मजदूरी भुगतान अधिनियम एक स्वतंत्र कानून, इस पर परिसीमन अधिनियम लागू नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

23 Oct 2025 12:33 PM IST

  • मजदूरी भुगतान अधिनियम एक स्वतंत्र कानून, इस पर परिसीमन अधिनियम लागू नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्थापित किया कि मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act) एक स्व-निहित कानून है, जिस पर परिसीमन अधिनियम (Limitation Act) लागू नहीं होता।

    न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई विशेष कानून अपील दायर करने की अवधि और शर्तें निर्धारित करता है तो सामान्य परिसीमन कानून के प्रावधानों का सहारा नहीं लिया जा सकता।

    जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने भदरवाह के प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा पारित फैसला रद्द कर दिया, जिन्होंने परिसीमन अधिनियम की धारा 5 का आह्वान करते हुए कानूनी समय सीमा के बाद दायर की गई अपील स्वीकार की थी।

    अपील के लिए अनिवार्य शर्तें

    हाईकोर्ट ने कहा कि मजदूरी भुगतान अधिनियम की धारा 17 अपील दायर करने के लिए तीस दिनों की विशिष्ट समय सीमा निर्धारित करती है। जज ने टिप्पणी की कि जब विशेष अधिनियम अपील दायर करने के लिए एक विशिष्ट अवधि निर्धारित करता है और उसका विस्तार करने का प्रावधान नहीं करता है तो परिसीमन अधिनियम के सामान्य प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि मजदूरी भुगतान अधिनियम एक लाभकारी और स्व-निहित कानून होने के कारण केवल अपील का तरीका ही नहीं बताता बल्कि उसकी अनिवार्य पूर्व शर्तें भी निर्धारित करता है। इसमें धारा 17(1A) के तहत अपील की गई राशि जमा करने का अनिवार्य प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना शामिल है।

    मामले में प्रतिवादी (नियोक्ता) 5,03,567 के विलंबित मजदूरी भुगतान के अवार्ड के खिलाफ अपील कर रहा था लेकिन उसने धारा 17(1A) के तहत अनिवार्य जमा प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया। इसके बजाय अपीलीय अदालत ने मात्र चेक की रसीद पर भरोसा किया, जिसे हाईकोर्ट ने वैधानिक आवश्यकता के बराबर नही माना।

    न्यायालय ने बल दिया कि धारा 17(1A) का अनुपालन केवल प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं है, बल्कि अपील की स्वीकार्यता के लिए अनिवार्य शर्त है।

    हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि अपीलीय अदालत ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया। प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट जज ने देरी माफी आवेदन और मुख्य अपील दोनों पर एक साथ फैसला सुना दिया बिना याचिकाकर्ता (बरकत अली) को सुनवाई का अवसर दिए। इतना ही नहीं अपीलीय अदालत ने मूल रिकॉर्ड को तलब किए बिना ही रिकॉर्ड में कथित हेरफेर की बात दर्ज की, जिसे हाईकोर्ट ने अनुमान पर आधारित और साक्ष्य रहित माना।

    जस्टिस नरगल ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलीय अदालत ने अनावश्यक जल्दबाजी में काम किया और कानून तथा तथ्यों दोनों पर गलत निर्णय लिया। उन्होंने गलत तरीके से परिसीमन अधिनियम का आह्वान किया अनिवार्य प्रमाण पत्र के बिना अपील पर विचार किए, याचिकाकर्ता को सुने बिना फैसला सुनाया, और मूल रिकॉर्ड मंगाए बिना निष्कर्ष दर्ज किए।

    हाईकोर्ट ने विवादास्पद फैसले को कानूनी रूप से अस्थिर मानते हुए रद्द कर दिया। कोर्ट ने घोषित किया कि जिला जज के समक्ष दायर की गई अपील परिसीमन और अधिनियम की धारा 17(1A) के अनिवार्य प्रावधानों का पालन न करने के कारण अस्वीकार्य थी।

    न्यायालय ने कहा कि इन दोषों में से कोई भी आदेश रद्द करने के लिए पर्याप्त था और ये सभी मिलकर विवादास्पद आदेश को कायम रखना असंभव बनाते हैं। इसके साथ ही सहायक श्रम आयुक्त, डोडा द्वारा याचिकाकर्ता के पक्ष में पारित मूल अवार्ड बहाल कर दिया गया।

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