कृषि सुधारों के लिए बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

Amir Ahmad

4 April 2024 11:07 AM GMT

  • कृषि सुधारों के लिए बनाया गया कानून संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने हरियाणा के भूमि सुधार कानून, हरियाणा ढोलीदार, बूटीमार, भोंडेदार और मुकरारीदार (स्वामित्व अधिकार निहित करना अधिनियम, 2010)" (अधिनियम) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी। उक्त निर्णय यह देखते हुए लिया कि यह भूमि के जोतने वालों के अधिकारों को मान्यता देता है।

    ढोलीदार भूमि का किराएदार और ट्रस्टी होता है, जिसे सामाजिक सेवा के उद्देश्य से मृत्युशय्या पर उपहार के रूप में भूमि मिलती है। बूटीमार भी किरायेदार होता है, जो जंगल को साफ करता है और भूमि को खेती के अधीन लाता है। भोंडेदार को गांव के चौकीदार या संदेशवाहक के कर्तव्यों जैसे कुछ धर्मनिरपेक्ष सेवा के लिए भूमि दी जाती है।

    अधिनियम के अनुसार भूमि के जोतने वालों की उपरोक्त श्रेणी, जो 20 साल से अधिक समय से राजस्व अभिलेखों में इस रूप में दर्ज हैं, उन्हें भूमि पर स्वामित्व और अन्य सभी अधिकार प्राप्त होंगे।

    इस तर्क को खारिज करते हुए कि अधिनियम अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन करता है, जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस ललित बत्रा की खंडपीठ ने कहा कि इस कानून को "भारत के संविधान के अनुच्छेद 31-ए के दायरे में संवैधानिक प्रतिरक्षा प्राप्त है।"

    न्यायालय ने कहा कि कृषि सुधारों का उत्कृष्ट संवैधानिक उद्देश्य विवादित कानून के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। खासकर जब उद्देश्यों और कारणों के कथनों को पढ़ने से स्पष्ट रूप से यह अभिव्यक्त होता है कि कानून कृषि सुधारों के उद्देश्य से बनाया गया।

    न्यायालय हरियाणा ढोलीदार, बूटीमार, भोंडेदार और मुकरारीदार (स्वामित्व अधिकार निहित करने का अधिनियम, 2010)" की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था।

    यह तर्क दिया गया कि अधिनियम के तहत ढोलीदारों और भूमि के अन्य वर्ग के किरायेदारों को दिए गए स्वामित्व और अधिकार वास्तविक मालिकों को पर्याप्त मुआवजा देने के बाद ही दिए जाने चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन है।

    अधिनियम के उद्देश्य और कारणों के कथन के अनुसार, भले ही उपर्युक्त श्रेणी के व्यक्ति कई पीढ़ियों से भूमि पर खेती कर रहे हैं, लेकिन वे ऐसी भूमि को बेचने, अलग करने, पट्टे पर देने या गिरवी रखने या वित्तीय संस्थानों से ऋण लेने में सक्षम नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप उनके परिवारों को अनुचित कठिनाई का सामना करना पड़ा।

    यह कहा गया कि इन श्रेणियों से संबंधित व्यक्ति अपने समुदाय को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और जीविका के लिए भूमि को बनाए रख रहे हैं, लेकिन वे भूमि के पूर्ण मालिक नहीं हैं, जिससे उनकी परेशानी और बढ़ गई।

    यह कहते हुए कि वे भूमि के वास्तविक जोतने वाले हैं, उद्देश्य ने कहा कि अधिनियम उन भूमि स्वामियों को सांकेतिक मुआवज़ा देने के लिए बनाया गया, जिनके अधिकार समाप्त हो गए।

    कानून के उद्देश्य पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि क़ानून ने बिचौलियों को समाप्त कर दिया और जोतने वालों के अधिकारों को मान्यता दी। साथ ही क़ानून "कृषि सुधारों के लिए अच्छी तरह से संतुलित है।"

    पीठ ने यह भी कहा कि उद्देश्यों और कारणों का कथन विधेयक को पेश करने के कारणों को दर्शाता है, जिसे बाद में स्वीकृति मिल गई।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "परिणामस्वरूप जब उद्देश्यों और कारणों के कथन का गहन अध्ययन किया जाता है तो वह विवादित अधिनियम बन जाता है, जिससे बिचौलियों को हटा दिया जाता है। इसके बजाय विवादित भूमि पर कब्ज़ा मालिक जो ढोलीदार, बुटीमार, भोंडेदार और मुकरारीदार हैं, के अधिकारों को मान्यता दी जाती है।

    परिणामस्वरूप जब उद्देश्यों और कारणों का उक्त कथन विधायी मंशा का स्पष्ट संकेत देता है।

    न्यायालय ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 31-ए के तहत संवैधानिक प्रतिरक्षा के दायरे में आएगा। इसलिए यह अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करेगा।

    जस्टिस ठाकुर ने इस बात पर प्रकाश डाला,

    “आक्षेपित कानून ने कृषि सामंतवाद की कुप्रथा को समाप्त कर दिया, जिससे विवादित भूमि पर बिना किराए के लंबे समय तक खेती करने वाले व्यक्तियों को नुकसान पहुंचता है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "इसके स्वाभाविक परिणाम के रूप में कृषि सामंती जागीरदारी से मुक्ति जैसा कि व्यक्तियों की उपरोक्त श्रेणियों को प्रदान की जाती है लेकिन यह आवश्यक रूप से प्रशंसनीय कृषि सुधार है। इसलिए आक्षेपित कानून को संविधान के विरुद्ध घोषित करने के बजाय पूरक बनाने की आवश्यकता है।"

    उपर्युक्त के आलोक में न्यायालय ने अधिनियम की वैधता बरकरार रखी और अधिकार प्राप्त वैधानिक अधिकारियों को अधिनियम के तहत भूमि पर अधिकार मांगने वाले आवेदनों पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया, जिससे स्वामित्व अधिकार प्रदान करने का आदेश दिया जा सके।

    केस टाइटल- सुशील कुमार और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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