व्हाट्सएप मैसेज में अनकहे शब्द भी बढ़ा सकते हैं दुश्मनी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Amir Ahmad
23 Oct 2025 2:57 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भले ही कोई व्हाट्सएप मैसेज सीधे तौर पर धर्म का उल्लेख न करता हो लेकिन उसके 'अनकहे शब्दों' और सूक्ष्म संदेश के माध्यम से भी समुदायों के बीच शत्रुता, नफरत या वैमनस्य को बढ़ावा मिल सकता है।
जस्टिस जे.जे. मुनीर और जस्टिस प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने अफक अहमद नामक याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की। याचिकाकर्ता पर कथित तौर पर कई लोगों को भड़काऊ व्हाट्सएप मैसेज भेजने का आरोप था।
आरोप है कि कथित मैसेज में याचिकाकर्ता ने एक सूक्ष्म संदेश दिया कि उसके भाई को एक विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित होने के कारण झूठे मामले में निशाना बनाया गया।
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता के वकील (एडवोकेट सैयद शाहनवाज शाह) ने तर्क दिया कि कथित पोस्ट में याचिकाकर्ता ने केवल अपने भाई की गिरफ्तारी के बारे में असंतोष व्यक्त किया। इसका उद्देश्य किसी भी तरह से सार्वजनिक शांति या सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ना नहीं था।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पोस्ट न्यायिक प्रक्रिया में याचिकाकर्ता के विश्वास को दर्शाती है और केवल झूठे आरोपों से परिवार की छवि खराब होने तथा व्यवसाय प्रभावित होने पर दुख व्यक्त करती है।
कोर्ट ने FIR और उसमें उद्धृत व्हाट्सएप मैसेज की जांच करने के बाद पाया कि हालांकि मैसेज में सीधे धर्म की बात नहीं की गई थी लेकिन यह एक अंतर्निहित और सूक्ष्म संदेश देता है कि उसके भाई को विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित होने के कारण झूठे मामले में निशाना बनाया गया।
खंडपीठ ने कहा कि वे अनकहे शब्द प्रथम दृष्टया विशेष समुदाय के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को आहत करेंगे, जो यह सोचेंगे कि उन्हें विशिष्ट धार्मिक समुदाय से संबंधित होने के कारण निशाना बनाया जा रहा है।
जजों ने आगे राय दी कि अगर यह मान भी लिया जाए कि धार्मिक भावनाएं सीधे आहत नहीं हुईं, तब भी "यह निश्चित रूप से ऐसा संदेश था, जिसके अनकहे शब्दों से धार्मिक समुदायों के बीच शत्रुता, नफरत और वैमनस्य की भावनाएँ पैदा होने या बढ़ने की संभावना है।
जजों ने कहा कि एक समुदाय के सदस्य यह सोच सकते हैं कि उन्हें कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करके दूसरे धार्मिक समुदाय के सदस्यों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है।
कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि इस तरह के मैसेज को कई लोगों को भेजने में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(2) के तहत शत्रुता को बढ़ावा देने का अपराध आकर्षित करने की क्षमता है।
कोर्ट ने कहा कि मामले में जांच की आवश्यकता है और शुरुआती चरण में जाँच को रोकना उचित नहीं है।
तदनुसार, हाईकोर्ट ने रिट याचिका को खारिज कर दिया।

