'HMA के तहत तलाक की दूसरी याचिका उसी अदालत में स्थानांतरित की जानी चाहिए, जहां पहली याचिका दायर की गई थी': बॉम्बे हाईकोर्ट
Shahadat
21 Oct 2025 11:06 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि जब एक ही पक्ष के बीच तलाक या न्यायिक पृथक्करण के लिए दो याचिकाएं अलग-अलग अदालतों में दायर की जाती हैं तो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 21-ए के अनुसार, दूसरी याचिका उसी अदालत में स्थानांतरित की जानी चाहिए, जहां पहली याचिका दायर की गई थी।
जस्टिस राजेश एस. पाटिल पति-पत्नी द्वारा दायर दो स्थानांतरण आवेदनों पर सुनवाई कर रहे थे। पत्नी ने अपने पति की तलाक याचिका को मुंबई के बांद्रा स्थित फैमिली कोर्ट से कल्याण के सीनियर कैटेगरी के सिविल जज के यहां ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था, जहां उसने बाद में अपनी याचिका दायर की थी। इसके विपरीत पति ने कल्याण स्थित पत्नी की याचिका को बांद्रा स्थित फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर करने का अनुरोध किया था।
कोर्ट ने कहा कि पति ने तलाक के लिए सबसे पहले 5 दिसंबर, 2022 को याचिका दायर की थी, जबकि पत्नी ने नौ दिन बाद 14 दिसंबर, 2022 को तलाक के लिए याचिका दायर की। हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 21-ए(2)(बी) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि बाद की याचिका उस कोर्ट में ट्रांसफर की जानी चाहिए, जहां पिछली याचिका लंबित है।
कोर्ट ने कहा,
“हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 21-ए के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, जब पति या पत्नी द्वारा धारा 10 (न्यायिक पृथक्करण) के तहत या धारा 13 के तहत तलाक के आदेश के लिए कार्यवाही दायर की जाती है और उसके बाद दूसरे पक्ष द्वारा अलग-अलग जिला कोर्ट में एक और कार्यवाही दायर की जाती है तो बाद में प्रस्तुत याचिका उस जिला कोर्ट में ट्रांसफर कर दी जाएगी, जहां पिछली याचिका प्रस्तुत की गई और दोनों याचिकाओं की सुनवाई और निपटारा उसी जिला कोर्ट द्वारा एक साथ किया जाएगा, जिसमें पहली याचिका प्रस्तुत की गई।”
पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि धारा 24 सीपीसी और एन.सी.वी. ऐश्वर्या बनाम ए.एस. सरवण कार्तिक शाह (2022) में ट्रांसफर आवेदनों में पत्नी की सुविधा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने इन उदाहरणों में अंतर करते हुए कहा कि ये धारा 21-ए के अंतर्गत आने वाले मामले नहीं थे।
कोर्ट ने कहा,
“सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कार्यवाही हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 21ए के अंतर्गत नहीं थी। उस मामले की कार्यवाही हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 और 12 के साथ-साथ दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत भी हुई थी। इसलिए इस निर्णय का प्रभाव वर्तमान कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।”
विवादित दोनों स्थानों के बीच 50 किलोमीटर की दूरी को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने माना कि पत्नी की असुविधा को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति देकर या पति को उसके यात्रा व्यय का भुगतान करने का निर्देश देकर कम किया जा सकता है।
तदनुसार, कोर्ट ने पत्नी का ट्रांसफर आवेदन अस्वीकार कर दिया।
Case Title: Suprabha Nitesh Patil @ Suprabha Anant Khot v. Nitesh Gajanan Patil [Miscellaneous Civil Applications Nos. 124 of 2024]

