सास द्वारा बहू के घरेलू कामों पर आपत्ति जताना आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

4 April 2024 4:05 PM GMT

  • सास द्वारा बहू के घरेलू कामों पर आपत्ति जताना आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि सास की ओर से अपनी बहू के घरेलू काम पर आपत्ति जताने भर को आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता नहीं माना जाता है।

    जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा, "यदि घरेलू कामों में सास की ओर से की गई गए कुछ आपत्तियों के कारण बहू को मानसिक उत्पीड़न होता है तो यह कहा जा सकता है कि बहू अतिसंवेदनशील हो सकती है। हालांकि "घरेलू कामों के संबंध कुछ विवाद निश्चित रूप से क्रूरता नहीं होगा।"

    हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने कहा कि यदि कोई सास पति-पत्नी के जीवन में व्यक्तिगत विवादों से दूर रहने की कोशिश करती है तो यह नहीं कहा जा सकता कि सास का ऐसा कृत्य क्रूरता आईपीसी की धारा 498ए की आवश्यकता के अनुसार क्रूरता की श्रेणी में आएगा।

    अदालत ने अलका शर्मा (सास) की याचिका को स्वीकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसमें धारा 498-ए, 506 सहपठित धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत अपराध के लिए उनके खिलाफ उनकी बहू द्वारा दर्ज मामले में एफआईआर और उसके बाद की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

    मामले के तथ्यों के साथ-साथ आवेदक के वकील की दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि एक सास की ओर से बहू के घरेलू कामों के संबंध में उठाई गई आपत्तियों को आईपीसी की धारा 498-ए के तहत क्रूरता के रूप में विचारित नहीं किया जा सकता है।

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यह तथ्य कि सास/आवेदक विदेश में रहने लगी है और अपनी बेटी और दामाद के साथ रह रही है, क्रूरता के आरोप को कमजोर कर देती है। अदालत ने सास के प्यार और स्नेह से वंचित करने के दावे को भी इस मामले में क्रूरता मानने के लिए अपर्याप्त बताते हुए खारिज कर दिया।

    मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की समग्रता पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि भले ही एफआईआर में लगाए गए सभी आरोपों को उनकी फेस वैल्यू पर स्वीकार कर लिया जाए, फिर भी धारा 498-ए, 506/34 आईपीसी सहपठित धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत अपराध नहीं बनेगा।

    नतीजतन, अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली और आवेदक/सास के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

    केस टाइटलः अलका शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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