क्या संविधान के तहत एक ही देश में राज्य विशेष का अलग निवास स्थान संभव है?
Himanshu Mishra
27 Feb 2025 12:07 PM

State of Telangana v. B. Subba Rayudu का फैसला, जो 14 सितंबर 2022 को भारत के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा सुनाया गया, राज्य पुनर्गठन (State Reorganization), कर्मचारियों के आवंटन (Allocation of Employees) और भारतीय संविधान (Indian Constitution) के तहत Domicile की अवधारणा से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करता है।
यह मामला मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के दो राज्यों - आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विभाजन के संबंध में था, जो Andhra Pradesh State Reorganisation Act, 2014 के तहत किया गया। अदालत को यह तय करना था कि क्या भारत में किसी राज्य का अलग Domicile हो सकता है और दो राज्यों के बीच कर्मचारियों का आवंटन कैसे किया जाना चाहिए।
भारतीय संविधान के तहत Domicile की अवधारणा (Concept of Domicile under the Indian Constitution)
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि भारतीय संविधान के तहत केवल एक ही Domicile होता है, जो पूरे देश के लिए होता है। अदालत ने Dr. Pradeep Jain v. Union of India (1984) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि भारतीय संविधान में किसी राज्य का अलग Domicile नहीं होता।
Domicile का अर्थ (Meaning) किसी स्थान पर स्थायी निवास और वहां रहने की इच्छा से है। भारत में केवल राष्ट्रीय Domicile को मान्यता दी जाती है और अलग-अलग राज्यों के लिए कोई अलग Domicile नहीं होता।
अदालत ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 19(1)(e) (Article 19(1)(e)) प्रत्येक नागरिक को देश के किसी भी भाग में रहने और बसने का मौलिक अधिकार (Fundamental Right) प्रदान करता है। कोई भी कानून या प्रशासनिक दिशानिर्देश (Administrative Guidelines) इस अधिकार को कम नहीं कर सकता। यदि Andhra Pradesh State Reorganisation Act, 2014 के तहत बनाए गए दिशानिर्देश नागरिकों के इस अधिकार को बाधित करते हैं, तो वे अनुच्छेद 13(2) (Article 13(2)) के तहत शून्य (Void) होंगे।
कर्मचारियों का आवंटन (Allocation of Employees)
आंध्र प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत कर्मचारियों को दो राज्यों के बीच विभाजित किया गया। केंद्र सरकार ने 30 अक्टूबर 2014 को दिशानिर्देश (Guidelines) जारी किए, जिसमें कर्मचारियों के आवंटन के सिद्धांत (Principles) बताए गए।
इन दिशानिर्देशों के अनुसार, कर्मचारियों का आवंटन उनकी पसंद (Option), वरिष्ठता (Seniority) और स्थानीय प्रत्याशी (Local Candidature) के आधार पर किया जाना था। अदालत ने कहा कि कर्मचारियों का आवंटन दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाना चाहिए, लेकिन इन दिशानिर्देशों की व्याख्या संविधान द्वारा प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों के अनुरूप की जानी चाहिए।
जीवनसाथी के आधार पर आवंटन (Spouse Grounds for Allocation)
अदालत ने यह भी कहा कि जिन कर्मचारियों के पति या पत्नी सरकारी सेवा में हैं, उन्हें जहां तक संभव हो, एक ही राज्य में आवंटित किया जाना चाहिए। अदालत ने इस प्रावधान को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा कि इसका पालन परिवारों को अनावश्यक कठिनाइयों से बचाने के लिए किया जाना चाहिए।
वर्तमान मामले में, प्रतिवादी की पत्नी तेलंगाना में कार्यरत थीं और प्रतिवादी ने तेलंगाना के लिए विकल्प (Option) दिया था। अदालत ने पाया कि अधिकारियों ने इस पहलू पर ध्यान नहीं दिया और तकनीकी आधार पर प्रतिवादी के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।
वरिष्ठता और स्थानीय प्रत्याशी (Seniority and Local Candidature)
अदालत ने कहा कि कर्मचारियों का आवंटन मुख्य रूप से उनकी वरिष्ठता (Seniority) के आधार पर किया जाना चाहिए। दिशानिर्देशों के अनुसार, कर्मचारियों की वरिष्ठता की गणना 1 जून 2014 के आधार पर की जानी थी।
State of Tamil Nadu v. K. Shyam Sunder (2011) मामले में कहा गया कि सार्वजनिक रोजगार (Public Employment) के मामलों में वरिष्ठता एक महत्वपूर्ण कारक है और इसे बिना वैध कारणों के नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मौलिक अधिकारों के साथ समरस व्याख्या (Harmonious Construction of Guidelines and Fundamental Rights)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि सभी कानूनों, नियमों, विनियमों और दिशानिर्देशों की व्याख्या संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के साथ सामंजस्यपूर्ण (Harmonious) तरीके से की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि दिशानिर्देशों को उदार और लचीले (Flexible) तरीके से लागू किया जाना चाहिए।
अदालत ने Minerva Mills Ltd. v. Union of India (1980) मामले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि राज्य नीति के निदेशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy) की व्याख्या मौलिक अधिकारों के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से की जानी चाहिए।
State of Telangana v. B. Subba Rayudu का निर्णय Domicile, कर्मचारियों के आवंटन और प्रशासनिक दिशानिर्देशों की व्याख्या के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
अदालत ने यह दोहराया कि भारतीय संविधान के तहत केवल एक ही Domicile होता है और कोई कानून या दिशानिर्देश नागरिकों के देश के किसी भी भाग में बसने के मौलिक अधिकार को प्रतिबंधित नहीं कर सकता। यह निर्णय प्रशासनिक निर्णयों में निष्पक्षता (Fairness), विवेकशीलता (Reasonableness) और गैर-अनुचितता (Non-Arbitrariness) के महत्व को रेखांकित करता है।