कर्नाटक हाईकोर्ट ने मासिक धर्म अवकाश संबंधी सरकारी आदेश पर लगाई रोक
Amir Ahmad
9 Dec 2025 1:04 PM IST

कर्नाटक हाईकोर्ट ने औद्योगिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत महिला कर्मचारियों को प्रति माह एक दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश देने संबंधी राज्य सरकार के आदेश पर अंतरिम रोक लगाई।
अदालत ने 20 नवंबर को जारी उस सरकारी अधिसूचना के क्रियान्वयन को फिलहाल स्थगित कर दिया, जिसमें विभिन्न कानूनों के तहत पंजीकृत औद्योगिक प्रतिष्ठानों को सभी स्थायी, संविदा एवं आउटसोर्स महिला कर्मचारियों को यह अवकाश देने का निर्देश दिया गया था।
जस्टिस ज्योति एम ने मामले की सुनवाई के दौरान सरकार को नोटिस स्वीकार करने का निर्देश देते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मांगी गई अंतरिम राहत प्रदान की जाती है।
राज्य सरकार को आपत्तियों का विवरण दाखिल करने की छूट दी गई है तथा मामले को शीतकालीन अवकाश के बाद सूचीबद्ध किए जाने का आदेश पारित किया गया।
यह अंतरिम आदेश बैंगलोर होटल्स एसोसिएशन तथा एवीराटा एएफएल कनेक्टिविटी सिस्टम्स लिमिटेड के प्रबंधन द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार ने महज एक कार्यकारी आदेश के जरिए प्रतिष्ठानों पर मासिक धर्म अवकाश लागू करने का निर्देश दिया, जबकि जिन कानूनों के अधीन ये उद्योग संचालित होते हैं, उनमें अवकाश के लिए पहले से एक व्यापक वैधानिक ढांचा मौजूद है।
इन अधिनियमों में कहीं भी मासिक धर्म अवकाश अनिवार्य करने का कोई प्रावधान नहीं है।
इस पर पीठ ने सवाल किया कि अधिसूचना जारी करने से पहले क्या सरकार ने प्रतिष्ठानों अथवा प्रबंधन का पक्ष सुना था। वकील ने इसका उत्तर नकारात्मक दिया जिसके बाद अदालत ने अंतरिम रोक लगाने का फैसला किया।
याचिका में बताया गया कि बैंगलोर होटल्स एसोसिएशन के करीब 1540 सदस्य प्रतिष्ठान हैं, जिनका उद्देश्य अपने सदस्यों के हितों की रक्षा, परामर्श, प्रतिनिधित्व और समन्वय स्थापित करना है।
याचिका में कहा गया कि जिन कानूनों के तहत प्रतिष्ठान पंजीकृत हैं वे कर्मचारियों के स्वास्थ्य, कल्याण, कार्य परिस्थितियों, कार्य अवधि, साप्ताहिक अवकाश और वेतन सहित छुट्टियों जैसे बिंदुओं को पहले से विस्तृत रूप से नियंत्रित करते हैं।
कर्नाटक औद्योगिक नियोजन (स्थायी आदेश) नियमों के अंतर्गत लागू मॉडल स्थायी आदेशों की धारा 9 के अनुसार नियोक्ताओं को कारखाना अधिनियम, 1948 और अन्य संबंधित कानूनों के अंतर्गत निर्धारित अवकाश एवं छुट्टियां प्रदान करनी होती हैं।
वहीं धारा 10 में आकस्मिक अवकाश का प्रावधान है, जिसके तहत अधिकतम 10 दिन तक का अवकाश कर्मचारियों को दिया जा सकता है।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि संबंधित प्रतिष्ठान कारखाना अधिनियम, कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, बागान श्रम अधिनियम, बीड़ी एवं सिगार श्रमिक अधिनियम तथा मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम जैसे कानूनों के अंतर्गत पंजीकृत हैं, जिनमें वार्षिक अवकाश की सीमा पहले से निर्धारित है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जब अवकाश से संबंधित एक समग्र वैधानिक व्यवस्था मौजूद है तो सरकार बिना किसी विधायी प्रावधान के केवल एक कार्यकारी आदेश से नए प्रकार का अनिवार्य अवकाश लागू नहीं कर सकती।
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि सरकार ने अधिसूचना जारी करने से पहले हितधारकों से कोई आपत्ति या सुझाव आमंत्रित नहीं किया, जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ।
इसके अतिरिक्त याचिका में कहा गया है कि मासिक धर्म अवकाश लागू किए जाने से प्रतिष्ठानों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा जिसका प्रभाव महिला कर्मचारियों की संख्या पर निर्भर करेगा और इससे गंभीर नागरिक परिणाम उत्पन्न होंगे।
इन्हीं आधारों पर याचिकाकर्ताओं ने अधिसूचना को संविधान के अनुच्छेद 14 के उल्लंघन तथा विधि के विरुद्ध बताते हुए निरस्त किए जाने की मांग की।
मामले की आगे सुनवाई शीतकालीन अवकाश के बाद की जाएगी।

