[धारा 438 BNSS ] पुनर्विचार अधिकार क्षेत्र की सीमा से बाहर जाकर आदेश पारित नहीं कर सकता सेशन कोर्ट: बॉम्बे हाईकोर्ट
Amir Ahmad
30 July 2025 3:41 PM IST
![[धारा 438 BNSS ] पुनर्विचार अधिकार क्षेत्र की सीमा से बाहर जाकर आदेश पारित नहीं कर सकता सेशन कोर्ट: बॉम्बे हाईकोर्ट [धारा 438 BNSS ] पुनर्विचार अधिकार क्षेत्र की सीमा से बाहर जाकर आदेश पारित नहीं कर सकता सेशन कोर्ट: बॉम्बे हाईकोर्ट](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2025/07/30/750x450_612926-750x450426138-bombay-high-court-calls-for-a-swift-legal-process-to-avoid-prolonged-incarceration.jpg)
बॉम्बे हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 438 के तहत सेशन कोर्ट को केवल अधीनस्थ आपराधिक कार्यवाहियों में पारित आदेशों की वैधता की जांच करने और उनके प्रवर्तन को रोकने तक ही सीमित अधिकार है। वह किसी संपत्ति के कब्जे की यथास्थिति में बदलाव लाने वाले आदेश पारित नहीं कर सकता, विशेषकर जब मूल कार्यवाही सार्वजनिक शांति बनाए रखने के उद्देश्य से BNSS की धारा 164 के तहत हो।
जस्टिस वल्मीकि मेनेज़ेस की एकल पीठ आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश में प्रतिवादियों को नागपंचमी त्योहार के लिए अस्थायी रूप से एक सील किए गए ढांचे में प्रवेश और उपयोग की अनुमति दी गई। यह आदेश उस स्थिति में दिया गया जबकि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (SDM) ने पहले से ही प्रतिवादियों को उस संपत्ति में प्रवेश से रोका था और याचिकाकर्ता के कब्जे को मान्यता दी।
सेशन कोर्ट ने लंबित आपराधिक पुर्नविचार याचिका में प्रतिवादियों द्वारा दायर आवेदन स्वीकार करते हुए पुलिस को आदेश दिया कि वह सील की गई संपत्ति को एक निर्धारित अवधि के लिए खोले ताकि प्रतिवादी नागपंचमी मना सकें।
हाईकोर्ट ने पाया कि सेशन कोर्ट ने BNSS की धारा 438 के तहत अपनी सीमित पुनरीक्षणीय अधिकारिता का अतिक्रमण किया है। यह धारा केवल यह जांचने की अनुमति देती है कि क्या अधीनस्थ अदालतों द्वारा पारित आदेश कानून सम्मत हैं या नहीं, और यदि आवश्यक हो तो उन्हें निलंबित किया जा सकता है।
अदालत ने यह भी कहा कि जब मूल कार्यवाही केवल इस उद्देश्य से हो कि क्षेत्र में कौन पक्ष वास्तविक कब्जे में है ताकि सार्वजनिक शांति बनी रहे, तब अदालत स्वामित्व या किरायेदारी जैसे अधिकारों की सुनवाई नहीं कर सकती और न ही कोई अंतरिम आदेश पारित कर सकती जिससे कब्जे की स्थिति बदल जाए।
कोर्ट ने कहा,
“जब मूल कार्यवाही CrPC की धारा 164 (अब BNSS में समाहित) के तहत शुरू की गई हो। उनका उद्देश्य केवल शांति एवं व्यवस्था बनाए रखना हो तो सेशन कोर्ट को उसी सीमित दायरे में अपने पुनर्विचार अधिकार का प्रयोग करना चाहिए। प्रतिवादियों को अस्थायी कब्जे की अनुमति देने वाला कोई भी आदेश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा।”
प्रतिवादियों की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट की अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षणीय अधिकारिता का प्रयोग इस मामले में उचित नहीं है क्योंकि विवादित आदेश न तो गैरकानूनी था और न ही विधिक प्रावधानों के विरुद्ध।
हाईकोर्ट ने इस आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि हालांकि अनुच्छेद 227 के तहत अधिकारों का प्रयोग संयमित होना चाहिए, परंतु जब अधीनस्थ अदालतें अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं से बाहर जाकर कार्य करती हैं या उनके आदेशों में स्पष्ट रूप से दुर्भावना या असंगति दिखाई देती है तब पर्यवेक्षणीय अधिकारिता का प्रयोग उचित होगा।
अतः हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि वह पुनर्विचार याचिका को शीघ्रता से निपटाए
टाइटल: नोबर्टो पाउलो सेबास्तियाओ फर्नांडिस बनाम पंकज विठ्ठल तन वोल्वोइकर एवं अन्य

