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सीआरपीसी की धारा 482 और उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियां: विस्तार से जानिए इस प्रावधान की महत्वता
सीआरपीसी की धारा 482 और उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियां: विस्तार से जानिए इस प्रावधान की महत्वता

अगर हम दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की बात करें तो इसमें कोई भी संशय नहीं है कि यह अपने आप में एक सम्पूर्ण एवं विस्तृत कानून है। यही नहीं, इसके अंतर्गत आपराधिक मामलो में अन्वेषण, ट्रायल, अपराध की रोकथाम एवं तमाम अन्य प्रकार की कार्यवाही का सम्पूर्ण ब्यौरा मिलता है। हालाँकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि कानून बनाते वक़्त, हर प्रकार की संभावनाओं को ध्यान में रखने के बावजूद कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन्हे 'केस टू केस' देखने की जरुरत होती है।ऐसे मामलों में प्रायः कानून द्वारा अदालत के ऊपर यह निर्णय छोड़ दिया...

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत क्षमा-दान: परिस्थितयां, प्रावधान एवं कुछ जरुरी बातें
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत 'क्षमा-दान': परिस्थितयां, प्रावधान एवं कुछ जरुरी बातें

एक अप्रूवर को क्षमा-दान देने की प्रक्रिया को हमारी दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत जगह दी गयी है। आज इस लेख के माध्यम से हम उन परिस्थितियों के बारे में समझेंगे जहाँ क्षमा-दान दिया जा सकता है। इससे जरुरी हर वो बात हम आपको समझाने का प्रयास करेंगे, जो समझना आपके लिए आवश्यक है।उपरोक्त विषय से संबंधित कानून के प्रावधान धारा 306 से 308 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 में उपस्थित हैं। आइये हम इन प्रावधानों को समझते हैं जिसके बाद हम इससे जुडी अन्य जानकारी आपको देंगे, जिससे इस विषय के बारे में हमारी और...

आपराधिक मामलों में अपील का सम्पूर्ण लेखा जोखा: समझिये कहाँ और किन परिस्थितियों में हो सकती है अपील
आपराधिक मामलों में अपील का सम्पूर्ण लेखा जोखा: समझिये कहाँ और किन परिस्थितियों में हो सकती है अपील

आपराधिक न्याय की प्रक्रिया के किसी भी व्यक्ति के जीवन पर कुछ गंभीर परिणाम होते हैं, मुख्य रूप से व्यक्ति के जीवन के अधिकार पर और उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर। एक स्वतंत्र ट्रायल प्रक्रिया एवं उचित निर्णय पर पहुंचने के रास्ते मौजूद होते हुए भी, गलती की सम्भावना शेष रह जाती है, यह अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों पर भी लागू होता है। इसके परिणामस्वरूप, न्याय प्राप्त करने एवं निचली अदालतों के फैसलों की जांच करने हेतु हमारी दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ विशिष्ट प्रावधान मौजूद हैं।यह ऐसे प्रावधान...

निर्वाचन आयोग के पास हैं असीमित अधिकार, सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सकता इसमें हस्तक्षेप
निर्वाचन आयोग के पास हैं असीमित अधिकार, सुप्रीम कोर्ट भी नहीं कर सकता इसमें हस्तक्षेप

भारत में चुनाव आयोग को चुनाव कराने को लेकर असीमित संवैधानिक अधिकार प्राप्त है और इस बात का पता इस देश के लोगों को विशेषकर उस समय लगा जब टीएन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे।संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आयोग को चुनाव कराने के बारे में असीमित अधिकार दिये हैं। इनमें चुनाव के देख रेख का अधिकार, प्रबंधन का अधिकार और इसके निर्देशन का अधिकार दिया है। एक बार जब आयोग चुनाव की घोषणा कर देता है तो न्यायलय भी आयोग के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। संविधानके अनुच्छेद 329 के अनुसार सुप्रीम कोर्ट भी चुनाव की...

लोकपाल के जरिये कैसे कसी जाएगी भ्रष्टाचार पर नकेल?: समझिये लोकपाल के कार्य, नियुक्ति और शक्तियों के बारे में
लोकपाल के जरिये कैसे कसी जाएगी भ्रष्टाचार पर नकेल?: समझिये लोकपाल के कार्य, नियुक्ति और शक्तियों के बारे में

भारत में लोकपाल को लेकर चर्चा, वर्ष 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा सिफारिश किए जाने से शुरू हुई, और वर्ष 2011 तक कानून बनाने के 8 असफल प्रयासों के बाद भी खत्म नहीं हुई। वर्ष 2011 में ही, अन्ना हजारे की भूख-हड़ताल ने संसद को इस कानून के प्रति प्रथम बार सोचने को मजबूर किया और अंततः जनवरी, 2014 में यह कानून अस्तित्व में आ सका। वर्ष 2011 और 2014 के बीच प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के एक समूह ने इस विधेयक का प्रस्ताव रखा, जिसमें संसद की स्थायी समिति ने पर्याप्त संशोधन किए।...

कॉलेजियम प्रणाली, तीन जज मामले और संवैधानिक अदालतों में नियुक्तियां/तबादले: समझिये यह महत्वपूर्ण गणित
कॉलेजियम प्रणाली, तीन जज मामले और संवैधानिक अदालतों में नियुक्तियां/तबादले: समझिये यह महत्वपूर्ण गणित

प्रतिदिन हम केवल संसद एवं विधायिकाओं द्वारा बनाये गए कानूनों से ही निर्देशित नहीं होते हैं, बल्कि हमारी अदालतों द्वारा सुनाये गए निर्णयों एवं उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों से भी हम प्रभवित होते हैं। हालाँकि जहाँ संसद एवं विभिन्न राज्यों की विधायिकाओं में प्रवेश का एक तय नियम मौजूद है, वहीँ उच्चतम न्यायलय में न्यायाधीश की नियुक्ति को लेकर हमेशा से विवाद रहा है।हम आज बात करने जा रहे हैं उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में। इसके साथ ही हम उन मामलों के बारे में भी आपको...

समझिये भारतीय संविधान के अंतर्गत विधान-परिषद् का गठन, इसकी उपयोगिता एवं संरचना का पूरा गणित
समझिये भारतीय संविधान के अंतर्गत विधान-परिषद् का गठन, इसकी उपयोगिता एवं संरचना का पूरा गणित

पिछले वर्ष सितम्बर के महीने में ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार ने अपने विधायी ढांचे में राज्य विधान परिषद (SLC) की स्थापना की संसदीय प्रक्रिया शुरू की है। राज्य में एक विधान परिषद के गठन के लिए संविधान के अनुच्छेद 169 (1) के तहत राज्य सरकार के संसदीय कार्य मंत्री बिक्रम केशरी अरुखा द्वारा इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव पारित किया गया और विधान सभा के 104 सदस्यों ने अपने मतों को इस प्रस्ताव के पक्ष में दर्ज किया था।ओडिशा सरकार का यह प्रस्ताव 35 करोड़ के वार्षिक परिव्यय के साथ 49-सदस्यीय विधान परिषद्...

संविधान का अनुच्छेद 35-A क्या है? इसके पीछे के विवाद और इतिहास को संक्षेप में समझिये
संविधान का अनुच्छेद 35-A क्या है? इसके पीछे के विवाद और इतिहास को संक्षेप में समझिये

जहाँ एक ओर उच्चतम न्यायालय में संविधान के अनुच्छेद 35-A की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दलीलों के एक बैच पर सुनवाई होने की संभावना है, वहीँ यह मुद्दा एक बार फिर आम चर्चा के दौरान गरमाया हुआ है। अनुच्छेद 35-A, जो जम्मू और कश्मीर राज्य के मूल निवासियों को विशेष अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान करता है, इसलिए इस मुद्दे पर राजनीतिक नजर भी काफी महत्व रखती है।अनुच्छेद 35-A क्या है?अनुच्छेद 35-A को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के मंत्रिमंडल की सिफारिशों पर एक राष्ट्रपति के आदेश के...