पति के बेदखल किए जाने के बावजूद पत्नी को साझा घर में रहने का अधिकार: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
18 Oct 2025 3:04 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) के तहत महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह दोहराया कि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद जिस घर में रहने लगती है, वह 'साझा घर' माना जाएगा और उसे उस घर में रहने का अधिकार है। भले ही बाद में उसके पति को उसके माता-पिता द्वारा संपत्ति से बेदखल कर दिया गया हो।
जस्टिस संजीव नरूला की एकल पीठ ने सास-ससुर और बहू के बीच एक संपत्ति विवाद पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विवाह के बाद पति और ससुराल वालों के साथ रहने से ही वह निवास स्थान 'घरेलू संबंध' के तहत आ जाता है। उसे साझा घर का दर्जा मिल जाता है।
कोर्ट ने कहा,
“प्रतिवादी (पत्नी) ने 14 नवंबर, 2010 को शादी की और तुरंत बाद अपने पति और ससुराल वालों के साथ विवादित परिसर में रहना शुरू कर दिया। यह निवास परिसर को अधिनियम की धारा 2(s) के दायरे में लाता है: यह एक ऐसा घर है, जहां वह घरेलू संबंध में रहती थी। एक बार जब यह सीमा पार हो जाती है तो धारा 17(1) संपत्ति के मालिकाना हक की परवाह किए बिना निवास का अधिकार प्रदान करती है। धारा 17(2) उचित कानूनी प्रक्रिया के अलावा बेदखली से रोकती है। पति का 2011 में घर से बाहर चले जाना, या सास-ससुर द्वारा उसे 'बेदखल' कर देना, घर के साझा घर के चरित्र को समाप्त नहीं करता है।"
यह मामला 2010 में विवाहित एक जोड़े से संबंधित है। वैवाहिक मतभेदों के कारण पति-पत्नी नवंबर 2011 में एक किराए के आवास में चले गए। ससुराल वालों ने यह तर्क दिया कि बेटे के घर छोड़ने से पहले ही उन्होंने उसे सभी चल और अचल संपत्तियों से बेदखल कर दिया था।
हालांकि, पत्नी ने इस बात पर विवाद किया और दावा किया कि जब वह घर लौटी तो पति और ससुराल वाले कथित तौर पर उसकी मर्जी के खिलाफ उसे वैवाहिक घर से बेदखल करने के लिए उसका सामान किराए के कमरे में हटा रहे थे।
पत्नी ने साझा घर (संपत्ति के भूतल) में निवास के अधिकार का दावा करते हुए डीवी अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज की। ट्रायल कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बहू का साझा घर में निवास का एक मान्यता प्राप्त अधिकार है। उसे खाली करने या उपयोग/अधिभोग शुल्क का भुगतान करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता है।
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत के फैसले को बरकरार रखा और बहू को घर में रहने का अधिकार दिया। न्यायालय ने ससुराल वालों के इस तर्क को खारिज कर दिया कि पत्नी का कब्जा केवल काल्पनिक था।
कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित सुरक्षा आदेश पर्याप्त सामग्री पर आधारित थे। पुनरीक्षण जांच के तहत इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
जस्टिस नरूला ने इस व्यावहारिक समाधान की सराहना की, जिसके तहत ससुराल वाले पहली मंजिल पर और बहू भूतल पर रहती है।
कोर्ट ने कहा,
"यह मौजूदा व्यवस्था जिसके तहत याचिकाकर्ता पहली मंजिल पर और प्रतिवादी भूतल पर रहती है, दोनों के हितों को पर्याप्त रूप से समायोजित करती है। यह न तो याचिकाकर्ताओं को कब्जे से वंचित करती है और न ही प्रतिवादी को बेघर छोड़ती है।"
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि परिसर साझा घर की श्रेणी में आता है, पत्नी का निवास का अधिकार आकर्षित होता है। बेदखली और संपत्ति हस्तांतरण के खिलाफ रोक सहित निवास आदेश, न्याय और उद्देश्य के दायरे में पूरी तरह से आते हैं।

