क्या एक homebuyer (गृह खरीदार), जिसे Consumer Protection Act, 1986 और 2019 द्वारा सुरक्षा दी गई है, को केवल इसलिए arbitration में जाने के लिए मजबूर किया जा सकता है क्योंकि उसके और developer (विकासकर्ता) के बीच ऐसा agreement...
विशेष कारणों का उल्लेख और न्यायालय द्वारा निर्णय में बदलाव पर रोक: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 402 और 403
न्यायिक प्रणाली का मुख्य उद्देश्य केवल अपराधियों को दंड देना नहीं बल्कि उन्हें सुधारने और पुनर्वास (Rehabilitation) का अवसर देना भी है। कई मामलों में, अपराध की गंभीरता को देखते हुए न्यायालय आरोपी को सीधे सजा देने की बजाय प्रोबेशन (Probation) पर छोड़ सकता है या युवा अपराधियों (Juvenile Offenders) के लिए विशेष पुनर्वास कार्यक्रम लागू कर सकता है।हालांकि, कुछ मामलों में न्यायालय को यह उपयुक्त नहीं लगता और वह प्रोबेशन या पुनर्वास की सुविधा नहीं देता। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya...
धारा 18 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: किराया न्यायाधिकरण का क्षेत्राधिकार
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) के तहत, किराया संबंधी विवादों (Rent Disputes) को सुलझाने के लिए किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) को विशिष्ट अधिकार (Exclusive Jurisdiction) दिए गए हैं।धारा 18 (Section 18) यह स्पष्ट करता है कि केवल किराया न्यायाधिकरण को इन मामलों की सुनवाई करने का अधिकार होगा और अन्य किसी दीवानी न्यायालय (Civil Court) को इसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा। केवल किराया न्यायाधिकरण को अधिकार (Exclusive Authority of Rent Tribunal) ...
अपील न्यायालय में शुल्क निर्धारण : धारा 11 भाग 2 राजस्थान कोर्ट फीस अधिनियम, 1961
न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) में अपील (Appeal) का महत्वपूर्ण स्थान होता है, जहां निचली अदालत (Lower Court) के आदेशों की समीक्षा की जाती है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) की धारा 11 (Section 11) में यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी मुकदमे में सही शुल्क (Proper Fee) की जांच कैसे की जाएगी।इस लेख के पहले भाग में, हमने इस धारा के प्रारंभिक प्रावधानों पर चर्चा की थी। इस भाग में, हम अपील न्यायालय (Appellate Court) में...
क्या दोषपूर्ण जांच के कारण आरोपी को बरी किया जा सकता है?
State of Uttar Pradesh v. Subhash Pappu (2022) के फैसले में आपराधिक न्याय (Criminal Justice) से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया गया। इस मामले में जांच (Investigation), साक्ष्य (Evidence) और न्यायालय (Court) के कर्तव्यों (Duties) पर गहराई से चर्चा की गई।न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि यदि जांच में खामियां (Defects) हैं, तो भी यदि अभियोजन (Prosecution) आरोपी का अपराध (Crime) संदेह से परे (Beyond Reasonable Doubt) सिद्ध कर देता है, तो दोषपूर्ण जांच मात्र से आरोपी को बरी नहीं किया जा सकता। इस...
NI Act में धारा 58 के प्रावधान
लिखत को अपराध द्वारा प्राप्त करना- धारा 58 के अधीन उन मामलों को विहित किया गया है जिसके अधीन एक लिखत अपराध द्वारा अभिप्राप्त माना जाता है। वे हैंचुराया हुआ लिखत- खोने की दशा में,कपट के द्वारा अभिप्राप्त लिखत,अवैध प्रतिफल के लिए अभिप्राप्त लिखत,कूटरचित लिखत, अर्थात् कूटरचना द्वारा प्राप्त लिखत,कूटरचित पृष्ठांकन, अर्थात् कूटरचित पृष्ठांकन से प्राप्त लिखतचुराया हुआ लिखत- एक व्यक्ति जिसने किसी लिखत को चुराया है, इसका संदाय उसके अधीन किसी दायी पक्षकार से लागू नहीं करा सकता है एवं न तो इसे उस व्यक्ति...
NI Act में अवैध रूप से किसी इंस्ट्रूमेंट को प्राप्त करने के परिणाम
NI Act में कुछ तरीके ऐसे बताये गए हैं जिनसे अवैध रूप से कोई इंस्ट्रूमेंट प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रकार निम्नलिखित के सम्बन्ध में संरक्षण प्रदान किया गया है-लिखत के खोनेलिखत के चोरी होनेलिखत को कपटपूर्ण तरीके से प्राप्त करनेलिखत को अवैध तरीकों से प्राप्त करनेऐसा कब्जाधारी या पृष्ठांकिती जो लिखत को पाने वाले, चोरी करने वाले या कपटपूर्ण तरीके या अवैध प्रतिफल से प्राप्त करने वाले व्यक्ति से प्राप्त किया है, लिखत के रचयिता, प्रतिग्रहीता या धारक या किसी पूर्विक पक्षकार से धन का दावा नहीं कर सकता...
राजस्थान न्यायालय शुल्क अधिनियम, 1961 की धारा 11 के तहत उचित शुल्क निर्धारण की प्रक्रिया
न्यायालय में मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया में उचित कोर्ट फीस (Court Fee) का भुगतान आवश्यक होता है। राजस्थान कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) के तहत, किसी भी मुकदमे में उचित शुल्क के निर्धारण की जिम्मेदारी न्यायालय की होती है। इस संबंध में धारा 11 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो न्यायालय को यह तय करने का अधिकार देता है कि मुकदमे के लिए सही कोर्ट फीस क्या होनी चाहिए। यह धारा यह भी स्पष्ट करती है कि यदि कोई पक्षकार मुकदमे की विषय-वस्तु...
धारा 17 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: अपीलीय किराया के समक्ष पक्षकारों की उपस्थिति की तिथि निर्धारित करना और अंतिम आदेश की प्रतियां प्रदान करना
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) में किराया न्यायाधिकरण (Rent Tribunal) द्वारा सुनवाई के बाद अपील की प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। धारा 17 (Section 17) इस संबंध में महत्वपूर्ण प्रावधान करता है, जिसमें यह निर्धारित किया गया है कि जब कोई मामला एकतरफा रूप से (Ex-Parte) नहीं चल रहा हो, तब न्यायाधिकरण द्वारा अंतिम आदेश (Final Order) पारित करने के बाद अपील से संबंधित प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ेगी।अपीलीय किराया न्यायाधिकरण के समक्ष उपस्थिति की...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 401: प्रथम बार अपराध करने वाले व्यक्तियों की प्रोबेशन पर रिहाई भाग 1
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 401 उन मामलों से संबंधित है, जहां किसी व्यक्ति को पहली बार अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है और उसे सीधे सजा देने के बजाय न्यायालय उसे प्रोबेशन (Probation) पर रिहा करने का आदेश दे सकता है। यह प्रावधान अपराधियों के पुनर्वास (Rehabilitation) और समाज में पुनः एकीकृत (Reintegration) करने के उद्देश्य से बनाया गया है, खासकर जब अपराधी की पृष्ठभूमि और अपराध की प्रकृति को देखते हुए यह उचित लगे कि उसे सुधार का एक और मौका दिया जाना चाहिए।किसे प्रोबेशन पर रिहा किया...
क्या पिछड़े वर्गों के भीतर विशेष आरक्षण संवैधानिक रूप से वैध है?
Pattali Makkal Katchi v. A. Mayilerumperumal (2022) मामले ने विशेष रूप से पिछड़े वर्गों (Most Backward Classes - MBC) के भीतर दिए गए आरक्षण की संवैधानिकता (Constitutionality) पर महत्वपूर्ण सवाल उठाए। मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु विशेष आरक्षण अधिनियम, 2021 (Tamil Nadu Special Reservation Act, 2021) को रद्द कर दिया, जिसने वन्नियार (Vanniyar) समुदाय को MBC श्रेणी के भीतर 10.5% आंतरिक आरक्षण (Internal Reservation) दिया था।यह निर्णय इस आधार पर लिया गया कि यह अधिनियम पर्याप्त ठोस आधार पर आधारित नहीं...
NI Act में Endorsement के रूल्स
Endorsement के सामान्य सिद्धान्त या विधिमान्य Endorsement की शर्तें या नियमएक प्रभावी Endorsement होने के लिए इसे नियमित एवं विधिमान्य होना चाहिए। एक विधिमान्य Endorsement के निम्न सिद्धान्त या शर्तें हैं-Endorsement स्वयं लिखत पर होनी चाहिए जगह न होने की दशा में पृथक् कागज के टुकड़े (एलान्ज) पर होना चाहिए।पृष्ठांकक या उसके प्राधिकृत अभिकर्ता से हस्ताक्षरित होना चाहिए।Endorsement इन्क से होना चाहिए। पेन्सिल से भी किया जा सकता है, परन्तु इसे मिटाया जा सकेगा अतः पेन्सिल से बचना चाहिए।टाइप से लिखित...
NI Act में निरंक Endorsement
धारा 49 के अंतर्गत दिए गए निरंक Endorsement के प्रावधान को विधि विदानों के दिए इस उदाहरण से समझा जा सकता है-'अ' एक निरंक Endorsement द्वारा लिखत को 'ब' को परिदत्त करता है यहाँ अ पृष्ठांकक है और 'ब' पृष्ठांकिती है। 'ब' चाहता है कि वह इसे 'स' को पृष्ठांकित कर दे तो वह केवल 'स' का नाम 'अ' के हस्ताक्षर के ऊपर लिखकर पृष्ठांकित कर सकेगा उसे अपना हस्ताक्षर करना आवश्यक नहीं होगा।इस संव्यवहार में धारक 'अ' के विरुद्ध या किसी भी पक्षकार के विरुद्ध अधिकार रखेगा जिससे वह लिखत का दावा करता है और निरंक...
धारा 16 राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001: Immediate Possession प्राप्त करने की प्रक्रिया
राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 (Rajasthan Rent Control Act, 2001) में मकान मालिक (Landlord) या किसी अन्य व्यक्ति को, जो किसी संपत्ति पर तत्काल कब्जे (Immediate Possession) का दावा करता है, कानूनी रूप से कब्जा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। धारा 16 (Section 16) में इसकी विस्तृत प्रक्रिया बताई गई है, जो यह सुनिश्चित करती है कि वास्तविक मालिक को शीघ्र और निष्पक्ष न्याय मिले।तत्काल कब्जे के लिए याचिका दाखिल करना (Filing a Petition for Immediate Possession) अगर किसी मकान मालिक को अपनी...
BNSS, 2023 की धारा 400 में न्यायालय द्वारा अभियुक्त को शिकायतकर्ता के कानूनी खर्चों के भुगतान
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Criminal Procedure Code) में विभिन्न प्रावधान शामिल हैं जो न्यायिक प्रक्रियाओं को संचालित करते हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण प्रावधान धारा 400 है, जो गैर-संज्ञेय अपराधों (Non-Cognizable Offenses) के मामलों में अभियुक्त को अभियोजन की लागत (Cost of Prosecution) का भुगतान करने का आदेश देने से संबंधित है।यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि शिकायतकर्ता (Complainant) को न्यायिक प्रक्रिया में हुए खर्चों की प्रतिपूर्ति (Reimbursement) मिल सके, जिससे न्याय तक पहुंच अधिक सुलभ हो। ...