जन्म के समय दी गई जाति विवाह के कारण नहीं बदलती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
Amir Ahmad
29 July 2025 6:13 PM IST

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि जाति जन्म के समय ही निर्धारित हो जाती है और अनुसूचित जाति के व्यक्ति से विवाह करने पर नहीं बदलती।
इसने स्पष्ट किया कि ऐसा विवाह अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत अपराध करने से नहीं रोकता।
जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा,
"राज्य की ओर से यह सही ढंग से प्रस्तुत किया गया कि जाति किसी व्यक्ति को जन्म के समय दी जाती है। उसके जीवनकाल में नहीं बदलती। निचली अदालत ने यह गलत माना कि प्रतिवादी-अभियुक्त विवाह के बाद अनुसूचित जाति की सदस्य बन जाएगी। वह अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(s) के तहत दंडनीय अपराध नहीं कर सकती।"
संदर्भ के लिए: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(s) किसी भी सार्वजनिक स्थान पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को उसकी जाति के नाम से गाली देने के कृत्य को अपराध मानती है।
निचली अदालत ने माना कि अभियुक्त ने अनुसूचित जाति के व्यक्ति से विवाह किया था। विवाह के बाद वह अनुसूचित जाति समुदाय की सदस्य बन गई। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला गया कि उसने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1)(s) के तहत दंडनीय अपराध नहीं किया हो सकता, जो केवल उस व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, जो अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं है।
इससे व्यथित होकर राज्य ने आदेश को चुनौती देते हुए आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर की। इसने तर्क दिया कि विवाह के बाद किसी व्यक्ति की जाति नहीं बदलती है। अभियुक्त जो अनुसूचित जाति से संबंधित नहीं है। विवाह के बाद उस समुदाय की सदस्य नहीं बनेगी।
न्यायालय ने माना कि जाति किसी व्यक्ति को जन्म के समय दी जाती है और विवाह के बाद नहीं बदलती है। न्यायालय ने निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया और आरोप तय करने/मुक्ति के संबंध में मामले को नए सिरे से तय करने के लिए वापस भेज दिया।
केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम सरोजिनी

