मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति की सुरक्षित हिरासत – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 374
Himanshu Mishra
28 Feb 2025 4:34 PM

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी भी अभियुक्त (Accused) को निष्पक्ष रूप से न्याय मिले, चाहे उसकी मानसिक स्थिति (Mental Condition) सामान्य हो या वह मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) हो।
धारा 374 उन परिस्थितियों को संबोधित करती है जब कोई व्यक्ति मानसिक अस्वस्थता के आधार पर अपराध से बरी (Acquitted) कर दिया जाता है, लेकिन न्यायालय (Court) के पास इस बात के पर्याप्त प्रमाण होते हैं कि उसने वह कार्य किया था, जो यदि वह मानसिक रूप से स्वस्थ होता, तो अपराध (Offense) माना जाता।
ऐसे मामलों में, न्यायालय उस व्यक्ति को सुरक्षित हिरासत (Safe Custody) में रखने का आदेश दे सकता है या उसे किसी रिश्तेदार (Relative) या मित्र (Friend) की देखरेख में सौंप सकता है। इस अनुच्छेद में हम विस्तार से समझेंगे कि धारा 374 में क्या प्रावधान दिए गए हैं और यह किस तरह पिछले प्रावधानों (Provisions) से जुड़ी हुई है।
पिछली धाराओं से संबंध (Connection with Previous Sections)
धारा 374 को पूरी तरह से समझने के लिए हमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की उन धाराओं को भी समझना होगा जो मानसिक रूप से अस्वस्थ अभियुक्तों (Mentally Unsound Accused) से संबंधित हैं।
• धारा 367: जब किसी व्यक्ति के मानसिक रूप से अस्वस्थ होने की संभावना होती है, तो इस धारा के तहत न्यायालय द्वारा उसकी मानसिक स्थिति की जांच (Inquiry) शुरू की जाती है।
• धारा 368: यदि जांच के दौरान यह पाया जाता है कि अभियुक्त मानसिक रूप से अस्वस्थ है, तो मुकदमे (Trial) को स्थगित (Postpone) कर दिया जाता है और उसे उपचार (Treatment) के लिए भेजा जाता है।
• धारा 369: इस धारा में यह निर्धारित किया गया है कि मानसिक रूप से अस्वस्थ अभियुक्त को जमानत (Bail) पर छोड़ा जा सकता है या नहीं।
• धारा 370: इसमें यह बताया गया है कि मुकदमा या जांच तब फिर से शुरू हो सकती है जब अभियुक्त की मानसिक स्थिति सामान्य हो जाए।
• धारा 371: जब अभियुक्त न्यायालय के सामने फिर से प्रस्तुत किया जाता है, तो न्यायालय यह तय करता है कि क्या वह अपनी रक्षा (Defense) करने में सक्षम है या नहीं।
• धारा 372: इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि यदि अभियुक्त मुकदमे के दौरान मानसिक रूप से स्वस्थ पाया जाता है, लेकिन अपराध करने के समय मानसिक अस्वस्थ था, तो मामला जारी रह सकता है।
• धारा 373: इस धारा के अनुसार, यदि अभियुक्त को मानसिक अस्वस्थता के आधार पर बरी किया जाता है, तो न्यायालय को यह स्पष्ट करना होता है कि क्या उसने वह कार्य किया था या नहीं।
धारा 374, इन सभी धाराओं का स्वाभाविक अगला चरण है। यह तब लागू होती है जब न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि अभियुक्त ने वह कार्य किया था, लेकिन वह उसे करने के समय मानसिक रूप से अस्वस्थ था।
सुरक्षित हिरासत (Safe Custody) की आवश्यकता
धारा 374 का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मानसिक अस्वस्थता के आधार पर बरी किया गया अभियुक्त बिना किसी निगरानी (Supervision) के मुक्त न छोड़ दिया जाए।
इस प्रावधान की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि:
1. सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety) – यदि अभियुक्त मानसिक रूप से अस्वस्थ है और उसने गंभीर अपराध किया है, तो उसे बिना निगरानी छोड़ा जाना समाज के लिए खतरनाक हो सकता है।
2. स्वयं की सुरक्षा (Self-Safety) – मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए उसकी निगरानी आवश्यक है।
3. भविष्य की कानूनी प्रक्रियाएं (Future Legal Proceedings) – न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होता है कि यदि अभियुक्त की मानसिक स्थिति में सुधार होता है, तो उसके पिछले कार्यों का रिकॉर्ड (Record) उपलब्ध रहे।
न्यायालय के पास उपलब्ध विकल्प (Options Available to the Court)
धारा 374 के अनुसार, यदि न्यायालय को यह प्रमाण मिलते हैं कि अभियुक्त ने वह कार्य किया था, तो उसे निम्नलिखित दो विकल्पों में से एक को चुनना होता है:
1. सुरक्षित हिरासत (Safe Custody) का आदेश – न्यायालय अभियुक्त को सुरक्षित हिरासत में रखने का आदेश दे सकता है। हिरासत का स्थान और तरीका न्यायालय की आवश्यकता और अभियुक्त की स्थिति को देखते हुए तय किया जाता है।
2. रिश्तेदार या मित्र को सुपुर्दगी (Custody to a Relative or Friend) – यदि अभियुक्त का कोई निकट संबंधी या मित्र उसे अपनी देखरेख में लेने के लिए आवेदन (Application) करता है, तो न्यायालय उसे उनकी निगरानी में सौंप सकता है।
सुरक्षित हिरासत का आदेश (Order for Safe Custody)
यदि न्यायालय सुरक्षित हिरासत का आदेश देता है, तो वह यह सुनिश्चित करता है कि अभियुक्त को एक उपयुक्त स्थान पर रखा जाए, जो उसकी स्थिति और समाज की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तय किया जाए।
यदि न्यायालय आदेश देता है कि अभियुक्त को किसी सरकारी मानसिक स्वास्थ्य केंद्र (Public Mental Health Establishment) में रखा जाए, तो यह आदेश मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 (Mental Healthcare Act, 2017) के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार ही दिया जाएगा।
रिश्तेदार या मित्र को सुपुर्दगी का आदेश (Custody to a Relative or Friend)
यदि अभियुक्त का कोई संबंधी या मित्र न्यायालय से अनुरोध करता है कि उसे अभियुक्त की देखरेख करने की अनुमति दी जाए, तो न्यायालय निम्नलिखित शर्तों पर ऐसा कर सकता है:
1. वह व्यक्ति अभियुक्त की सही तरीके से देखभाल करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि वह स्वयं को या किसी अन्य को नुकसान न पहुंचाए।
2. राज्य सरकार (State Government) द्वारा निर्धारित समय और स्थान पर अभियुक्त को निरीक्षण (Inspection) के लिए प्रस्तुत किया जाएगा।
यदि ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो न्यायालय रिश्तेदार या मित्र को अभियुक्त सौंपने से मना कर सकता है।
राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजने की अनिवार्यता (Mandatory Reporting to the State Government)
धारा 374 के अनुसार, जब भी कोई न्यायालय इस धारा के तहत कोई आदेश जारी करता है, तो उसे अपनी कार्रवाई की जानकारी राज्य सरकार को देनी होती है। इससे राज्य सरकार इन मामलों पर निगरानी रख सकती है और आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप (Intervention) कर सकती है।
उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि विजय नामक एक व्यक्ति मानसिक विकार (Mental Disorder) से पीड़ित है। उसने एक व्यक्ति पर बिना किसी कारण हमला (Attack) किया, लेकिन यह साबित हुआ कि घटना के समय वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था और अपने कार्यों की प्रकृति (Nature of Act) को समझने में असमर्थ था। न्यायालय ने धारा 373 के तहत उसे अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं माना और मानसिक अस्वस्थता के आधार पर बरी कर दिया।
हालांकि, न्यायालय ने यह भी पाया कि विजय ने वास्तव में हमले का कार्य किया था। इसलिए, धारा 374 के तहत न्यायालय ने उसे मानसिक स्वास्थ्य केंद्र में सुरक्षित हिरासत में रखने का आदेश दिया।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 374 मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के मामलों में न्याय और सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए बनाई गई है।
यह धारा सुनिश्चित करती है कि यदि कोई व्यक्ति मानसिक अस्वस्थता के कारण अपराध से बरी हो जाता है, लेकिन उसके द्वारा किए गए कार्यों की पुष्टि हो जाती है, तो उसे बिना निगरानी छोड़ने के बजाय सुरक्षित हिरासत में रखा जाए या किसी विश्वसनीय व्यक्ति की देखरेख में दिया जाए। यह प्रावधान न केवल अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि समाज की सुरक्षा को भी सुनिश्चित करता है।