जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट
Employees Compensation Act | मुआवज़ा अवार्ड को चुनौती देने वाली अपील की स्वीकृति कानून के महत्वपूर्ण प्रश्न उठाने के अधीन: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम के तहत पारित अवार्ड के विरुद्ध अपील का दायरा काफी सीमित है, यह तभी स्वीकार्य है जब कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हो।जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने मामले पर निर्णय देते हुए कहा,"मुआवज़ा देने वाले आदेश के विरुद्ध और ब्याज या जुर्माना देने वाले आदेश के विरुद्ध अपील इस न्यायालय द्वारा तभी स्वीकार की जानी चाहिए, जब कानून का कोई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल हो।"यह मामला बीमा कंपनी से जुड़ा था, जिसने दावेदार को मुआवज़ा दिए...
CRPF Rules | बल से बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले अपराधी कर्मियों को नोटिस की वास्तविक सेवा स्थापित करना आवश्यक: जम्मू-कश्मीर उहाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि बल से बर्खास्तगी का आदेश देने से पहले अपराधी कर्मियों को नोटिस की वास्तविक सेवा का सबूत स्थापित करना आवश्यक है।जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा,"प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों से समझौता नहीं किया जा सकता। यह आवश्यक है कि अनुशासनात्मक कार्रवाइयों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रियात्मक नियमों का सख्ती से पालन किया जाए। नोटिस की उचित सेवा के बिना अपराधी कर्मी अपना बचाव नहीं कर सकते, जिससे न्याय में चूक हो सकती...
रिट याचिकाएं कारण बताओ नोटिस के विरुद्ध नहीं, जब तक कि वह अधिकार क्षेत्र से बाहर न हो, पहले से विचार कर जारी न की गई हो: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकार्ट ने पूर्व नियोजित कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद लीज डीड को रद्द करने के आदेश को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि जब तक कारण बताओ नोटिस पहले से विचार कर (Premeditated Mind) से जारी नहीं किया जाता है, तब तक रिट याचिका आम तौर पर इसके खिलाफ नहीं होती है।प्रतिवादी जम्मू विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा लीज समझौते को रद्द करने के खिलाफ याचिका को स्वीकार करते हुए, जो कि पूर्व नियोजित कारण बताओ नोटिस का परिणाम था, जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने कहा,“… कारण बताओ...
CPC | धारा 10 की प्रयोज्यता को आकर्षित करने के लिए मुद्दों की प्रकृति महत्वपूर्ण, न कि मांगी गई राहत की प्रकृति: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
सिविल मुकदमों में मुद्दों की प्रकृति के महत्व पर जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि राहत की प्रकृति नहीं बल्कि उन दो मुकदमों में शामिल मुद्दों की प्रकृति CPC की धारा 10 की प्रयोज्यता को आकर्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है।जस्टिस संजय धर की पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि बाद के मुकदमों में मुद्दा सीधे और काफी हद तक पहले से चल रहे मुकदमों से जुड़ा है तो CPC की धारा 10 को लागू किया जाना चाहिए, क्योंकि यह अनिवार्य प्रकृति की है।CPC की धारा 10 किसी भी मुकदमे की सुनवाई पर रोक...
S.143A NI Act | अंतरिम मुआवजे की मात्रा तय करने के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा विवेक का प्रयोग, कुछ कारकों पर विचार करना आवश्यक: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 143-ए के तहत अंतरिम मुआवजा देने के लिए श्रीनगर के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (प्रथम अतिरिक्त मुंसिफ) का आदेश रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख उच्च न्यायालय ने अंतरिम मुआवजे का फैसला करने के लिए मजिस्ट्रेट की ओर से विवेक के उचित प्रयोग पर जोर दिया।मुआवज़ा निर्धारित करते समय विचार किए जाने वाले कारकों पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा,“अंतरिम मुआवज़े की मात्रा तय करते समय मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का इस्तेमाल करना पड़ता है और उसे कई...
नेत्र संबंधी गवाहों से फोटोग्राफिक मेमोरी की उम्मीद नहीं, मामूली विसंगतियों को नजरअंदाज किया जाना चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि नेत्र संबंधी गवाहों से ऐसी फोटोग्राफिक यादें रखने की उम्मीद नहीं की जाती है, जो किसी घटना के हर विवरण को याद करने में सक्षम हों।अदालत ने इस बात पर जोर दिया है कि गवाहों की गवाही में मामूली विरोधाभास और विसंगतियों की अवहेलना की जानी चाहिए यदि वे मामले के भौतिक पहलुओं को प्रभावित नहीं करते हैं। एक सजा को बरकरार रखते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा, “किसी प्रत्यक्षदर्शी या घायल के साक्ष्य की सराहना करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि घटना...
विशेष पुलिस अधिकारी वैधानिक नियमों द्वारा विनियमित सिविल पदों पर नहीं होते, इसलिए वे नियमित अधिकारियों की सेवा शर्तों के हकदार नहीं: जम्म एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) वैधानिक नियमों द्वारा विनियमित सिविल पदों पर नहीं होते हैं और इसलिए वे नियमित पुलिस अधिकारियों को दी जाने वाली सेवा शर्तों से संबंधित शक्तियों, विशेषाधिकारों और सुरक्षा के हकदार नहीं हैं। एसपीओ एजाज राशिद खांडे द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए, जिन्होंने सेवा से अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी थी, जस्टिस संजय धर ने पुलिस अधिनियम की धारा 18 और 19 का हवाला दिया और कहा,“.. एसपीओ की नियुक्ति स्थायी प्रकृति की...
Drugs & Cosmetics Act | औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही सूचना उपलब्ध होने पर धारा 18-ए के तहत सूचना मांगने पर अभियोजन नहीं होगा: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम की धारा 18-ए के तहत आपराधिक शिकायत खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब धारा के तहत आवश्यक सूचना औषधि निरीक्षक के पास पहले से ही उपलब्ध हो जाती है तो गैर-निर्माता/एजेंट से इसकी मांग करना निरर्थक हो जाता है, जिससे अभियोजन कानूनी रूप से अस्थिर हो जाता है।धारा 18-ए के अनुसार कोई भी व्यक्ति, जो औषधि या प्रसाधन सामग्री का निर्माता या अधिकृत वितरक नहीं है, उसे अनुरोध किए जाने पर निरीक्षक को उस व्यक्ति का नाम पता और अन्य प्रासंगिक विवरण...
धारा 67 एनडीपीएस एक्ट | सह-आरोपी के कबूलनामे पर कार्रवाई करने से पहले अतिरिक्त साक्ष्य आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष द्वारा अभियुक्त के खिलाफ मामला स्थापित करने के लिए एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत इकबालिया बयानों के साथ-साथ पुष्टि करने वाले साक्ष्य की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने दोहराया है कि सह-अभियुक्त के इकबालिया बयान को अभियुक्त की सजा के लिए तब तक ध्यान में नहीं रखा जा सकता, जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा अपराध के कमीशन में उसकी संलिप्तता को इंगित करने के लिए कुछ अन्य सामग्री प्रस्तुत नहीं की जाती है।ये टिप्पणियां एक...
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनुचित निवारक निरोध आदेश के लिए जिला मजिस्ट्रेट पर 10 हजार का जुर्माना लगाया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख के हाईकोर्ट ने जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978 के तहत जारी किए गए निवारक निरोध आदेश की तीखी आलोचना की और हिरासत के लिए अनुचित आधारों का हवाला देते हुए जिला मजिस्ट्रेट जम्मू पर व्यक्तिगत रूप से 10,000 का जुर्माना लगाया।अदालत ने निरोध आदेश को जिला मजिस्ट्रेट के विकृत तर्क और विचार प्रक्रिया पर आधारित बताया जिसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।अदालत ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ता द्वारा अपनी पत्नी के माध्यम से दायर हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार करते हुए की, जिसमें PSA के...
अदालत के बाहर के दबाव में दायित्व की स्वीकृति मुद्दे के तथ्य को निर्धारित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
सिविल प्रक्रिया के महत्वपूर्ण पहलुओं और सिविल ट्रायल में सबूत के बोझ पर प्रकाश डालते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि दबाव में न्यायालय के बाहर दायित्व की स्वीकृति सिविल मामले को तय करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकती।जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया,“सिविल ट्रायल का उद्देश्य सीपीसी के प्रावधानों के अनुसार सख्ती से चलना है और विशेष रूप से कार्यवाही में पक्षों द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य की पृष्ठभूमि में मुद्दों के निर्धारण और निपटान के संबंध में। सिविल...
मुख्य नियोक्ता कर्मचारी की मृत्यु पर मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी, भले ही कर्मचारी ठेकेदार के माध्यम से नियोजित हो: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कर्मचारी मुआवज़ा अधिनियम, 1923 के सिद्धांतों को बरकरार रखते हुए मंगलवार को फैसला सुनाया कि मुख्य नियोक्ता किसी ठेकेदार द्वारा नियोजित किसी कर्मचारी की आकस्मिक मृत्यु पर मुआवज़ा देने के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस मोहम्मद यूसुफ़ वानी की पीठ ने अधिनियम की धारा 2 (1) (ई) और धारा 12 का हवाला देते हुए दर्ज किया, “जहां एक मुख्य नियोक्ता किसी ठेकेदार को कुछ कार्यों के निष्पादन के लिए नियुक्त करता है, वह ठेकेदार द्वारा अपना काम करने के लिए नियोजित किसी भी कर्मचारी...
O.37 R.3 CPC | प्रतिवादी को समन की तामील के बिना बचाव की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
श्रीनगर के चौथे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा पारित एकपक्षीय निर्णय रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन की तामील होने के बाद ही मुकदमे का बचाव करने की अनुमति के लिए आवेदन करने की बाध्यता है।उक्त आदेश में प्रतिवादी को निर्णय के लिए समन की तामील नहीं की गई थी।इस मुद्दे पर कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए जस्टिस संजय धर ने बताया,“CPC के आदेश 37 के नियम 3 के अनुसार यह स्पष्ट है कि प्रतिवादी को बचाव की अनुमति के लिए आवेदन तभी करना होगा, जब...
बॉम्बे हाईकोर्ट ने PFI सदस्य होने के आरोप में दो लोगों को डिफ़ॉल्ट जमानत दी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के सदस्य होने के आरोप में दो लोगों को डिफ़ॉल्ट जमानत दे दी।जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे और जस्टिस गौरी गोडसे की खंडपीठ ने मोमिन मोइउद्दीन गुलाम हसन उर्फ मोइन मिस्त्री और आसिफ अमीनुल हुसैन खान अधिकारी की याचिकाओं पर यह आदेश सुनाया।दोनों को महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (ATS) ने 22 सितंबर 2022 को गिरफ्तार किया। उन पर मुख्य रूप से PFI सदस्य होने का आरोप लगाया गया।आरोपियों ने बताया कि ATS ने शुरू में न्यायिक हिरासत में भेजे जाने के...
S. 233 CrPC | अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार से वंचित करना निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करने के समान: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अभियुक्त को साक्ष्य प्रस्तुत करने के अधिकार से वंचित करना निष्पक्ष सुनवाई से वंचित करने के समान है। इस आदेश ने फास्ट ट्रैक कोर्ट पोक्सो, श्रीनगर के पहले के फैसले को पलट दिया, जिसमें बचाव पक्ष के गवाहों को बुलाने के अभियुक्त के आवेदन को खारिज कर दिया गया था।अपने फैसले में जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने सीआरपीसी की धारा 233 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि यदि किसी अभियुक्त को धारा 232 के तहत बरी नहीं किया जाता है तो उसे अपना बचाव प्रस्तुत करने और साक्ष्य...
अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई के बिना हटाया जा सकता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करके नियुक्त कर्मचारियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना हटाया जा सकता है।विभिन्न नगर समितियों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को बिना किसी विज्ञापन नोटिस जारी किए हटाने के मामले को बरकरार रखते हुए जस्टिस जावेद इकबाल वानी ने कहा,“यदि प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया होता या उन्हें हटाने से पहले सुनवाई का अवसर दिया होता, तो उपरोक्त स्वीकृत तथ्यों के आधार पर ऐसा नोटिस जारी करने या याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का...
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पक्षकारों के बीच समझौते पर दर्ज एफआईआर नियमित रूप से रद्द करने के खिलाफ चेतावनी दी, समाज पर व्यापक प्रभाव का हवाला दिया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने चेतावनी दी कि किसी जांच के परिणामस्वरूप दर्ज एफआईआर और उसके बाद आरोप-पत्र को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत केवल इसलिए नियमित रूप से रद्द नहीं किया जा सकता कि पक्षों ने अपने मतभेद सुलझा लिए हैं।सतर्कता की चेतावनी देते हुए जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी ने तर्क दिया,“यदि शिकायतकर्ताओं और अभियुक्तों की इच्छा पर एफआईआर और जांच से उत्पन्न आपराधिक मामलों को रद्द करने की अनुमति दी जाती है तो आपराधिक न्याय प्रणाली कारण बन सकती है और बड़े पैमाने पर समाज को इसके...
मंदिर की संपत्ति देवता के हाथों में: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनंतनाग के उपायुक्त को दो मंदिरों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने का निर्देश दिया
अनंतनाग में श्री रघुनाथ मंदिर और नागबल गौतम नाग मंदिर के प्रभावी और शांतिपूर्ण प्रबंधन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने अनंतनाग के उपायुक्त (जिला मजिस्ट्रेट) को इन मंदिरों और उनकी संपत्तियों के प्रबंधन पर नियंत्रण करने का निर्देश दिया।इन मंदिरों के प्रबंधन के परस्पर विरोधी दावों को संबोधित करते हुए जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस एम.ए. चौधरी की पीठ ने इस आशय के निर्देश पारित किए।बेंच ने परस्पर विरोधी दावों को संबोधित करते हुए टिप्पणी की,"संपत्तियां देवता के पास...
भरण-पोषण दायित्वों से बचने के लिए पति द्वारा तलाक के व्यापक सबूत और सुलह के प्रयास आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कोई पति अपनी पत्नी को तलाक देने का दावा करके उसके भरण-पोषण के दायित्व से बच नहीं सकता। जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने इस बात पर जोर दिया कि पति को न केवल तलाक की घोषणा या तलाक के कार्य को निष्पादित करना साबित करना चाहिए, बल्कि यह भी प्रदर्शित करना चाहिए कि दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने अपने विवादों को सुलझाने के लिए ईमानदारी से प्रयास किए थे। पति की किसी गलती के बिना ऐसे प्रयासों की विफलता को पुख्ता तौर पर स्थापित किया जाना...
केंद्र शासित प्रदेश में किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए राज्य की सुरक्षा को आधार बनाना हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की शक्ति का वैध प्रयोग: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में पुष्टि की है कि केंद्र शासित प्रदेश में किसी व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए राज्य की सुरक्षा को आधार बनाना हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी की शक्ति का वैध प्रयोग है।एकल पीठ के फैसले के खिलाफ अपील खारिज की, जिसमें हेबियस कॉर्पस याचिका खारिज कर दी गई, चीफ जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और जस्टिस मोक्ष खजूरिया काज़मी की पीठ ने स्पष्ट किया,“इसमें कोई संदेह नहीं है कि [सामान्य खंड अधिनियम, 1897 की धारा 3 (58)] में निहित राज्य की परिभाषा में केंद्र शासित...