जब मानसिक रूप से अस्वस्थ क़ैदी अपनी रक्षा करने में सक्षम हो – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 376
Himanshu Mishra
3 March 2025 1:23 PM

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करती है, जब वे किसी अपराध के आरोपी होते हैं। यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे व्यक्तियों को न्यायिक प्रक्रिया में उचित अवसर दिया जाए।
धारा 376 उस स्थिति से संबंधित है जब किसी व्यक्ति को पहले मानसिक रूप से अस्वस्थ मानकर हिरासत (Detention) में रखा गया था, लेकिन अब उसे अपनी रक्षा (Defence) करने के लिए सक्षम पाया जाता है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि ऐसे व्यक्ति को सही समय पर न्यायालय (Court) के समक्ष प्रस्तुत किया जाए और उसकी सुनवाई फिर से शुरू हो।
इस धारा को समझने के लिए हमें पहले की संबंधित धाराओं को भी देखना होगा, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपियों से संबंधित हैं। धारा 376, इस विषय में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है, जहां एक अस्वस्थ व्यक्ति को दोबारा मुकदमे की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है।
पहली की धाराओं से संबंध (Connection with Previous Sections)
धारा 376 को सही तरीके से समझने के लिए, हमें अन्य संबंधित धाराओं पर ध्यान देना होगा:
• धारा 367: जब किसी आरोपी को मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है, तो उसके मुकदमे (Trial) या जांच (Inquiry) को स्थगित (Postpone) किया जा सकता है।
• धारा 368: अस्वस्थ आरोपी को सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य संस्था (Public Mental Health Establishment) या जेल में हिरासत में रखा जा सकता है।
• धारा 369: ऐसे व्यक्ति को कुछ शर्तों के साथ रिहा (Release) करने की अनुमति दी जा सकती है।
• धारा 370: जब आरोपी मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है, तो मुकदमे या जांच को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया दी गई है।
• धारा 371: जब आरोपी दोबारा न्यायालय में उपस्थित होता है, तो न्यायालय द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया दी गई है।
धारा 376 इन प्रावधानों की अगली कड़ी है, जो यह बताती है कि जब एक मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को फिर से स्वस्थ माना जाता है, तो उसे मुकदमे की प्रक्रिया में कैसे वापस लाया जाएगा।
रक्षा करने की क्षमता प्रमाणित करने की प्रक्रिया (Certification of Fitness to Defend)
जब कोई व्यक्ति धारा 369(2) के तहत मानसिक अस्वस्थता के कारण हिरासत में होता है, तो उसके स्वास्थ्य की निगरानी (Monitoring) की जाती है। यदि उसे अब अपनी रक्षा करने के लिए सक्षम माना जाता है, तो एक औपचारिक प्रमाणन (Certification) की प्रक्रिया की जाती है।
• यदि वह व्यक्ति जेल (Jail) में हिरासत में है, तो महानिरीक्षक कारागार (Inspector-General of Prisons) यह प्रमाणित करता है कि आरोपी अब मुकदमे का सामना करने के योग्य है।
• यदि वह व्यक्ति सार्वजनिक मानसिक स्वास्थ्य संस्था (Public Mental Health Establishment) में हिरासत में है, तो मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड (Mental Health Review Board), जो मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (Mental Healthcare Act, 2017) के तहत गठित होता है, यह प्रमाण पत्र जारी करता है।
एक बार जब उपयुक्त प्राधिकारी (Authority) यह प्रमाण पत्र जारी कर देता है, तो आरोपी को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
न्यायालय में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया (Production Before the Court)
जब आरोपी को मानसिक रूप से स्वस्थ माना जाता है, तो उसे न्यायालय (Magistrate or Court) के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, जिस समय न्यायालय निर्धारित करता है। इसके बाद न्यायालय, धारा 371 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करता है।
न्यायालय निम्नलिखित कदम उठा सकता है:
1. मुकदमे को फिर से शुरू करना (Resume the Trial) – यदि न्यायालय को लगता है कि आरोपी अब मुकदमे का सामना करने में सक्षम है, तो सुनवाई को आगे बढ़ाया जाएगा।
2. मानसिक स्थिति का पुनर्मूल्यांकन (Re-evaluation of Mental Condition) – यदि अभी भी संदेह बना रहता है, तो न्यायालय आरोपी की मानसिक स्थिति का फिर से परीक्षण करवा सकता है और मामले को स्थगित (Postpone) कर सकता है।
प्रमाणन प्रक्रिया की न्यायिक प्रक्रिया में भूमिका (Role of Certification Process in Legal Proceedings)
महानिरीक्षक कारागार (Inspector-General of Prisons) या मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड (Mental Health Review Board) द्वारा जारी किया गया प्रमाण पत्र न्यायालय में सबूत (Evidence) के रूप में स्वीकार किया जाएगा।
यह प्रमाण पत्र इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि:
• यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा तब तक नहीं चलाया जाएगा जब तक वह कानूनी कार्यवाही को समझने और उसका सामना करने के योग्य न हो।
• यह अनावश्यक देरी से बचाता है और आरोपी की मानसिक स्थिति के आधार पर न्यायालय को उचित निर्णय लेने में मदद करता है।
• यह न्यायिक प्रक्रिया को व्यवस्थित और निष्पक्ष बनाता है।
धारा 376 का महत्व (Importance of Section 376)
धारा 376 मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपियों के अधिकारों की रक्षा करने के साथ-साथ न्याय प्रक्रिया को प्रभावी बनाए रखने में भी सहायक होती है।
1. आरोपी के अधिकारों की रक्षा (Protection of Accused's Rights)
o कोई भी व्यक्ति मुकदमे का सामना तब तक नहीं कर सकता जब तक वह कानूनी प्रक्रिया को समझने के योग्य न हो।
o प्रमाणन प्रक्रिया आरोपी को उसके मानसिक स्वास्थ्य की बहाली के बाद निष्पक्ष मुकदमे का अवसर देती है।
2. निष्पक्ष न्याय प्रक्रिया (Ensuring Fair Trial)
o यह सुनिश्चित करता है कि मानसिक अस्वस्थता के कारण किसी व्यक्ति को अनिश्चितकाल के लिए हिरासत में न रखा जाए।
o मानसिक रूप से स्वस्थ होने के बाद मुकदमे की प्रक्रिया पुनः शुरू की जाती है।
3. सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety Considerations)
o यदि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ रहता है, तो उसे हिरासत में रखा जाता है ताकि वह खुद को या अन्य को नुकसान न पहुंचा सके।
o यदि वह ठीक हो जाता है, तो उसे उचित न्यायिक प्रक्रिया के तहत मुकदमे में शामिल किया जाता है।
उदाहरण (Illustrations) समझने के लिए
1. राम का मामला
o राम पर हत्या का आरोप था, लेकिन उसे मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया गया।
o न्यायालय ने धारा 367 के तहत मुकदमे को स्थगित कर दिया और उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्था में भेज दिया।
o दो साल बाद, मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड ने प्रमाण पत्र जारी किया कि राम अब स्वस्थ है।
o धारा 376 के अनुसार, उसे न्यायालय में पेश किया गया और मुकदमा फिर से शुरू हुआ।
2. श्याम का मामला
o श्याम पर गंभीर अपराध का आरोप था, लेकिन वह मुकदमे का सामना करने में असमर्थ था, इसलिए उसे जेल में रखा गया।
o महानिरीक्षक कारागार ने प्रमाण पत्र जारी किया कि वह अब सक्षम है।
o धारा 376 के तहत उसे मजिस्ट्रेट के सामने लाया गया, और धारा 371 के अनुसार मुकदमा शुरू हुआ।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 376 मानसिक रूप से अस्वस्थ कैदियों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की सुचारूता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह सुनिश्चित करता है कि जब कोई व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है, तो उसे निष्पक्ष न्याय मिले और कानूनी कार्यवाही आगे बढ़े।
यह धारा मानवाधिकार (Human Rights) और न्यायिक प्रक्रियाओं (Judicial Process) के बीच संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है, जिससे आरोपी के अधिकारों की रक्षा होती है और न्याय प्रणाली प्रभावी बनी रहती है।