स्तंभ
प्रवासी मजदूरों के मामलेः सुप्रीम कोर्ट ने नए मापदंड गढ़ने का मौका गंवाया
मनु सेबेस्टियनऐसा कहा जाता है कि आंकड़ों की खूबसूरती प्रायः सच को ढंक देती है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में लॉकडाउन में किए गए कामकाज के आंकड़ें जारी किए थे, जिसके मुताबिक, कोर्ट ने लॉकडाउन के एक महीने के दरमियान, 24 अप्रैल तक, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए 593 मामलों की सुनवाई की और 215 मामलों में फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की एक प्रेस विज्ञप्ति में इन आकंड़ों को विदेशी अदालतों में हुए कामकाज के आंकड़ों से तुलना करते हुए, कहा गया- "विभिन्न न्यायपालिकाओं के उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट...
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता का स्तर तेजी से नीचे गिर रहा हैः अमेरिकी वॉचडॉग USCIRF ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा
धार्मिक मुद्दों पर अमेरिकी वॉचडॉग यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम ( USCIRF) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति में '2019 में भारी गिरावट' पर चिंता प्रकट की है। बुधवार को जारी वार्षिक रिपोर्ट में संगठन ने भारत को "विशेष चिंता का देश" श्रेणी में रखा है। 2004 के बाद USCIRF पहली बार भारत को 'विशेष चिंता का देश' श्रेणी में रखा है। रिपोर्ट में भारत को बर्मा, चीन, इरिट्रिया, ईरान, नाइजीरिया, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, सीरिया, ताजिकिस्तान,...
केशवानंद भारती केसः जिसके बाद दुनिया ने संवैधानिक विचारों के लिए भारत की ओर देखा
कनिका हांडा, अंजलि अग्रवाल[यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।]विभिन्न कानूनी प्रणालियों से कानूनी सिद्धांतों का आयात नई अवधारणा नहीं है। यह सदियों से होता रहा है। विदेशी अदालतों के फैसले बाध्यकारी नहीं होते, फिर भी प्रेरक शक्ति रूप में उनकी गिनती होती रहती है।1973 में दिया गया भारतीय फैसला, "केशवानंद भारती बनाम...
जस्टिस एचआर खन्नाः जिन्होंने चीफ जस्टिस का पद पाने के बजाय संविधान बचाना जरूरी समझा
स्वप्निल त्रिपाठी [यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।] अप्रैल 1976 में, जब भारत में कुख्यात आपातकाल लागू हुआ, न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत की सुप्रीम कोर्ट के एक जज की तारीफ में एक आलेख लिखा। जज की तारीफ कारण एक फैसले में दर्ज उनकी असहमतियां थीं। 'फेडिंग होप इन इंडिया' शीर्षक से प्रकाशित आलेख में जस्टिस एचआर खन्ना...
केशवानंद भारती-2: ऐसा मामला, जिसे हम नहीं जानते मगर जरूर जानना चाहिए
स्वप्निल त्रिपाठी [यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।] केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) 4 SCC 225 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना सिद्धांत का निर्धारण किया था, जिसके अनुसार संसद कुछ मूलभूत विशेषताओं को छोड़कर संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। इस फैसले से श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व...
जजों का अधिक्रमणः केशवानंद भारती के फैसले का भयावह अंजाम
स्वप्निल त्रिपाठी[यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के अवसर पर आयोजित विशेष सीरीज़ का हिस्सा है। उक्त फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया था।] केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य [(1973) 4 SCC 225] के फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' का निर्धारण किया। 'मूल संरचना सिद्धांत' के अनुसार संविधान की कुछ मूलभूत विशेषताओं को छोड़कर संसद किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है।...
(केशवानंद भारती केस): प्रोफेसर कॉनराड, जो मूल संरचना सिद्धांत की प्रेरणा थे
स्वप्निल त्रिपाठी[यह आलेख केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले के 47 वर्ष पूरा होने के मौके पर लिखी जा रही सीरीज़ का हिस्सा है। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 'मूल संरचना सिद्धांत' निर्धारित किया था।] केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य [(1973) 4 SCC 225] मामले में दिया गया फैसला यकीनन भारत की सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया सबसे महत्वपूर्ण फैसला है। उक्त फैसले में यह निर्धारित किया गया है कि यद्यपि संसद के पास संविधान के किसी भी भाग को संशोधित करने,...
कोरोना वायरस COVID 19, नार्थ ईस्ट इंडिया और नस्लीय दुर्व्यवहार
प्रज्ञा पारिजात सिंह भारत का उत्तर पूर्व - सात राज्यों का समूह। अंग्रेजी में इन्हेंं सेवन सिस्टर्स भी कहते हैं। भारत के नक्शे में जैसे ही पूर्व दिशा में बढ़ते जायेंगे, एक संकरा छोर आएगा जिसे "चिकन नेक " यानि मुर्गी की गर्दन कहते हैं - सुराही जैसी, पतली। इसे जैसे ही पार करते हैं, आपका प्रवेश होता है उत्तर पूर्व भारत में। जी हां,अभी भी भारत ही है, लेकिन यकायक भारत के लोगों का जैसा अमूनन चेहरा होता है, वैसा यहां क्यों नहीं? खाने-पीने की अलग परम्पराएं, वेश-भूषा - परिवेश -शऊर सब अलग। इनको ट्राइब्स...
आईपीसी की धारा 188 के तहत दर्ज एफआईआर की वैधता: क्या COVID 19 को नियंत्रित करने के लिए पुलिस के पास पर्याप्त कानूनी प्रावधान हैं?
ऐश्वर्य प्रताप सिंहअसाधारण समय में प्रायः ही असाधारण उपायों की आवश्यकता होती है। COVID 19 नामक वैश्विक महामारी का यह दौर, जिसने पूरी दुनिया को अपनी जकड़ में ले लिया है, हमारे देश समेत पूरी दुनिया के लिए ऐसा ही एक असाधारण समय है, जिसमें निश्चित रूप से असाधारण उपायों की आवश्यकता है। यह सभी के लिए इम्तहान का वक्त है, विशेष रूप से कोरोना के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे कोरोना योद्धाओं जैसे डॉक्टर, चिकित्सा कर्मचारी, पुलिस, स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ता, आशा, आंगनवाड़ी, अन्य स्व-सहायता समूह। कोरोना...
मास्क N-19, कोरोना वायरस और घरेलू हिंसा
प्रज्ञा पारिजात सिंहफ्रांस के एक खामोश शहर - नैंसी में स्थित फार्मेसी की दुकान में पिछले रविवार को एक महिला आती है और केमिस्ट से दवाई के बहाने मदद मांगती है। वो दुकानदार को बताती है कि कोरोना वायरस की वजह से जबसे पूरा शहर लॉकडाउन है, उसका पति उसे रोज़ पीटता है और गाली-गलोच करता है । अपनी अक्षमता बताते हुए वो कहती है कि पति फ़ोन भी नहीं इस्तेमाल करने देता इसलिए मुश्किल से वो दवाई के बहाने बच्चों को लेकर आयी है। इस बात से अलार्म होकर दुकानदार, स्थानीय पुलिस को इत्तेला करता है और कुछ ही घंटों के...
COVID-2019: मनचाहे दामों पर वस्तुओं की बिक्री कर रहे दुकानदारों के खिलाफ ऐसे दर्ज कराएँ शिकायत
जैसा कि हम सभी जानते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च रात 12 बजे से अगले 21 दिनों के लिए 3 सप्ताह के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी। पीएम ने यह घोषणा करते हुए कहा था कि कोरोना-वायरस को फैलने से रोकने के लिए यह उपाय नितांत आवश्यक है।हालाँकि, 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कुछ आवश्यक सामग्री और सेवाएं इस लॉकडाउन से मुक्त भी हैं, और ऐसा इसलिए किया गया है जिससे लोगों को किसी प्रकार की असुविधा का सामना न करना पड़े।हालंकि, ऐसे तमाम मामले भी प्रकाश में आ रहे हैं, जहाँ लोगों द्वारा एक...
अतीत से अनागत तक, डिजास्टर -इन -लॉ ?
सीके भट्ट और प्रज्ञा पारिजात सिंह2020 में हमारा कई नए शब्दों से परिचय हुआ जैसे की सोशल डिस्टन्सिंग, जनता कर्फ्यू और क्वारंटाइन। इन पेचीदा शब्दों का उच्चारण और ज़रुरत दोनों समझने में हमारे देश के बाशिंदों को समय लग गया। अमूमन देश की न्याय - प्रणाली से जुड़े लोगों को इस सवाल से जूझना पड़ता है कि कानून,जो कि लोगों की भलाई के लिए बनाये जाते हैं, उन्हे समझना इतना पेचीदा क्यों होता है ? बीते कुछ हफ़्तों से कई बार ये सवाल देश के सामने रखा गया कि कोरोना वायरस से उत्पन्न हुई इस भीषण स्थिति से निपटने...
असहमतियों और वैज्ञानिक विमर्श पर ग्रहण?
सीनियर एडवोकेट संतोष पॉल" हमें स्पष्ट होना चाहिए कि विज्ञान के लिए आम सहमति का कोई अर्थ नहीं है। आम सहमति राजनीति का विषय है। विज्ञान में आम सहमति व्यर्थ है। अर्थपूर्ण वो नतीजे हैं, जिन्हें दोबारा हासिल किया जा सके। इतिहास के महानतम वैज्ञानिक महान इसलिए रहे, क्योंकि उन्होंने आम सहमति के खिलाफ खड़ा होना चुना।" माइकल क्रिक्टन कोरोनोवायरस की महामारी पर संभावित सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक विमर्शों को सुप्रीम कोर्ट का 31 मार्च 2020 का आदेश प्रभावित कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट का ऐसा इरादा नहीं...
नेताओं और जजों के नाम
सीनियर एडवोकेट अंजना प्रकाशमैं एक साधारण वकील हूं। 65 वर्ष के आसपास मेरी उम्र है और ऐसी कोई पेशेवर आकांक्षा भी नहीं है। मैं आसानी कोरोनोवायरस का शिकार हो सकती हूं। मैं न तो जीने की उम्मीद रखती हूं और न ही मरने की इच्छा है, हालांकि अगर मुझे जीना पड़ा तो मैं निश्चित रूप से और अधिक सार्थक जीवन जीने की कोशिश करूंगी और अगर मुझे मरना पड़ा तो जैसी की परंपरा है, मैं भी आखिरी इच्छा जाहिर करना चाहूंगी। और मेरी आखिरी इच्छा अपने देश के माननीय जजों और नेताओं को संबोधित करना है। मुझे लगता है कि कि बातचीत...
कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कंपनी: महामारी के दौर का एक ऐतिहासिक फैसला
नदीम कोट्टालाथ जब भी महामारियों फैलती हैं, ऐसी प्लेसिबो और नकली दवाएं की बाढ़ आ जाती है, जिनका दावा होता है कि वो बीमारी का इलाज कर सकती हैं। कई ऐसे लोग होते हैं, जिनकी कोशिश रहती है कि ऐसी बीमारियों के इलाज में स्थापित औषधीय प्रणाली की विफलता का फायदा उठाकर समाज के सीधे-सादे लोगों को जादुई इलाज का लालच देकर तुरंत पैसे कमा लें। इंग्लैंड में फैली इन्फ्लूएंजा महामारी के दिनों में एक कंपनी ने ऐसी ही कोशिश की थी, जिसके बाद अनुबंध कानून और उपभोक्ता अधिकारों के मामले में एक ऐतिहासिक...
कोरोनावायरस और संविधान: घरेलू कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा दया नहीं दायित्व है
उदित भाटिया कॉविड-19 का प्रकोप रोकने के लिए देश भर में लागू किए लॉक डाउन के बाद अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति और प्रतिबंध के बाद उन पड़ने वालों प्रभावित को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है? राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों से अनुरोध किया था कि वे अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देना जारी रखें, लॉकडाउन की अवधि में जिन्हें ज्यादा नुकसान हो सकता था। गौतम भाटिया ने हाल ही में संवैधानिक ढांचे (विशेष रूप से, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23) के तहत...
जानिए आरोप में होने वाली गलतियों का प्रभाव और आरोपों में परिवर्तन
कोई भी दंड न्यायालय जब आरोप तय करता है तो वह आरोप धारा 211 एवं धारा 212 के अंतर्गत बताए गए प्ररूप के अनुसार तय होते पर कभी-कभी न्यायालय आरोप तय करने में गलतियां कर देता है। ऐसी गलतियों के प्रभाव पर प्रश्न खड़ा होता है। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 215 में गलतियों के प्रभाव संबंधी प्रावधान दिए गए हैं। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 216 में न्यायालय को यह शक्ति दी गयी है कि वह आरोपों को परिवर्तित कर सकता है तथा उनका परिवर्धन भी कर सकता है। अर्थात आरोपों को बदल भी सकता है और आरोपों को बढ़ा...
COVID-19 के दौर में न्यायः सुप्रीम कोर्ट में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई का अनुभव
निधि मोहन पाराशर10 से ज्यादा दिनों तक खुद को क्वारंटाइन रखने के बाद सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कारण सूची में अपने केस की तारीख देखना रोमांचक था। मेरा केस 27 मार्च 2020 को 3 बजे सूचीबद्ध किया गया था। ज्यादा काबिल-ए-तारीफ यह है कि COVID-19 के कारण जारी लॉकडाउन के दौर में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही जरूरी मामलों को सूचिबद्घ करने और सुनवाई सुनिश्चित करने की एक असाधारण प्रक्रिया विकसित की है। मामले को सूचीबद्ध कराने का तरीका सरल है और मेरा अनुभव यह है कि सामान्य दिनों की मामले को सूचीबद्ध करने के...
जस्टिस एपी शाह के खिलाफ रंजन गोगोई के आरोपः सच्चाई क्या है?
प्रशांत भूषणजस्टिस रंजन गोगोई ने, कई पूर्व न्यायाधीशों की आलोचना का सामना, जिनमें कई उनके पूर्व सहयोगी जैसे जस्टिस एके पटनायक, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस एम लोकुर, जस्टिस के जोसेफ और जस्टिस एपी शाह आदि थे, सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद राज्यसभा की सदस्यता के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने और आयोध्या, सबरीमाला, राफेल जैसे मामलों केंद्र सरकार के पक्ष में फैसले देने के बाद, अपना बचाव अपने पुराने सहकर्मियों, जजों और जिन्हें वह वकीलों की 'लॉबी' कहते हैं, जिनमें उन्होंने मुझे और श्री कपिल...