पतंजलि की COVID-19 की दवा की एकतरफा घोषणा कैसे कानून का उल्लंघन करती है?

Manu Sebastian

24 Jun 2020 3:08 PM GMT

  • पतंजलि की COVID-19 की दवा की एकतरफा घोषणा कैसे कानून का उल्लंघन करती है?

    पतंजलि आयुर्वेद ने COVID-19 के लिए इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवा विकसित करने का सनसनी खेज दावा किया है।

    पतंजलि संस्थापक रामदेव और प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने घोषणा की कि उन्होंने "क्रोनिल और स्वासरी" दवाओं के जर‌िए COVID-19 का सौ फीसदी इलाज विकसित कर लिया है। पतंजलि ने अपने बयान में दावा किया है कि COVID​​-19 रोगी दवा के इस्तेमाल के 3 से 15 दिनों के भीतर निरोग हो गया। दावा किया गया कि दवाओं की 'क्लिनिकल केस स्टडी' दिल्ली, मेरठ और अहमदाबाद जैसे कई शहरों में की गई।

    इन दवाएं को कोरोना किट में बेचा जाना था, जिनकी कीमत 545 रुपए है। इन्हें एक सप्ताह के भीतर पूरे भारत में बेचा जाना था।

    हालांकि आयुष मंत्रालय ने मामले में तेजी दिखाई और पतंजलि से कहा कि वह उचित सत्यापन तक दवाओं के प्रचार से परहेज करे।

    COVID-19 इलाज के पतंजलि का प्रचार कई कानूनी मुद्दों से भरा हुआ है, जिस पर नीचे चर्चा की जाएगी।

    आयुष मंत्रालय के निर्देश का उल्लंघन

    21 अप्रैल को आयुष मंत्रालय ने पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों का उपयोग करते हुए COVID-19 के उपचार के लिए अनुसंधान कीअनुमति देते हुए कई शर्तें लागू की थी। इन शर्तों के अनुसार, संस्थान को "आयुष मंत्रालय, भारत सरकार को अनुसंधान विकास के बारे में अवगत कराना" अनिवार्य है।

    आयुष मंत्रालय की मंगलवार की प्रतिक्रिया से यह स्पष्ट है कि मंत्रालय को पतंजलि द्वारा अपनाई गई पूरी प्रक्रिया के बारे में अंधेरे में रखा गया था।

    मंत्रालय ने बयान में कहा, "दावे के तथ्य और कथित वैज्ञानिक अध्ययन की जानकारी मंत्रालय को नहीं हैं।" इसलिए, मंत्रालय के साथ पूर्व परामर्श के बिना संस्‍थान की ओर से दवा कि एकतरफा घोषणा 21 अप्रैल के निर्देश का उल्लंघन करती है।

    पंतजलि की घोषणा से चिंतित, मंत्रालय ने पतंजलि को दवा की संरचना, टेस्टिंग प्रोटोकॉल, सैम्पल साइज, संस्थागत आचार समिति की अनुमति और CTRI पंजीकरण के बारे में विवरण देने के लिए कहा है।

    COVID-19 के इलाज के झूठे दावों के प्रचार के ‌खिलाफ जारी निर्देशों का उल्लंघन

    24 मार्च को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत शक्तियों का आह्वान करते हुए घोषणा की थी कि COVID 19 के संबंध में झूठे दावे करना दंडनीय अपराध होगा।

    इसके बाद, आयुष मंत्रालय ने 1 अप्रैल को एक निर्देश जारी किया, जिसमें ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 33 P के तहत शक्तियों का आह्वान किया गया, ताकि COVID-19 उपचार के लिए आयुष-संबंधी दावों के प्रचार और विज्ञापन को रोका जा सके। टीवी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र के अधिकारियों को संबंधित कानूनी प्रावधानों और NDMA के पूर्वोक्त दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने में शामिल व्यक्तियों / एजेंसियों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

    सांविधिक अधिकारियों द्वारा उचित सत्यापन और अनुमोदन से पहले COVID-19 इलाज की खोज के बारे में एकतरफा दावों का प्रकाशन, 'झूठे दावों' के दायरे में आएगा।

    ड्रग्स एंड कॉस्मेट‌िक्स कानून और नियम का उल्लंघन

    यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि ड्रग लाइसेंसिंग अथॉरिटी ऑफ उत्तराखंड ने किन शर्तों के तहत दवा के निर्माण के लिए पतंजलि को लाइसेंस जारी किया है।

    आयुष मंत्रालय ने संबंधित राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण से अनुरोध किया है कि वह COVID - 19 के उपचार के लिए दावा की जा रही आयुर्वेदिक दवाओं के लाइसेंस और उत्पाद अनुमोदन के विवरण उपलब्ध कराए।

    कुछ ऐसे रिपोर्ट सामने आ रही हैं कि लाइसेंस आवेदन में यह उल्लेख नहीं किया गया था कि दवा COVID-19 का इलाज करने के लिए थी। केवल COVID -19 के संबंध में प्रतिरक्षा बूस्टर विकसित करने तक यह लाइसेंस सीमित था।

    मे‌डीसिनल लाइसेंसिंग प्राधिकरण, उत्तराखंड के संयुक्त निदेशक डॉ वाईएस रावत ने मीडिया को बताया-

    "दिव्या फार्मेसी ने कोरोना से संबंधित किसी भी प्रकार की दवा के लाइसेंस का आवेदन नहीं किया था और न ही उन्हें इस संबंध में कोई लाइसेंस दिया गया था। लाइसेंस केवल प्रतिरक्षा बूस्टर किट और बुखार की दवा के लिए जारी किया गया था। लेकिन अब यह ध्यान में आया है। आयुष विभाग, दिव्य फार्मेसी को एक नोटिस जारी किया जाएगा। यदि उनका जवाब संतोषजनक नहीं रहा तो उनके वर्तमान लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे।"

    अगर ऐसा है, तो यह ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की 33I धारा 33E के साथ पढ़ें, के तहत 'ड्रग्स के गलत इस्तेमाल' के अपराध को आकर्षित करेगा।

    आयुर्वेद, सिद्ध, यूनानी दवाओं के विज्ञापन पर प्रतिबंध

    2018 में, केंद्र सरकार ने ड्रग्स और कॉस्मेटिक नियमों में संशोधन किया, ताकि किसी भी बीमारी, विकार, सिंड्रोम या स्थिति के निदान, इलाज, शमन, उपचार या रोकथाम के लिए किसी आयुष दवाओं के विज्ञापन को विशेष रूप से प्रतिबंधित किया जा सके। इसका मतलब यह है कि आयुष दवाओं को चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए विज्ञापित नहीं किया जा सकता है।

    यह नियम 170 को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स, 1945 में ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स (11वां संशोधन) रूल्स 2018 के जरिए डाला गया था। नियम में कहा गया है:

    "आयुर्वेदिक, सिद्ध या यूनानी दवाओं के निर्माता या उनके एजेंट, किसी भी बीमारी, विकार, सिंड्रोम या स्थिति के निदान, इलाज, शमन, उपचार या रोकथाम के लिए किसी भी दवा से संबंधित किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग नहीं लेंगे। "।

    नियमों ने पूर्व अनुमति प्राप्त करने के बाद, गैर-चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए आयुष दवाओं के विज्ञापन की अनुमति दी।

    जाहिर है, पतंजलि की घोषणाएं चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए आयुर्वेद दवाओं के विज्ञापन पर इस सख्त प्रतिबंध का उल्लंघन करती हैं।

    ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन अधिनियम), 1954 का उल्लंघन

    निर्विवाद तथ्य यह है कि पतंजलि के दावों को आयुष मंत्रालय द्वारा सत्यापित किया जाना बाकी है, जो कि आयुर्वेदिक दवाओं के संबंध में केंद्रीय नियामक प्राधिकरण है।

    इसलिए, असत्यापित दावों का व्यापक प्रचार ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन अधिनियम), 1954 के दंडात्मक प्रावधानों को आकर्षित करता है, जो भोला-भाले लोगों को इलाज के संदिग्ध दावों के शिकार होने से बचाने के लिए लागू किया गया था।

    अधिनियम की धारा 4 वर्तमान परिस्थितियों में प्रासंगिक होगी, जो ड्रग्स से संबंधित भ्रामक विज्ञापनों की सजा से संबंधित है।

    इसके अनुसार, कोई भी व्यक्ति दवा से संबंधित किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन में हिस्सा नहीं लेगा। यदि विज्ञापन में कोई ऐसा मामला शामिल है:

    -प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दवा के असली चरित्र के बारे में गलत धारणा देता है;

    -या दवा के बारे में गलत दावा करता है;

    -अन्यथा किसी भी सामग्री में विशेष रूप से गलत या भ्रामक है।

    अधिनियम का उल्लंघन करने पर प्रथम दृष्टया 6 महीने तक कारावास और बाद के अपराध के लिए एक वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है। अधिनियम के तहत अपराध संज्ञेय हैं, जिसका अर्थ है कि पुलिस सीधे इस संबंध में एफआईआर दर्ज कर सकती है।

    इसलिए, पतंजलि ने पहले ही बिना सत्यापन के दवा का प्रचार करके कई कानूनी उल्लंघन किए हैं।

    यह देखा जाना बाकी है कि क्या मंत्रालय वही संकल्प बरकरार रखेगा, जो इसने शुरु में दिखाया है कि मामला उचित कानूनी नतीजे तक पहुंचे।

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