Transfer Of Property में समपहरण द्वारा कोई लीज खत्म होना
Shadab Salim
26 Feb 2025 12:08 PM

Transfer Of Property Act की धारा 111 के अंतर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है जिन पर कोई लीज़ खत्म होती है। उन आधारों में से एक आधार समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान भी है। इस आलेख के अंतर्गत धारा 111 के खंड (छ) पर जो समपहरण द्वारा संपत्ति के पट्टे का पर्यवसान के संबंध में उल्लेख कर रहा है।
धारा 111 के इस खंड के अनुसार
उस दशा में जबकि Lessee किसी ऐसी अभिव्यक्त शर्त को भंग करता है जिससे यह उपबन्धित है कि उक्त शर्त के भंग होने पर Lessor पुनः लीज़ सम्पत्ति में प्रवेश कर सकेगा; या
उस दशा में, जबकि Lessee किसी अन्य व्यक्ति का हक खड़ा करके या यह दावा करके कि वह स्वयं हकदार है, अपनी Lesseeी हैसियत का त्याग करता है; या
जबकि Lessee कोर्ट द्वारा दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और लीज़ यह उपबन्ध करता है कि Lessor ऐसी घटना के घटित होने पर पुनः प्रवेश कर सकेगा: और इनमें से कोई घटना घटित होती है तो Lessor या उसका अन्तरिती Lessee का पर्यवसान करने के अपने आशय की लिखित सूचना देगा तथा पट्टे का पर्यवसान हो सकेगा।
इस खण्ड में वर्णित सिद्धान्त साम्या का एक सिद्धान्त है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति एक ही संव्यवहार को स्वीकार एवं अस्वीकार एक साथ नहीं कर सकता है। यह खण्ड जब्तीकरण या समपहरण द्वारा पट्टे के पर्यवसान के सम्बन्ध में सिद्धान्त प्रतिपादित करता है। इसमें तीन विशिष्ट परिस्थितियों का उल्लेख हुआ है जो निम्नवत हैं-
अभिव्यक्त शर्त का Lessee द्वारा भंग-
यदि लीज़ के सृजन के समय Lessor Lessee पर कोई अभिव्यक्त शर्त आरोपित करता है तथा Lessee उस शर्त को पूर्ण नहीं करता है या पूर्ण करने में असफल हो जाता है तो यह माना जाएगा कि Lessee द्वारा शर्त भंग कर दी गयी है तथा शर्त के भंग होने के साथ ही साथ Lessor को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह Lessee को नोटिस दे कर पट्टे का पर्यवसान करा दे। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि अभिव्यक्त शर्त का Lessor द्वारा उल्लंघन होने या भंग होने की दशा में Lessee को यह अधिकार नहीं प्राप्त है कि वह पट्टे का पर्यवसान कर सके। Lessee ऐसी स्थिति में केवल क्षतिपूर्ति की मांग कर सकेगा अभिव्यक्त शर्त के भंग होने पर Lessor तभी लीज़ का पर्यवसान कर सकेगा जबकि लीज़ विलेख में यह उपबन्धित हो कि शर्त के भंग होने पर Lessor पुनः प्रवेश कर सकेगा।
समपहरण को प्रभावी बनाने हेतु यह आवश्यक है कि लगायी गयी शर्त वैध हो महाराजा आफ जयपुर बनाम रुक्मिनी के वाद में प्रिवी कॉसिल ने अभिप्रेक्षित किया था कि Lessor द्वारा Lessee पर लगायी गयी यह शर्त कि वह औपचारिक अवसरों पर उपस्थित रहेगा का उल्लंघन जब्तीकरण के कारक के रूप में प्रभावी नहीं होगा।
इस प्रयोजन हेतु अभिव्यक्त शर्त से यह अभिप्रेत नहीं है कि शर्तों का उल्लेख किसी विशिष्ट शब्द का प्रयोग करते हुए हो या विशिष्ट प्रारूप में हो। इतना पर्याप्त होगा कि शर्त का निष्कर्ष विलेख की शब्दावली से निकाला जा सके, उन्हें उनका साधारण अर्थ देते हुए जिससे कि कोर्ट को यह सुनिश्चित हो सके कि उक्त शर्त प्रसंविदा का भाग थी। पक्षकारों के बीच तथा उनके द्वारा इसे उसी रूप में समझा गया था।
इस बिन्दु के अन्तर्गत निम्नलिखित विचारणीय हैं-
(क) अन्तरण के विरुद्ध शर्त-सम्पति अन्तरण अधिनियम की धारा 10 उपबन्धित करती है कि पट्टे के प्रकरण में अन्तरण के विरुद्ध कोई शर्त ये है यदि यह Lessor या उसके अध्यधीन मांग करने वाले के लाभ के लिए है। इसके अन्तर्गत यह अभिनिर्णीत हुआ है कि अन्तरण के विरुद्ध वैध शर्त भी जब्तीकरण हेतु कारण के रूप में प्रभावी नहीं होगी। अतः इसका (शर्त का) उल्लंघन कर दिया गया अन्तरण इसे (अन्तरण को) अप्रभावी नहीं बनायेगा। इसके लिए आवश्यक है कि लीज़ विलेख में इस आशय की प्रसंविदा हो कि शर्त के उल्लंघन की दशा में Lessor सम्पत्ति में पुनः प्रवेश कर सकेगा।
इस प्रयोजन हेतु अन्तरण के विरुद्ध शर्त से अभिप्रेत है पक्षकारों के कृत्य द्वारा अन्तरण के विरुद्ध शर्त न कि विधि के प्रवर्तन अथवा डिक्री के निष्पादन द्वारा अन्तरण के विरुद्ध शर्त अन्तरण के विरुद्ध शर्त का उस दशा में भंग नहीं माना जाएगा जबकि केवल लीज़ सम्पत्ति के एक भाग का अन्तरण हो रहा हो अथवा कई Lesseeों में से केवल एक द्वारा अन्तरण किया गया हो। शर्त का उल्लंघन तब भी नहीं माना जाएगा जबकि अन्तरण वैध एवं प्रभावी न हो। यदि प्रसंविदा में उल्लिखित शर्त किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के पक्ष में अन्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है तो इसका उल्लंघन उस स्थिति में नहीं माना जाएगा जब एक Lessee द्वारा अपने हित का अन्तरण सह बन्धकदार के पक्ष में हुआ हो।
यदि लीज़ विलेख में यह व्यवस्था की गयी हो कि लीज़दार यदि सम्पत्ति के सम्बन्ध में उपलीज़ का सृजन करेगा तो लीज़ का अवसान समझा जाएगा। ऐसी स्थिति में लीज़दार द्वारा Lessor की अनुमति के बिना सम्पत्ति का उपलीज़ सृजित करना तथा उसे भागीदारी का नाम देना उसके हित को बचाये रखने हेतु पर्याप्त नहीं होगा। भागीदारी का सृजन भी Lessor की अनुमति से होना चाहिए।
(ख) किराया या भाटक का भुगतान न होना- लीज़ विलेख में यह प्रसंविदा पक्षकार कर सकेंगे कि किराया का निर्धारित समयानुसार भुगतान हो और यदि ऐसा नहीं होता है तो इसे शर्त का उल्लंघन माना जाएगा और यदि Lessee ऐसा करने में विफल रहता है तो Lessor पट्टे का समपहरण कर सकेगा। पर यह आवश्यक होगा कि प्रसंविदा में शर्त के भंग होने की दशा में पुनः प्रवेश का अधिकार Lessor के पक्ष में आरक्षित हो। इस आशय का इंग्लिश विधि में प्रचलित कठोर नियम भारत में प्रभावी नहीं है।
(ग) Lessee द्वारा अतिक्रमण- यदि Lessee एक ऐसे भवन का एक हिस्सा धारण कर रहा है जो लीज़ विलेख में उल्लिखित नहीं है तो Lessee का यह कृत्य Lessee शर्त का उल्लंघन नहीं होगा। वह अनाधिकृत रूप में काबिज अंश का मात्र अतिचारी होगा।
(घ) Lessor द्वारा शर्त का उल्लंघन - यह प्रावधान Lessor द्वारा लीज़ शर्त की Lessor द्वारा उल्लंघन की दशा में Lessee को यह प्राधिकार नहीं प्रदान करता है कि वह पट्टे का समपहरण करे। Lessee लीज़ को समाप्त नहीं करा सकेगा इस आधार पर कि Lessor ने शर्त का उल्लंघन किया हैं। उदाहरण के लिए यदि Lessor ने सम्पत्ति का लीज़ देते समय शौचालय बनवाने का वचन दिया था या प्रथम तल पर एक कक्ष बनवाने का वचन दिया था या कुआँ खुदवाने का वचन दिया था पर वचन का अनुपालन नहीं करता है तो Lessee इस आधार पर लीज़ संविदा का समपहरण नहीं करा सकेगा।
पट्टे का समपहरण या जप्ती केवल Lessor अथवा उसके विधिक प्रतिनिधि या समनुदेशिती के लाभ के लिए होगा किसी अन्य व्यक्ति के लिए नहीं खान एवं खदान (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 1957 के अन्तर्गत सृजित खनिजो हेतु पटटा, सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम के क्षेत्र विस्तार से बाहर है अत: ऐसे पट्टों के सम्बन्ध में धारा 111 प्रवर्तनीय नहीं है।