क्या लंबित अपील के कारण दोषियों की स्वतंत्रता को अनिश्चितकाल तक रोका जा सकता है?
Himanshu Mishra
3 March 2025 1:26 PM

सुप्रीम कोर्ट ने Sonadhar बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2022) मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया, जिसमें ऐसे दोषियों की रिहाई (Release) के बारे में निर्देश दिए गए जिन्होंने अपनी सजा के 10 साल पूरे कर लिए हैं, लेकिन उनकी अपील (Appeal) पर जल्द सुनवाई होने की संभावना नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि ऐसे दोषियों को जमानत दी जानी चाहिए जब तक कि उनके खिलाफ कोई खास परिस्थिति (Extenuating Circumstances) न हो जो उनकी जेल में रहने को उचित ठहराए। यह फैसला न्याय (Justice) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Liberty) के अधिकार को बनाए रखने के उद्देश्य से दिया गया है।
सजा के बाद जमानत की कानूनी व्याख्या (Judicial Interpretation of Post-Conviction Bail)
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्पष्ट किया कि दोषियों को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना तभी उचित है जब उनके खिलाफ कोई विशेष परिस्थिति हो। अदालत ने कहा कि जमानत देने का मतलब दोषी को निर्दोष मानना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि न्यायिक प्रक्रिया (Judicial Process) की देरी एक अप्रत्यक्ष सजा (Indirect Punishment) न बन जाए।
यह फैसला Hussainara Khatoon बनाम बिहार राज्य (1979) मामले के सिद्धांत को आगे बढ़ाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 (Article 21) के तहत त्वरित सुनवाई (Speedy Trial) के अधिकार को मौलिक अधिकार (Fundamental Right) माना था। अदालत ने कहा था कि न्यायिक प्रक्रिया में देरी से किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
महत्वपूर्ण न्यायिक मिसालें (Relevant Judicial Precedents)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कई पुराने फैसलों का उल्लेख किया। Anokhilal बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2019) मामले में अदालत ने कहा था कि हर आरोपी को प्रभावी कानूनी सहायता (Legal Aid) का अधिकार है, चाहे उसकी आर्थिक स्थिति (Economic Status) कुछ भी हो।
इसी प्रकार, Supreme Court Legal Aid Committee बनाम भारत संघ (1994) मामले में अदालत ने कहा था कि आजीवन कारावास (Life Imprisonment) के दोषियों को एक निश्चित अवधि के बाद समयपूर्व रिहाई (Premature Release) पर विचार किया जाना चाहिए।
Sonadhar मामले में भी यही सिद्धांत लागू किया गया कि अगर दोषी ने 10 साल की सजा पूरी कर ली है और उसकी अपील जल्द सुनवाई में नहीं आ रही है, तो उसे जमानत मिलनी चाहिए।
मौलिक कानूनी मुद्दे (Fundamental Legal Issues)
इस मामले में कोर्ट ने दो मुख्य मुद्दों पर विचार किया। पहला मुद्दा यह था कि दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार (Right to Personal Liberty) और गंभीर अपराधों में दोषी व्यक्तियों को समाज की सुरक्षा के लिए जेल में रखने की आवश्यकता के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।
अदालत ने कहा कि सिर्फ अपराध की गंभीरता (Gravity of Crime) के आधार पर किसी दोषी को अनिश्चितकाल तक जेल में रखना उचित नहीं है, जब तक कि उसके खिलाफ कोई विशेष कारण न हो।
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा न्यायिक प्रणाली (Judicial System) की धीमी गति थी, जिसके कारण अपीलों की सुनवाई में वर्षों लग जाते हैं। अदालत ने माना कि यह समस्या दोषी की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है। इस फैसले का उद्देश्य जेलों में भीड़ कम करना और यह सुनिश्चित करना है कि दोषियों को अनावश्यक रूप से जेल में न रखा जाए।
कोर्ट के निर्देश और उनके प्रभाव (Court's Directions and Their Implications)
सुप्रीम कोर्ट ने सभी High Courts को निर्देश दिया कि वे ऐसे दोषियों की पहचान करें जिन्होंने 10 साल की सजा पूरी कर ली है और जिनकी अपील जल्द सुनवाई में नहीं आ रही है। अदालत ने कहा कि ऐसे दोषियों को जमानत दी जानी चाहिए जब तक कि उनके खिलाफ कोई खास कारण न हो।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि जिन्होंने 14 साल की सजा पूरी कर ली है, उनके मामलों को समयपूर्व रिहाई (Premature Release) के लिए राज्य सरकार के पास भेजा जाना चाहिए। यह फैसला न केवल दोषियों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि जेलों में भीड़भाड़ की समस्या को हल करने में भी मदद करता है।
Sonadhar बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2022) मामला एक महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप (Judicial Intervention) है, जिसने यह सुनिश्चित किया कि दोषियों को न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति के कारण अनावश्यक रूप से जेल में न रखा जाए।
यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करता है और न्याय प्रणाली को अधिक न्यायपूर्ण और प्रभावी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत के निर्देशों से जेलों में भीड़भाड़ कम होने की संभावना है और दोषियों को उनके अधिकारों के अनुसार न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।