उच्च शिक्षित बेरोजगार पत्नी को भरण-पोषण का हक: दिल्ली हाईकोर्ट
Praveen Mishra
27 July 2025 2:51 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोई पत्नी अगर उच्च शिक्षित है लेकिन बेरोजगार है, तो उसे तब तक पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है जब तक वह खुद कमाई का कोई साधन नहीं ढूंढ लेती या कोई रोजगार नहीं पा जाती।
जस्टिसी ना बंसल कृष्णा ने एक पति की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें फैमिली कोर्ट द्वारा पत्नी को प्रति माह ₹1 लाख की एड-इंटरिम मेंटेनेंस (अंतरिम भरण-पोषण) देने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
पति, जो कि एक ऑस्ट्रेलियाई नागरिक है, ने तर्क दिया कि उसकी पत्नी बेहद योग्य और कुशल प्रोफेशनल है, जिसकी शैक्षणिक पृष्ठभूमि बहुत मजबूत रही है। उसके अनुसार, पत्नी अपनी योग्यता के बल पर अच्छी नौकरी पा सकती थी, लेकिन उसने स्वेच्छा से काम न करने का विकल्प चुना है और उसकी वित्तीय निर्भरता उसकी व्यक्तिगत पसंद है, ज़रूरत नहीं।
पति ने यह भी कहा कि पत्नी पहले से ही एक आलीशान जीवनशैली जी रही है और उसे उसकी ओर से कोई आर्थिक सहयोग नहीं मिल रहा है। उसने यह भी आरोप लगाया कि फैमिली कोर्ट ने तथ्यों की समुचित समीक्षा किए बिना और दोनों पक्षों की सुविधाओं की तुलना किए बिना यह आदेश पारित कर दिया।
उसने कहा कि उसकी खुद की आर्थिक स्थिति भी ऑस्ट्रेलिया में बहुत अच्छी नहीं है और वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मां और दोस्तों की सहायता ले रहा है। वह अपने स्टार्टअप के लिए भी दोस्तों और परिवार से आर्थिक मदद ले रहा है।
दूसरी ओर, पत्नी ने जवाब में कहा कि उसने शादी के समय अपनी नौकरी छोड़ दी थी और अब वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है, जो उसकी देखरेख कर रहे हैं। उसका तर्क था कि केवल उच्च शिक्षित होना इस आधार पर भरण-पोषण से इनकार का कारण नहीं हो सकता, विशेष रूप से तब जब उसे रोजगार प्राप्त करने में अभी समय लग सकता है।
कोर्ट ने पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि भले ही पत्नी उच्च शिक्षित हो और उसके पास मानव संसाधन (HR) क्षेत्र में अच्छी योग्यता हो, लेकिन यह तथ्य नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि वह वर्तमान में बेरोजगार है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि उसने जानबूझकर नौकरी छोड़ी, क्योंकि उसने शादी के बाद ऑस्ट्रेलिया स्थानांतरित होने के कारण नौकरी छोड़ी थी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया,"जब तक पत्नी आय का कोई स्रोत नहीं ढूंढ लेती या कोई लाभकारी रोजगार नहीं प्राप्त कर लेती, तब तक उसे पति से सहायता पाने का अधिकार है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह आदेश केवल एड-इंटरिम मेंटेनेंस का है, यानी अंतरिम राहत का आदेश, जो आय के हलफनामे और दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए अंतिम रूप से तय किया जाएगा।
कोर्ट ने टिप्पणी की,"यह कहना कि केवल उसकी earning capacity के आधार पर उसे भरण-पोषण देना एक 'आलसी महिलाओं का वर्ग' बना देगा, इस स्तर पर जल्दबाज़ी होगी और अनुचित भी, खासतौर पर जब यह केवल अस्थायी राहत देने वाला आदेश है।"

