पूर्व वकील से अनापत्ति प्रमाणपत्र केवल सदाचार की प्रक्रिया, नया वकील बिना NOC के भी जमानत पर बहस कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
9 Dec 2025 3:25 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी आपराधिक मामले में पुराने वकील से अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) लेना केवल सदाचार की प्रक्रिया है कोई कानूनी अनिवार्यता नहीं। यदि नया वकील अपने मुवक्किल द्वारा विधिवत अधिकृत है तो वह बिना एनओसी के भी जमानत याचिका प्रस्तुत कर सकता है।
जस्टिस राजेश सिंह चौहान एवं जस्टिस अभयदेश कुमार चौधारी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी दहेज मृत्यु से संबंधित एक मामले की सुनवाई के दौरान की।
इसमें अपीलकर्ता मनोरमा शुक्ला जिनकी अगस्त 2021 में अपर सत्र न्यायाधीश लखनऊ द्वारा आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, ने दूसरी जमानत याचिका दाखिल की थी।
अपीलकर्ता की ओर से वकील ज्योति राजपूत ने जो एक समाजसेवी संस्था से जुड़कर निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान कर रही थीं अदालत में प्रतिनिधित्व किया।
उन्होंने जेल से निष्पादित और विधिवत सत्यापित वकालतनामे के आधार पर जमानत प्रार्थना पत्र दाखिल किया, लेकिन अपीलकर्ता के पूर्व वकील ने NOC देने से मना कर दिया था।
अदालत ने प्रारंभिक रूप से कहा कि कोई भी गैर-सरकारी संस्था स्वयं पहल कर आपराधिक मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकती लेकिन ऐसे मामलों में पीड़ित अथवा जरूरतमंद व्यक्ति को प्रभावी कानूनी सहायता उपलब्ध कराने में सहयोग कर सकती है जैसा कि वर्तमान प्रकरण में किया गया।
एनओसी के विषय पर न्यायालय ने स्पष्ट कहा,
“पूर्व वकील द्वारा NOC देना केवल सदाचार की प्रक्रिया है न कि कोई अधिकार या बाध्यता, विशेषकर आपराधिक मामलों में जहां व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता का प्रश्न जुड़ा होता है। संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं 303 तथा 41-डी के तहत अभियुक्त को अपनी पसंद के वकील से प्रतिनिधित्व कराने का मूलभूत अधिकार प्राप्त है।”
पीठ ने यह भी कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो जमानत याचिका दाखिल करने के लिए वकालतनामे को अनिवार्य शर्त घोषित करता हो। हालांकि न्यायालय की प्रक्रिया के अनुसार किसी वकील को अधिकृत किए जाने का प्रमाण आवश्यक होता है।
इस मामले में चूंकि वकील ज्योति राजपूत के पास अपीलकर्ता द्वारा निष्पादित तथा जेल प्रशासन द्वारा सत्यापित वकालतनामा मौजूद था, इसलिए न्यायालय ने NOC के अभाव को महत्वहीन मानते हुए मामले की मेरिट पर सुनवाई की।
अदालत ने यह भी गौर किया कि अपीलकर्ता, जो मृतका की सास हैं, को प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य के अभाव में केवल अनुमान के आधार पर दोषी ठहराया गया था। साथ ही, सह-अभियुक्तों की अपीलें अभी सुनवाई के लिए तैयार नहीं हैं, जिससे मामला शीघ्र निपटने की संभावना नहीं है।
यह देखते हुए कि अपीलकर्ता लगभग 13 वर्षों से जेल में निरुद्ध हैं खंडपीठ ने उनकी जमानत याचिका स्वीकार कर ली और यह आदेश दिया कि अपील लंबित रहने तक ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाया गया पूरा जुर्माना स्थगित रहेगा।
मानवीय संवेदना के साथ न्यायालय ने निःस्वार्थ सेवा प्रदान करने वाली अधिवक्ता ज्योति राजपूत के प्रयासों की सराहना भी की।
उन्हें एक प्रकार से न्याय मित्र के समान मानते हुए हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति को निर्देश दिया गया कि 15 दिनों के भीतर उन्हें 11,000 रुपये मानदेय के रूप में प्रदान किए जाएँ।
मुख्य अपील की सुनवाई जनवरी 2026 में निर्धारित की गई है।

