हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (28 जुलाई, 2025 से 01 अगस्त, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
नाबालिग से शादी अवैध, बलात्कार के अपराध को 'पवित्र' करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि चूंकि नाबालिग से विवाह भारतीय कानून के तहत कानूनी रूप से अमान्य है, इसलिए बलात्कार के अपराध को "साफ़" करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, "इसके अलावा, नाबालिग से विवाह न केवल भारतीय कानून के तहत अमान्य है, बल्कि बलात्कार के अपराध की प्रयोज्यता निर्धारित करने के उद्देश्य से भी अप्रासंगिक है, जब अभियोक्ता सहमति देने की उम्र से कम हो। दूसरे शब्दों में, इस संदर्भ में, कथित विवाह कानूनी रूप से अमान्य है और इसे वैधानिक बलात्कार के रूप में परिभाषित कानून को साफ़ करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।"
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S.84 BSA | विदेशी नोटरी के समक्ष निष्पादित पावर-ऑफ-अटॉर्नी तभी मान्य होती है, जब देश नोटरी अधिनियम के तहत 'पारस्परिक' हो: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में यह व्यवस्था दी है कि किसी विदेशी देश को पारस्परिक देश के रूप में मान्यता देने वाली अधिसूचना के अभाव में, कोई भारतीय न्यायालय किसी विदेशी नोटरी पब्लिक द्वारा निष्पादित मुख्तारनामा को मान्यता नहीं दे सकता।
जस्टिस के बाबू ने कहा, "मेरा यह सुविचारित मत है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 57(6) का यह आदेश कि न्यायालय नोटरी पब्लिक की मुहरों का न्यायिक संज्ञान लेगा, किसी विदेशी देश में नोटरी पब्लिक के समक्ष निष्पादित मुख्तारनामा पर तभी लागू हो सकता है जब वह विदेशी देश पारस्परिक देश हो। उस विदेशी देश के पारस्परिक संबंध के प्रमाण के अभाव में, जहां मुख्तारनामा नोटरी पब्लिक के समक्ष निष्पादित किया गया था, साक्ष्य अधिनियम की धारा 85 में प्रदत्त पहचान और प्रमाणीकरण संबंधी उपधारणा उत्पन्न नहीं होगी।"
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कृषि भूमि से संबंधित रद्द योग्य सेल डीड के विवाद सिविल कोर्ट ही सुलझा सकते हैं: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि वादपत्र में लगाए गए आरोप यह संकेत देते हैं कि संपत्ति का हस्तांतरण रद्द योग्य है तो ऐसे मामलों में केवल सिविल कोर्ट को ही अधिकार होगा राजस्व कोर्ट को नहीं। चाहे विवादित संपत्ति कृषि भूमि ही क्यों न हो और भले ही राजस्थान भू-स्वामी अधिनियम 1955 की धारा 207 में इसके लिए राजस्व न्यायालय का उल्लेख हो।
जस्टिस चंद्रशेखर शर्मा की पीठ ने यह टिप्पणी पुनर्विचार याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में CPC की आदेश 7 नियम 11 के तहत वाद खारिज करने की याचिका को ठुकरा दिया गया था।
केस टाइटल: सोहन सिंह बनाम रजकीदेवी एवं अन्य
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HP Land Revenue Act | वित्त आयुक्त, जिला कलेक्टर द्वारा रद्द किए गए आदेश को अवैध घोषित किए बिना उसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते: हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वित्त आयुक्त द्वारा पारित आदेश यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उन्होंने अप्रासंगिक और गैर-मौजूद सामग्री का सहारा लेकर और कलेक्टर के निर्णय में बिना कोई कानूनी दोष या विकृति घोषित किए हस्तक्षेप करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया।
वित्त आयुक्त का निर्णय रद्द करते हुए जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा, "वित्त आयुक्त ने विवादित आदेश पारित करते समय अप्रासंगिक और गैर-मौजूद सामग्री पर अपनी राय आधारित करके और जिला कलेक्टर के आदेश को अवैध या विकृत घोषित किए बिना उसमें हस्तक्षेप करके अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया।"
Case Name: Sanjay Kumar v/s State of H.P. & Others.
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हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 22 के तहत संपार्श्विक दीवानी और आपराधिक मुकदमों के बचाव के लिए वैवाहिक मुकदमे के विवरण का खुलासा वर्जित नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 22, जो वैवाहिक विवादों के विवरण के प्रकाशन पर रोक लगाती है, पूर्णतः लागू नहीं है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिसि हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने इस प्रकार अपीलकर्ता की पत्नी, उसके भाई और नियोक्ता को अपीलकर्ता द्वारा स्वयं शुरू किए गए संपार्श्विक दीवानी और आपराधिक मुकदमों में वैवाहिक मुकदमे और संबंधित हिरासत कार्यवाही के विवरण का खुलासा करने से रोकने से इनकार कर दिया।
Case title: PJ v. PJ
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बिना स्टांप वाले एग्रीमेंट के आधार पर अस्थायी निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती, भले ही प्रतिवादी ने इसे मान लिया हो: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि अगर कोई समझौता बिना स्टांप और रजिस्ट्री के है, तो उस पर भरोसा करके अंतरिम रोक का आदेश नहीं दिया जा सकता। भले ही प्रतिवादी मान ले कि उसने समझौता किया है, लेकिन ऐसे दस्तावेज़ कानून में मान्य नहीं होते जब तक कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम के तहत सही तरह से स्टांप और पंजीकरण न हो।
जस्टिस एसजी चपलगांवकर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत द्वारा पारित समवर्ती आदेशों को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा दी गई थी, जिससे उसे सूट संपत्ति पर प्रतिवादी के कथित कब्जे को परेशान करने से रोका जा सके। विवाद एक ताबे-इसर-पावती/नोटरीकृत समझौते से उत्पन्न हुआ जिसके तहत याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी को 92.5 लाख रुपये में सूट भूमि बेचने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसमें से 22 लाख रुपये किश्तों में भुगतान किए गए थे। समझौता पंजीकृत नहीं था और उस पर मुहर भी नहीं लगी थी।
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चूककर्ता निदेशक को सभी कंपनियों से अयोग्य घोषित किया जा सकता है, धारा 164 अनुच्छेद 19(1)(जी) पर उचित प्रतिबंध: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 164 के तहत, किसी व्यक्ति को उस कंपनी में निदेशक पद से अयोग्य ठहराया जा सकता है जिसके विरुद्ध आरोप लगाए गए हैं, साथ ही किसी अन्य कंपनी के संबंध में भी, जिसमें वह व्यक्ति निदेशक है और जिसके विरुद्ध कोई आरोप नहीं लगाया गया है।
याचिकाकर्ता निदेशकों ने तर्क दिया था कि उन्हें मेसर्स विहान कंपनी से, जिसके संबंध में आरोप लगाए गए हैं, अयोग्य ठहराया गया है, बल्कि किसी अन्य कंपनी के संबंध में भी अयोग्य ठहराया गया है, और उन्हें सभी कंपनियों से अंतरिम उपाय के रूप में अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।
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PCS Rules| सेवा से असंबंधित आपराधिक कार्यवाही ग्रेच्युटी रोकने का आधार नहीं हो सकती: पी एंड एच हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में पंजाब सिविल सेवा नियमों व्याख्या की और कहा कि किसी कर्मचारी के आधिकारिक कर्तव्यों से अलग आपराधिक कार्यवाही को ग्रेच्युटी रोकने का आधार नहीं बनाया जा सकता। मृतक कर्मचारी के परिवार को ग्रेच्युटी देने से इसलिए इनकार कर दिया गया क्योंकि एक आपराधिक मामले में बरी किए जाने के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी। न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिका दायर करने की तिथि से 7.5 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ तीन महीने के भीतर मृतक कर्मचारी की ग्रेच्युटी जारी करें और पारिवारिक पेंशन को नियमित करें।
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तलाक की कार्यवाही में पत्नी द्वारा पति पर नपुंसकता का आरोप लगाना मानहानि नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महिला, उसके भाई और पिता के खिलाफ मानहानि का मामला खारिज करते हुए कहा कि तलाक की याचिका या FIR में पत्नी द्वारा अपने पति को 'नपुंसक' बताना मानहानि नहीं माना जाएगा। जस्टिस श्रीराम मोदक की एकल पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा यह आरोप लगाना कि उसका पति नपुंसक है और इससे उसे मानसिक क्रूरता हुई है, उचित है।
Case Title: PVG vs VIG (Criminal Writ Petition 2686 of 2024)
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पति का दोस्त उसका रिश्तेदार नहीं, उस पर IPC की धारा 498ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR खारिज करते हुए फैसला दिया कि पति का पुरुष मित्र उसका रिश्तेदार नहीं है। इसलिए उस पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।
जस्टिस अनिल पानसरे और जस्टिस महेंद्र नेर्लिकर की खंडपीठ ने कहा कि उनके समक्ष प्रस्तुत आवेदकों में से एक पति का दोस्त है, जिसका नाम शिकायतकर्ता पत्नी ने अपने पति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज FIR में दर्ज किया।
Case Title: NMM vs State of Maharashtra (Criminal Application 1619 of 2023)
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POCSO मामले में पीड़िता और आरोपी के बीच समझौता नहीं हो सकता, भले ही वे विवाहित हों: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पीड़िता और आरोपी के बीच समझौते के आधार पर पोक्सो अधिनियम के तहत दर्ज बलात्कार के एक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। आरोपी पर 13 वर्षीय पीड़िता के साथ बलात्कार का आरोप था। कथित तौर पर, याचिकाकर्ता पीड़िता को बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गया और उसके साथ रहने लगा। चार महीने बाद पुलिस ने उसे आरोपी की हिरासत से बरामद किया। वर्तमान मामले में धारा 363, 366-ए, 376, 34 आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की धारा 4 और 12 के तहत अपराध दर्ज किए गए हैं।
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आपराधिक मामला लंबित होने पर भी मृतक आश्रित को नौकरी से इनकार नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल आपराधिक मामले का लंबित होना अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता है और नियुक्ति देने के लिए नियोक्ता के विवेकाधिकार का उपयोग निष्पक्ष रूप से किया जाना चाहिए। यह आगे कहा गया कि जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया चरित्र प्रमाण पत्र अनुकंपा नियुक्ति के लिए किसी व्यक्ति के आवेदन पर विचार करने में कुछ महत्व रखता है।
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शादी के बाद माता-पिता अजनबी नहीं, बेटी की प्रताड़ना पर दे सकते हैं गवाही: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पति को जमानत देने से इनकार कर दिया क्योंकि उसकी पत्नी ने दहेज के लिए कथित उत्पीड़न और उसके प्रति क्रूरता के कारण शादी के नौ महीने के भीतर आत्महत्या कर ली थी। जस्टिस स्वर्ण कांत शर्मा ने कहा कि मृतका की आवाज को हमेशा के लिए दबाया नहीं जा सकता और उसके माता-पिता द्वारा लाए गए सबूतों के माध्यम से सुना जा सकता है।
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[धारा 438 BNSS ] पुनर्विचार अधिकार क्षेत्र की सीमा से बाहर जाकर आदेश पारित नहीं कर सकता सेशन कोर्ट: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 438 के तहत सेशन कोर्ट को केवल अधीनस्थ आपराधिक कार्यवाहियों में पारित आदेशों की वैधता की जांच करने और उनके प्रवर्तन को रोकने तक ही सीमित अधिकार है। वह किसी संपत्ति के कब्जे की यथास्थिति में बदलाव लाने वाले आदेश पारित नहीं कर सकता, विशेषकर जब मूल कार्यवाही सार्वजनिक शांति बनाए रखने के उद्देश्य से BNSS की धारा 164 के तहत हो।
टाइटल: नोबर्टो पाउलो सेबास्तियाओ फर्नांडिस बनाम पंकज विठ्ठल तन वोल्वोइकर एवं अन्य
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यूपी पुलिस नियम: अपील खारिज होने के बाद दोबारा मेडिकल टेस्ट का नियम नहीं – इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश पुलिस कांस्टेबल और हेड कांस्टेबल सेवा नियम, 2015 के तहत डिवीजनल मेडिकल बोर्ड द्वारा अपील खारिज करने के बाद पुन: मेडिकल टेस्ट का कोई प्रावधान नहीं है।
जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने कहा,"सेवा नियमों के तहत, इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक उम्मीदवार को लिखित परीक्षा पास करने के बाद मेडिकल बोर्ड द्वारा मेडिकल जांच से गुजरना पड़ता है, हालांकि, डिवीजनल मेडिकल बोर्ड के समक्ष अपील खारिज होने के बाद फिर से परीक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। अगर इसकी अनुमति दी जाती है तो प्रक्रिया अंतहीन होगी और चयन कभी अंतिम रूप नहीं मिलेगा।
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मध्यस्थता समझौते में केवल 'स्थान' का उल्लेख है तो विपरीत संकेत के अभाव में स्थल को ही सीट माना जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब मध्यस्थता समझौते में केवल एक ही स्थान का उल्लेख है। उसे स्थान कहा गया तो उसे स्थान भी माना जाएगा, जब तक कि समझौते में कुछ विपरीत उल्लेख न किया गया हो। जस्टिस जसप्रीत सिंह ने कहा, "यदि मध्यस्थता समझौते में केवल एक ही स्थान का उल्लेख है। भले ही उसे 'स्थान' कहा गया हो, तो जब तक कि कोई विपरीत संकेत न हो, 'स्थान' को 'स्थान' माना जाएगा।"
केस टाइटल: देवी प्रसाद मिश्रा बनाम मेसर्स नायरा एनर्जी लिमिटेड (पूर्व में एस्सार ऑयल लिमिटेड) प्राधिकरण हस्ताक्षरकर्ता/प्रबंध निदेशक के माध्यम से [सिविल विविध मध्यस्थता आवेदन संख्या - 2
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जन्म के समय दी गई जाति विवाह के कारण नहीं बदलती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि जाति जन्म के समय ही निर्धारित हो जाती है और अनुसूचित जाति के व्यक्ति से विवाह करने पर नहीं बदलती। इसने स्पष्ट किया कि ऐसा विवाह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत अपराध करने से नहीं रोकता।
जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा, "राज्य की ओर से यह सही ढंग से प्रस्तुत किया गया कि जाति किसी व्यक्ति को जन्म के समय दी जाती है। उसके जीवनकाल में नहीं बदलती। निचली अदालत ने यह गलत माना कि प्रतिवादी-अभियुक्त विवाह के बाद अनुसूचित जाति की सदस्य बन जाएगी। वह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(s) के तहत दंडनीय अपराध नहीं कर सकती।"
केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम सरोजिनी
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दिल्ली हाईकोर्ट ने एलजी वीके सक्सेना द्वारा दायर मानहानि मामले में मेधा पाटकर की दोषसिद्धि बरकरार रखी
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर की दोषसिद्धि बरकरार रखी, जो 2001 में विनय कुमार सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मानहानि के मामले में है। वीके सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल हैं। जस्टिस शैलिंदर कौर ने निचली अदालत के निष्कर्षों में कोई अवैधता या भौतिक अनियमितता नहीं पाई और कहा कि दोषसिद्धि का आदेश साक्ष्यों और लागू कानून पर उचित विचार के बाद पारित किया गया।
केस टाइटल: मेधा पाटकर बनाम वी.के. सक्सेना एवं अन्य संबंधित मामले
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धारा 509 आईपीसी | कार्यस्थल पर केवल उत्पीड़न या दुर्व्यवहार शील भंग करने का अपराध नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना है कि कार्यस्थल पर केवल उत्पीड़न और दुर्व्यवहार भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध नहीं माना जाएगा। जस्टिस डॉ. अजय कुमार मुखर्जी ने कहा, "बार-बार दोहराए जाने के बावजूद, मैं यह कहने के लिए बाध्य हूं कि शिकायत में भी यह नहीं बताया गया है कि याचिकाकर्ता ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया, बल्कि केवल उत्पीड़न शब्द का उल्लेख किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में, वास्तविक शिकायत में केवल उसके साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया गया था, वह भी इस दुर्व्यवहार के तरीके और तौर-तरीके का विवरण दिए बिना। कार्यस्थल पर केवल उत्पीड़न या कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 509 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता, जब तक कि आवश्यक शर्तें पूरी न की गई हों।"
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जाति प्रमाण पत्र किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए OBC स्थिति को प्रमाणित करता है तो उस पर छपी वैधता अवधि अप्रासंगिक: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने यह निर्णय दिया कि किसी जाति प्रमाण पत्र पर यदि किसी विशेष वित्तीय वर्ष के लिए आवेदक की ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) स्थिति को प्रमाणित किया गया है तो प्रमाण पत्र के शीर्ष पर प्रिंट की गई वैधता अवधि की जानकारी अप्रासंगिक मानी जाएगी।
जस्टिस ज्योत्सना रिवाल दूआ ने कहा कि किसी प्रमाण पत्र में जो तथ्य प्रमाणित किए गए हैं, वही महत्वपूर्ण होते हैं। यदि प्रमाण पत्र किसी निश्चित अवधि के लिए ओबीसी दर्जे की पुष्टि करता है और यह अवधि प्रमाण पत्र के ऊपर प्रिंट की गई सामान्य वैधता अवधि से भिन्न है तो प्रमाण पत्र में दी गई वास्तविक प्रमाणन अवधि को प्राथमिकता दी जाएगी।
टाइटल : रशम राज बनाम राज्य हिमाचल प्रदेश एवं अन्य
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केवल PFI सेमिनारों में भाग लेना और फिजिकल ट्रेनिंग लेना UAPA के तहत आतंकवादी कृत्य नहीं माना जाएगा: बॉम्बे हाईकोर्ट
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) द्वारा आयोजित सेमिनारों में भाग लेने और कराटे आदि जैसी फिजिकल ट्रेनिंग में भाग लेने मात्र से कठोर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के प्रावधान लागू नहीं होंगे, जो आतंकवादी कृत्य के लिए दंडनीय है, यह फैसला बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने हाल ही में PFI के सक्रिय सदस्य होने के आरोप में गिरफ्तार तीन लोगों को जमानत देते हुए दिया।
जस्टिस नितिन सूर्यवंशी और जस्टिस संदीपकुमार मोरे की खंडपीठ ने कहा कि आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने 21 सितंबर, 2022 को सैय्यद फैसल सैय्यद खलील, अब्दुल हादी अब्दुल रऊफ मोमिन और शेख इरफान शेख सलीम उर्फ इरफान मिल्ली के खिलाफ एक गुप्त सूचना के आधार पर FIR दर्ज की थी कि 21 नवंबर, 2021 और जुलाई 2022 में मुस्लिम युवाओं के लिए कुछ सेमिनार और शारीरिक एवं हथियार प्रशिक्षण आयोजित किए गए थे।
Case Title: Sayyad Faisal Sayyad Khaleel vs State of Maharashtra (Criminal Appeal 358 of 2025)
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वैध लाइसेंस होने पर केवल ड्रग्स या मादक पदार्थों का रखना NDPS Act के तहत अपराध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि वैध लाइसेंस के तहत केवल ड्रग्स या साइकोट्रोपिक पदार्थ रखने से एनडीपीएस अधिनियम के प्रावधान स्वतः लागू नहीं होते हैं। जस्टिस अरुण मोंगा ने मादक पदार्थ बरामद होने के संबंध में दर्ज एक मामले में एक व्यक्ति को जमानत दे दी, जबकि उसकी अनुपस्थिति में मेसर्स विन हेल्थकेयर में तलाशी ली गई। यह आरोप लगाया गया था कि आरोपियों द्वारा प्रस्तुत स्टॉक रिकॉर्ड और एनडीपीएस दवाओं की वास्तविक मात्रा के बीच पर्याप्त विसंगतियां थीं।
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सरकारी कर्मचारी दो अलग-अलग पदों पर सेवा को मिलाकर सुनिश्चित करियर प्रगति का दावा नहीं कर सकते, अगर वेतनमान अलग-अलग हो: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि कोई कर्मचारी अलग-अलग संवर्गों के अंतर्गत दो अलग-अलग पदों पर अपनी सेवा को सम्मिलित करके सुनिश्चित करियर प्रगति योजना का लाभ नहीं ले सकता, बशर्ते कि दोनों संवर्गों का वेतनमान समान न हो।
जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा, "उपरोक्त स्पष्टीकरण को सीधे पढ़ने से पता चलता है कि यद्यपि विभिन्न संवर्गों में सेवारत कर्मचारी को एसीपी योजना के लाभ का हकदार माना जा सकता है, बशर्ते कि दोनों संवर्गों में वेतनमान समान/समान हो। चूंकि याचिकाकर्ता के मामले में, मूल विभाग में स्टेनो-टाइपिस्ट और उधार लेने वाले विभाग में क्लर्क के रूप में उसका वेतनमान अलग-अलग था, इसलिए याचिकाकर्ता उपरोक्त स्पष्टीकरण से कोई लाभ नहीं उठा सकती।"
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महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत लेने की हकदार, भले ही मामला CrPC की धारा 488(3) के तहत चल रहा हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के संरक्षणकारी दायरे को व्यापक रूप से स्वीकार करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला J&K CrPC की धारा 488(3) (जो CrPC की धारा 125 के समरूप है) के तहत चल रही भरण-पोषण की अनुपालन कार्यवाही के दौरान भी अधिनियम की धारा 26 का सहारा लेते हुए अधिनियम की धाराओं 18 से 22 के अंतर्गत निवास या अन्य राहत मांग सकती है।
जस्टिस संजय धर ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 26 में प्रयुक्त कानूनी कार्यवाही शब्द को उदारतापूर्वक रूप से व्याख्यायित किया जाना चाहिए ताकि अधिनियम का उद्देश्य घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं का संरक्षण पूरा हो सके।
केस टाइटल: परवीन बनो बनाम मुबाशिर अहमद वानी एवं अन्य
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उच्च शिक्षित बेरोजगार पत्नी को भरण-पोषण का हक: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई पत्नी अगर उच्च शिक्षित है लेकिन बेरोजगार है, तो उसे तब तक पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है जब तक वह खुद कमाई का कोई साधन नहीं ढूंढ लेती या कोई रोजगार नहीं पा जाती। जस्टिसी ना बंसल कृष्णा ने एक पति की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी को प्रति माह ₹1 लाख की एड-इंटरिम मेंटेनेंस (अंतरिम भरण-पोषण) देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।