हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

25 Oct 2025 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 अक्टूबर, 2025 से 24 अक्टूबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत मेडिकल सेल्स प्रतिनिधि 'कर्मचारी' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपने कार्यक्षेत्र में विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त मेडिकल सेल्स प्रतिनिधि को औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Industrial Disputes Act) के तहत 'कर्मचारी' नहीं माना जा सकता। अधिनियम की धारा 2(s) 'कर्मचारी' की परिभाषा किसी भी उद्योग में नियोजित किसी भी व्यक्ति को मानती है, जो शारीरिक, अकुशल, कुशल, तकनीकी, परिचालन, लिपिकीय या पर्यवेक्षी कार्य करता है।

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    NHAI Act | NHAI राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, प्रबंधन और रखरखाव तथा सुविधाओं के निर्माण के लिए बाध्य: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 (NHAI Act) के तहत भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) के वैधानिक कर्तव्यों को दोहराते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि NHAI कानूनी रूप से अपने अधीन राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, प्रबंधन और रखरखाव तथा ऐसे राजमार्गों के निकट सड़क किनारे सुविधाओं के निर्माण के लिए बाध्य है।

    जस्टिस संजय धर ने राजिंदर सिंह नामक व्यक्ति द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए ये महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं, जिसमें जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पेट्रोल पंप और सार्वजनिक सुविधाओं की स्थापना के लिए एक निजी पक्ष को भूमि पट्टे पर दिए जाने को चुनौती दी गई।

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    राज्य ऊर्जा निदेशालय नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्रों के लिए मान्यता को अस्वीकार नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि ऊर्जा निदेशालय को नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र प्रणाली के तहत मान्यता के लिए आवेदन को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि ऐसे निर्णय केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग द्वारा नामित केंद्रीय एजेंसी के विशेष अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

    जस्टिस अजय मोहन गोयल ने टिप्पणी की: "नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन में लगी कोई उत्पादन कंपनी पंजीकरण के लिए आवेदन करने के योग्य है या नहीं... इसका निर्णय केंद्रीय एजेंसी द्वारा किया जाना है, न कि राज्य एजेंसी द्वारा।"

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    RTI Act के तहत पासपोर्ट की कॉपी किसी तीसरे पक्ष को नहीं दी जा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि चेक अनादर के आरोपी व्यक्ति के पासपोर्ट से संबंधित जानकारी, जिसमें पासपोर्ट की प्रति भी शामिल है, व्यक्तिगत प्रकृति की है और सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI Act) के तहत इसका खुलासा नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि इस खुलासे को RTI Act की धारा 8(1)(एच) के तहत छूट दी गई, क्योंकि यह ऐसी जानकारी है, जिसके खुलासे से जांच में बाधा उत्पन्न होगी और धारा 24(4) के अनुसार यह अधिनियम राज्य सरकार द्वारा गठित और स्थापित विशेष खुफिया और सुरक्षा संगठनों/इकाइयों पर लागू नहीं होता है।

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    S.27 Evidence Act | एक अभियुक्त द्वारा दी गई जानकारी सभी अभियुक्तों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकती: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि एक अभियुक्त से प्राप्त जानकारी, जिससे खुलासा हुआ, उसका इस्तेमाल सभी अभियुक्तों को कथित अपराध से जोड़ने के लिए नहीं किया जा सकता। वर्तमान मामले में अभियोजन पक्ष ने प्रदर्श पी7(ए) के स्वीकारोक्ति पर भरोसा किया। हालांकि, न्यायालय ने महसूस किया कि इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रत्येक अभियुक्त द्वारा दी गई सटीक जानकारी अलग-अलग दर्ज या सिद्ध नहीं की गई।

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    फाइनल रिपोर्ट दाखिल करने से अग्रिम ज़मानत देने में कोई बाधा नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के तहत अग्रिम ज़मानत के दायरे को स्पष्ट करते हुए महत्वपूर्ण आदेश में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि सक्षम न्यायालय के समक्ष अंतिम रिपोर्ट (चालान) दाखिल करने से पूर्ण अग्रिम ज़मानत देने में कोई बाधा नहीं आती।

    जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की पीठ ने कहा कि आरोप पत्र दाखिल करने के बाद किसी अभियुक्त को नियमित ज़मानत लेने के लिए बाध्य करना, BNSS की धारा 482 के तहत प्रदत्त अग्रिम सुरक्षा के मूल उद्देश्य को ही विफल कर देगा, जो CrPC की धारा 438 (अब निरस्त) के अनुरूप है।

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    रक्षा कर्मियों के बच्चों के लिए आरक्षण समग्र क्षैतिज, न कि खंडित: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने रक्षा कर्मियों के बच्चों (CDP) को दिए गए 3% आरक्षण की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए फैसला सुनाया है कि यह समग्र क्षैतिज आरक्षण है, न कि खंडित। जस्टिस संजय धर ने याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    उन्होंने कहा, "रक्षा कर्मियों के बच्चों के लिए प्रदान किया गया तीन प्रतिशत (3%) आरक्षण एक समग्र क्षैतिज आरक्षण है, खंडित क्षैतिज आरक्षण नहीं। यह ऊर्ध्वाधर आरक्षण को काटता है और CDP कोटे के तहत चुने गए व्यक्ति को उचित श्रेणी में रखा जाना चाहिए।"

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    रिटायर कर्मचारियों सहित किसी भी कर्मचारी को नियोक्ता द्वारा की गई त्रुटिपूर्ण भुगतान की गलती का लाभ स्थायी रूप से प्राप्त करने का अधिकार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि रिटायर निम्न-स्तरीय कर्मचारियों से त्रुटिपूर्ण भुगतान किए गए लाभों की वसूली अस्वीकार्य है, लेकिन भविष्य के वेतन/पेंशन में सुधार की अनुमति है। इसके अलावा, किसी भी कर्मचारी, जिसमें सेवानिवृत्त कर्मचारी भी शामिल है, उनको नियोक्ता द्वारा की गई गलती का लाभ स्थायी रूप से प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।

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    मंदिर में पूजा का अधिकार छीना नहीं जा सकता; राज्य को आस्था और सार्वजनिक व्यवस्था में संतुलन बनाना होगा: हिमाचल हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी पूरी समुदाय को उनके देवी-देवता के मंदिर में पूजा करने से रोकना उनके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जो अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। अदालत ने कहा कि इस तरह के अधिकार केवल सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के आधार पर ही सीमित किए जा सकते हैं, और वह भी उचित और अनुपातिक उपायों के माध्यम से।

    जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा,“कुछ व्यक्तियों के अवैध कार्य यह आधार नहीं बन सकते कि व्यापक जनता के धार्मिक स्वतंत्रता, आस्था, पूजा और धर्म प्रचार के अधिकार को छीना जाए। सीमाओं का थोपना कोई समाधान नहीं है। धर्म मानने, उसका पालन करने और अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार किसी व्यापक आदेश के द्वारा छीन नहीं लिया जा सकता।”

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    बैंक सेवानिवृत्त कर्मचारी के पेंशन खाते से एकतरफा राशि नहीं काट सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी बैंक को यह अधिकार नहीं है कि वह सेवानिवृत्त कर्मचारी के पेंशन खाते से एकतरफा पैसा काट ले सिर्फ इसलिए कि उसने किसी ऋण के लिए गारंटी दी थी। जस्टिस संजीब कुमार पाणिग्रही ने कहा कि पेंशन खाते से बिना नोटिस या सुनवाई के पैसा काटना प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। बैंक को कम से कम कारण बताने का अवसर देना चाहिए था।

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    गृहिणी मकानमालकिन पति के कल्याण और पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए किराए की संपत्ति मांग सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर मकानमालकिन गृहिणी है, तो वह अपने पति के कल्याण और पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए किराए पर दी गई संपत्ति वापस मांग सकती है। यह “सद्भावनापूर्ण आवश्यकता” (bona fide requirement) मानी जाएगी।

    जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि मकानमालकिन का पति उम्र में बड़ा और उस पर निर्भर है, यह जरूरत साबित करने के लिए पर्याप्त है। उन्होंने कहा कि यह मानना गलत है कि गृहिणी को ऐसी कोई जरूरत नहीं हो सकती। कानून में मकानमालिक के परिवार के सदस्य भी “अपने उपयोग” की परिभाषा में शामिल हैं।

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    व्हाट्सएप मैसेज में अनकहे शब्द भी बढ़ा सकते हैं दुश्मनी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भले ही कोई व्हाट्सएप मैसेज सीधे तौर पर धर्म का उल्लेख न करता हो लेकिन उसके 'अनकहे शब्दों' और सूक्ष्म संदेश के माध्यम से भी समुदायों के बीच शत्रुता, नफरत या वैमनस्य को बढ़ावा मिल सकता है। जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अफक अहमद नामक याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता पर कथित तौर पर कई लोगों को भड़काऊ व्हाट्सएप मैसेज भेजने का आरोप था।

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    मजदूरी भुगतान अधिनियम एक स्वतंत्र कानून, इस पर परिसीमन अधिनियम लागू नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्थापित किया कि मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act) एक स्व-निहित कानून है, जिस पर परिसीमन अधिनियम (Limitation Act) लागू नहीं होता। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई विशेष कानून अपील दायर करने की अवधि और शर्तें निर्धारित करता है तो सामान्य परिसीमन कानून के प्रावधानों का सहारा नहीं लिया जा सकता।

    जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने भदरवाह के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा पारित फैसला रद्द कर दिया, जिन्होंने परिसीमन अधिनियम की धारा 5 का आह्वान करते हुए कानूनी समय सीमा के बाद दायर की गई अपील स्वीकार की थी।

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    मोटर वाहन दुर्घटना मामले में पंजीकृत मालिक ही जिम्मेदार, कानूनी हस्तांतरण पूरा होने तक दायित्व बरकरार: हिमाचल हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि वाहन के स्वामित्व का औपचारिक हस्तांतरण मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 50 के तहत पूरा होने तक पंजीकृत वाहन मालिक ही दुर्घटना के मामलों में कानूनी रूप से उत्तरदायी बना रहेगा। भले ही दुर्घटना से पहले बिक्री समझौता निष्पादित किया जा चुका हो।

    जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर की एकल पीठ ने इस सिद्धांत को दोहराया, "मोटर वाहन अधिनियम की धारा 50 यह प्रावधान करती है कि जहां MV अधिनियम के तहत पंजीकृत किसी मोटर वाहन का स्वामित्व हस्तांतरित किया जाता है, वहां हस्तांतरणकर्ता को हस्तांतरण की सूचना 14 दिनों के भीतर पंजीकरण प्राधिकरण को देनी होती है और क्रेता को इसके बाद 30 दिनों के भीतर रिपोर्ट करनी होती है।"

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    दृष्टि केवल दृश्य नहीं, दृष्टिबाधित उम्मीदवार को भर्ती से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता यदि वह समझने और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में सक्षम: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यदि कोई दृष्टिबाधित उम्मीदवार आवश्यक कर्तव्यों का निर्वहन करने और समझने में सक्षम है तो उसे किसी नौकरी के लिए भर्ती से बाहर नहीं किया जा सकता।

    इसके अलावा, जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस अजय दिगपॉल की खंडपीठ ने यह फैसला तब सुनाया, जब दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत गठित समिति ने उक्त पद को ऐसे पद के रूप में पहचाना, जिसे दृष्टिबाधित/कम दृष्टि वाले उम्मीदवार द्वारा भरा जा सकता है।

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    IBC की धारा 238 गैर-बाधक खंड, जो विद्युत अधिनियम के प्रावधानों को रद्द करता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016, विद्युत आपूर्ति संहिता, 2005 के साथ विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रावधानों को रद्द करता है। जस्टिस अरिंदम सिन्हा और जस्टिस प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा, “दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की धारा 238 एक गैर-बाधक खंड है, जिसका अर्थ है कि यह दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता को वर्तमान में लागू अन्य कानूनों या उससे असंगत किसी भी दस्तावेज़ पर अधिरोहण प्रभाव की शक्ति प्रदान करती है। यह एक विशेष धारा है, जो यह सुनिश्चित करती है कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता समाधान या परिसमापन के लिए IBC ढांचा अन्य सभी कानूनों पर वरीयता प्राप्त करे, जिससे यह स्थापित होता है कि इस संहिता के पास अपने इच्छित उद्देश्य के लिए एक व्यापक और विशिष्ट कानून है।”

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    परिवार के मुखियाओं द्वारा निष्पादित सहमति निर्णय से गैर-हस्ताक्षरकर्ता परिवार के सदस्य भी बाध्य: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब दो परिवारों के मुखिया संयुक्त पारिवारिक व्यवस्था और सहमति मध्यस्थता निर्णय के माध्यम से सौहार्दपूर्ण ढंग से विवादों का समाधान कर लेते हैं तो परिवार के व्यक्तिगत सदस्य बाद में निर्णय की हस्ताक्षरित प्रति न मिलने या व्यक्तिगत सहमति के अभाव के आधार पर निर्णय को चुनौती नहीं दे सकते, भले ही वे हस्ताक्षरकर्ता न हों।

    चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस डी.एन. रे की खंडपीठ ने कहा कि यदि पारिवारिक व्यवस्थाएं सद्भावपूर्वक और स्वेच्छा से निष्पादित की जाती हैं तो वे कार्यवाही में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी सदस्यों पर बाध्यकारी होती हैं। साथ ही मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (मध्यस्थता अधिनियम) की धारा 34(3) के तहत वैधानिक अवधि से अधिक विलंब को क्षमा नहीं किया जा सकता।

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    जुवेनाइल जस्टिस एक्ट मुस्लिम लॉ पर लागू, गोद लिया बच्चा जैविक बच्चे के बराबर का अधिकारी: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट (JJ Act) की धारा मुस्लिम पर्सनल लॉ पर प्राथमिक होगी और गोद लिया बच्चा जैविक बच्चे के समान दर्जा रखेगा। जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने कहा कि कोई भी बच्चा 'दूसरे दर्जे' का नहीं होगा। अदालत ने गोद लेने की प्रक्रिया में प्रशासनिक देरी पर चिंता जताई। कई बच्चे अपने शुरुआती साल संस्थागत देखभाल में बिताते हैं, जिससे उनका विकास और जीवन प्रभावित होता है। अधिकारियों को गोद लेने की प्रक्रिया शीघ्र पूरी करने का निर्देश दिया गया।

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    शिक्षकों की अनुपस्थिति गरीब स्टूडेंट्स के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    शिक्षक के कर्तव्य की पवित्रता और प्रत्येक बच्चे के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार को रेखांकित करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ग्रामीण प्राथमिक और जूनियर स्कूलों में शिक्षकों की पूरे स्कूल समय में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम बनाने का आह्वान किया।

    जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की पीठ ने कहा कि प्राथमिक संस्थानों में शिक्षकों की अनुपस्थिति निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम 2009 के मूल उद्देश्य को विफल करती है। इस प्रकार गरीब ग्रामीण बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती है।

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    'HMA के तहत तलाक की दूसरी याचिका उसी अदालत में स्थानांतरित की जानी चाहिए, जहां पहली याचिका दायर की गई थी': बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जब एक ही पक्ष के बीच तलाक या न्यायिक पृथक्करण के लिए दो याचिकाएं अलग-अलग अदालतों में दायर की जाती हैं तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 21-ए के अनुसार, दूसरी याचिका उसी अदालत में स्थानांतरित की जानी चाहिए, जहां पहली याचिका दायर की गई थी।

    जस्टिस राजेश एस. पाटिल पति-पत्नी द्वारा दायर दो स्थानांतरण आवेदनों पर सुनवाई कर रहे थे। पत्नी ने अपने पति की तलाक याचिका को मुंबई के बांद्रा स्थित फैमिली कोर्ट से कल्याण के सीनियर कैटेगरी के सिविल जज के यहां ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था, जहां उसने बाद में अपनी याचिका दायर की थी। इसके विपरीत पति ने कल्याण स्थित पत्नी की याचिका को बांद्रा स्थित फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था।

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    नौकरी के विज्ञापन के अनुसार पुरानी पेंशन योजना को इसलिए अस्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि कर्मचारी अंतिम तिथि के बाद नियुक्त हुए: झारखंड हाईकोर्ट

    चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की झारखंड हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि 01.01.2004 से पहले जारी विज्ञापनों के आधार पर चयनित कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना के लाभों के हकदार हैं, भले ही उनकी वास्तविक नियुक्ति या कार्यभार नई पेंशन योजना लागू होने के बाद हुआ हो।

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    रद्दीकरण रिपोर्ट के बावजूद अभियुक्त को समन जारी करने वाले मजिस्ट्रेट के आदेश को पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में चुनौती दी जा सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पुलिस द्वारा रद्दीकरण रिपोर्ट दाखिल करने के बावजूद, मजिस्ट्रेट द्वारा किसी अभियुक्त को समन जारी करने या प्रक्रिया जारी करने के आदेश को सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट में पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में चुनौती दी जा सकती है।

    जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा, "इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 200 से 204 के तहत किसी अभियुक्त को समन जारी करने या प्रक्रिया जारी करने वाला मजिस्ट्रेट का आदेश CrPC की धारा 397(2) के अंतर्गत नहीं आता है। ऐसा आदेश मध्यवर्ती या अर्ध-अंतिम प्रकृति का होता है। इसलिए सेशन कोर्ट या हाईकोर्ट के पुनर्विचार क्षेत्राधिकार के अधीन आता है।"

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    समान कार्य करने वाले एलोपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टरों के बीच वर्गीकरण अनुचित: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संजीत पुरोहित की खंडपीठ ने माना कि समान कार्य करने वाले एलोपैथिक और आयुर्वेदिक डॉक्टरों के बीच वर्गीकरण अनुचित है। आयुर्वेदिक डॉक्टर भी सभी परिणामी लाभों के साथ 62 वर्ष की समान बढ़ी हुई सेवानिवृत्ति आयु के हकदार हैं।

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    वास्तविक स्वामियों को कष्टकारी मुकदमों से बचाने के लिए कोर्ट संपत्ति को लिस पेंडेंस के सिद्धांत से मुक्त कर सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट किसी संपत्ति को लिस पेंडेंस के सिद्धांत से मुक्त कर सकते हैं ताकि वास्तविक स्वामियों को कष्टकारी मुकदमों से बचाया जा सके। यह सिद्धांत संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 से लिया गया। यह निर्धारित करता है कि किसी लंबित मुकदमे के दौरान उस संपत्ति को प्रभावित करने वाला संपत्ति का कोई भी हस्तांतरण मुकदमे के परिणाम के अधीन है।

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    मकान मालिक अपनी ज़रूरतों का सबसे अच्छा निर्णायक होता है, किरायेदार या अदालत का नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि मकान मालिक अपनी ज़रूरतों का सबसे अच्छा निर्णायक होता है। उसे किरायेदार या अदालत की राय के आगे नहीं झुकाया जा सकता। जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि एक बार जब मकान मालिक यह स्थापित कर लेता है कि जिस संपत्ति से वह किरायेदार को बेदखल करना चाहता है, उसकी उसे सद्भावनापूर्वक आवश्यकता है, तो वैकल्पिक आवास की उपलब्धता का मुद्दा केवल आकस्मिक है।

    अदालत ने कहा, "इसके अलावा, यह मकान मालिक का विशेषाधिकार है कि वह अपने व्यक्तिपरक आकलन के आधार पर अपनी आवश्यकताओं को यथोचित रूप से पूरा करने वाला आवास चुने। एक मकान मालिक अपनी ज़रूरतों का सबसे अच्छा निर्णायक होता है, इसलिए उसे किरायेदार या अदालत की राय के आगे नहीं झुकाया जा सकता।"

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    पति के बेदखल किए जाने के बावजूद पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) के तहत महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह दोहराया कि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद जिस घर में रहने लगती है, वह 'साझा घर' माना जाएगा और उसे उस घर में रहने का अधिकार है। भले ही बाद में उसके पति को उसके माता-पिता द्वारा संपत्ति से बेदखल कर दिया गया हो। जस्टिस संजीव नरूला की एकल पीठ ने सास-ससुर और बहू के बीच एक संपत्ति विवाद पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

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