Transfer Of Property Act की धारा 116 के प्रावधान

Shadab Salim

28 Feb 2025 4:19 PM

  • Transfer Of Property Act की धारा 116 के प्रावधान

    किसी भी पट्टे की एक कालावधि होती है। उस कालावधि के अंतर्गत लीज़ विधमान रहता है। पट्टे का जब पर्यवसान हो जाता है या निरस्त हो जाता है या उसकी कालावधि समाप्त हो जाती है या उसकी शर्तों का पालन हो जाता है तब भी Lesseeलीज़ संपत्ति को धारण किए रहता है ऐसी स्थिति को अतिधारण कहा जाता है जिसका उल्लेख संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 116 के अंतर्गत किया गया है।

    अतिधारण “ अतिधारण" से आशय है Lesseeद्वारा पट्टाजनित सम्पत्ति का कब्जा. लीज़ की शर्तों के समाप्त होने के पश्चात् भी धारण किये रहना। इस सन्दर्भ में, एक ऐसे अतिधारक जो पट्टाकर्ता/भू-स्वामी की सहमति से तथा एक ऐसे अतिधारक जो पट्टाकर्ता/भू-स्वामी की सहमति के बगैर सम्पत्ति को धारण कर रहा हो विभेद किया जाना आवश्यक है। वह Lesseeजो सहमति के साथ लीज़ सम्पत्ति को, लीज़ की अवधि की समाप्ति के उपरान्त धारण करता है, "इच्छाजनित पट्टेदार" कहलाता है जबकि वह Lesseeजो बिना Lessor की सहमति से धारण करता है "मर्षण जात पट्टेदार" कहलाता है। मर्षण जात Lesseeकी हैसियत, एक अतिचारी के तुल्य होती है, इससे श्रेष्ठ नहीं होती है। ऐसे Lesseeको, किसी भी समय छोड़ने को नोटिस दिये बिना, लीज़ सम्पत्ति से बेदखल किया जा सकेगा। मर्षण जात पट्टे का सृजन संविदा द्वारा नहीं हो सकेगा।

    यह केवल विधि की विवक्षा से स्पष्ट होता है जब एक व्यक्ति विधितः सम्पत्ति का कब्जा एक निश्चित अवधि के लिए धारण करता है और विधितः सृजित हित के समापन के पश्चात् भी सम्पत्ति को धारण किये रहता है उस व्यक्ति की सहमति के बिना जो उसे लीज़ अवधि के समापन के उपरान्त धारण करने का हकदार है। इच्छाजनित लीज़ भी विधि की विवक्षा से ही अस्तित्व में आता है, परन्तु इस मामले में धारणा अनुज्ञात्मक होती है। यदि पट्टे का सृजन एक म्यूनिसपिलिटी द्वारा नवीकरण की शर्त के साथ किया गया है और नवीकरण की शर्त यह थी Lesseeकीमत एवं किराया यथोल्लिखित तिथि तक अदा कर देगा, पर वह शर्त का अनुपालन करने में विफल रहा।

    ऐसा व्यक्ति Lesseeहोगा भले ही म्यूनिसिपिलिटी पुराने दर पर ही दिया गया किराया स्वीकार कर ले तथा Lesseeबिना किसी नोटिस के लीज़ सम्पत्ति से बेदखल किया जा सकेगा। जहाँ Lesseeलीज़ की अवधि के समापन के उपरान्त लीज़ सम्पत्ति को धारित किये रहता है और इस निमित्त उसे Lessor को अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति प्राप्त नहीं है, तो वह मात्र एक अतिचारी है और यदि वह Lessor के अध्यधीन हित धारक द्वारा लीज़ सम्पत्ति से बेदखल कर दिया जाता है तो वह सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने हेतु वाद संस्थित नहीं कर सकेगा और न ही अपने पूर्व कब्जे के आधार पर अपने हित/स्वत्व की उद्घोषणा हेतु वाद संस्थित कर सकेगा।

    "अतिधारण" का अभिप्राय है भूस्विामी एवं किराएदार के बीच सम्बन्ध जिसके अध्यधीन दोनों पक्षकारों की सहमति से किरायेदार को अनुमति दी जाती है कि वह अपने किरायेदारी को निरन्तर जारी रखे। यदि भू-स्वामी पट्टे के समापन के पश्चात् सद्भावपूर्ण त्रुटि के अन्तर्गत एक महोने का किराया स्वीकार कर लेता है तथा त्रुटि का आभास होने के पश्चात् भू-स्वामी किराये की रकम किराएदार को तुरन्त वापस कर देता है, तो यह नहीं कहा जा सकेगा कि टेनेन्सी 'अतिधारण' द्वारा निरन्तर बनी रही। भू-स्वामी सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त करने हेतु प्राधिकृत होगा।

    अतिधारण के मामलों में किराया की स्वीकृति अथवा भू-स्वामी की अभिव्यक्त या विवक्षित सम्मति से पट्टे का नवीकरण हो जाता है, किन्तु यह मूल पट्टे का चालू रहना नहीं होगा। यदि पट्टाकर्ता, Lesseeसे किराया नहीं स्वीकार करता है, तो नवीन पट्टेदारी का सृजन नहीं होगा यदि एक अवैध पट्टे के फलस्वरूप Lesseeको सम्पत्ति का कब्जा प्राप्त हो गया तथा वह Lessor को कई वर्षों तक किराये का भुगतान करता रहा तो ऐसी स्थिति में वादी इस धारा के अन्तर्गत मासानुमासो Lesseeसमझा जायेगा।

    Lesseeकी बेदखली हेतु संस्थित किये जाने वाले वाद को दाखिल करने में हुए विलम्ब के कारण अतिधारण द्वारा पट्टेदारी का सृजन हुआ नहीं माना जायेगा। यदि पट्टे की अवधि के समापन के पश्चात् Lesseeसम्पत्ति को अपने कब्जे में बनाये रख, उसने न किराये का भुगतान किया और न ही उससे किराये की माँग की गयी पर किराया स्वीकार किया गया, किन्तु त्रुटिवश महीने के द्वितीय पखवाड़े के किराये की माँग की गयी क्योंकि पट्टे की अवधि का समापन महीने की 15 तारीख को होता था।

    इन तथ्यों के आधार पर यह अभिनिर्णीत हुआ कि पट्टेदार, Lessor की सम्मति से अतिधारण नहीं कर रहा है। अतिधारण की स्थिति को पुख्ता करने हेतु पढ़ेदार को यह साबित करना होगा कि पट्टे के पर्यवसान के उपरान्त वह न केवल लीज़ सम्पत्ति को धारण कर रहा है, अपितु यह भी साबित करना होगा कि Lessor ने उससे किराया स्वीकार किया था अथवा अन्यथा उसने अपनी सहमति पट्टे को निरन्तरता हेतु दी थी। पर्यवसान के उपरान्त Lesseeको बेदखल करने हेतु दाखिल किये जाने वाला वाद समय से दाखिल न होना, या विलम्ब से दाखिल होना इस बात का प्रतीक नहीं है कि Lessor ने Lesseeको लीज़ सम्पत्ति में बने रहने के लिए अपनी सम्मति दे दी है।

    Lessor द्वारा छोड़ने को नोटिस की तामील, ऐसी परिस्थिति में, इस बात का निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त नहीं है कि Lessor ने अतिधारण हेतु सम्मति दे दी है। इसी प्रकार एक सांविधिक Lesseeद्वारा किराये का भुगतान तथा लैण्डलार्ड द्वारा उसकी स्वीकृति इस बात का साक्ष्य नहीं है कि अतिधारण द्वारा एक नवीन पट्टेदारों का सृजन हो गया है।

    लॅण्डलार्ड को सम्मति का, इस प्रयोजन हेतु स्वतंत्र साक्ष्य होना आवश्यक है। अतिधारण का सिद्धान्त तभी प्रवर्तित होता है जब पट्टे का पर्यवसान हो गया हो। यदि पट्टे को पर्यवसान अभी नहीं हुआ है तो अतिधारण अस्तित्व में नहीं आयेगा। अतः यदि पट्टे के पर्यवसान के उपरान्त Lesseeलीज़ विलेख में उल्लिखित नवीकरण खण्ड के अन्तर्गत सम्पत्ति को धारण कर रहा है तो यह समझा जायेगा कि पट्टाधृत सम्पत्ति में उसके अधिकार लीज़ विलेख अस्तित्व में आये हैं तथा ऐसे Lesseeका मामला, धारा 116 के क्षेत्राधिकार से परे होगा।

    अतिधारण का सिद्धान्त मूल Lesseeके सन्दर्भ में लागू होता है न कि उसके प्रतिनिधि के सन्दर्भ में अतः यदि मूल Lesseeकी मृत्यु हो जाती है तथा सम्पत्ति का कब्जा उसका विधिक उत्तराधिकारी प्राप्त कर लेता है, तो वह ऐसा एक अतिचारी के रूप में करता हुआ माना जायेगा और लैण्डलार्ड इस धारा के अन्तर्गत मात्र अपनी सम्मति देकर ऐसे प्रतिनिधि को अपना Lesseeनहीं बना सकेगा जब तक कि दोनों पक्षकारों को सम्मति से एक नवीन पट्टेदारों का सृजन नहीं होता है।

    धारा 116 में उल्लिखित पट्टेदारी केवल मूल Lesseeके पक्ष में सृजित होगी। इस प्रकार की पट्टेदारी निर्धारित अवधि के पट्टों में ही सृजित होती है न कि जोवनकाल के लिए सृजित पट्टों में आजीवन Lesseeके प्रतिनिधि समनुदेशिती के रूप में वर्षानुवर्षी Lesseeनहीं बनेंगे। जब 1 तक कि धारा 107 में उल्लिखित औपचारिकताएँ पूर्ण न हो जायें। दूसरे शब्दों में ऐसे व्यक्ति वर्षानुवर्षी प्रकृति के Lesseeकेवल तभी बनेंगे जब रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज निष्पादित हो जाये। वे इच्छाजनित Lesseeबन सकेंगे अथवा मौखिक संविदा के आधार पर 1 वर्ष के लिए बिना रजिस्ट्रीकृत विलेख के।

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