महिला का साझा घर का अधिकार ससुराल वालों के घर में हमेशा के लिए रहने का लाइसेंस नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

9 Dec 2025 9:50 AM IST

  • महिला का साझा घर का अधिकार ससुराल वालों के घर में हमेशा के लिए रहने का लाइसेंस नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा एक्ट की धारा 17 के तहत महिला का साझा घर का अधिकार सुरक्षा का अधिकार है, न कि मालिकाना हक का अधिकार या ससुराल वालों की जगह पर हमेशा के लिए रहने का लाइसेंस, खासकर तब जब ऐसे कब्जे से सीनियर सिटिजन को साफ नुकसान होता हो।

    जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की डिवीजन बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा माना कि ऐसे अधिकार को सीनियर सिटिजन माता-पिता के अपनी प्रॉपर्टी पर शांति से कब्जे और उसके इस्तेमाल के अधिकारों के साथ बैलेंस किया जाना चाहिए।

    बेंच ने मंजू अरोड़ा बनाम नीलम अरोड़ा और अन्य के मामले में कोऑर्डिनेट बेंच के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि रहने का अधिकार बहू को सास-ससुर की जगह पर हमेशा के लिए रहने का हक नहीं देता, जब लगातार साथ रहना उनकी सेहत और इज्ज़त के लिए नुकसानदायक हो गया हो।

    कोर्ट ने कहा कि रहने के अधिकार का मतलब यह नहीं निकाला जा सकता कि मालिक के अपनी प्रॉपर्टी का शांति से इस्तेमाल करने के अधिकार में कमी आए, खासकर तब जब बिना किसी विवाद के सबूत यह दिखाते हों कि ऐसा रहने से सीनियर सिटिज़न की मेडिकल कंडीशन और खराब हो रही है।

    बेंच ने यह बात एक पत्नी की अपील को खारिज करते हुए कही, जिसमें सिंगल जज के उस आदेश के खिलाफ अपील की गई, जिसमें बहू को दो महीने के अंदर ससुराल वालों की प्रॉपर्टी खाली करने का निर्देश दिया गया। साथ ही पति द्वारा दूसरे रहने की जगह और महीने के गुज़ारे के बारे में अंतरिम निर्देश जारी किए गए।

    अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि सिंगल जज को यह नतीजा निकालने के लिए गलत नहीं ठहराया जा सकता कि बेटी का केस वाली प्रॉपर्टी में लगातार रहना ससुराल वालों के लिए साफ तौर पर मुश्किलें खड़ी कर रहा था, जो इज्जत और शांति से रहने के हकदार हैं।

    इसमें यह भी कहा गया कि सिंगल जज द्वारा किया गया अंतरिम इंतज़ाम सही और सही था, क्योंकि इसने उसकी और बच्चों की भलाई को सुरक्षित रखा। साथ ही बुज़ुर्ग सास-ससुर की गंभीर परेशानी को भी कम किया।

    कोर्ट ने कहा कि यह व्यवस्था सही बैलेंस बनाती है, जिससे यह पक्का होता है कि महिला के रहने की जगह और पैसे की ज़रूरतें सुरक्षित रहें। सीनियर सिटिज़न को ऐसे हालात सहने के लिए मजबूर न किया जाए, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हों।

    कोर्ट ने कहा,

    “कानून यह ज़रूरी नहीं करता कि सीनियर सिटिज़न माता-पिता सिर्फ़ इसलिए खराब घरेलू माहौल झेलते रहें, क्योंकि बहू PWDV Act के तहत रहने का अधिकार रखती है, खासकर तब जब सास-ससुर खुद सही और सम्मानजनक दूसरे इंतज़ाम करते हैं और पैसे देते हैं।”

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह नतीजा निकाला कि यह ऐसा मामला नहीं है, जहां महिला को बेसहारा या बेघर किया जा रहा है। उसने कहा कि सिंगल जज ने यह पक्का किया कि ससुराल वालों के खर्च पर उसे उसी तरह का दूसरा घर दिया जाए।

    Title: X v. Y

    Next Story