मुबारत समझौता करने वाले जोड़े को फैमिली कोर्ट द्वारा विवाह विच्छेद की घोषणा का अधिकार: कर्नाटक हाइकोर्ट

Amir Ahmad

2 April 2024 3:56 PM IST

  • मुबारत समझौता करने वाले जोड़े को फैमिली कोर्ट द्वारा विवाह विच्छेद की घोषणा का अधिकार: कर्नाटक हाइकोर्ट

    कर्नाटक हाइकोर्ट ने दोहराया कि जब पक्षकारों (सुन्नी मुसलमानों) ने मुबारत समझौता किया और उक्त समझौते द्वारा उनके बीच दर्ज विवाह को खत्म करने का फैसला किया तो फैमिली कोर्ट को आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन पर विचार करने का अधिकार है।

    जस्टिस अनु शिवरामन और जस्टिस अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने जोड़े द्वारा दायर अपील स्वीकार कर ली और मुबारत समझौते को स्वीकार करते हुए पक्षकारों के बीच विवाह को खत्म कर दिया।

    दंपत्ति ने फैमिली कोर्ट में यह घोषणा करने की मांग की कि दिनांक 07-04-2019 को नंद गार्डन, कर्बला, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में दोनों पक्षकारों के बीच मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न विवाह दिनांक 03-04-2021 के मुबारत विलेख द्वारा भंग किया गया।

    यह कहा गया कि फैमिली कोर्ट ने माना था कि यद्यपि मुबारत के माध्यम से विवाह का विघटन विघटन के तरीकों में से एक है, लेकिन मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम 1937 के प्रावधानों के तहत मुस्लिम विवाह के विघटन के लिए आपसी सहमति याचिकाओं पर विचार नहीं किया गया। इसलिए मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया।

    दंपत्ति ने तर्क दिया कि मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1937 और मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1939 के प्रावधानों के तहत फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 7 के साथ पक्षकारों के बीच उनकी पूर्ण सहमति और ज्ञान के साथ उनके विवाह को खत्म करने के लिए किया गया। मुबारत समझौता फैमिली कोर्ट द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए और फैमिली कोर्ट द्वारा घोषणा की जानी चाहिए।

    शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य (2017) और अन्य हइकोर्टस के निर्णयों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया गया।

    पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7 फैमिली कोर्ट को विवाह की वैधता या किसी व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति के बारे में घोषणा के लिए मुकदमा या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार देती है।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस मामले में फैमिली कोर्ट के समक्ष मामला था कि वह पक्षकारों के बीच किए गए मुबारत समझौते के आधार पर उनकी स्थिति की घोषणा की मांग करने वाला मुकदमा था।”

    उद्धृत निर्णयों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा,

    "हमारा मानना ​​है कि फैमिली कोर्ट का यह निष्कर्ष कि फैमिली कोर्ट को आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन पर विचार करने का अधिकार नहीं है, जब पक्षकार मुस्लिम हों, सही प्रस्ताव नहीं कहा जा सकता। इस तथ्य को देखते हुए कि पक्षकारों ने मुबारत समझौता किया और उक्त समझौते द्वारा उनके बीच हुए विवाह को भंग करने का निर्णय लिया। हमारा मानना ​​है कि पक्षकारों द्वारा मांगी गई प्रार्थना अर्थात विवाह के विघटन के बारे में घोषणा फैमिली कोर्ट द्वारा स्वीकार की जानी चाहिए।"

    दंपति से बातचीत करने के बाद, जिन्होंने विशेष रूप से कहा कि उन्होंने पूरी जानकारी और सहमति के साथ मुबारत समझौता किया और वे किसी भी तरह से वैवाहिक संबंध जारी रखने के इच्छुक नहीं है, न्यायालय ने माना कि फैमिली कोर्ट ने मुकदमा खारिज करने में गलती की, क्योंकि यह मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है। इसके साथ ही अपील स्वीकार कर ली गई।

    केस टाइटल- शबनम परवीन अहमद और अन्य और शून्य

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