क्या न्यायालय शव को कब्र से निकालने की अनुमति दे सकता है या यह केवल विशेष परिस्थितियों में संभव है?

Himanshu Mishra

26 Feb 2025 12:34 PM

  • क्या न्यायालय शव को कब्र से निकालने की अनुमति दे सकता है या यह केवल विशेष परिस्थितियों में संभव है?

    सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद लतीफ मगरे बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर (2022) मामले में यह तय किया कि क्या संविधान के अनुच्छेद 21 (Article 21 - Right to Life) के तहत गरिमा का अधिकार (Right to Dignity) केवल जीवित व्यक्तियों तक सीमित है, या यह मृत्यु के बाद भी लागू होता है।

    यह मामला सरकारी अधिकारियों द्वारा मृतक के शव को परिवार को सौंपने से इनकार करने और उसे धार्मिक रीति-रिवाजों (Religious Rites) के अनुसार दफनाने के अधिकार से जुड़ा था।

    अदालत ने इस फैसले में दफनाए गए शव को बाहर निकालने (Exhumation) के कानूनी प्रावधानों, धार्मिक अधिकारों (Religious Rights), लोक व्यवस्था (Public Order) और मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की सीमा का गहराई से विश्लेषण किया।

    अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा का अधिकार (Right to Dignity under Article 21)

    सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि गरिमा का अधिकार (Right to Dignity) केवल जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मृत्यु के बाद भी बना रहता है।

    पंडित परमानंद कटारा बनाम भारत संघ (1995) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत गरिमापूर्ण व्यवहार (Fair Treatment) का अधिकार मृतकों (Dead) को भी प्राप्त होता है। अश्रय अधिकार अभियान बनाम भारत संघ (2002) मामले में भी कोर्ट ने कहा कि बेघर मृतकों को भी गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार (Dignified Burial) का अधिकार है।

    रामजी सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2009) मामले में कहा गया कि मृत शरीर को भी वही सम्मान मिलना चाहिए जो जीवित व्यक्ति को मिलता है। मोहम्मद लतीफ मगरे मामले में कोर्ट ने माना कि शव को परिवार को सौंपा जाना चाहिए था, लेकिन इतनी देर बाद शव निकालने (Exhumation) की मांग को व्यावहारिक (Practical) नहीं माना जा सकता।

    शव निकालने (Exhumation) से जुड़े कानूनी प्रावधान (Legal Provisions on Exhumation)

    कोर्ट ने भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure - CrPC) की धारा 176(3) (Section 176(3) CrPC) का विश्लेषण किया, जो अपराध की जांच (Crime Investigation) के लिए शव निकालने (Exhumation) की अनुमति देती है।

    जब हत्या (Homicide), जहरीला पदार्थ (Poisoning), या संदिग्ध मृत्यु (Suspicious Death) का संदेह हो, तब शव निकाला जा सकता है। लेकिन यह कोई मौलिक अधिकार (Fundamental Right) नहीं है, बल्कि न्यायालय के विवेक (Discretion of Court) पर निर्भर करता है।

    कोर्ट ने अमेरिकी केस पेटीग्रो बनाम पेटीग्रो (1904) और योम बनाम गोरमैन (1926) का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि शव को तभी निकाला जाना चाहिए जब उसके लिए कोई ठोस कारण (Substantial Reason) हो।

    धार्मिक अधिकार बनाम लोक व्यवस्था (Religious Rights vs Public Order)

    कोर्ट ने धार्मिक अधिकारों (Religious Rights) और लोक व्यवस्था (Public Order) के बीच संतुलन पर विचार किया। गुलाम अब्बास बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1984) मामले में कहा गया था कि अनुच्छेद 25 (Article 25 - Freedom of Religion) के तहत धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Freedom) का अधिकार लोक व्यवस्था, नैतिकता (Morality) और स्वास्थ्य (Health) के अधीन है।

    कोर्ट ने मोहम्मद हमीद बनाम बड़ी मस्जिद ट्रस्ट (2011) मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया कि इस्लामी कानून (Islamic Law) के अनुसार दफनाए गए शव को बिना उचित कारण (Justified Reason) के नहीं निकाला जा सकता। कोर्ट ने यह भी माना कि कब्र को खोदना (Disinterment) धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है और इससे सार्वजनिक शांति (Public Peace) भंग हो सकती है।

    सार्वजनिक स्वास्थ्य और नीति (Public Health and Policy Considerations)

    कोर्ट ने इस मामले में सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) से जुड़े पहलुओं पर भी ध्यान दिया। विनीत रूइया बनाम स्वास्थ्य मंत्रालय (2020) में कहा गया था कि महामारी (Pandemic) के दौरान धार्मिक प्रथाओं (Religious Practices) पर स्वास्थ्य संबंधी प्रतिबंध (Health Restrictions) लगाए जा सकते हैं।

    कोर्ट ने माना कि नौ महीने बाद शव निकालना व्यावहारिक नहीं होगा, क्योंकि यह पूरी तरह सड़ (Decomposed) चुका होगा। आनंदी साइमन बनाम तमिलनाडु राज्य (2021) मामले में कहा गया कि भारत में शव निकालने (Exhumation) के लिए कोई स्पष्ट कानून नहीं है, इसलिए सरकार को इस पर कानून बनाने पर विचार करना चाहिए।

    अनुच्छेद 136 के तहत न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review under Article 136)

    सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 136 (Article 136 - Special Leave to Appeal) के तहत अपनी सीमित भूमिका को स्पष्ट किया। प्रीतम सिंह बनाम राज्य (1950) और हेमराज बनाम अजमेर राज्य (1954) में कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 136 का उपयोग केवल गंभीर अन्याय (Substantial Injustice) होने पर किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने पी.एस.आर. साधानंथम बनाम अरुणाचलम (1980) मामले का हवाला देते हुए कहा कि विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition - SLP) केवल अपवादात्मक मामलों (Exceptional Cases) में स्वीकार की जानी चाहिए।

    अंतिम निर्णय और निष्कर्ष (Final Judgment and Conclusion)

    सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए शव निकालने (Exhumation) की अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन मृतक के परिवार को कब्र पर धार्मिक अनुष्ठान (Religious Rituals) करने की अनुमति दी।

    कोर्ट ने पाया कि शव को पहले ही गरिमा के साथ दफनाया जा चुका था, इसलिए अब इसे निकालना व्यावहारिक नहीं होगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि परिवार की भावनाओं को ठेस पहुंची है, इसलिए पांच लाख रुपये का मुआवजा (Compensation) देने के हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया।

    कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति के धार्मिक अधिकार (Religious Rights) और गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार (Dignified Burial) का अधिकार महत्वपूर्ण है, लेकिन यह लोक व्यवस्था (Public Order) और स्वास्थ्य (Health) से ऊपर नहीं हो सकता।

    सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि भारत सरकार को शव निकालने (Exhumation) से जुड़े मामलों को नियंत्रित करने के लिए एक स्पष्ट कानून (Legislation) बनाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे मामलों में दिशानिर्देश (Guidelines) उपलब्ध हो सकें।

    मोहम्मद लतीफ मगरे मामला यह दर्शाता है कि अदालतों को मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) और सार्वजनिक हित (Public Interest) के बीच संतुलन स्थापित करना पड़ता है।

    यह फैसला दो महत्वपूर्ण सिद्धांतों को स्थापित करता है पहला, गरिमापूर्ण अंतिम संस्कार (Dignified Burial) का अधिकार मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) का हिस्सा है, और दूसरा, यह अधिकार लोक व्यवस्था (Public Order) और स्वास्थ्य (Health) के अधीन है।

    यह फैसला न केवल संवैधानिक अधिकारों (Constitutional Rights) को परिभाषित करता है, बल्कि सरकार को इस विषय पर एक स्पष्ट कानून (Legislative Clarity) बनाने की दिशा में भी मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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