जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

सद्भावपूर्ण आरोप के अपवाद का दावा करने वाले आवेदन को परिसीमा पर खारिज नहीं किया जा सकता, जांच के लिए ट्रायल की आवश्यकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
'सद्भावपूर्ण आरोप' के अपवाद का दावा करने वाले आवेदन को परिसीमा पर खारिज नहीं किया जा सकता, जांच के लिए ट्रायल की आवश्यकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक उल्लेखनीय फैसले में जोर देकर कहा कि रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 499 (मानहानि) के आठवें अपवाद के आवेदन में तथ्यात्मक मुद्दों का निर्धारण शामिल है, जिनका ट्रायल कोर्ट द्वारा या रद्द करने की मांग वाली याचिका में प्रारंभिक चरण में मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है।आरपीसी के आठवें अपवाद में कहा गया है कि किसी के खिलाफ उन पर वैध अधिकार वाले व्यक्ति के खिलाफ एक अच्छा विश्वास आरोप लगाना मानहानि नहीं माना जाता है। घरेलू हिंसा मामले के दौरान लगाए गए आरोपों के आधार...

मौत या आजीवन कारावास के मामलों में जमानत पर रोक त्वरित सुनवाई के अधिकार का स्थान नहीं ले सकती: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
मौत या आजीवन कारावास के मामलों में जमानत पर रोक त्वरित सुनवाई के अधिकार का स्थान नहीं ले सकती: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय मामलों में जमानत देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता के तहत प्रतिबंध भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार को ओवरराइड नहीं कर सकता है।जस्टिस रजनीश ओसवाल की पीठ ने 13 साल से अधिक समय तक बिना मुकदमे की सुनवाई पूरी किए जेल में बंद रमन कुमार नाम के व्यक्ति को जमानत देते हुए कहा, "मौत या आजीवन कारावास के साथ दंडनीय अपराधों में जमानत देने के लिए बार पर विचार...

चल रही या समाप्त हो चुकी आपराधिक कार्यवाही के बावजूद निवारक निरोध का आदेश दिया जा सकता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
चल रही या समाप्त हो चुकी आपराधिक कार्यवाही के बावजूद निवारक निरोध का आदेश दिया जा सकता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने निवारक निरोध आदेश की वैधता को बरकरार रखते हुए पुष्टि की है कि चल रही या समाप्त हो चुकी आपराधिक कार्यवाही के बावजूद निवारक निरोध का आदेश दिया जा सकता है। अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी निरोध “अभियोजन से पहले, उसके दौरान या उसके बाद, अभियोजन के साथ या उसके बिना, और यहां तक ​​कि निर्वहन या बरी होने के बाद भी” हो सकती है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि निवारक निरोध आपराधिक कानून में दंडात्मक उपायों से अलग उद्देश्य पूरा करता है।निरोधक निरोध के मैंडेट और...

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट इस बात की जांच करेगा कि क्या सरकारी कर्मचारी बिना इस्तीफा दिए विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट इस बात की जांच करेगा कि क्या सरकारी कर्मचारी बिना इस्तीफा दिए विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट इस बात की संवैधानिकता पर विचार करेगा कि क्या सरकारी कर्मचारियों को चुनावी राजनीति में भाग लेने से रोका जा सकता है। कोर्ट ने यह निर्णय जम्मू-कश्मीर सरकारी कर्मचारी (आचरण) नियम, 1971 के नियम 14 के खिलाफ दायर याचिका को ध्यान में रखकर ‌लिया है। नियम 14 सरकारी कर्मचारियों को राजनीति में भाग लेने से रोकता है।स्कूल शिक्षा विभाग में वरिष्ठ व्याख्याता याचिकाकर्ता जहूर अहमद भट ने विधानसभा चुनाव लड़ने की अनुमति देने के लिए अदालत से हस्तक्षेप करने की मांग करते हुए याचिका...

गैर-बंधक मुकदमों में संपत्ति का गलत विवरण आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत खारिज करने का आधार नहीं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया
गैर-बंधक मुकदमों में संपत्ति का गलत विवरण आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत खारिज करने का आधार नहीं: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 7 नियम 11 के तहत, बंधक मुकदमों को छोड़कर, अचल संपत्ति के अनुचित या गलत विवरण के कारण किसी मुकदमे को खारिज नहीं किया जा सकता है।जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अन्य मुकदमों में यह आवश्यकता अनिवार्य नहीं है, जिससे इस प्रावधान की व्याख्या पर महत्वपूर्ण स्पष्टता मिलती है।एस नूरदीन बनाम थिरु वेंकिता रेड्डीर और अन्य 1996 के मामले का हवाला देते हुए जस्टिस वानी ने दोहराया, “यदि किसी...

धारा 113ए साक्ष्य अधिनियम | शादी के सात साल के भीतर पत्नी की आत्महत्या से पति के खिलाफ उकसावे का आरोप स्वतः नहीं लगता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
धारा 113ए साक्ष्य अधिनियम | शादी के सात साल के भीतर पत्नी की आत्महत्या से पति के खिलाफ उकसावे का आरोप स्वतः नहीं लगता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि मात्र यह तथ्य कि एक महिला ने अपनी शादी के सात साल के भीतर आत्महत्या कर ली है, साक्ष्य अधिनियम की धारा 113-ए के तहत स्वतः ही अनुमान नहीं लगाती है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 113ए विवाहित महिला के पति या रिश्तेदार द्वारा आत्महत्या के लिए उकसाने की धारणा से संबंधित है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसा अनुमान केवल तभी लगाया जा सकता है जब यह दर्शाया गया हो कि पति या पति के रिश्तेदार ने मृतका के साथ क्रूरता की हो, जैसा कि आरपीसी की धारा...

[RPC 498A] लगातार उत्पीड़न के अभाव में दहेज की मांग करना क्रूरता नहीं: जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट
[RPC 498A] लगातार उत्पीड़न के अभाव में दहेज की मांग करना क्रूरता नहीं: जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि दहेज की साधारण मांग, पीड़ित को ऐसी मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर करने के उद्देश्य से लगातार उत्पीड़न के बिना रणबीर दंड संहिता (RPC) की धारा 498-A के तहत क्रूरता नहीं मानी जाती।धारा 498-A के तहत दोषसिद्धि को खारिज करते हुए जस्टिस संजीव कुमार ने कहा,“मृतक ने अपीलकर्ता और उसके माता-पिता द्वारा स्कूटर और नकदी की मांग के बारे में शिकायत की थी लेकिन साक्ष्य में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो यह सुझाव दे कि दहेज की मांग पूरी न करने पर मृतक को कभी पीटा गया उसके साथ...

DV Act | अंतरिम निवास आदेश देने के लिए मुकदमे की आवश्यकता नहीं, यह सड़क पर आश्रय लेने से महिला की रक्षा के लिए एक तत्काल राहत: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
DV Act | अंतरिम निवास आदेश देने के लिए मुकदमे की आवश्यकता नहीं, यह सड़क पर आश्रय लेने से महिला की रक्षा के लिए एक तत्काल राहत: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम (DV Act) के तहत अंतरिम निवास आदेश पर विचार करते समय मजिस्ट्रेट को पूर्ण सुनवाई करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि केवल पीड़ित व्यक्ति द्वारा दायर आवेदन से संतुष्ट होने की आवश्यकता है।प्रधान सत्र न्यायाधीश, कुपवाड़ा द्वारा पारित एक आदेश को रद्द करते हुए, जिन्होंने डीवी अधिनियम के दायरे की गलत व्याख्या की थी, जस्टिस संजय धर ने कहा, "डीवी अधिनियम की धारा 23 एक मजिस्ट्रेट को उक्त प्रावधान के अनुसार प्रकृति का अंतरिम आदेश पारित...

अगर अपराध में इस्तेमाल हथियार नहीं मिला तो अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी
अगर अपराध में इस्तेमाल हथियार नहीं मिला तो अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने 31 साल पुराने हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि सिद्ध हथियार की अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले को स्वतः ही संदिग्ध नहीं बनाती, 1993 के एक हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। कार्यवाहक चीफ जस्टिस ताशी रबस्तान और जस्टिस पुनीत गुप्ता की पीठ ने कहा,"भले ही घटना में इस्तेमाल की गई बंदूक किसी दिए गए मामले में सिद्ध न हो या जहां अपराध का हथियार ही न मिले, इसका मतलब यह नहीं है कि अभियोजन पक्ष के मामले को सभी परिस्थितियों में संदेह की दृष्टि से देखा जाना...

जेएंडके हाईकोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 227 का यंत्रवत इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, हस्तक्षेप उन्हीं मामलों तक सीमित रहे, जहां गंभीर कानूनी उल्लंघन हो
जेएंडके हाईकोर्ट ने कहा, अनुच्छेद 227 का यंत्रवत इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, हस्तक्षेप उन्हीं मामलों तक सीमित रहे, जहां गंभीर कानूनी उल्लंघन हो

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक फैसले में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत शक्तियों के विवेकपूर्ण प्रयोग को रेखांकित करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ऐसी शक्तियों का प्रयोग यांत्रिक रूप से नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने कहा कि अनुच्छेद के तहत शक्तियों को ऐसे मामलों के लिए रिजर्व किया जाना चाहिए, जहां किसी निष्कर्ष को उचित ठहराने के लिए साक्ष्य का अभाव हो, जहां कोई निष्कर्ष इतना विकृत हो कि कोई भी उचित व्यक्ति उस निष्कर्ष पर न पहुंच सके, या जहां कोई गंभीर...

एनडीपीएस एक्ट | प्रतिबंधित पदार्थ को सुरक्षित रखा गया था और नमूने बिना किसी देरी के एफएसएल को भेजे गए थे, यह साबित करना अ‌भियोजन पक्ष का दायित्व: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट
एनडीपीएस एक्ट | प्रतिबंधित पदार्थ को सुरक्षित रखा गया था और नमूने बिना किसी देरी के एफएसएल को भेजे गए थे, यह साबित करना अ‌भियोजन पक्ष का दायित्व: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एडं लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में एनडीपीएस एक्ट, 1985 से जुड़े मामलों में अभियोजन पक्ष के दायित्व को रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा यह साबित करना कि प्रतिबंधित पदार्थ को सुरक्षित रखा गया था और नमूने बिना किसी देरी के फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (एफएसएल) को भेजे गए थे, अभ‌ियोजन पक्ष का दायित्व है। उक्त टिप्पण‌ियों के साथ कोर्ट ने एनडीपीसए एक्ट, 1985 के तहत आरोप‌ित दो व्यक्तियों को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा।जस्टिस राजेश ओसवाल और जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने इस बात...

जम्मू-कश्मीर PSA का इस्तेमाल CrPC के तहत स्थापित उचित प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए शॉर्टकट के रूप में नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर PSA का इस्तेमाल CrPC के तहत स्थापित उचित प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए शॉर्टकट के रूप में नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

प्रिवेंटिव डिटेंशन ऑर्डर रद्द करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम 1978 (PSA) का इस्तेमाल दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (CrPC) के तहत स्थापित उचित प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए प्रिवेंटिव डिटेंशन अधिकारियों द्वारा शॉर्टकट के रूप में नहीं किया जा सकता।हिरासत में लिए गए व्यक्ति के खिलाफ कई एफआईआर के आधार पर हिरासत आदेश के खिलाफ हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार करते हुए जस्टिस राहुल भारती ने कहा,"दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 110 के तहत...

जेएंडके हाईकोर्ट ने कहा, प्रशासन यह स्‍पष्ट करे कि आवश्यक अनुमति के बिना कार्य अनुबंध कैसे निष्पादित हुआ, ठेकेदार अनुमोदन को सत्यापित करने के लिए जिम्मेदार नहीं
जेएंडके हाईकोर्ट ने कहा, प्रशासन यह स्‍पष्ट करे कि आवश्यक अनुमति के बिना कार्य अनुबंध कैसे निष्पादित हुआ, ठेकेदार अनुमोदन को सत्यापित करने के लिए जिम्मेदार नहीं

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले प्रशासनिक अनुमोदन, तकनीकी अनुमति और अन्य औपचारिकताएं पूरी की गई हैं या नहीं, यह सत्यापित करना ठेकेदार की जिम्मेदारी नहीं है। जस्टिस राजेश सेखरी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि यदि प्रशासन ऐसा आरोप लगाता है तो यह स्पष्ट करने की जिम्मेदारी पूरी तरह प्रशासन की है कि आवश्यक अनुमोदन और अनुमति के अभाव में कार्य कैसे किया गया।हाईकोर्ट ने ये टिप्पणियां केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के खिलाफ मेसर्स क्यूब...

मुकदमा दायर करते समय पक्षकारों के अधिकारों को मुकदमेबाजी के दौरान होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों के अनुकूल होना चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
मुकदमा दायर करते समय पक्षकारों के अधिकारों को मुकदमेबाजी के दौरान होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों के अनुकूल होना चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसला में कहा कि जबकि पक्षों के अधिकार आम तौर पर मुकदमा दायर करने के समय मौजूद परिस्थितियों से निर्धारित होते हैं, न्यायालयों को न्यायोचित परिणाम सुनिश्चित करने के लिए मुकदमेबाजी प्रक्रिया के दौरान होने वाले महत्वपूर्ण परिवर्तनों पर भी विचार करना चाहिए। यह टिप्पणी तब की गई जब हाईकोर्ट ने व्यक्तिगत आवश्यकता के आधार पर मूल रूप से दिए गए निष्कासन आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मकान मालिक की मृत्यु को एक महत्वपूर्ण घटना बताया गया जिसने निष्कासन के...

अदालत को मुकदमे के समापन के बाद संशोधन आवेदनों को अनुमति देने से पहले पक्षों द्वारा किए गए उचित परिश्रम की जांच करनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय
अदालत को मुकदमे के समापन के बाद संशोधन आवेदनों को अनुमति देने से पहले पक्षों द्वारा किए गए "उचित परिश्रम" की जांच करनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में मुकदमे की सुनवाई शुरू होने के बाद दायर संशोधन आवेदनों की स्वीकार्यता निर्धारित करने में "उचित परिश्रम" के महत्व को रेखांकित किया। जस्टिस संजय धर की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि संशोधन की अनुमति देने की शक्ति व्यापक है, लेकिन यह इस शर्त के अधीन है कि आवेदक मुकदमे की सुनवाई शुरू होने से पहले मामले को उठाने में पर्याप्त परिश्रम प्रदर्शित करे।आदेश VI नियम 17 सीपीसी में प्रयुक्त "उचित परिश्रम" शब्द की व्याख्या करते हुए, जो दलीलों के संशोधन से संबंधित...

लोक अदालत के पास पक्षकार की गैर-उपस्थिति के आधार पर मामला खारिज करने का अधिकार नहीं: जम्मू–कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट
लोक अदालत के पास पक्षकार की गैर-उपस्थिति के आधार पर मामला खारिज करने का अधिकार नहीं: जम्मू–कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

लोक अदालतों की भूमिका और सीमाओं को पुष्ट करते हुए जम्मू–कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास पक्षकार की गैर-उपस्थिति के आधार पर मामला खारिज करने का अधिकार नहीं है।जस्टिस संजय धर ने लोक अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला करते हुए, जिसमें परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत शिकायत खारिज कर दी गई था, ने कहा कि ऐसी कार्रवाई इन वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्रों के दायरे से बाहर है।याचिकाकर्ता सैयद तजामुल बशीर ने कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत गठित...

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कथित क्रिकेट एसोसिएशन घोटाले में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ PMLA के आरोप खारिज किए
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कथित क्रिकेट एसोसिएशन घोटाले में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ PMLA के आरोप खारिज किए

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (JKCA) घोटाले में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत डॉ. फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ दायर आरोप पत्र खारिज किया। न्यायालय ने फैसला सुनाया कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा निकाले गए निष्कर्षों पर अपीलीय प्राधिकरण के रूप में कार्य नहीं कर सकता है, जिससे ED के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं पर मिसाल कायम होती है।मामले की पृष्ठभूमि:यह विवाद JKCA से संबंधित धन के कथित दुरुपयोग से उपजा है। डॉ. फारूक अब्दुल्ला और JKCA...

सीआरपीसी की धारा 340 के तहत प्रारंभिक जांच केवल न्याय के हित में और अदालती कार्यवाही के संबंध में ही शुरू की जा सकती है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
सीआरपीसी की धारा 340 के तहत प्रारंभिक जांच केवल न्याय के हित में और अदालती कार्यवाही के संबंध में ही शुरू की जा सकती है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि सीआरपीसी की धारा 340 के तहत प्रारंभिक जांच केवल तभी शुरू की जा सकती है, जब न्याय के हित में ऐसा करना उचित हो, खासकर तब, जब अदालती कार्यवाही के संबंध में झूठी गवाही देने का आभास हो। चल रही मध्यस्थता प्रक्रिया के कारण कथित झूठे बयानों के लिए आपराधिक कार्यवाही की मांग करने वाले आवेदन पर विचार को स्थगित करते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा,“.. यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें याचिकाकर्ता ने अपनी दलीलों में कोई विरोधाभासी बयान दिया हो, बल्कि यह...

हिरासत में लिए गए व्यक्ति की भाषा में हिरासत के लिए आधार बताना संवैधानिक अधिकार: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
हिरासत में लिए गए व्यक्ति की भाषा में हिरासत के लिए आधार बताना संवैधानिक अधिकार: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में जिला मजिस्ट्रेट कठुआ द्वारा जारी किए गए हिरासत आदेश रद्द किया, जिसमें प्रक्रियात्मक अनुपालन में विफलता का हवाला दिया गया। विशेष रूप से हिरासत में लिए गए व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में हिरासत के आधार के बारे में जानकारी देने में।जस्टिस सिंधु शर्मा ने इस आवश्यकता के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि संचार का अर्थ याचिकाकर्ता को उन तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में पर्याप्त और प्रभावी ज्ञान प्रदान करना है, जिनके आधार पर हिरासत का आदेश पारित किया...

राज्य की भूमि पर कोई निजी स्कूल नहीं, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनिवार्य भूमि नियमों को चुनौती देने वाले 150 निजी स्कूलों को अस्थायी राहत दी
"राज्य की भूमि पर कोई निजी स्कूल नहीं", जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने अनिवार्य भूमि नियमों को चुनौती देने वाले 150 निजी स्कूलों को अस्थायी राहत दी

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने गुरुवार को क्षेत्र के 150 से अधिक निजी स्कूलों को अंतरिम राहत प्रदान की। इन स्कूलों ने 2022 के एस.ओ. 177 नामक सरकारी आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें शैक्षणिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि की कानूनी स्थिति को सत्यापित करने के लिए राजस्व विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त करना अनिवार्य किया गया था।इन स्कूलों को स्थानांतरित करने के लिए छह महीने की संकीर्ण अवधि प्रदान करते हुए, अदालत ने कहा कि अगर काहचरी भूमि पर एक निजी स्कूल के बुनियादी...