अपराध के समय मानसिक अस्वस्थता के आधार पर दोषमुक्ति – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 373
Himanshu Mishra
27 Feb 2025 12:12 PM

कानूनी व्यवस्था यह स्वीकार करती है कि यदि कोई व्यक्ति अपराध करने के समय अपनी मानसिक स्थिति (Mental State) पर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था, तो उसे एक सामान्य व्यक्ति की तरह आपराधिक उत्तरदायित्व (Criminal Responsibility) नहीं दिया जा सकता।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 373 उन्हीं मामलों से संबंधित है जहाँ आरोपी (Accused) को मानसिक अस्वस्थता के आधार पर दोषमुक्त (Acquitted) किया जाता है। यह प्रावधान (Provision) यह सुनिश्चित करता है कि अदालत केवल आरोपी को छोड़ने का आदेश न दे, बल्कि यह भी स्पष्ट करे कि क्या आरोपी ने वास्तव में वह कार्य किया था या नहीं।
धारा 373 का संबंध अन्य प्रावधानों (Provisions) से
धारा 373 को समझने से पहले, यह जानना आवश्यक है कि यह संहिता की अन्य धाराओं (Sections) जैसे 367, 368, 369, 370, 371 और 372 से किस प्रकार जुड़ी हुई है।
1. धारा 367 – यदि किसी आरोपी को मानसिक रूप से अस्वस्थ (Unsound Mind) होने का संदेह है, तो जाँच की प्रक्रिया को स्थगित (Postpone) किया जा सकता है।
2. धारा 368 – यदि मुकदमे (Trial) के दौरान आरोपी मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है, तो अदालत उसके प्रति विशेष प्रावधान लागू कर सकती है।
3. धारा 369 – मानसिक अस्वस्थ व्यक्ति को जमानत (Bail) देने या उसके उपचार (Treatment) की व्यवस्था करने के लिए निर्देश दिए जाते हैं।
4. धारा 370 – यदि आरोपी की मानसिक स्थिति ठीक हो जाती है, तो मुकदमे को फिर से शुरू किया जा सकता है।
5. धारा 371 – मानसिक रूप से ठीक होने के बाद आरोपी अदालत के समक्ष पेश होता है, तो मुकदमा आगे बढ़ाया जाता है।
6. धारा 372 – यदि आरोपी मुकदमे के समय तो स्वस्थ है, लेकिन अपराध के समय मानसिक रूप से अस्वस्थ था, तो मुकदमा एक विशेष प्रक्रिया के तहत आगे बढ़ाया जाता है।
धारा 373 इन प्रावधानों के बाद आती है और उन मामलों से संबंधित है जहाँ आरोपी को मानसिक अस्वस्थता के आधार पर दोषमुक्त किया जाता है।
धारा 373 की आवश्यकता और प्रमुख प्रावधान (Key Provisions)
धारा 373 तभी लागू होती है जब अदालत यह निष्कर्ष निकालती है कि आरोपी मानसिक अस्वस्थता के कारण अपराध के समय अपने कार्यों को समझने में अक्षम था।
इस धारा के अनुसार, अदालत को दो बातें स्पष्ट करनी होती हैं:
1. क्या आरोपी ने वह कार्य वास्तव में किया था?
2. क्या आरोपी मानसिक अस्वस्थता के कारण यह समझने में असमर्थ था कि उसका कार्य गलत या गैर-कानूनी था?
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से ग्रसित है और वह किसी व्यक्ति पर हमला कर देता है क्योंकि उसे लग रहा था कि दूसरा व्यक्ति उसे मारने आ रहा है, तो अदालत को यह तय करना होगा:
• क्या आरोपी ने हमला किया था?
• क्या आरोपी मानसिक रूप से इतना अस्वस्थ था कि उसे यह समझ में नहीं आया कि उसका कार्य गलत था?
यदि अदालत यह पाती है कि आरोपी ने अपराध किया लेकिन उसे अपराध और नैतिकता (Morality) में फर्क समझ में नहीं आया, तो वह उसे दोषमुक्त कर सकती है। लेकिन अदालत को यह स्पष्ट रूप से लिखना होगा कि अपराध हुआ या नहीं।
इस धारा की महत्ता (Importance of Section 373)
अदालत द्वारा यह निर्धारित करना कि आरोपी ने अपराध किया या नहीं, दो मुख्य कारणों से महत्वपूर्ण है:
1. सार्वजनिक सुरक्षा (Public Safety)
o यदि मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति ने हिंसक कार्य किया, तो उसे सीधे रिहा (Release) नहीं किया जा सकता।
o उसे मानसिक स्वास्थ्य केंद्र (Mental Health Facility) में भेजने की आवश्यकता हो सकती है ताकि वह किसी और को नुकसान न पहुँचा सके।
2. भविष्य की कानूनी प्रक्रिया (Future Legal Proceedings)
o यदि आरोपी भविष्य में मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाता है और फिर कोई नया अपराध करता है, तो अदालत को उसकी पिछली मानसिक स्थिति और उसके कार्यों का रिकॉर्ड रखना आवश्यक होता है।
o इससे भविष्य के मुकदमों में स्पष्टता बनी रहती है कि आरोपी पहले भी मानसिक अस्वस्थता के कारण दोषमुक्त हो चुका है।
धारा 373 के तहत एक उदाहरण (Illustration)
मान लीजिए कि रोहन नाम का व्यक्ति बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder) के कारण उन्माद (Manic Episode) में आकर अपने पड़ोसी पर हमला कर देता है।
• मुकदमे की प्रक्रिया (Trial Process)
o अदालत में चिकित्सा विशेषज्ञों (Medical Experts) द्वारा यह साबित किया जाता है कि रोहन को अपराध के समय यह समझ नहीं आ रहा था कि उसका कार्य गलत है।
o इस आधार पर अदालत रोहन को दोषमुक्त कर देती है।
• अदालत का निर्णय (Court's Decision)
o अदालत यह स्पष्ट रूप से दर्ज करती है कि रोहन ने हमला किया था।
o लेकिन चूँकि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ था, इसलिए उसे दंडित (Punish) नहीं किया जा सकता।
इस निर्णय के बाद रोहन को या तो मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Mental Health Institution) में भेजा जा सकता है या फिर नियमित चिकित्सा उपचार (Regular Medical Treatment) की शर्त पर जमानत पर छोड़ा जा सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य केंद्रों की भूमिका (Role of Mental Health Institutions)
धारा 373 यह तो तय करती है कि मानसिक अस्वस्थता के आधार पर दोषमुक्ति दी जा सकती है, लेकिन यह आरोपी की आगे की स्थिति को स्पष्ट रूप से नहीं बताती। ऐसे मामलों में अदालत धारा 369 के तहत प्रावधानों का उपयोग कर सकती है, जिसमें मानसिक रूप से अस्वस्थ आरोपियों के उपचार और देखभाल की बात कही गई है।
• यदि आरोपी खतरा नहीं है, तो उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान (Mental Health Institution) में भेजने की जरूरत नहीं है, लेकिन नियमित चिकित्सा उपचार की शर्त पर छोड़ा जा सकता है।
• यदि आरोपी खतरा है, तो उसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान में ही रखा जा सकता है ताकि वह खुद को या समाज को नुकसान न पहुँचा सके।
अन्य देशों में मानसिक अस्वस्थता का प्रावधान (International Comparison)
अन्य देशों में भी मानसिक अस्वस्थता को आपराधिक उत्तरदायित्व से मुक्त रखने के लिए अलग-अलग नियम हैं।
1. अमेरिका (United States) – M'Naghten Rule के तहत, यदि आरोपी अपराध के समय सही और गलत का अंतर समझने में असमर्थ था, तो उसे दंडित नहीं किया जा सकता।
2. यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) – Insanity Defence के तहत मानसिक अस्वस्थ व्यक्तियों को विशेष सुरक्षा दी जाती है।
3. भारत (Bharat, IPC 1860) – पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 84 में ऐसे मामलों के लिए प्रावधान था, जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में समाहित किया गया है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 373 यह सुनिश्चित करती है कि मानसिक अस्वस्थता के आधार पर आरोपी को दोषमुक्त किया जा सकता है, लेकिन अदालत को स्पष्ट करना होगा कि आरोपी ने वह कार्य किया था या नहीं। यह प्रावधान न केवल आरोपी के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता को भी बनाए रखता है।