अपर्याप्त स्टाम्प लगे दस्तावेजों की वैधता: भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 35
Himanshu Mishra
28 Feb 2025 4:31 PM

भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 (Indian Stamp Act, 1899) विभिन्न दस्तावेजों (Documents) पर स्टाम्प शुल्क (Stamp Duty) लगाने और एकत्र करने से संबंधित कानून है। यह कानून सुनिश्चित करता है कि सभी कानूनी दस्तावेज़ (Legal Documents) वैध और प्रमाणिक हों।
इस अधिनियम की पिछली धाराएँ, जैसे धारा 33 और 34, उन दस्तावेजों की जाँच और जब्ती (Examination and Impounding) से संबंधित हैं जो सही तरीके से स्टाम्प नहीं किए गए हैं।
अब, धारा 35 यह निर्धारित करती है कि यदि कोई दस्तावेज़ स्टाम्प शुल्क के लिए बाध्य (Chargeable) है, लेकिन उस पर सही स्टाम्प नहीं लगाया गया है, तो उसे कानूनी कार्यवाही (Legal Proceedings) में साक्ष्य (Evidence) के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा और न ही किसी सरकारी कार्यालय (Public Office) द्वारा उस पर कार्रवाई की जाएगी, जब तक कि वह दस्तावेज़ पूरी तरह से स्टाम्प नहीं किया गया हो।
हालांकि, इस धारा में कुछ अपवाद (Exceptions) और सुधारात्मक उपाय (Remedial Measures) भी दिए गए हैं, जिनके तहत ऐसे दस्तावेजों को कुछ शर्तों पर वैध (Valid) माना जा सकता है।
धारा 35 का मूल सिद्धांत: अपर्याप्त स्टाम्प लगे दस्तावेजों की अमान्यता (General Rule of Section 35: Inadmissibility of Unstamped Instruments)
धारा 35 का मुख्य नियम यह कहता है कि यदि कोई दस्तावेज़, जो स्टाम्प शुल्क के अधीन है, बिना उचित स्टाम्प शुल्क के प्रस्तुत किया जाता है, तो:
1. वह किसी भी कानूनी कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
2. कोई भी अधिकारी, जिसे कानूनन साक्ष्य प्राप्त करने या दस्तावेज़ प्रमाणित करने का अधिकार है, उस पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा।
3. कोई भी सरकारी अधिकारी उस दस्तावेज़ को प्रमाणित (Authenticate) या पंजीकृत (Register) नहीं करेगा।
इसका मतलब यह है कि यदि कोई व्यक्ति किसी अनुबंध (Contract) या बिक्री विलेख (Sale Deed) को बिना उचित स्टाम्प के अदालत में पेश करता है, तो अदालत उसे तब तक स्वीकार नहीं करेगी जब तक कि वह स्टाम्प शुल्क का भुगतान नहीं करता।
धारा 35 के अंतर्गत अपवाद और सुधारात्मक उपाय (Exceptions and Remedial Provisions Under Section 35)
हालांकि इस धारा के तहत दस्तावेज़ों की वैधता पर रोक लगाई गई है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में उन्हें स्वीकार करने की अनुमति दी गई है।
स्टाम्प शुल्क और दंड का भुगतान करके दस्तावेज़ को वैध बनाना (Payment of Stamp Duty with Penalty)
यदि कोई दस्तावेज़ अपर्याप्त स्टाम्प शुल्क (Insufficiently Stamped) के साथ प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे स्वीकार करने के लिए व्यक्ति को निम्नलिखित भुगतान करना होगा:
1. बकाया स्टाम्प शुल्क (Deficient Stamp Duty) का भुगतान।
2. एक दंड (Penalty), जो निम्न में से जो अधिक हो, वह होगी:
o न्यूनतम ₹5
o बकाया स्टाम्प शुल्क का 10 गुना
उदाहरण: यदि किसी अनुबंध (Contract) पर ₹100 का स्टाम्प शुल्क देय था, लेकिन केवल ₹50 का स्टाम्प लगाया गया, तो ₹50 की कमी होगी। इस स्थिति में, दंड ₹5 या ₹500 (₹50 का 10 गुना) जो अधिक हो, लगाया जाएगा।
बिना स्टाम्प वाली रसीदों की स्वीकार्यता (Admissibility of Unstamped Receipts Against the Issuer)
अगर कोई व्यक्ति, जिससे स्टाम्प लगी हुई रसीद (Receipt) मांगी जा सकती थी, बिना स्टाम्प की रसीद देता है, तो वह रसीद भी साक्ष्य के रूप में स्वीकार की जा सकती है।
इसके लिए रसीद को प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को केवल ₹1 का दंड देना होगा।
उदाहरण: यदि कोई मकान मालिक (Landlord) किराए की राशि प्राप्त करता है और बिना स्टाम्प की रसीद देता है, तो किराएदार (Tenant) इसे अदालत में प्रस्तुत कर सकता है। हालांकि, इसके लिए उसे ₹1 का दंड भरना होगा।
पत्राचार के माध्यम से हुए अनुबंध (Contracts Formed Through Correspondence)
अगर कोई अनुबंध या समझौता (Agreement) पत्राचार (Correspondence) के माध्यम से किया जाता है और पत्रों में से किसी एक पर सही स्टाम्प लगा है, तो संपूर्ण अनुबंध को सही ढंग से स्टाम्प किया हुआ माना जाएगा।
उदाहरण: यदि दो व्यापारिक साझेदार (Business Partners) कई पत्रों के आदान-प्रदान के माध्यम से अनुबंध करते हैं और उनमें से एक पत्र पर सही स्टाम्प लगा है, तो यह अनुबंध वैध माना जाएगा।
आपराधिक मामलों में दस्तावेजों की स्वीकार्यता (Admissibility in Criminal Proceedings)
धारा 35 के अनुसार, अपर्याप्त स्टाम्प लगे दस्तावेज़ों को आपराधिक मामलों (Criminal Cases) में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। हालांकि, यह छूट केवल उन्हीं मामलों पर लागू होती है जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (Code of Criminal Procedure, 1898) के अध्याय XII और अध्याय XXXVI के अंतर्गत नहीं आते।
उदाहरण: यदि धोखाधड़ी (Fraud) के एक मामले में एक अनुबंध प्रस्तुत किया जाता है, जो ठीक से स्टाम्प नहीं किया गया था, तो अदालत इसे स्वीकार कर सकती है।
सरकारी दस्तावेजों की स्वीकार्यता (Government Executed Documents)
यदि कोई दस्तावेज़ सरकार द्वारा या सरकार की ओर से (Executed by or on Behalf of Government) तैयार किया गया है, तो इसे धारा 35 के तहत छूट प्राप्त होगी। इसी प्रकार, यदि कलेक्टर (Collector) द्वारा किसी दस्तावेज़ को प्रमाणित किया गया है, तो इसे भी वैध माना जाएगा।
उदाहरण: यदि किसी सरकारी विभाग द्वारा बिना स्टाम्प शुल्क के एक पट्टा अनुबंध (Lease Agreement) निष्पादित किया जाता है, तो भी यह वैध रहेगा।
धारा 35 के व्यावहारिक उदाहरण (Illustrations of Section 35 in Practical Scenarios)
उदाहरण 1: अपर्याप्त स्टाम्प वाला बिक्री विलेख (Insufficiently Stamped Sale Deed)
यदि किसी संपत्ति की बिक्री के लिए ₹5,000 का स्टाम्प शुल्क आवश्यक था, लेकिन अनुबंध केवल ₹2,000 के स्टाम्प पर बनाया गया, तो अदालत इसे तब तक स्वीकार नहीं करेगी जब तक कि खरीदार ₹3,000 का शेष शुल्क और दंड का भुगतान नहीं करता।
उदाहरण 2: आपराधिक मामले में बिना स्टाम्प का ऋण अनुबंध (Unstamped Loan Agreement in Criminal Case)
अगर एक व्यक्ति बिना स्टाम्प के ऋण अनुबंध (Loan Agreement) पर हस्ताक्षर करता है और बाद में भुगतान से इनकार करता है, तो धोखाधड़ी के मामले में यह अनुबंध अदालत में प्रमाण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
उदाहरण 3: सरकारी दस्तावेज़ (Government-Issued Document)
अगर किसी सरकारी विभाग द्वारा निष्पादित दस्तावेज़ पर स्टाम्प शुल्क नहीं लगाया गया है, तो भी इसे अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है।
भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 की धारा 35 यह सुनिश्चित करती है कि सभी कानूनी दस्तावेज़ सही स्टाम्प शुल्क के साथ बनाए जाएं। इस धारा के तहत बिना स्टाम्प वाले दस्तावेज़ों को कानूनी कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में इन्हें स्वीकार करने की अनुमति दी गई है।
इसलिए, किसी भी कानूनी जटिलता (Legal Complication) से बचने के लिए यह आवश्यक है कि सभी दस्तावेज़ों पर उचित स्टाम्प लगाया जाए, ताकि वे कानूनी रूप से वैध (Legally Valid) बने रहें।