हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

16 April 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (10 अप्रैल, 2023 से 14 अप्रैल, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के पास फार्मेसी शिक्षा नियामक शुल्क बढ़ाने की शक्ति: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) की ओर से जारी एक अधिसूचना को बरकरार रखा है, जिसने शैक्षणिक वर्ष 2023-24 के लिए फार्मेसी शिक्षा नियामक शुल्क (पीईआरसी) में वृद्धि की थी। उल्लेखनीय है कि यह शुल्क उन संस्थानों को अदा करना होता है, जो अपने यहां फार्मेसी पाठ्यक्रम चलाते हैं। कोर्ट ने कहा कि पीसीआई के पास फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया अधिनियम, 1948 के तहत नियम और अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए संशोधित पीईआरसी जारी करने की पूरी शक्ति है।

    केस टाइटल: कैनेडी एजुकेशनल सोसाइटी बनाम द फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया और अन्य , अन्य संबंधित याचिकाओं के साथ

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    एएंडसी एक्ट की धारा 12(5) 2015 के संशोधन से पहले शुरू हुई मध्यस्थता पर लागू नहीं होगी: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि एएंडसी एक्ट की धारा 12(5), जिसके तहत ऐसे व्यक्ति, जिसकी नियुक्ति अधिनियम की सातवीं अनुसूची के तहत उल्लिखित किसी भी श्रेणी के अंतर्गत आती है, को मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए अयोग्यता प्रदान करती है, ऐसी मध्यस्थता पर लागू नहीं होती है, जो 2015 के संशोधन से पहले शुरू हुई थी। जस्टिस शेखर बी सराफ की पीठ ने कहा कि 2015 का संशोधन, जिसने एएंडसी अधिनियम में धारा 12(5) को जोड़ा, संशोधन के लागू होने से पहले शुरू हुई मध्यस्थता की कार्यवाही पर पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा।

    केस टाइटल: पश्चिम बंगाल हाउसिंग बोर्ड बनाम अभिषेक कंस्ट्रक्शन, एपी 189/2019

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    फैमिली कोर्ट यह मानते हुए कि शादी पक्षकारो के दिल और दिमाग में भंग हो चुकी है, बिना ट्रायल के तलाक नहीं दे सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि फैमिली कोर्ट यह मानते हुए तलाक की डिक्री पारित नहीं कर सकता है कि पक्षकारों के दिल और दिमाग में शादी खत्म हो गई है, जबकि पक्षकारों ने एक दूसरे के खिलाफ न कोई सबूत नहीं दिया न ही एक-दूसरे के खिलाफ अपने आरोपों को वापस लिए।

    जस्टिस आरडी धानुका और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित तलाक के आदेश को खारिज करते हुए कहा, "फैमिली कोर्ट ने सीपीसी की धारा 151 के विपरीत तलाक की डिक्री पारित की है, यह मानते हुए कि अपीलकर्ता और प्रतिवादी अलग होने का इरादा रखते हैं, क्योंकि उनके दिलो-दिमाग में विवाह भंग हो गया है। किसी भी पक्ष ने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे। फैमिली कोर्ट अनुमान नहीं लगा सकता और इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता कि तलाक की डिक्री पारित करते समय उनके मन और दिल में विवाह भंग हो गया।"

    केस टाइटल- मानसी भाविन धरणी बनाम भाविन जगदीश धरणी

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    लोकायुक्त राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों के चयन से संबंधित मामलों की जांच नहीं कर सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केरल लोकायुक्त चुनाव लड़ने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा उम्मीदवारों के चयन से संबंधित मामलों की जांच नहीं कर सकता। चीफ जस्टिस एस मणिकुमार और जस्टिस मुरली पुरुषोत्तमन की खंडपीठ ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के राज्य सचिव, पन्यान रवींद्रन द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए केरल लोकायुक्त के आदेश को चुनौती दी कि ऐसी शिकायत को सुनवाई योग्य पाया।

    केस टाइटल: पन्यान रवींद्रन बनाम शामनाद ए और अन्य।

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    जालसाजी के कारण नियुक्ति शुरु से ही शून्य और गैर-स्थायी हो जाती है और इसलिए पात्रता का कोई सवाल ही नहीं उठता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने पारुल बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड और अन्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील का फैसला किया। कोर्ट ने फैसले में कहा कि पात्रता का सवाल पैदा ही नहीं होता है, क्योंकि धोखाधड़ी करके नियुक्ति प्राप्त करने के आवेदक के प्रयास ने नियुक्ति के लिए उसकी उम्‍मीदवारी पर विचार करने या उसकी ओर से नियुक्ति का दावा किया जाने के अधिकारों को खत्म कर दिया है।

    केस टाइटलः पारुल बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड व अन्य

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    ईबीपीजीसी सर्टिफिकेट पेश कर पाने में विलंब के आधार पर रोजगार से इनकार नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग बनाम सुभाष चंद और अन्य के मामले में दायर लेटर्स पेटेंट अपील का निस्तारण करते हुए कहा है कि केवल ईबीपीजीसी सर्टिफिकेट (सामान्य जा‌ति में आर्थिक रूप से पिछड़ा व्यक्त‌ि) को पेश करने में देरी के आधार पर किसी व्यक्ति को रोजगार से इनकार नहीं किया जा सकता है। पीठ में जस्टिस एमएस रामचंद्र राव और जस्टिस सुखविंदर कौर शामिल थीं।

    केस टाइटलः कर्मचारी चयन आयोग बनाम सुभाष चंद व अन्य

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    उमेश पाल मर्डर केस - यूपी कोर्ट ने गैंगस्टर से राजनेता बने अतीक अहमद, उसके भाई को सात दिन की पुलिस हिरासत में भेजा

    उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले की एक अदालत ने उमेश पाल हत्या मामले में गैंगस्टर-राजनेता अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को गुरुवार को सात दिनों की पुलिस हिरासत में भेज दिया। पाल और उनके दो पुलिस सुरक्षा गार्डों को फरवरी में प्रयागराज के धूमनगंज इलाके में उनके घर के बाहर गोली मार दी गई थी।

    वह 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के मामले का मुख्य गवाह था। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट दिनेश गौतम ने अहमद और अशरफ दोनों की उपस्थिति में यह आदेश पारित किया। यह घटनाक्रम इन खबरों के बीच आया है कि अहमद का बेटा असद, जो उमेश पाल हत्याकांड में भी वांछित है, वह आज झांसी में उत्तर प्रदेश विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) द्वारा एक मुठभेड़ में मारा गया।

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    निर्माण की तारीख के बाद निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करने के लिए दवा निर्माता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में कहा था कि किसी दवा के निर्माता पर उन दवाओं के निर्माण के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है जो ऐसे मानकों को पूरा नहीं करते हैं जिन्हें निर्माण की तारीख के बाद सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया था। जस्टिस किशोर सी संत ने मेडिप्लस स्कैल्प वेन सेट के निर्माता के खिलाफ प्रक्रिया के आदेश को रद्द कर दिया, एक उपकरण जिसका उपयोग अंतःशिरा इंजेक्शन या ब्लड सैंपल लेने के लिए किया जाता है।

    केस टाइटल- कीर्ति कुमार जयंतीलाल पटेल बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    सिंगल कामकाजी महिला किशोर न्याय अधिनियम के तहत बच्चे को गोद ले सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा महिला को अपनी बहन के बच्चे को गोद लेने से इस आधार पर मना करने पर कि वह सिंगल कामकाजी महिला है और बच्चे पर व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे पाएगी, कहा कि न्यायाधीश के विचारों ने परिवार पर मध्ययुगीन रूढ़िवादी मानसिकता को प्रदर्शित किया। जस्टिस गौरी गोडसे ने पाया कि तलाकशुदा या सिंगल माता-पिता किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनिम, 2015 के अनुसार गोद लेने के योग्य हैं और जिला अदालत का काम केवल यह पता लगाना है कि क्या सभी आवश्यक मानदंड पूरे किए गए हैं।

    केस टाइटल: शबनम जहां व अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    निजता के उल्लंघन का आरोप लगाने वाले वादी को न्यायालय के समक्ष सीलबंद लिफाफे में गोपनीय जानकारी प्रस्तुत करनी चाहिए: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर कोई वादी प्रतिवादियों द्वारा निजता भंग करने का आरोप लगा रहा है तो उसे अदालत के सामने गोपनीय जानकारी (Confidential) सीलबंद लिफाफे में पेश करनी होगी। अदालत ने कहा, "... इस अदालत के समक्ष भौतिक विवरणों के साथ सीलबंद कवर में ऐसी जानकारी प्रदान करने के लिए अपनाई गई विधि इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के संदर्भ में अनिवार्य है ..." जस्टिस मनीष पिताले ने कहा कि हाईकोर्ट गोपनीय जानकारी का अवलोकन किए बिना निजता भंग करने के आरोपों को सत्यापित नहीं कर सकता है।

    केस टाइटल- रोचेम सेपरेशन सिस्टम्स (इंडिया) प्रा. लिमिटेड बनाम निरटेक प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।

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    अनपढ़ POCSO अपराधियों के मामले में यह नियम लागू करना कि कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं, अन्यायपूर्ण : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में POCSO अधिनियम के सख्त प्रावधानों को लागू करने के बाद होने वाली विनाशकारी जमीनी वास्तविकताओं को उजागर करने के लिए भारत के लोगों, विशेष रूप से मध्य प्रदेश में साक्षरता दर की एक गंभीर तस्वीर पेश की।

    जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि निरक्षरता इतनी अधिक है कि लोग POCSO अधिनियम के कठोर प्रावधानों को पढ़ने या समझने में असमर्थ हैं और इस तरह, जब सरकार अपने लोगों की निरक्षरता को नियंत्रित करने में विफल रही है तो इसे लागू करना अन्यायपूर्ण है। इसके परिणामों की जांच किए बिना कानून का यह नियम लागू करना कि "कानून की अज्ञानता कोई बहाना नहीं है, यह अन्यायपूर्ण है।

    केस टाइटल : वीकेश कलावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    लोक सेवक के खिलाफ भ्रष्ट आचरण के आरोप को दुर्भावना साबित किए बिना मानहानिकारक नहीं माना जा सकता: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रत्येक नागरिक को सार्वजनिक पदों पर बैठे व्यक्तियों के उन कृत्यों पर टिप्पणी करने का अधिकार है, जो देश के नागरिक के रूप में उससे संबंधित हैं, बशर्ते कि वह टिप्पणी द्वेष और बदनामी के आवरण ना ओढ़े हो। जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित शिकायत और उससे होने वाली कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

    केस टाइटल: शेख खालिद जहांगीर बनाम नईम अख्तर

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    [एससी/एसटी एक्ट] विशेष न्यायालय द्वारा जमानत अस्वीकृति के खिलाफ वैधानिक अपील दायर की जा सकती है, सीआरपीसी की धारा 438 और 439 के तहत हाईकोर्ट का रुख नहीं कर सकते: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर स्थित पीठ ने बुधवार को कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत एक अपराध में हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 438 (गिरफ्तारी की आशंकाग्रस्त व्यक्ति को जमानत देने का निर्देश) या 439 (जमानत के संबंध में हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय की विशेष शक्तियां) के तहत दायर आवेदनों पर विचार नहीं कर सकता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 14ए (2) (अपील) के निहित रूप से हाईकोर्ट की उस शक्ति को छीन लेती है।

    केस टाइटल: नीरज बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    केवल यह कहते हुए कि 'मामला जल्द से जल्द निपटाया जाएगा', समयबद्ध अधिनिर्णय के लिए फैमिली कोर्ट आवेदन का निस्तारण नहीं कर सकता, समय-सीमा तय करनी चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि जब किसी मामले को समयबद्ध तरीके से निपटाने के लिए आवेदन दायर किया जाता है तो फैमिली कोर्ट इस तरह के आदेश पारित करने वाले आवेदन का निपटारा नहीं कर सकती है कि मामला "जल्द से जल्द निपटाया जाएगा।" जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी.जी. अजित कुमार की खंडपीठ ने कहा, "... यदि आवेदक ने शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान के लिए कोई न्यायोचित या वैध कारण बताया है तो फैमिली कोर्ट को उस मामले की शीघ्र सुनवाई या समयबद्ध निपटान का आदेश देते हुए समय-सीमा निर्दिष्ट करते हुए उस अंतर्वर्ती आवेदन में आदेश पारित करना होगा।"

    केस टाइटल: XXX बनाम XXX

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    'मानहानि मामले में पेश नहीं होने पर राहुल गांधी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करें': सुशील मोदी की पटना कोर्ट में याचिका

    राज्यसभा सांसद सुशील कुमार मोदी ने बुधवार को मानहानि के मुकदमे में अदालत में पेश नहीं होने पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करने के लिए पटना कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर किया है। मानहानि मामले में सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान दर्ज कराने के लिए 12 अप्रैल को पेश होने के निर्देश देने के अदालत के 18 मार्च के आदेश के बाद राहुल गांधी अदालत में पेश नहीं हो पाए थे, जिसके बाद आज यह आवेदन दायर किया गया।

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    न्यायिक प्रक्रिया सेलेब्रिटीज को परेशान करने का औजार नहीं : सलमान खान के खिलाफ पत्रकार की शिकायत खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने विस्तृत आदेश में अभिनेता सलमान खान और उनके अंगरक्षक के खिलाफ एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि शिकायतकर्ता की बदले की भावना को संतुष्ट करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया को किसी सेलिब्रिटी के अनावश्यक उत्पीड़न का साधन नहीं होना चाहिए।

    कोर्ट ने देखा, " निराशा या इशारे में बोले गए शब्द, चाहे कितने भी भयावह हों, आईपीसी की धारा 504 को आकर्षित नहीं करेंगे, जब तक कि य्ह जानबूझकर अपमान प्रदर्शित नहीं करते हों और किसी भी व्यक्ति को उकसाने का कारण देते हों और जो इस तरह की प्रकृति का है, कि दूसरा व्यक्ति विद्रोह करेगा। एक तरह से जो सार्वजनिक शांति को भंग करेगा या किसी अपराध के परिणामस्वरूप होगा।”

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    किसी भी धार्मिक संप्रदाय को सुविधा प्रदान करने के लिए टैक्स के छोटे से हिस्से का उपयोग करने वाला राज्य अनुच्छेद 27 का उल्लंघन नहीं करता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि राज्य नागरिकों से एकत्र किए गए टैक्स/राजस्व में से कुछ रुपये किसी धार्मिक संप्रदाय को कुछ सुविधाएं प्रदान करने के लिए खर्च करता है तो यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 27 का उल्लंघन नहीं होगा। संदर्भ के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 27 में यह आदेश दिया गया कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी टैक्स का भुगतान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसका उपयोग किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय के प्रचार या रखरखाव के लिए खर्च के भुगतान के लिए किया जा सकता है।

    केस टाइटल- मोती लाल यादव बनाम स्टेट ऑफ यूपी के माध्यम से प्रिं. सचिव, विभाग संस्कृति का, नागरिक सचिव, लको. और अन्य [जनहित याचिका (पीआईएल) नंबर -210/2023]

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    सुरक्षित भोजन का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार; सार्वजनिक स्वास्थ्य के अधीन मांस बेचने का अधिकार: गुजरात हाईकोर्ट

    “सुरक्षित भोजन के अधिकार को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।“ ये टिप्पणी गुजरात हाईकोर्ट ने की। कोर्ट ने आगे कहा कि मांस या ऐसे किसी भी खाद्य पदार्थ में मुक्त व्यापार का अधिकार सार्वजनिक स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा आवश्यकताओं के अधीन होना चाहिए।

    जस्टिस एन वी अंजारिया ने गुजरात में मांस विक्रेताओं और एसोसिएशन द्वारा दायर जनहित याचिकाओं का निपटारा किय़ा। याचिकाओं में खाद्य सुरक्षा कानूनों का पालन नहीं करने, अस्वच्छ परिस्थितियों में या बिना लाइसेंस वाली दुकानों के माध्यम से मांस बेचने के कारण आधिकारिक अधिकारियों द्वारा उनके प्रतिष्ठानों / दुकानों को बंद करने को चुनौती दी गई है।

    केस टाइटल - पटेल धर्मेशभाई नारनभाई बनाम धर्मेंद्रभाई प्रवीणभाई फोफानी

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    अपग्रेडिड परफॉर्मेंस ग्रेड के आधार पर प्रमोशन के लिए कर्मचारी पर पुनर्विचार करने के लिए सेलेक्शन कमेटी बाध्य: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब किसी कर्मचारी के ग्रेड को उसकी परफॉर्मेंस रिपोर्ट में अपग्रेड किया जाता है तो सेलेक्शन कमेटी को उसके अपग्रेड किए गए ग्रेड को ध्यान में रखते हुए प्रमोशन के लिए उस पर पुनर्विचार करना होगा। एक्टिंग चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस संदीप वी मार्ने की खंडपीठ उस कर्मचारी की रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसके परफॉर्मेंस ग्रेड को अपग्रेड करने के बाद प्रमोशन की मांग की गई थी।

    केस टाइटल- अशोक रत्नपाल नरवाडे बनाम महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड

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    [एनआई एक्ट की धारा 138] मजिस्ट्रेट के पास न्यायिक विवेकाधिकार है कि वह आरोपी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने से रोक सकता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (एनआई एक्ट) की धारा 138 के तहत शिकायत से निपटने वाला मजिस्ट्रेट अगर यह पाता है कि अभियुक्त की व्यक्तिगत उपस्थिति का आग्रह पीड़ा देगा या आरोपियों को परेशान करेगा तो अभियुक्त को उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे सकता है।

    जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा, "इस तरह के विवेक का उपयोग केवल दुर्लभ मामलों में किया जाना चाहिए, जहां अभियुक्त बहुत दूर रहता है या व्यापार करता है या किसी भी शारीरिक या अन्य अच्छे कारणों के कारण, मजिस्ट्रेट को लगता है कि अभियुक्त का व्यक्तिगत रूप से उपस्थिति न होना भी न्याय के हित में होगा। हालांकि, आरोपी को इस तरह की रियायत देने वाले मजिस्ट्रेट को उपरोक्त राइडर्स को एक ही विषय के रूप में अनुदान देना होगा।"

    केस टाइटल: एमाद मुजफ्फर मखदूमी बनाम विकार अहमद भट

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    निर्णय में तर्क पर विचार किए बिना नियुक्ति प्रस्ताव को केवल एफआईआर में संलिप्तता के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फैसले में तर्क और प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार किए बिना केवल एफआईआर दर्ज करने के आधार पर नियुक्ति के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के लिए सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की खंडपीठ ने अधिकारियों को ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति पर विचार करने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की, जिसकी दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर (EXE) के पद पर नियुक्ति 2011 में दहेज हत्या के मामले में उसकी संलिप्तता के कारण रद्द कर दी गई। याचिकाकर्ता महेश कुमार को 2013 में मामले में बरी कर दिया गया था।

    केस टाइटल: महेश कुमार बनाम भारत संघ व अन्य

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    एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक दायित्व आकर्षित करने के लिए चेक छह महीने के भीतर प्राप्तकर्ता बैंक तक पहुंचना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के प्रावधानों के तहत आपराधिक दायित्व को आकर्षित करने के लिए यह आवश्यक है कि चेक को जारी करने की तारीख से छह महीने के भीतर उस बैंक में प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिस के लिए इसे आहरित किया गया है।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल ने एक अपील की सुनवाई के दरमियान ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में अपीलकर्ता ने उपमंडल न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिला मंडी, हिमाचल प्रदेश की कोर्ट द्वारा पारित फैसले को चुनौती दी थी। फैसले में एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा दायर एक शिकायत को खारिज कर दिया गया था।

    केस टाइटल: डोलमा देवी बनाम रोशन लाल

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    भारतीय नागरिक को बच्चे को विदेश ले जाने की अनुमति देने से पति या पत्नी को कस्टडी में लेने का अधिकार समाप्त नहीं होता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी भारतीय नागरिक को अपने बच्चे को विदेश ले जाने की अनुमति देने से पति या पत्नी को बच्चे की कस्टडी लेने का अधिकार समाप्त नहीं होगा। जस्टिस अनिल के. नरेंद्रन और जस्टिस पी.जी. अजीतकुमार की बेंच ने स्थिति की तुलना एक ऐसे बच्चे की कस्टडी लेने से की जो एक विदेशी देश में रहने का अभ्यस्त है।

    केस टाइटल: XXX बनाम YYY

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    चुनाव अधिकारियों के पास चुनाव की घोषणा से पहले सामग्री की तलाशी और जब्त करने का कोई अधिकार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि रिटर्निंग ऑफिसर या चुनाव अधिकारियों को चुनाव की घोषणा से पहले किसी सामग्री की तलाशी लेने या जब्त करने का अधिकार नहीं होगा। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, “निर्वाचन अधिकारी या चुनाव अधिकारियों को चुनाव की घोषणा से पहले किसी भी सामग्री की तलाशी या जब्त करने का कोई अधिकार नहीं होगा। केवल इसलिए कि उन्हें चुनाव कराने के लिए अधिकारियों के रूप में नियुक्त किया गया है, वे चुनाव की घोषणा से पहले उक्त शक्ति का उपयोग नहीं कर सकते हैं। चुनाव की घोषणा के बाद पूरा क्षेत्र खुल जाएगा, लेकिन तब तक नहीं।"

    केस टाइटल: इस्तियाक अहमद और भारत का चुनाव आयोग और अन्य

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    लॉ में मास्टर कोर्स करना प्रैक्टिस से ब्रेक लेना नहीं, एनरोलमेंट का निलंबन आवश्यक नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा (डीएचजेएस) नियम, 1970 या अनुच्छेद के नियम 9 (2) में निर्धारित जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए वकील के रूप में निरंतर प्रैक्टिस के सात साल की पात्रता का मानदंड है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 233(2) के तहत वकील के रूप में प्रैक्टिस के वास्तविक क्षेत्र में किसी भी जांच की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने कहा, "यदि किसी व्यक्ति को आवेदन की तारीख से पहले सात साल की अवधि के लिए वकील के रूप में नामांकित किया गया तो वह पात्रता मानदंड को पूरा करेगा जब तक कि यह स्थापित नहीं हो जाता है कि वह वकील के रूप में नामांकित होने का हकदार नहीं था; उसने अपनी प्रैक्टिस निलंबित कर दी थी या तो स्वेच्छा से या अन्यथा; या इंगेजमेंट या पेशा स्वीकार किया, जो वकील के रूप में अस्वीकार्य था।"

    केस टाइटल: करण अंतिल बनाम दिल्ली हाईकोर्ट व अन्य।

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    एनडीपीएस एक्ट | प्रोसिक्यूटर स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकारी है, जांच के लिए विस्तार को न्यायोचित ठहराने के लिए विवेक का उपोयग करना चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि स्वतंत्र वैधानिक प्राधिकरण होने के नाते पब्लिक प्रोसिक्यूटर जांच एजेंसी द्वारा उसके सामने पेश की गई सामग्री पर अपने स्वतंत्र विवेक का उपोयग करने की अपेक्षा की जाती है और उसके बाद विस्तार या नहीं के रूप में निर्णय लेते हैं। जांच पूरी करने के लिए समय की अवधि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में उचित है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, श्रीनगर द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसमें एनडीपीएस अधिनियम के मामले में जांच एजेंसी को 180 दिनों से अधिक की जांच पूरी करने के लिए दस दिनों का विस्तार दिया गया।

    केस टाइटल: रिजवान बशीर धोबी बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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    सीआरपीसी की धारा 427 | अलग-अलग मुकदमों में आदतन अपराधी को दी गई सजा ग्रेवेटी पर विचार किए बिना एक साथ नहीं चल सकती: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पुनर्विचार याचिका का निस्तारण करते हुए हाल ही में यह माना कि अलग-अलग अपराधों और पीड़ितों से जुड़े अलग-अलग मुकदमों में सजा उन अपराधों की गंभीरता और समाज पर उनके प्रभाव पर विचार किए बिना एक साथ नहीं चल सकती।

    जस्टिस अजय कुमार गुप्ता और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा, "इन ट्रायल में दी गई सजाओं को सीआरपीसी की धारा 427 (1) के तहत समवर्ती चलाने के लिए निर्देशित नहीं किया जा सकता। अपराध की गंभीरता और प्रकृति पर विचार किए बिना दोष सिद्ध होने पर दी जाने वाली अधिकतम सजा और फिर से अपराध करने की संभावना सहित समाज पर इस तरह के अपराध का प्रभाव देखने की आवश्यकता है।"

    केस टाइटल: इन रे: नकुल बेरा @ नकुल चंद्र बेरा सी.आर.आर 1981/2021

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    मजिस्ट्रेट शिकायत में अनसुलझे आरोपों की सीआरपीसी की धारा 202 के तहत दूसरी जांच का आदेश दे सकते हैंः जम्ममू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर जांच अधिकारी द्वारा पेश की गई पहली रिपोर्ट में शिकायत में लगाए गए कुछ आरोप में जांच का अभाव है तो यह मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में है कि वह सीआरपीसी की धारा 202 के तहत गहन जांच का आदेश दे सकते हैं। जस्टिस राजेश ओसवाल ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जम्मू की अदालत के समक्ष लंबित शिकायत रद्द करने और एसएसपी द्वारा जांच का निर्देश देते हुए उनके द्वारा पारित आदेश की मांग की।

    केस टाइटल: राज कुमार बनाम एसएसपी व अन्य

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    एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत अपराध के लिए स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड करने का अधिकार नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत किए गए अपराधों के लिए स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड करने का अधिकार नहीं है। कन्फेशन रिकॉर्ड करने की किसी विशेष प्रक्रिया के न होने पर ऐसे मामलों में सीआरपीसी के प्रावधान लागू होंगे।

    जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कानून की स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, "यह शब्द 'या किसी अन्य कानून के तहत समय के लिए लागू' का तात्पर्य है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम जैसे विशेष अधिनियमों के तहत अपराधों के संबंध में की गई जांच भी सीआरपीसी की धारा 164 के प्रावधानों द्वारा शासित होगी, जब तक कि कोई विशिष्ट प्रक्रिया न हो। इस तरह के अधिनियम (एस) में निर्धारित किया गया है।

    केस टाइटल: आनंद चौ. साहू बनाम ओडिशा राज्य

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    आईपीसी की धारा 195A के तहत अपराध के लिए पुलिस द्वारा लिया गया संज्ञान कानून में गलत है, झूठे साक्ष्य से संबंधित मामलों पर केवल अदालत ही विचार कर सकती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पुलिस भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 195ए के तहत अपराध दर्ज करने के लिए सक्षम नहीं है और झूठे सबूत के संबंध में अपराध पर विचार करने के लिए केवल एक अदालत सक्षम है।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल पीठ ने कहा, "आईपीसी की धारा 195 में दी गई धमकी झूठे साक्ष्य दे रही है तो यह अदालत द्वारा विचार किया जाने वाला मामला है। इस मामले को देखते हुए यह माना जाना चाहिए कि पुलिस अधिकारी अपराध के संबंध में अपराध दर्ज नहीं कर सकता है। आईपीसी की धारा 195ए के तहत और किस प्रक्रिया के लिए सीआरपीसी की धारा 195 सपठित धारा 340 के तहत पालन किया जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: सुनी @ सुनील बनाम केरल राज्य

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    पत्नी पति के विवाहेतर साथी पर केवल इस आधार पर घरेलू हिंसा का मुकदमा नहीं चला सकती कि वह उनके घर में रहती थी: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा है कि पति के अवैध/‌विवाहेतर साथी पर घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी केवल केवल इस कारण मुकदमा नहीं चला सकती है कि वह दंपति के घर में रहती थी। कोर्ट ने कहा, दोनों महिलाएं (पत्नी और विवाहेतर साथी केवल इसलिए कि एक ही छत के नीचे रहती हैं, अधिनियम की धारा 2 (एफ) के अनुसार 'घरेलू संबंध' साझा नहीं करती हैं।

    केस टाइटल: रवींद्र कुमार मिश्रा और अन्य बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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