हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-04-07 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (01 अप्रैल, 2024 से 05 अप्रैल, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए जब तर्कसंगत विकल्प बनाती है, सहमति को तथ्य की गलत धारणा पर आधारित नहीं कहा जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा है कि जब भी कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए तर्कसंगत विकल्प बनाती है तो सहमति को तथ्य की गलत धारणा पर आधारित नहीं कहा जा सकता, जब तक कि इस बात के स्पष्ट सबूत न हों कि झूठा वादा किया गया।

जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने कहा कि वादा तत्काल प्रासंगिक होना चाहिए और महिला द्वारा यौन क्रिया में शामिल होने के निर्णय से सीधा संबंध होना चाहिए। अदालत ने कहा, "यह देखना उचित है कि जब भी कोई महिला इस तरह की कार्रवाई के परिणामों को पूरी तरह से समझने के बाद शारीरिक संबंध बनाने का तर्कसंगत विकल्प चुनती है तो 'सहमति' को तथ्य की गलत धारणा पर आधारित नहीं कहा जा सकता, जब तक कि इस बात का स्पष्ट सबूत न हो कि वादा करने के समय निर्माता द्वारा कोई झूठा वादा किया गया, लेकिन उसे पूरा करने का कोई इरादा नहीं था।"

केस टाइटल- आई एस बनाम दिल्ली सरकार और अन्य।

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तदर्थ आधार पर नियुक्त कर्मचारी किसी पद से जुड़े वेतन के हकदार नहीं, जब तक कि उन्हें पर्याप्त क्षमता में नियुक्त न किया जाए: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पीबी बजंथरी और जस्टिस अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने गणेश महतो बनाम बिहार राज्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील पर निर्णय लेते हुए कहा कि कर्मचारी उस पद से जुड़े वेतन के हकदार नहीं हैं, जिसके लिए उन्हें तदर्थ आधार पर नियुक्त किया जाता है, जब तक कि वे उस पद पर वास्तविक क्षमता में न हों।

मामले में अदालत ने कहा कि वर्ष 2014 से 2015 तक जारी नियमितीकरण आदेश को चुनौती न देने और नवंबर, 2006 से नियमितीकरण की मांग करने पर यदि उत्तरदाता नवंबर, 2006 से नियमितीकरण के हकदार थे, तो उत्तरदाता हस्तक्षेप अवधि या उस तारीख के दौरान पद से जुड़े वेतन के हकदार नहीं थे जिस दिन उनकी सेवाएं नियमित की गई थीं, इसलिए एकल न्यायाधीश ने हस्तक्षेप अवधि के दौरान वेतन की बकाया राशि के मामले में उत्तरदाताओं को राहत देने में गलती की और यह कानून के तहत स्वीकार्य नहीं था।

केस टाइटल: गणेश महतो बनाम बिहार राज्य

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सहमति से तलाक के समय भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार छोड़ने वाली पत्नी बाद में इसकी हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला आपसी सहमति से तलाक के समय अपने पति से गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार छोड़ देती है, तो वह बाद में इसकी मांग नहीं कर सकती है। जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी द्वारा दायर याचिका में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए यह राय दी, जिसमें पति को प्रतिवादी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 25 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

केस टाइटलः गौरव मेहता बनाम अनामिका चोपड़ा संबंधित मामले के साथ 2024 लाइव लॉ (एबी) 218 [CRIMINAL REVISION No. - 4152 of 2023]

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[Sec.38 आर्म्स एक्ट] शस्त्र अधिनियम के तहत सभी अपराध संज्ञेय अपराध हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 30 के तहत उसके खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग करने वाले एक आरोपी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता-आरोपी ने तर्क दिया कि अदालत की एक समन्वय पीठ ने फैसला सुनाया था कि शस्त्र अधिनियम की धारा 30 और 35 के तहत अपराध गैर-संज्ञेय थे।

याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस एस विश्वजीत शेट्टी की सिंगल जज बेंच ने कहा, "[उस अवसर पर] शस्त्र अधिनियम की धारा 38 को इस कोर्ट के संज्ञान में नहीं लाया गया था और इसलिए, इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा सीआरएलपी संख्या 4567/2018 में पारित आदेश, जिसमें इस कोर्ट ने माना है कि अधिनियम की धारा 30 और 35 के तहत अपराध गैर-संज्ञेय अपराध हैं।

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सूचना मांगने वाले आवेदक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत कोई प्रावधान नहीं: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी मांगने वाले आवेदक के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी के लिए दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है, यह देखते हुए कि आरटीआई अधिनियम या नियमों के तहत आवेदक के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का कोई प्रावधान नहीं है, जिसने जानकारी मांगी थी। अदालत ने यह भी पाया कि अपराध के अवयवों को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं था।

हिसार के जिला सूचना प्रौद्योगिकी सोसाइटी के कार्यालय में एक कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा जालसाजी, धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बजरंग ने आरटीआई आवेदन शुल्क का भुगतान करने से बचने के लिए अपने रिश्तेदार संदीप कुमार के जाली हस्ताक्षर किए थे, जिनके पास गरीबी रेखा से नीचे का कार्ड है।

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यदि ड्यूटी पर वापस आने के लिए नोटिस जारी नहीं किया गया तो स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ना स्वीकार नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस संदीप वी. मार्ने की सिंगल बेंच ने प्रेमसंस ट्रेडिंग (पी) लिमिटेड बनाम दिनेश चंदेश्वर राय के मामले में एक सिविल रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि स्वैच्छिक रूप से नौकरी छोड़ना तभी साबित हो सकता है, जब नियोक्ता ने कर्मचारी को नोटिस जारी करके उसे अपनी ड्यूटी पर वापस आने का निर्देश दिया हो।

केस टाइटल- प्रेमसंस ट्रेडिंग (पी) लिमिटेड बनाम दिनेश चंदेश्वर

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धारा 23(1)(बी) हिंदू विवाह अधिनियम | यदि पति/पत्नी द्वारा एक बार माफ कर दिए गए क्रूरता के कृत्य दोबारा दोहराए जाएं तो तलाक की याचिका खारिज नहीं की जा सकती: इलाहाबाद ‌हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि तलाक की याचिका को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 23 (1) (बी) के तहत खारिज नहीं किया जा सकता है, अगर क्रूरता के कार्य, जिन्हें एक बार पति या पत्नी द्वारा माफ कर दिया गया था, दोहराया जाता है।

न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिए कि याचिका में यह कहा गया था कि पति ने व्यभिचार को माफ कर दिया था और पत्नी के साथ रहता था, यह नहीं कहा जा सकता कि पत्नी द्वारा बाद में किये गये व्यभिचार को माफ कर दिया गया था।

केस टाइटल: ऋचा मुमगई बनाम हरेंद्र प्रसाद 2024 लाइव लॉ (एबी) 215 [FIRST APPEAL No. - 245 of 2024]

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हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार विवाह संपन्न कराने के लिए कन्यादान समारोह आवश्यक नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार हिंदू विवाह को संपन्न करने के लिए कन्यादान की रस्म आवश्यक नहीं है। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने कहा, "हिंदू विवाह अधिनियम केवल सप्तपदी को हिंदू विवाह के एक आवश्यक समारोह के रूप में प्रावधान करता है और यह प्रावधान नहीं करता कि कन्यादान का समारोह हिंदू विवाह के समापन के लिए आवश्यक है।"

मामले में अदालत आशुतोष यादव नामक एक व्यक्ति की पुनरीक्षण याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें एक सत्र परीक्षण में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, लखनऊ के एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें दो PWs को वापस बुलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 के तहत दायर पुनरीक्षणवादी आवेदन कोखारिज कर दिया गया था।

केस टाइटल- आशुतोष यादव बनाम State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Home Deptt. Lko. And Another 2024 LiveLaw (AB) 216 [CRIMINAL REVISION No. - 296 of 2024]

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प्रतियोगी परीक्षाएं | किसी प्रश्न को तब तक गलत नहीं माना जा सकता, जब तक उसे अभ्यर्थी समझ सके और उसका उत्तर दिया जा सके: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट हाल ही में कहा कि पब्लिक एग्जामिनेश के मामले में, किसी प्रश्न को केवल उसके फार्मूलेशन के आधार पर गलत नहीं माना जाना चाहिए, जब तक कि कैंडीडेट उसे समझ ना सके या उत्तर ना दे सके। इस तर्क को स्वीकार करते हुए कि कुछ प्रश्नों को बेहतर ढंग से तैयार किया जा सकता है, न्यायालय ने कहा कि केवल यह तथ्य उन्हें अमान्य नहीं करता है।

जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सैयद क़मर हसन रिज़वी ने कहा, "जब तक यह नहीं दिखाया जाता कि प्रश्न गलत है या प्रश्न का फार्मूलेशन ऐसा है कि उम्मीदवार प्रश्न को समझ नहीं सका या उसका उत्तर नहीं दे सका, तब तक प्रश्न में हस्तक्षेप करना उचित नहीं होगा।"

केस टाइटलः नितेश कुमार सिंह यादव बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 213

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यूपी शहरी भवन अधिनियम | लंबित रिहाई आवेदन में संशोधन/प्रतिस्थापन दूसरा आवेदन नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराए पर देने, रेंट और बेदखली का विनियमन) अधिनियम, 1972 [Uttar Pradesh Urban Buildings (Regulation Of Letting, Rent And Eviction) Act, 1972] इकी धारा 21 के तहत किरायेदार से संपत्ति को रिलीज़ कराने के लिए लंबित आवेदन में संशोधन आवेदन या प्रतिस्थापन आवेदन दाखिल करने को दूसरा आवेदन नहीं माना जा सकता।

न्यायालय ने माना कि पहले रिलीज आवेदन की योग्यता पर किसी निर्णय के अभाव में, इसमें किसी भी संशोधन को अधिनियम की धारा 21 के तहत दूसरे रिलीज आवेदन के रूप में नहीं माना जा सकता है।

केस टाइटल: शिव सेवक कश्यप बनाम वीरेंद्र सिंह और 3 अन्य [रिट - ए नंबर - 20193/2023]

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बरी होने के परिणामस्वरूप अभियोजन पक्ष को जमानत पर विचार करने के लिए आपराधिक इतिहास में शामिल नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि बरी होने के परिणामस्वरूप अभियोजन पक्ष या जब अदालतों ने एफआईआर रद्द ककरने पर अभियोजन पक्ष वापस ले लिया गया या क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई तो किसी आरोपी की जमानत याचिका पर विचार करने के लिए आपराधिक इतिहास में शामिल नहीं किया जा सकता।

जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा, "आपराधिक इतिहास वाले अभियुक्त की प्रत्येक जमानत याचिका पर विचार करते समय न्यायालयों पर विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करने की भारी जिम्मेदारी होती है, क्योंकि मनमानी कानून के विपरीत है। आपराधिक इतिहास उन मामलों का होना चाहिए, जिनमें अभियुक्त को दोषी ठहराया गया। इसमें निलंबित सजा और सभी लंबित प्रथम सूचना रिपोर्ट शामिल हैं, जिसमें जमानत याचिकाकर्ता को अभियुक्त के रूप में आरोपी बनाया गया।"

केस टाइटल- धर्मराज बनाम हरियाणा राज्य

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UP 'Anti-Conversion' Law अंतरधार्मिक जोड़ों के बीच लिव-इन संबंध पर रोक लगाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यूपी निषेध धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 (UP 'Anti-Conversion' Act) की धारा 3(1) विभिन्न धर्मों के जोड़ों के बीच वैवाहिक बंधन जैसे लिव-इन संबंधों पर रोक लगाती है।

जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ ने हिंदू लड़की और उसके अंतरधार्मिक साथी (याचिकाकर्ता नंबर 2) द्वारा दायर रिट याचिका का निपटारा करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें याचिकाकर्ता नंबर 2 के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 और 366 के तहत दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग की गई।

केस टाइटल- शिल्पा उर्फ शिखा और अन्य बनाम यूपी राज्य के माध्यम से. प्रिं. सचिव. गृह विभाग लको. और अन्य [आपराधिक विविध. रिट याचिका नंबर- 2330/2024]

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सास द्वारा बहू के घरेलू कामों पर आपत्ति जताना आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि सास की ओर से अपनी बहू के घरेलू काम पर आपत्ति जताने भर को आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता नहीं माना जाता है।

जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा, "यदि घरेलू कामों में सास की ओर से की गई गए कुछ आपत्तियों के कारण बहू को मानसिक उत्पीड़न होता है तो यह कहा जा सकता है कि बहू अतिसंवेदनशील हो सकती है। हालांकि "घरेलू कामों के संबंध कुछ विवाद निश्चित रूप से क्रूरता नहीं होगा।"

केस टाइटलः अलका शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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कृषि सुधारों के लिए बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने हरियाणा के भूमि सुधार कानून, हरियाणा ढोलीदार, बूटीमार, भोंडेदार और मुकरारीदार (स्वामित्व अधिकार निहित करना अधिनियम, 2010)" (अधिनियम) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी। उक्त निर्णय यह देखते हुए लिया कि यह भूमि के जोतने वालों के अधिकारों को मान्यता देता है।

ढोलीदार भूमि का किराएदार और ट्रस्टी होता है, जिसे सामाजिक सेवा के उद्देश्य से मृत्युशय्या पर उपहार के रूप में भूमि मिलती है। बूटीमार भी किरायेदार होता है, जो जंगल को साफ करता है और भूमि को खेती के अधीन लाता है। भोंडेदार को गांव के चौकीदार या संदेशवाहक के कर्तव्यों जैसे कुछ धर्मनिरपेक्ष सेवा के लिए भूमि दी जाती है।

केस टाइटल- सुशील कुमार और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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निर्यात निरीक्षण कर्मचारी नियम 1978 के तहत सेवानिवृत्त अधिकारी को लोक सेवक नहीं कहा जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

जस्टिस तुषार राव गेडेला की दिल्ली हाइकोर्ट की सिंगल जज पीठ ने परवीन कुमार बनाम निर्यात निरीक्षण परिषद एवं अन्य के मामले में सिविल रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए माना कि जांच अधिकारी के रूप में नियुक्त सेवानिवृत्त अधिकारी निर्यात निरीक्षण कर्मचारी (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1978 (ईआईए नियम) के नियम 11(2) के तहत लोक सेवक के मानदंडों को पूरा नहीं करता।

केस टाइटल- परवीन कुमार बनाम एक्सपोर्ट इंस्पेक्शन काउंसिल एवं अन्य

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निदेशकों को आपराधिक मामलों में केवल इसलिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता कि वे कंपनी में पद पर हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने सड़क के रखरखाव के लिए जिम्मेदार कंपनी के निदेशकों के खिलाफ दायर आरोपपत्र खारिज किया। यह आरोपपत्र 3 वर्षीय बच्चे की सड़क पर गड्ढे के कारण बाइक से गिरने से हुई दुर्घटना में हुई मौत से संबंधित था।

निदेशकों पर लापरवाही से मौत (धारा 304-ए आईपीसी), दूसरों के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले कृत्य से चोट पहुंचाने (धारा 337 आईपीसी) और लापरवाही से वाहन चलाने (धारा 279 आईपीसी) के तहत मामला दर्ज किया गया। SIT ने पाया कि बच्चे की मौत सड़क पर गड्ढे होने के कारण हुई और लार्सन एंड टूब्रो (एलएंडटी) को इसके रखरखाव का उप ठेका दिया गया।

केस टाइटल- एस. राजगोपाल बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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'दूसरी पत्नी' आईपीसी की धारा 498ए के तहत 'पति' के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं करा सकती, हालांकि ऐसे मामलों में 'दहेज निषेध अधिनियम' लागू हो सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि 'दूसरी पत्नी' के कहने पर पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498-ए (क्रूरता का अपराध) के तहत शिकायत सुनवाई योग्य नहीं है, हालांकि ऐसे मामलों में दहेज की मांग होने पर दहेज निषेध अधिनियम, 1961 आकर्षित हो सकता है।

ज‌स्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने फैसले में कहा, “...दहेज के लिए, विवाह का निष्पादन आवश्यक नहीं है और यहां तक कि एक विवाह अनुबंध भी पर्याप्त है। यदि एक पुरुष और महिला ने विवाह और एक साथ रहने के लिए अनुबंध किया है और पुरुष साथी महिला साथी से दहेज की मांग करता है तो डीपी एक्ट की धारा 3 और 4 की सामग्री आकर्षित होती है।”

केस टाइटलः अखिलेश केशरी और 3 अन्य बनाम यूपी राज्य और दूसरा 2024 लाइव लॉ (एबी) 208 [आवेदन यू/एस 482 नंबर - 2023 का 38288]

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ईडी ने जिस व्यक्ति को तब किया है, अगर उसे ईसीआईआर की वास्तविक प्रति नहीं दी जा रही है तो भी कम से कम आरोपों की समरी पाने के उसे हक़: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सामान्य स्थिति में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जिस व्यक्ति को तलब किया है, अगर उसे प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की वास्तविक प्रति नहीं दी जा रही है तो भी कम से कम आरोपों की समरी पाने का उसे हक़ है।

जस्टिस मोहम्मद फैज आलम खान की पीठ ने कहा कि तलब किए गए व्यक्ति को जब आरोपों की समरी दी जाती है तो उन्हें ईडी द्वारा पूछताछ के दौरान किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए खुद को पर्याप्त रूप से तैयार करने या प्रासंगिक दस्तावेज इकट्ठा करने में सुविधा होती है।

केस टाइटल: सौरभ मुकुंद बनाम प्रवर्तन निदेशालय संयुक्त निदेशक के माध्यम से Lko. 2024 LiveLaw (AB) 207

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पत्नी का दूसरों के साथ शॉपिंग पर जाना, पति को घरेलू काम करने के लिए मजबूर करना 'आत्महत्या के लिए उकसाना' नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पत्नी का समय पर खाना न बनाना, पति को घर का काम करने के लिए मजबूर करना और खरीदारी के लिए अन्य व्यक्तियों के साथ बाजार जाना आत्महत्या के लिए उकसाने का अपराध नहीं बनता है।

अपने पति को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए पत्नी के खिलाफ आईपीसी की धारा 306 के तहत आरोप तय करने के उमरिया के सत्र न्यायाधीश के आदेश को रद्द करते हुए, ज‌स्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा, “आत्महत्या के लिए उकसाने के मामलों में, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कृत्यों या आत्महत्या के लिए उकसाने का सबूत होना चाहिए। कृत्यों में मानव व्यवहार और प्रतिक्रियाओं के बहुआयामी और जटिल गुण शामिल होते हैं या उकसावे के मामलों में, न्यायालय को आत्महत्या के लिए उकसाने के कृत्यों के ठोस सबूत की तलाश करनी चाहिए।"

केस टाइटलः निशा साकेत बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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मुबारत समझौता करने वाले जोड़े को फैमिली कोर्ट द्वारा विवाह विच्छेद की घोषणा का अधिकार: कर्नाटक हाइकोर्ट

कर्नाटक हाइकोर्ट ने दोहराया कि जब पक्षकारों (सुन्नी मुसलमानों) ने मुबारत समझौता किया और उक्त समझौते द्वारा उनके बीच दर्ज विवाह को खत्म करने का फैसला किया तो फैमिली कोर्ट को आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन पर विचार करने का अधिकार है।

जस्टिस अनु शिवरामन और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने जोड़े द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली और मुबारत समझौते को स्वीकार करते हुए पक्षकारों के बीच विवाह को खत्म कर दिया।

केस टाइटल- शबनम परवीन अहमद और अन्य और शून्य

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सरकारी कर्मचारी द्वारा दिया गया इस्तीफा स्वीकार होने से पहले किसी भी समय वापस लिया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा दिया गया इस्तीफा, स्वीकृति से पहले किसी भी समय वापस लिया जा सकता है।

जस्टिस मंजीव शुक्ला की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक त्यागपत्र नियमावली, 2000 के नियम 6 और 7 की जांच करते हुए यह टिप्पणी की। ये नियम सरकारी सेवकों द्वारा सेवा से त्यागपत्र के मामलों से संबंधित हैं। अदालत पूर्णिमा सिंह की ओर से दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रही थी, जिन्होंने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, एटा द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के आदेश के तहत सहायक शिक्षक के पद से याचिककर्ता का इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया था।

केस टाइटलः पूर्णिमा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 205

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मृत्यु की घोषणा के लिए सिविल मुकदमा केवल इसलिए विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34 के तहत वर्जित नहीं कि आगे राहत का दावा नहीं किया गया: इलाहाबाद हाइकोर्ट

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि मृत्यु की घोषणा के लिए सिविल मुकदमा केवल इसलिए सुनवाई योग्य है और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 की धारा 34 के तहत वर्जित नहीं है, क्योंकि वादी ने आगे राहत का दावा नहीं किया।

जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने आगे कहा कि 1963 अधिनियम की धारा 34 के तहत किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु की घोषणा के लिए सिविल मुकदमा दायर करने पर कोई रोक नहीं है। यदि वादी ऐसे व्यक्ति का कानूनी उत्तराधिकारी है। मृत्यु का ऐसा कानूनी चरित्र उसके लाभ के लिए है और इसे ऐसे कानूनी चरित्र के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है।

केस टाइटल - रईसा बानो बनाम तबस्सुम जहान एवं अन्य

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पति सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण राशि के निर्धारण के लिए सकल वेतन से बीमा प्रीमियम, लोन ईएमआई की कटौती का दावा नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाइकोर्ट

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को देय मासिक भरण-पोषण भत्ता निर्धारित करते समय पति अपने वेतन से LIC प्रीमियम, होम लोन, लैंड खरीद किस्तों या बीमा पॉलिसी प्रीमियम के भुगतान के लिए कटौती की मांग नहीं कर सकता।

डॉ. कुलभूषण कुमार बनाम राजकुमारी 1970 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए जस्टिस सुरेंद्र सिंह-I की पीठ ने कहा कि भरण-पोषण राशि निर्धारित करते समय पति के सकल वेतन से केवल आयकर के रूप में अनिवार्य वैधानिक कटौती ही घटाई जा सकती है।

केस टाइटल - राणा प्रताप सिंह बनाम नीतू सिंह और 2 अन्य

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जांच अधिकारी प्रेजेंटिंग ऑफिसर के रूप में कार्य नहीं कर सकता और गवाहों से जिरह नहीं कर सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दोहराया

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने तपश चौधरी और अन्य बनाम महानिदेशक, सीआरपीएफ और अन्य के मामले में एक सिविल रिट याचिका पर सुनाए गए फैसले में माना कि एक जांच अधिकारी प्रेजेंटिंग ऑफ‌िसर के रूप में कार्य नहीं कर सकता और गवाहों से जिरह नहीं कर सकता है क्योंकि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। बेंच में जस्टिस रजनी दुबे शामिल थे।

बेंच ने फैसले में जांच अधिकारी द्वारा प्रेजेंटिंग ऑफिसर के रूप में कार्य करने और गवाहों से जिरह करने के संबंध में याचिकाकर्ता के तर्क पर विचार किया। इस संदर्भ में, अदालत ने पाया कि जांच अधिकारी का आचरण प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ था, वह अभियोजक और न्यायाधीश दोनों के रूप में कार्य नहीं कर सकता।

केस टाइटलः तपश चौधरी और अन्य बनाम महानिदेशक, सीआरपीएफ और अन्य

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Administrative Tribunals Act | अवमानना कार्यवाही में CAT के आदेश के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में की जा सकती है, हाईकोर्ट में नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम 1985 (Administrative Tribunals Act) की धारा 17 के तहत अपने अवमानना क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ अपील अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 19 के तहत सुप्रीम कोर्ट के समक्ष की जा सकती है। न्यायालय ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत ऐसे किसी भी आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती।

जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने फैसला सुनाया, “चूंकि अधिनियम, 1985 की धारा 17 के तहत अवमानना की कार्यवाही कम से कम दो सदस्यों की पीठ द्वारा निपटाई जाती है और अधिनियम, 1985 की धारा 17 के तहत पारित आदेश केवल सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील योग्य होगा। इसलिए अधिनियम, 1971 के तहत ट्रिब्यूनल का कोई भी आदेश या निर्णय केवल आदेश की तारीख से 60 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपील किया जा सकेगा।

केस टाइटल: डॉ. ब्रजेंद्र सिंह चौहान और 2 अन्य बनाम केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण और 2 अन्य [WRIT - A No. - 602/2024]

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पारित किसी भी अंतरिम आदेश का प्रभाव और संचालन अंतिम आदेश पारित होने पर समाप्त हो जाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि पारित किसी भी अंतरिम आदेश का प्रभाव और संचालन अंतिम आदेश पारित होने पर समाप्त हो जाता है।

जस्टिस पीयूष अग्रवाल की पीठ ने कहा, "एक बार जब कोई अपील वापस ले ली गई मानकर खारिज कर दी जाती है तो उस पर पारित अंतरिम आदेश, यदि कोई हो, स्वचालित रूप से अंतिम आदेश के साथ विलय हो जाता है।"

केस टाइटल: राम अवतार बनाम मेसर्स दुर्गा राइस एंड डेल मिल्स और 5 अन्य। [रिट - सी नंबर- 68334/2005]

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UAPA की धारा 7 (1) के तहत केंद्र सरकार के आदेश के बिना यूएपीए के तहत बैंक खाते को फ्रीज नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में सहायक पुलिस आयुक्त, वेपेरी रेंज द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया और तमिलनाडु डेवलपमेंट फाउंडेशन ट्रस्ट के बैंक खाते को डी-फ्रीज करने का आदेश दिया, क्योंकि ट्रस्ट के खाते को उचित जांच किए बिना गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत फ्रीज कर दिया गया था।

जस्टिस एमएस रमेश और जस्टिस सुंदर मोहन की खंडपीठ ने कहा कि प्रतिबंधात्मक आदेश पारित करते हुए यूएपीए की धारा 7(1) के अनुसार, जांच की जानी थी। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में ऐसी कोई जांच नहीं की गई। इस प्रकार, कोर्ट ने आदेश को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन पाया।

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