जानिए हमारा कानून
किसी भी चुनाव में चुनावी अधिकारी का निष्पक्ष न होना दंडनीय अपराध है?
The Representation Of The People Act, 1951 चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान करता है। यह एक्ट चुनाव ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों और कर्मचारियों को किसी भी चुनाव में उम्मीदवार के पक्ष में कार्य करने से रोकता है। इस तरह के काम को इस एक्ट में दंडनीय अपराध बनाया है। इस एक्ट की धारा 129 की उपधारा (1) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो जिला चुनाव अधिकारी, रिटर्निंग अधिकारी, सहायक रिटर्निंग अधिकारी, पीठासीन अधिकारी, मतदान अधिकारी या चुनाव से जुड़ी कोई अन्य ड्यूटी...
पुलिस जांच के दौरान आपके अधिकार – हिरासत व पूछताछ के समय कानूनी सुरक्षा
अक्सर लोग पुलिस जांच या हिरासत के नाम से ही डर जाते हैं। लेकिन भारतीय संविधान और कानून हर नागरिक को कुछ जरूरी अधिकार देते हैं, ताकि पुलिस कार्रवाई के दौरान उनका शोषण या गलत इस्तेमाल न हो सके। इन अधिकारों को जानना और समझना बहुत जरूरी है। आइए इन्हें आसान भाषा में विस्तार से समझते हैं:1. गिरफ्तारी के समय आपके अधिकार गिरफ्तारी का कारण बताना जरूरी है – पुलिस को आपको गिरफ्तारी का कारण और लगाए गए आरोप स्पष्ट रूप से बताने होंगे। (अनुच्छेद 22 और CrPC की धारा 50) परिवार को सूचित करने का अधिकार – पुलिस...
सड़क दुर्घटना मुआवज़ा कानून – कब और कैसे क्लेम करें?
भारत में हर साल लाखों लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं। ऐसे मामलों में पीड़ित या उसके परिवार को इलाज, नुकसान या मृत्यु की स्थिति में मुआवज़ा (Compensation) पाने का अधिकार होता है। यह अधिकार मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (Motor Vehicles Act, 1988) के तहत दिया गया है।कब मिल सकता है मुआवज़ा?1. दुर्घटना में चोट लगने पर – इलाज, दवाइयों, आय का नुकसान आदि का खर्च।2. दुर्घटना से मृत्यु होने पर – मृतक के आश्रित (परिवारजन) मुआवज़ा पाने के हकदार हैं।3. स्थायी अपंगता (Permanent Disability) – अगर हादसे में...
उपभोक्ता अधिकार – गलत प्रोडक्ट या सेवा मिलने पर क्या करें?
हम सभी रोज़ाना सामान खरीदते हैं या सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं – चाहे वह मोबाइल हो, कपड़े हों, बिजली का बिल, बीमा, बैंकिंग सेवा या ऑनलाइन शॉपिंग। लेकिन कई बार हमें गलत सामान (defective product) या खराब सेवा (deficient service) मिल जाती है। ऐसे में बहुत लोग चुप रह जाते हैं, जबकि कानून हमें न्याय पाने का पूरा अधिकार देता है।उपभोक्ता को कौन-कौन से अधिकार मिले हैं?"उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (Consumer Protection Act, 2019)" के तहत हर ग्राहक को ये अधिकार मिले हैं:सही जानकारी पाने का अधिकार –...
मुख्य चुनाव आयुक्त की शक्तियां
भारत के लोकतंत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग का प्रमुख होता है, जो संवैधानिक रूप से स्वतंत्र और शक्तिशाली पद है। मुख्य चुनाव आयुक्त को शक्तियां मुख्य रूप से संविधान के अनुच्छेद 324 से मिलती है जो चुनाव आयोग को संसद, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनावों की तैयारी, संचालन और नियंत्रण की जिम्मेदारी सौंपता है।इस अनुच्छेद के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए व्यापक अधिकार प्राप्त हैं, जैसे मतदाता सूचियों की तैयारी, निर्वाचन क्षेत्रों...
चुनाव आयोग का गठन और उसकी निष्पक्षता
चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र संस्था है जिसे चुनाव आयोग कहा गया है। यह आयोग न केवल लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और अन्य चुनावों का संचालन करता है, बल्कि मतदाता सूचियों की तैयारी, निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन और चुनावी नियमों का पालन सुनिश्चित करता है। चुनाव आयोग का गठन भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत हुआ है, जो आयोग को चुनावी प्रक्रिया की देखरेख, निर्देशन और नियंत्रण की शक्तियां प्रदान करता है।चुनाव आयोग का गठन संविधान के भाग XV के अंतर्गत आता...
जल अधिनियम 1974 की धाराएं 13 और 14 : संयुक्त बोर्ड का गठन
जल प्रदूषण केवल एक राज्य या क्षेत्र की समस्या नहीं है, बल्कि यह कई बार सीमापार (Inter-State) प्रकृति की होती है। नदियाँ, नहरें और जलाशय प्राकृतिक सीमाओं को नहीं मानते। उदाहरण के लिए, गंगा, यमुना, गोदावरी या ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ कई राज्यों से होकर बहती हैं। यदि एक राज्य में प्रदूषण फैलता है, तो उसका प्रभाव पड़ोसी राज्य पर भी पड़ता है। इस जटिलता को समझते हुए, जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 ने संयुक्त बोर्डों (Joint Boards) का प्रावधान रखा है।संयुक्त बोर्ड का विचार भारतीय संघीय...
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में अध्याय II के अंतर्गत धारा 6 से 8 : राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन, कार्यप्रणाली और कर्तव्य
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में अध्याय II के अंतर्गत धारा 6 से 8 तक राज्य स्तर पर वन्यजीव संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था का प्रावधान किया गया है, जिसे राज्य वन्यजीव बोर्ड (State Board for Wildlife) कहा जाता है।इस संस्था का गठन 2002 के संशोधन अधिनियम द्वारा और अधिक स्पष्ट और व्यापक रूप से परिभाषित किया गया। राज्य वन्यजीव बोर्ड एक ऐसा मंच है जहाँ सरकार, विशेषज्ञ, गैर-सरकारी संगठन और विभिन्न विभाग मिलकर वन्यजीव संरक्षण की नीति और दिशा तय करते हैं। धारा 6 — राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 53A-53B : अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के निर्णयों और आदेशों के खिलाफ अपील के लिए एक अपीलीय मंच (appellate forum) का होना एक निष्पक्ष और पारदर्शी नियामक प्रणाली के लिए आवश्यक है। भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम के अध्याय VIIIA (Chapter VIIIA) में इस अपीलीय तंत्र का प्रावधान है।यह अध्याय अपीलीय न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal) की स्थापना, अधिकार क्षेत्र और अपीलों को दायर करने की प्रक्रिया का विवरण देता है। यह सुनिश्चित करता है कि CCI के निर्णयों से असंतुष्ट पक्षों को अपने मामले की समीक्षा (review) करने का...
क्या PMLA के अंतर्गत Special Court में पेश होना Custody या Bail की मांग करता है?
सुप्रीम कोर्ट ने Tarsem Lal v. Directorate of Enforcement (2024) में एक अहम सवाल तय किया कि यदि किसी आरोपी को जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया और बाद में उसे Special Court द्वारा Section 44(1)(b) PMLA के तहत Summons (समन) भेजा गया, तो क्या उसके कोर्ट में पेश होने पर उसे Custody (हिरासत) में लेना या Bail (जमानत) लेने के लिए बाध्य करना आवश्यक है?कोर्ट ने स्पष्ट किया कि CrPC (Code of Criminal Procedure) की धाराएँ PMLA मामलों में किस तरह लागू होंगी। इस फैसले ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal...
The Indian Contract Act में Contingent Contract को Court से कब इनफ़ोर्स करवाया जा सकता है?
समाश्रित संविदा को कोर्ट में प्रवर्तन कराना अर्थात इस प्रकार की संविदा को कोर्ट से इंफोर्स करवाना इसके संबंध में संविदा अधिनियम की धारा 32 में उल्लेख किया गया है। धारा 32 समाश्रित संविदाओं के प्रवर्तन के संबंध में उल्लेख कर रही है।समय के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने विकास किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास करने के परिणामस्वरूप व्यापार और वाणिज्य का भी विकास हुआ है। मनुष्य की आवश्यकताएं भी बड़ी है इसे ध्यान में रखते हुए समाश्रित संस्थाओं को मान्यता प्रदान की गई है। जीवन बीमा को छोड़कर...
The Indian Contract Act की धारा 31 के प्रावधान
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 31 के अंतर्गत समाश्रित संविदा की परिभाषा प्रस्तुत की गई है जिसके अनुसार समाश्रित संविदा वह संविदा है जो ऐसी संविदा को समपार्श्विक किसी घटना के घटित होने या न होने पर किसी बात को करने या न करने के लिए हो।धारा 31 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है जो इस प्रकार है-ख से क संविदा करता है कि यदि ख का ग्रह जल जाए तो वह ख को दस हज़ार रूपये देगा, यह समाश्रित संविदा हैधारा 31 के अंतर्गत कुछ तत्वों का समावेश होता है जिसके अनुसार-समाश्रित संविदा एक प्रकार की संविदा...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 50-52 : वित्त, लेखा और लेखा-परीक्षा
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) को अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से करने के लिए एक मजबूत वित्तीय ढांचे की आवश्यकता होती है। अध्याय VIII (Chapter VIII) CCI के वित्त, लेखा-परीक्षा (audit) और अनुदान (grants) से संबंधित प्रावधानों को विस्तृत करता है। यह अध्याय सुनिश्चित करता है कि आयोग को पर्याप्त धन मिले, वह उसका उचित प्रबंधन करे, और उसके खातों की नियमित और पारदर्शी लेखा-परीक्षा हो। यह CCI को एक वित्तीय रूप से स्वतंत्र और जवाबदेह संस्था बनाता है।धारा 50: केंद्र सरकार द्वारा अनुदान (Grants by Central...
जल अधिनियम 1974 की धाराएं 9 से 12 : समितियों का गठन
भारत का जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 केवल प्रदूषण को रोकने का कानून नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा ढांचा (Framework) तैयार करता है जिसके माध्यम से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपने अधिकारों और कर्तव्यों को व्यवस्थित रूप से निभा सकें।इस अधिनियम के अध्याय II की धाराएँ 9 से 12 मुख्यतः इस बात पर केंद्रित हैं कि बोर्ड किस प्रकार समितियों (Committees) का गठन कर सकता है, किस प्रकार विशेष उद्देश्यों के लिए विशेषज्ञ व्यक्तियों की मदद ले सकता है, कैसे बोर्ड की कार्यवाही में खाली पदों (Vacancies) का...
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का अध्याय II — प्राधिकरणों की नियुक्ति और शक्तियाँ
अध्याय II (Chapter II) का मुख्य उद्देश्य है कि केंद्र और राज्य सरकारें वन्यजीव संरक्षण (Wildlife Protection) के लिए विशेष Authorities (प्राधिकरण) और अधिकारियों की नियुक्ति करें। इन प्रावधानों के माध्यम से अधिनियम एक संस्थागत ढांचा (Institutional Framework) खड़ा करता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि कानून केवल कागज़ी न रहकर ज़मीन पर भी लागू हो। इस अध्याय में विशेष रूप से तीन धाराएँ (Sections) महत्वपूर्ण हैं—धारा 3, धारा 4 और धारा 5।धारा 3 — निदेशक और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति (Appointment of...
क्या धारा 357 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अंतर्गत दिया जाने वाला मुआवज़ा आरोपी को जेल की सज़ा से मुक्ति दिलाने का साधन माना जा सकता है?
प्रस्तावना (Introduction)सुप्रीम कोर्ट ने Rajendra Bhagwanji Umraniya v. State of Gujarat (2024) में एक अहम सवाल पर विचार किया कि क्या अदालतें आपराधिक मामलों में कैद की सज़ा को इस शर्त पर घटा या माफ कर सकती हैं कि आरोपी पीड़ित (Victim) को मुआवज़ा (Compensation) अदा कर दे। यह मामला मुख्य रूप से Section 357 of the Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC) की व्याख्या (Interpretation) से जुड़ा था, जिसमें अदालत को पीड़ित को मुआवज़ा देने की शक्ति (Power) दी गई है। अदालत ने सज़ा और मुआवज़े के बीच...
जल अधिनियम 1974 की धारा 5 से 8 में बोर्ड सदस्यों की नियुक्ति, अयोग्यता, पदत्याग और बैठकों की प्रक्रिया
भारत में प्रदूषण नियंत्रण के लिए बनाए गए सबसे महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974)। इस कानून का मुख्य उद्देश्य है कि हमारे देश की नदियाँ, तालाब, झीलें और भूमिगत जल (Ground Water) प्रदूषण से सुरक्षित रहें और लोगों को शुद्ध व सुरक्षित जल (Clean Water) उपलब्ध हो सके।इस अधिनियम का अध्याय II (Chapter II) "केंद्रीय एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (Central and State Pollution Control Boards)" की स्थापना...
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 48 और धारा 49 : कंपनियों द्वारा उल्लंघन और प्रतिस्पर्धा वकालत
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Indian Competition Act) के तहत, किसी भी उल्लंघन के लिए न केवल कंपनियों बल्कि उसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को भी जवाबदेह ठहराया जाता है। इसके साथ ही, यह अधिनियम केवल एक नियामक निकाय के रूप में ही कार्य नहीं करता, बल्कि भारत में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने वाले एक वकील (advocate) के रूप में भी कार्य करता है।धारा 48 यह निर्धारित करती है कि कंपनियों द्वारा किए गए उल्लंघनों के लिए कौन जिम्मेदार होगा, जबकि धारा 49 CCI की प्रतिस्पर्धा वकालत (Competition Advocacy) की भूमिका...
क्या न्यायिक अनुक्रम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पूर्ण पालन अनिवार्य बनाता है?
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने M/s Ireo Grace Realtech Pvt. Ltd. v. Sanjay Gopinath मामले में यह महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया कि क्या न्यायिक अनुक्रम (Judicial Hierarchy) की पवित्रता बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन हर स्थिति में अनिवार्य है। यह विवाद मूल रूप से उपभोक्ता विवाद (Consumer Dispute) से जुड़ा था, लेकिन अदालत ने इससे कहीं अधिक व्यापक संवैधानिक (Constitutional) और विधिक (Legal) सिद्धांतों पर प्रकाश डाला।न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश केवल पक्षकारों...
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 : अधिनियम की संरचना और मुख्य विशेषताएँ
भारत में वन्यजीवों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण क़ानून है वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972। इसे सामान्यत: Wildlife Protection Act (WPA) कहा जाता है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की रक्षा करना, शिकार पर रोक लगाना और उनके आवास (Habitat) को बचाने के लिए Sanctuary (अभयारण्य) और National Park (राष्ट्रीय उद्यान) जैसी संरक्षित श्रेणियाँ बनाना। यह अधिनियम 1972 में पारित किया गया था ताकि लगातार हो रहे शिकार, वन विनाश और वन्यजीवों के अवैध व्यापार को रोका...




















