हाईकोर्ट
गिरोह के सदस्य के खिलाफ FIR का 'संज्ञान' MCOCA लगाने के लिए पर्याप्त, दोषसिद्धि आवश्यक नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति के खिलाफ 'गिरोह के सदस्य' के रूप में दर्ज दो या अधिक FIR का संज्ञान लेता है तो कठोर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 1999 लागू किया जा सकता है और ऐसी कोई पूर्व शर्त नहीं है कि ऐसी FIR के परिणामस्वरूप दोषसिद्धि हो।जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने यह टिप्पणी मकोका के तहत 6 साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में बंद एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए की।याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे 2018 में हत्या की साजिश रचने के आरोप...
कोडीन-आधारित कफ सिरप का अनधिकृत कब्ज़ा NDPS Act के अंतर्गत आता है: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने दोहराया कि NDPS Act के तहत ज़मानत एक कठोर अपवाद है, खासकर कोडीन-आधारित कफ सिरप की व्यावसायिक मात्रा से जुड़े मामलों में।जस्टिस जितेंद्र कुमार ने कहा,"ज़मानत का अस्वीकार करना एक नियम है और इसे देना एक अपवाद है।"उन्होंने दोहराया कि कोडीन-आधारित कफ सिरप का अनधिकृत कब्ज़ा, चाहे उसकी सांद्रता 2.5% से कम क्यों न हो, व्यावसायिक मात्रा में होने पर NDPS Act के दायरे में आता है और NDPS Act की धारा 37 के तहत ज़मानत नियम के बजाय एक अपवाद है।याचिकाकर्ता और सह-आरोपी को NDPS Act की धारा 20 और...
दिल्ली हाईकोर्ट ने 7 साल बाद बलात्कार के मामले में व्यक्ति को बरी किया, दिया यह तर्क
दिल्ली हाईकोर्ट ने पीड़िता के 'जाली' जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर नाबालिग से बलात्कार के मामले में एक व्यक्ति को दोषी ठहराने वाले ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने "अपीलकर्ता को दोषी ठहराने में स्पष्ट रूप से गलती की", जबकि यह दर्ज किया गया कि उसकी माँ द्वारा नाबालिग होने का दावा करने के लिए पेश किया गया जन्म प्रमाण पत्र 'जाली' था।पीठ ने MCD के जन्म रजिस्टर का हवाला दिया, जो वर्ष 1996 का है, जब पीड़िता के जन्म का दावा किया गया। कहा कि MCD के रिकॉर्ड...
अभियुक्त के विरुद्ध फरारी उद्घोषणा जारी होने पर भी अग्रिम ज़मानत याचिका स्वीकार्य: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता (BNSS) की धारा 82 (फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा) और 83 (फरार व्यक्ति की संपत्ति की कुर्की) के तहत कार्यवाही अग्रिम ज़मानत याचिका दायर करने पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाती।बता दें, BNSS की धारा 82 में कहा गया कि यदि किसी अदालत को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के बाद हो या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया, फरार हो गया या खुद को छिपा रहा है ताकि ऐसे वारंट को निष्पादित न किया जा सके तो ऐसा अदालत लिखित...
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना किसी स्पष्ट कारण के आदेश पारित करने पर ट्रायल कोर्ट की खिंचाई की
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पक्षकार द्वारा पक्षकारों के प्रतिस्थापन (सीपीसी के आदेश 1 नियम 10 के तहत) सहित कई आवेदनों को पक्षकार और उसके वकील की अनुपस्थिति के आधार पर खारिज करते हुए बिना किसी स्पष्ट कारण के आदेश पारित करने के लिए ट्रायल कोर्ट की कड़ी आलोचना की।ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने बिना किसी स्पष्ट कारण के आदेश पारित करके "प्रथम दृष्टया अवैधता" की, जो न्यायिक कर्तव्य से विमुख होने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।याचिका में ट्रायल कोर्ट के 21 अप्रैल, 2025 के आदेश को चुनौती दी...
विवाह में प्रेमी/प्रेमिका के दखल पर पति/पत्नी केस कर सकते हैं : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी जीवनसाथी का प्रेमी/प्रेमिका जानबूझकर और गलत तरीके से विवाह में हस्तक्षेप करता है, तो दूसरा जीवनसाथी उसके खिलाफ हर्जाने का सिविल मुकदमा दायर कर सकता है। कोर्ट ने “Alienation of Affection” की अवधारणा पर चर्चा करते हुए कहा कि ऐसा दावा सिविल कोर्ट में किया जा सकता है, न कि फैमिली कोर्ट में।कोर्ट ने माना कि सिविल कार्रवाई तभी टिकाऊ होगी जब वादी साबित करे कि (i) प्रतिवादी का आचरण जानबूझकर और गलत था तथा उसने वैवाहिक रिश्ते में हस्तक्षेप किया, (ii) इस आचरण से...
आरोप-पत्र जारी न होने तक लंबित अनुशासनात्मक कार्यवाही के आधार पर निलंबन तब तक नहीं बढ़ाया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि अनुशासनात्मक कार्यवाही लंबित होने के आधार पर निलंबन को वैध रूप से तब तक नहीं बढ़ाया जा सकता, जब तक कि आरोप-पत्र जारी न कर दिया गया हो। इस गलत आधार पर किया गया विस्तार अमान्य है, जिससे कर्मचारी को बहाली का अधिकार मिल जाता है।पृष्ठभूमि तथ्ययाचिकाकर्ता को केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1965 के नियम 10(1)(क) के तहत 28 फरवरी, 2025 के आदेश द्वारा निलंबित कर दिया गया था। उन्हें इस आधार पर...
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ज़िम्मेदार नागरिकों से अनाथालयों और वृद्धाश्रमों का सामाजिक लेखा-परीक्षण करने का आग्रह किया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार (19 सितंबर) को सामाजिक लेखा-परीक्षण की अवधारणा के विकास और प्रभावी कार्यान्वयन की वकालत करते हुए इसे समय की आवश्यकता बताया।अदालत एक रिट याचिका खारिज करने को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता ने अपने वकील के उपस्थित न होने के कारण पदोन्नति की मांग की थी।अपीलकर्ता ने दावा किया कि उसकी रिट याचिका 2011 से लंबित है। इसको 21 जुलाई, 2025 को सिंगल जज द्वारा अभियोजन पक्ष के अभाव में खारिज कर दी गई, क्योंकि उसके वकील मामले में उपस्थित नहीं हुए।...
भर्ती नियमों में संशोधन न होने तक पद का पुनर्नामांकन किसी अन्य संवर्ग में विलय के बराबर नहीं: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने कहा कि किसी पद का पुनर्नामांकन मात्र किसी अन्य संवर्ग में विलय के बराबर नहीं है; वास्तविक विलय के लिए सेवा नियमों में संशोधन आवश्यक है। ऐसे संशोधन के बिना वेतनमान या संवर्ग लाभों में समानता का दावा नहीं किया जा सकता।पृष्ठभूमि तथ्ययाचिकाकर्ता को चंडीगढ़ के सेक्टर 10 स्थित राजकीय संग्रहालय एवं कला दीर्घा में गाइड के पद पर नियुक्त किया गया। चंडीगढ़ प्रशासन ने कर्मचारियों को बेहतर करियर की संभावनाएं प्रदान करने...
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या के दोषी की आजीवन सजा निलंबित की, 10 पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने का निर्देश दिया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा निलंबित की। अदालत ने यह देखते हुए कि वह 10 साल से अधिक समय तक हिरासत में रह चुका है और उसके दो सह-आरोपियों, जिन्होंने इतनी ही अवधि हिरासत में बिताई, उसको पहले ही जमानत पर रिहा किया जा चुका है।अदालत ने अपीलकर्ता को 10 फलदार/नीम या पीपल के पौधे लगाने और उनकी देखभाल करने का भी निर्देश दिया।अदालत महेश शर्मा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने 2021 के ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी,...
SC/ST Act | कोई ठोस अपराध नहीं पाया जाता है तो अग्रिम ज़मानत देने पर कोई रोक नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि उन मामलों में अग्रिम ज़मानत देने पर रोक लागू नहीं होगी, जहां अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम (SC/ST Act) की धारा 3(2)(v) के तहत अपराध का आरोप लगाया गया हो, बशर्ते कि प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष हो कि 10 वर्ष के कारावास से दंडनीय कोई ठोस अपराध नहीं किया गया।जस्टिस गोपीनाथ पी. ने कहा:"दूसरे शब्दों में, ऐसे मामलों में जहां आरोप यह है कि SC/ST Act की धारा 3(2)(v) के तहत कोई अपराध किया गया और जब यह न्यायालय प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष निकालता है कि 10 वर्ष या उससे...
इस्लाम में बहुविवाह तभी मान्य जब पति पत्नियों के बीच न्याय कर सके: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है कि इस्लाम में बहुविवाह (Polygamy) केवल तभी मान्य है जब पुरुष अपनी पत्नियों के साथ समान न्याय करने में सक्षम हो।जस्टिस पी.वी. कुन्हिकृष्णन ने यह अवलोकन उस समय किया जब उन्होंने एक पुनरीक्षण याचिका का निपटारा करते हुए परिवार न्यायालय (Family Court) के आदेश को बरकरार रखा। परिवार न्यायालय ने पत्नी की उस मांग को खारिज कर दिया था जिसमें उसने अपने पति से ₹10,000 मासिक भरण-पोषण की मांग की थी। पति एक नेत्रहीन व्यक्ति है, जो भीख और पड़ोसियों की कभी-कभी मिलने वाली मदद से...
भिखारी पति से पत्नी को गुज़ारा भत्ता नहीं दिलवाया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि जो व्यक्ति भिक्षा पर निर्भर है, उसे दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत पत्नी को भरण-पोषण (maintenance) देने का आदेश नहीं दिया जा सकता, भले ही पत्नी उससे गुज़ारा भत्ता की मांग करे।जस्टिस पी.वी कुनहीकृष्णन ने पुनरीक्षण याचिका का निपटारा करते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें याचिकाकर्त्री द्वारा अपने पति से ₹10,000 मासिक गुज़ारा भत्ता मांगने की अर्जी खारिज कर दी गई थी। पति नेत्रहीन है और भिक्षा तथा पड़ोसियों से मिलने वाली कभी-कभार की मदद पर...
चार्जशीट या निलंबन के बिना सील्ड कवर प्रक्रिया लागू नहीं की जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति मामलों में सील्ड कवर प्रक्रिया केवल तभी अपनाई जा सकती है, जब कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्यवाही में चार्जशीट जारी की गई हो, आपराधिक अभियोजन में आरोपपत्र दाखिल हुआ हो या वह निलंबित किया गया हो। महज़ FIR दर्ज होने या जांच लंबित रहने की स्थिति में यह प्रक्रिया लागू नहीं की जा सकती।जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने यह निर्णय उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया, जिसमें केंद्र सरकार ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) के आदेश को चुनौती दी थी।...
भाई की पत्नी को साझा घर में रहने से मना करना घरेलू हिंसा के समान: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी महिला को उसके साझा घर (शेयर्ड हाउसहोल्ड) में रहने से रोका जाता है तो यह घरेलू हिंसा की श्रेणी में आता है।अदालत ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 17 के तहत महिला को साझा घर में रहने का अधिकार है। चाहे उस घर में उसका कोई स्वामित्व, हक या लाभकारी हित क्यों न हो।मामले के अनुसार गैर-आवेदक नंबर 1 अपने पति की मृत्यु के बाद साझा घर में रहने के लिए गई थी लेकिन पति के भाई यानी आवेदक ने उसे वहां रहने से रोक दिया।जस्टिस उर्मिला...
प्रति माह 10-15% लाभ का वादा प्रथम दृष्टया बेईमानी का इरादा दर्शाता है: बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रेडिंग घोटाला मामले में अग्रिम जमानत याचिका खारिज की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि शेयर बाज़ार में प्रतिमाह 10 से 15 प्रतिशत तक के गारंटीड मुनाफे का वादा अपने आप में शुरू से ही धोखाधड़ी की मंशा को दर्शाता है। कोर्ट ने माना कि कोई भी वैध और वास्तविक व्यापार इस तरह के असाधारण और सुनिश्चित लाभ नहीं दे सकता, इसलिए ऐसे प्रलोभन को केवल सिविल विवाद मानकर खारिज नहीं किया जा सकता।जस्टिस अमित बोरकर एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें आरोपियों ने गिरफ्तारी से राहत मांगी थी। मामला भारतीय दंड संहिता 2023 (IPC) की धारा 318(4) और...
फर्जी मुठभेड़ मामले में दो पुलिसकर्मियों को मिली अग्रिम जमानत, कोर्ट ने जांच पर उठाए सवाल
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 2009 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दो पुलिसकर्मियों को अग्रिम जमानत दी। इस मामले में वांछित अपराधी को मृत घोषित कर दिया गया था, जबकि 2012 में वह जिंदा पाया गया था।जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने अपने फैसले में कहा कि गवाहों ने आरोपी पुलिसकर्मी अनिल पाटीदार का नाम उस व्यक्ति के रूप में नहीं लिया, जिसने उन पर वांछित अपराधी बंसीलाल गुर्जर के रूप में शव की गलत पहचान करने का दबाव बनाया था। पीठ ने यह भी पाया कि दूसरा आरोपी पुलिसकर्मी, मुख्तार रशीद कुरैशी अन्य पुलिस स्टेशन में तैनात था और...
न कोई पीड़ित, न कोई अपराधी: दिल्ली हाईकोर्ट ने नाबालिग पत्नी से संबंध के मामले में पति को दी अंतरिम जमानत
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक 24 वर्षीय युवक को पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के मामले में अंतरिम जमानत दी। यह मामला तब सामने आया, जब दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि उनकी शादी से पहले उनके आपसी सहमति से बने संबंध के समय उसकी पत्नी नाबालिग थी, जिससे उसकी सहमति कानूनी रूप से अप्रासंगिक हो गई।जस्टिस अरुण मोंगा ने इस मामले को अजीब बताते हुए कहा कि इसमें न तो कोई पीड़ित है, न कोई अपराधी और न ही कोई शिकायतकर्ता। फिर भी 24 वर्षीय आरोपी कानून के घेरे में है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले को और भी खास बनाता है कि...
"जाति महिमा मंडन 'राष्ट्रविरोधी', संविधान का सम्मान ही 'सच्ची देशभक्ति': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने FIR व सार्वजनिक स्थलों से जाति संदर्भ हटाने का दिया निर्देश"
हाल ही के एक महत्वपूर्ण निर्णय में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाज में जाति महिमा मंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताई और उत्तर प्रदेश सरकार को व्यापक निर्देश दिए कि एफआईआर, पुलिस दस्तावेज़, सार्वजनिक रिकॉर्ड, मोटर वाहनों और सार्वजनिक बोर्ड से जाति संदर्भ हटाए जाएं।जस्टिस विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा कि ऐसा जाति महिमा मंडन "राष्ट्रविरोधी" है और संविधान के प्रति श्रद्धा ही "सच्ची देशभक्ति" और "राष्ट्र सेवा का सर्वोच्च रूप" है। महत्वपूर्ण रूप से, एकल न्यायाधीश ने कहा कि यदि भारत को 2047 तक वास्तव में...
"लोकतंत्र पर दुखद टिप्पणी: दिल्ली हाईकोर्ट DUSU उम्मीदवारों के बड़े वाहनों व JCB इस्तेमाल से नाराज़"
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों द्वारा 'बड़ी कारों' और जेसीबी के इस्तेमाल पर शुक्रवार को निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले साल की स्थिति से कोई सबक नहीं सीखा।चीफ़ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने स्थिति को 'दर्दनाक' बताते हुए टिप्पणी की: उन्होंने कहा, 'यह बहुत दुखद है, स्थिति पर एक दुखद टिप्पणी है, समाज के हमारे लोकतांत्रिक कामकाज पर एक दुखद टिप्पणी है, यहां के संस्थानों के लोकतांत्रिक कामकाज पर एक दुखद...




















