जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

Drugs & Cosmetics Act | औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही सूचना उपलब्ध होने पर धारा 18-ए के तहत सूचना मांगने पर अभियोजन नहीं होगा: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Drugs & Cosmetics Act | औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही सूचना उपलब्ध होने पर धारा 18-ए के तहत सूचना मांगने पर अभियोजन नहीं होगा: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम की धारा 18-ए के तहत आपराधिक शिकायत खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब धारा के तहत आवश्यक सूचना औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही उपलब्ध हो जाती है तो गैर-निर्माता/एजेंट से इसकी मांग करना निरर्थक हो जाता है, जिससे अभियोजन कानूनी रूप से अस्थिर हो जाता है।धारा 18-ए के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो औषधि या प्रसाधन सामग्री का निर्माता या अधिकृत वितरक नहीं है, उसे अनुरोध किए जाने पर निरीक्षक को उस व्यक्ति का नाम पता और अन्य प्रासंगिक विवरण...

धारा 67 एनडीपीएस एक्ट | सह-आरोपी के कबूलनामे पर कार्रवाई करने से पहले अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
धारा 67 एनडीपीएस एक्ट | सह-आरोपी के कबूलनामे पर कार्रवाई करने से पहले अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त के खिलाफ मामला स्थापित करने के लिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत इकबालिया बयानों के साथ-साथ पुष्टि करने वाले साक्ष्य की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने दोहराया है कि सह-अभियुक्त के इकबालिया बयान को अभियुक्त की सजा के लिए तब तक ध्यान में नहीं रखा जा सकता, जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा अपराध के कमीशन में उसकी संलिप्तता को इंगित करने के लिए कुछ अन्य सामग्री प्रस्तुत नहीं की जाती है।ये टिप्पणियां एक...

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनुचित निवारक निरोध आदेश के लिए जिला मजिस्ट्रेट पर 10 हजार का जुर्माना लगाया
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनुचित निवारक निरोध आदेश के लिए जिला मजिस्ट्रेट पर 10 हजार का जुर्माना लगाया

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख के हाईकोर्ट ने जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत जारी किए गए निवारक निरोध आदेश की तीखी आलोचना की और हिरासत के लिए अनुचित आधारों का हवाला देते हुए जिला मजिस्ट्रेट जम्मू पर व्यक्तिगत रूप से 10,000 का जुर्माना लगाया।अदालत ने निरोध आदेश को जिला मजिस्ट्रेट के विकृत तर्क और विचार प्रक्रिया पर आधारित बताया जिसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।अदालत ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता द्वारा अपनी पत्नी के माध्यम से दायर हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार करते हुए की, जिसमें PSA के...

अदालत के बाहर के दबाव में दायित्व की स्वीकृति मुद्दे के तथ्य को निर्धारित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
अदालत के बाहर के दबाव में दायित्व की स्वीकृति मुद्दे के तथ्य को निर्धारित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

सिविल प्रक्रिया के महत्वपूर्ण पहलुओं और सिविल ट्रायल में सबूत के बोझ पर प्रकाश डालते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि दबाव में न्यायालय के बाहर दायित्व की स्वीकृति सिविल मामले को तय करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती।जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया,“सिविल ट्रायल का उद्देश्य सीपीसी के प्रावधानों के अनुसार सख्ती से चलना है और विशेष रूप से कार्यवाही में पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य की पृष्ठभूमि में मुद्दों के निर्धारण और निपटान के संबंध में। सिविल...

मुख्य नियोक्ता कर्मचारी की मृत्यु पर मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी, भले ही कर्मचारी ठेकेदार के माध्यम से नियोजित हो: जम्मू एंड कश्मीर ‌हाईकोर्ट
मुख्य नियोक्ता कर्मचारी की मृत्यु पर मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी, भले ही कर्मचारी ठेकेदार के माध्यम से नियोजित हो: जम्मू एंड कश्मीर ‌हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, 1923 के सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए मंगलवार को फैसला सुनाया कि मुख्य नियोक्ता किसी ठेकेदार द्वारा नियोजित किसी कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु पर मुआवज़ा देने के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस मोहम्मद यूसुफ़ वानी की पीठ ने अधिनियम की धारा 2 (1) (ई) और धारा 12 का हवाला देते हुए दर्ज किया, “जहां एक मुख्य नियोक्ता किसी ठेकेदार को कुछ कार्यों के निष्पादन के लिए नियुक्त करता है, वह ठेकेदार द्वारा अपना काम करने के लिए नियोजित किसी भी कर्मचारी...

O.37 R.3 CPC | प्रतिवादी को समन की तामील के बिना बचाव की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
O.37 R.3 CPC | प्रतिवादी को समन की तामील के बिना बचाव की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

श्रीनगर के चौथे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित एकपक्षीय निर्णय रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन की तामील होने के बाद ही मुकदमे का बचाव करने की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता है।उक्त आदेश में प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन की तामील नहीं की गई थी।इस मुद्दे पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए जस्टिस संजय धर ने बताया,“CPC के आदेश 37 के नियम 3 के अनुसार यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी को बचाव की अनुमति के लिए आवेदन तभी करना होगा, जब...

S. 233 CrPC | अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार से वंचित करना निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करने के समान: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
S. 233 CrPC | अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार से वंचित करना निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करने के समान: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार से वंचित करना निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करने के समान है। इस आदेश ने फास्ट ट्रैक कोर्ट पोक्सो, श्रीनगर के पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें बचाव पक्ष के गवाहों को बुलाने के अभियुक्त के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।अपने फैसले में जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने सीआरपीसी की धारा 233 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि यदि किसी अभियुक्त को धारा 232 के तहत बरी नहीं किया जाता है तो उसे अपना बचाव प्रस्तुत करने और साक्ष्य...

अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई के बिना हटाया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई के बिना हटाया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना हटाया जा सकता है।विभिन्न नगर समितियों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को बिना किसी विज्ञापन नोटिस जारी किए हटाने के मामले को बरकरार रखते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,“यदि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया होता या उन्हें हटाने से पहले सुनवाई का अवसर दिया होता, तो उपरोक्त स्वीकृत तथ्यों के आधार पर ऐसा नोटिस जारी करने या याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का...

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पक्षकारों के बीच समझौते पर दर्ज एफआईआर नियमित रूप से रद्द करने के खिलाफ चेतावनी दी, समाज पर व्यापक प्रभाव का हवाला दिया
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पक्षकारों के बीच समझौते पर दर्ज एफआईआर नियमित रूप से रद्द करने के खिलाफ चेतावनी दी, समाज पर व्यापक प्रभाव का हवाला दिया

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने चेतावनी दी कि किसी जांच के परिणामस्वरूप दर्ज एफआईआर और उसके बाद आरोप-पत्र को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत केवल इसलिए नियमित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता कि पक्षों ने अपने मतभेद सुलझा लिए हैं।सतर्कता की चेतावनी देते हुए जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी ने तर्क दिया,“यदि शिकायतकर्ताओं और अभियुक्तों की इच्छा पर एफआईआर और जांच से उत्पन्न आपराधिक मामलों को रद्द करने की अनुमति दी जाती है तो आपराधिक न्याय प्रणाली कारण बन सकती है और बड़े पैमाने पर समाज को इसके...

मंदिर की संपत्ति देवता के हाथों में: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनंतनाग के उपायुक्त को दो मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया
मंदिर की संपत्ति देवता के हाथों में: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनंतनाग के उपायुक्त को दो मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया

अनंतनाग में श्री रघुनाथ मंदिर और नागबल गौतम नाग मंदिर के प्रभावी और शांतिपूर्ण प्रबंधन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अनंतनाग के उपायुक्त (जिला मजिस्ट्रेट) को इन मंदिरों और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन पर नियंत्रण करने का निर्देश दिया।इन मंदिरों के प्रबंधन के परस्पर विरोधी दावों को संबोधित करते हुए जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस एम.ए. चौधरी की पीठ ने इस आशय के निर्देश पारित किए।बेंच ने परस्पर विरोधी दावों को संबोधित करते हुए टिप्पणी की,"संपत्तियां देवता के पास...

भरण-पोषण दायित्वों से बचने के लिए पति द्वारा तलाक के व्यापक सबूत और सुलह के प्रयास आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
भरण-पोषण दायित्वों से बचने के लिए पति द्वारा तलाक के व्यापक सबूत और सुलह के प्रयास आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई पति अपनी पत्नी को तलाक देने का दावा करके उसके भरण-पोषण के दायित्व से बच नहीं सकता। जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने इस बात पर जोर दिया कि पति को न केवल तलाक की घोषणा या तलाक के कार्य को निष्पादित करना साबित करना चाहिए, बल्कि यह भी प्रदर्शित करना चाहिए कि दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने अपने विवादों को सुलझाने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए थे। पति की किसी गलती के बिना ऐसे प्रयासों की विफलता को पुख्ता तौर पर स्थापित किया जाना...

केंद्र शासित प्रदेश में किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए राज्य की सुरक्षा को आधार बनाना हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की शक्ति का वैध प्रयोग: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
केंद्र शासित प्रदेश में किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए राज्य की सुरक्षा को आधार बनाना हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की शक्ति का वैध प्रयोग: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में पुष्टि की है कि केंद्र शासित प्रदेश में किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए राज्य की सुरक्षा को आधार बनाना हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की शक्ति का वैध प्रयोग है।एकल पीठ के फैसले के खिलाफ अपील खारिज की, जिसमें हेबियस कॉर्पस याचिका खारिज कर दी गई, चीफ जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और जस्टिस मोक्ष खजूरिया काज़मी की पीठ ने स्पष्ट किया,“इसमें कोई संदेह नहीं है कि [सामान्य खंड अधिनियम, 1897 की धारा 3 (58)] में निहित राज्य की परिभाषा में केंद्र शासित...

अनुच्छेद 22 के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व के अधिकार पर तुरंत विचार किया जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
अनुच्छेद 22 के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व के अधिकार पर तुरंत विचार किया जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

निवारक हिरासत आदेश (Preventive Detention Order) रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिरासत में लिए गए व्यक्ति के लिए प्रतिनिधित्व का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत गारंटीकृत अधिकार है, जो अधिकारियों पर इस पर तुरंत विचार करने का दायित्व डालता है।हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस राहुल भारती ने कहा,“प्रतिनिधित्व का अधिकार भारत के संविधान का ऐसा अधिकार है, जो हिरासत में लिए गए व्यक्ति को अनुच्छेद 22 के तहत गारंटीकृत और प्रदत्त अधिकार...

अभियोजन न करने के कारण शिकायत खारिज करना अंतिम आदेश, मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों को बहाल करने के लिए अंतर्निहित शक्तियां नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
अभियोजन न करने के कारण शिकायत खारिज करना अंतिम आदेश, मजिस्ट्रेट के पास ऐसे मामलों को बहाल करने के लिए अंतर्निहित शक्तियां नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा है कि शिकायतकर्ता की गैर-हाजिरी के कारण खारिज की गई शिकायत बहाल करने के लिए मजिस्ट्रेट अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने घोषणा की कि इस तरह की खारिजियां अंतिम आदेश हैं। उन्होंने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) में किसी भी प्रावधान की अनुपस्थिति पर जोर दिया, जो ट्रायल कोर्ट को यह शक्ति प्रदान करता है।यह मामला जिया दरक्षन द्वारा मेहराजुद्दीन अंद्राबी के खिलाफ निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत...

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने उर्दू में लिखे गिरफ्तारी ज्ञापन को पढ़ने में असमर्थता के लिए राज्य के वकील की आलोचना की, न्यायिक सहायता के लिए जांच अधिकारियों को बुलाने की आवश्यकता की चेतावनी दी
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने उर्दू में लिखे गिरफ्तारी ज्ञापन को पढ़ने में असमर्थता के लिए राज्य के वकील की आलोचना की, न्यायिक सहायता के लिए जांच अधिकारियों को बुलाने की आवश्यकता की चेतावनी दी

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने उर्दू में लिखे गए गिरफ्तारी ज्ञापन को पढ़ने में असमर्थता के लिए राज्य के वकीलों की तीखी आलोचना की है, ऐसी स्थिति ने न्यायिक कार्यवाही को गंभीर रूप से बाधित किया है। अपने आदेश में जस्टिस अतुल श्रीधरन ने कड़ी चेतावनी जारी की कि यदि ऐसी परिस्थितियां जारी रहीं, तो अदालत के पास उचित न्यायिक सहायता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जमानत आवेदन के लिए जांच अधिकारियों (आईओ) को बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।यह टिप्पणी जमानत आवेदन की सुनवाई के दौरान की गई,...

पहली सुनवाई से ही निर्णय लेने में आसानी के लिए जमानत आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद केस डायरी उपलब्ध कराई जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
पहली सुनवाई से ही निर्णय लेने में आसानी के लिए जमानत आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद केस डायरी उपलब्ध कराई जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सोमवार को इस बात पर जोर दिया कि पहली सुनवाई पर ही निर्णय लेने में आसानी के लिए जमानत आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद केस डायरी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।यह देखते हुए कि जमानत आवेदनों पर आदर्श रूप से इस न्यायालय द्वारा सुनवाई की पहली तारीख को ही निर्णय लिया जाना चाहिए, जस्टिस अतुल श्रीधरन की पीठ ने रेखांकित किया,“यह तभी संभव है जब केस डायरी को सुनवाई की पहली तारीख को ही न्यायालय द्वारा जांच के लिए उपलब्ध कराया जाए।”इस विषय पर एडवोकेट जनरल कार्यालय को सामान्य निर्देश...

नियोक्ता को भगोड़े कर्मचारियों की तलाश में दुनिया भर में तलाशी अभियान चलाने की ज़रूरत नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने CRPF कांस्टेबल की बर्खास्तगी बरकरार रखी
नियोक्ता को भगोड़े कर्मचारियों की तलाश में दुनिया भर में तलाशी अभियान चलाने की ज़रूरत नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने CRPF कांस्टेबल की बर्खास्तगी बरकरार रखी

इस बात पर ज़ोर देते हुए कि नियोक्ता से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह दुनिया भर में किसी भगोड़े कर्मचारी की तलाश करे जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख उच्च न्यायालय ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CrPF) के कांस्टेबल की बर्खास्तगी बरकरार रखी, जिसने अपनी सेवा समाप्ति को चुनौती दी थी।इस तर्क को खारिज करते हुए कि जांच अधिकारी प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहे हैं, जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा,“नियोक्ता से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह पूरी दुनिया में किसी भगोड़े कर्मचारी की तलाश करे।...

बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामी को यह साबित करना होगा कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामी को यह साबित करना होगा कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यह साबित करने का भार कि अधिग्रहित भूमि का बाजार मूल्य कलेक्टर द्वारा निर्धारित मूल्य से अलग है बढ़े हुए मुआवजे की मांग करने वाले भूस्वामियों पर है।जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि जब तक भूमि मालिक उन पर डाले गए बोझ का निर्वहन करने में विफल रहते हैं, तब तक संदर्भ न्यायालय द्वारा कोई वृद्धि देने का कोई सवाल ही नहीं है।मामले की पृष्ठभूमि:यह मामला 1997 में अधिसूचित क्षेत्र समिति कुपवाड़ा के कार्य से उत्पन्न हुआ, जब इसने टाउन हॉल परियोजना...

बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना ड्यूटी छोड़ने का कोई आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों का वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा
बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना ड्यूटी छोड़ने का कोई आधार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों का वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति के लिए सीआरपीएफ कर्मियों के वेतन रोकने का फैसला बरकरार रखा। कोर्ट ने उक्त फैसला यह देखते हुए बरकरार रखा कि बीमार मां की देखभाल के लिए छुट्टी न देना बिना अनुमति के ड्यूटी छोड़ने का आधार नहीं हो सकता।सीआरपीएफ में कांस्टेबल मोहम्मद यूसुफ भट द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते हुए जस्टिस सिंधु शर्मा ने कहा,"छुट्टी देना या न देना सक्षम प्राधिकारी का विशेषाधिकार है, जिसे आवेदक के व्यक्तिगत अनुरोधों पर विचार करते समय प्रशासनिक और आधिकारिक कारकों पर...