जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट
पहले से ही आरक्षित श्रेणी में आने वाले लोग EWS आरक्षण का दावा नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने गलत तरीके से प्रस्तुत EWS स्थिति के तहत प्राप्त MBBS एडमिशन रद्द किया
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) श्रेणी के तहत आरक्षण का दावा करने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जनजाति (ST), अनुसूचित जाति (SC), आरक्षित पिछड़ा क्षेत्र (RBA) या किसी अन्य समान श्रेणी सहित किसी भी आरक्षित श्रेणी में नहीं आना चाहिए।जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम की धारा 2(ओ) और एसआरओ 518 द्वारा किए गए संशोधन का हवाला देते हुए जस्टिस वसीम सादिक नरगल ने टिप्पणी की,“आरक्षण अधिनियम की धारा 2(ओ) की एकीकृत व्याख्या और एसआरओ 518 दिनांक 02.09.2019 द्वारा किए गए...
CPC के आदेश 26 R.9 में विवादित मामलों को स्पष्ट करने के लिए आयुक्त की नियुक्ति की अनुमति केवल तभी दी गई जब साक्ष्य अनिर्णायक हों: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने इस बात की पुष्टि की कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 26 नियम 9 के तहत स्थानीय जांच के लिए आयुक्त की नियुक्ति केवल तभी की जा सकती है, जब ट्रायल कोर्ट के समक्ष साक्ष्य अनिर्णायक हों और स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो।जस्टिस राजेश ओसवाल ने जम्मू के नगर मजिस्ट्रेट का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें दो भाइयों के बीच विवादित भूमि का सीमांकन करने के लिए तहसीलदार को आयुक्त नियुक्त किया गया। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने समय से पहले अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में...
मजिस्ट्रेट CrPC की धारा 200 के तहत शिकायत की जांच शुरू करने के बाद धारा 156 के तहत पूर्व-संज्ञान चरण में वापस नहीं जा सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि एक बार जब मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता का प्रारंभिक बयान दर्ज कर लेता है और मामले की सच्चाई का पता लगाने के लिए जांच का निर्देश देता है, तो मजिस्ट्रेट के लिए पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देना खुला नहीं है।जस्टिस संजय धर ने कहा कि एक बार जब मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता का CrPC की धारा 200 के तहत शपथ पर प्रारंभिक बयान लेकर शिकायत मामले की प्रक्रिया का विकल्प चुनता है तो वह CrPC की धारा 156 के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश देकर पूर्व-संज्ञान चरण में वापस नहीं जा सकता। अदालत...
NI Act | तीन से अधिक चेक के अनादर के लिए एकल शिकायत तभी सुनवाई योग्य, जब समेकित मांग नोटिस के अंतर्गत हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (NI Act) के तहत कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख के हाईकोर्ट ने माना कि चेक जारी होने या अनादरित होने मात्र से अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्रवाई का कारण नहीं बनता।NI Act के तहत एक शिकायत को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा कि यदि समेकित मांग नोटिस जारी किया जाता है और वैधानिक अवधि से अधिक समय तक भुगतान नहीं किया जाता है, तो कई चेक के अनादर के लिए एकल शिकायत सुनवाई योग्य है।जस्टिस धर ने कहा,“इस मुद्दे पर कि...
संवैधानिक न्यायालयों को धोखाधड़ी से लाभ प्राप्त करने से रोकना चाहिए, जांच की आवश्यकता वाले धोखाधड़ी के आरोपों पर प्रमाण पत्र देने से इनकार किया जा सकता है: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
संवैधानिक न्यायालयों के कर्तव्य को रेखांकित करते हुए कि किसी को भी धोखाधड़ी के कृत्योंसे लाभ न मिले, जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया, इस बात पर जोर देते हुए कि जब धोखाधड़ी के आरोप लगाए जाते हैं, तो अदालत को पक्षों के बीच पर्याप्त न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामले की जांच करनी चाहिए। जस्टिस राजेश ओसवाल ने कहा, "यह सुनिश्चित करना संवैधानिक न्यायालयों का कर्तव्य है कि किसी को भी धोखाधड़ी के कृत्यों का लाभ न मिले और प्रमाण पत्र देने से इनकार किया जा सकता...
FIR में जमानत प्राप्त आरोपी को अनुचित देरी के बाद उसी मामले में अलग अपराध के लिए दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर किसी आरोपी को पहले ही FIR में जमानत मिल चुकी है और उसे 15 साल की अवधि के बाद किसी दूसरे अपराध के लिए आरोपित और गिरफ्तार किया जाता है तो यह उसकी स्वतंत्रता का घोर हनन होगा।निचली अदालत ने अंतिम रिपोर्ट को कानून के अनुसार नहीं बताते हुए लौटा दिया। इसने इस बात पर जोर दिया था कि मामले की जांच ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट (NDPS Act) के तहत आने वाले अपराधों के तहत शुरू हुई थी। पंद्रह साल की अवधि तक जारी रही और अब जांच के अंतिम चरण में NDPS Act की धारा 8/21 के तहत...
न्यायालय नियोक्ताओं को संविदा कर्मचारियों को बनाए रखने या रोजगार की शर्तों में बदलाव करने के लिए बाध्य नहीं कर सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
सरकारी मेडिकल कॉलेज (GMC), जम्मू में अपनी सेवाएं जारी रखने की मांग करने वाले 150 संविदा स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फिर से पुष्टि की कि एक बार जब रोजगार के अनुबंध पर बिना किसी आपत्ति या आरक्षण के आपसी सहमति हो जाती है तो न्यायालयों के पास नियोक्ता को अनुबंध बनाए रखने या रोजगार की शर्तों में बदलाव करने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं होता है।जस्टिस वसीम सादिक नरगल की पीठ ने आगे बताया,“समाप्ति की वैधता और संविदा रोजगार की स्वतः जारी...
मुकदमे की स्वीकार्यता पर मुद्दा तय करने में ट्रायल कोर्ट की चूक अपीलीय अदालत की यह तय करने की शक्ति को सीमित नहीं करती कि मुकदमा स्वीकार्य है या नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर ट्रायल कोर्ट की ओर से कानून के तहत मुकदमे की स्थिरता पर मुद्दा तय करने में चूक होती है तो इससे अपील कोर्ट की स्थिरता के मुद्दे पर फैसला करने की शक्ति सीमित नहीं होती। कोर्ट ने कहा कि एकमात्र आवश्यकता यह है कि कोई नया तथ्य नहीं होना चाहिए, जिस पर दलील देने की जरूरत हो और पक्षों द्वारा कोई नया सबूत पेश नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर फाइल पर मौजूद सबूत पर्याप्त हैं तो अपील कोर्ट मामले पर अंतिम रूप से फैसला कर सकता है।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की बेंच ने...
गलत तरीके से बर्खास्तगी के लिए हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं, जब तक कि बर्खास्तगी को चुनौती न दी जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि गलत तरीके से बर्खास्तगी के कारण हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं है, जब तक कि बर्खास्तगी को पहले चुनौती न दी जाए और गलत घोषित न कर दिया जाए। न्यायालय ने पाया कि वादी ने न तो दलील दी और न ही यह साबित करने का कोई प्रयास किया कि बर्खास्तगी का विवादित आदेश उसके रोजगार की किसी भी शर्त का उल्लंघन था।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने माना कि वादी ने अपनी सेवाओं की समाप्ति को कानून के अनुसार गलत करार देने के लिए घोषणात्मक राहत नहीं मांगी थी। ऐसी प्रार्थना के...
लोक अदालत विवादों के सुलह-समझौते से निपटारे के लिए है, न कि गुण-दोष के आधार पर आदेश देने के लिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं है; वे केवल इच्छुक पक्षों के बीच समझौतों को दर्ज कर सकते हैं। न्यायालय ने कहा कि यदि समझौता नहीं होता है तो मामले को उचित न्यायालय को वापस भेजा जाना चाहिए।न्यायालय ने कहा कि लोक अदालत में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित विवादित निर्णय में पक्षों के बीच किसी समझौते का उल्लेख नहीं है तथा अभिलेख से पता चलता है कि आदेश गुण-दोष के आधार पर पारित किया गया, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने...
“समानता की अवधारणा के विपरीत”: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने उम्मीदवारों के एससी/एसटी आरक्षण पर विचार किए बिना पदोन्नति पर रोक लगाई
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सरकार को तब तक कोई पदोन्नति करने से रोक दिया है, जब तक कि आरक्षण के हकदार अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणियों के उम्मीदवारों पर उचित विचार नहीं किया जाता। विवादित सरकारी परिपत्र के कारण लंबे समय से अपनी उचित पदोन्नति से वंचित आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों को बड़ी राहत देते हुए जस्टिस एमए चौधरी ने कहा, "जब तक पदोन्नति में आरक्षण के लिए विचार किए जाने के हकदार एससी/एसटी आरक्षित श्रेणियों से संबंधित उम्मीदवारों पर विचार नहीं किया...
अनुच्छेद 16(4ए) के तहत पदोन्नति में आरक्षण का लाभ सभी को उपलब्ध, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी उस परिपत्र पर कड़ी असहमति व्यक्त की है, जिसमें सभी प्रशासनिक सचिवों को आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों के लिए निर्धारित स्लॉट खाली रखने का निर्देश दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जातियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ न देने और उनकी सीटें खाली रखने से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार होगा। अदालत ने कहा, “यह समझ में नहीं आता है कि वर्ष 2019 में संवैधानिक प्रावधानों के लागू होने के साथ जम्मू-कश्मीर के...
राज्य प्राधिकारियों को धारा 376 या POCSO Act के तहत मामलों में पीड़िता की पहचान गुप्त रखनी चाहिए: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह अभियोक्ता/पीड़ित का नाम पहचाने गए पृष्ठों और आपराधिक मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा चिह्नित किसी भी अन्य अतिरिक्त पृष्ठ से तुरंत हटा दे। अदालत ने आदेश दिया कि अभियोक्ता की जांच करने वाले पुलिस, फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं (एफएसएल) और चिकित्सा पेशेवरों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अभियोक्ता का नाम न दिया जाए और केवल पीड़ित के माता-पिता का नाम दर्ज किया जाए, महिलाओं के खिलाफ धारा 376 के तहत या बच्चों के खिलाफ POCSO अधिनियम के तहत...
ट्रायल कोर्ट के पास अपने अंतिम आदेश को वापस लेने या उसकी समीक्षा करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट के पास अपने अंतिम आदेशों पर पुनर्विचार करने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में पीड़ित पक्ष के पास एकमात्र विकल्प उक्त आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती देना है।न्यायालय ने CrPC की धारा 362 का संज्ञान लिया जो किसी आपराधिक न्यायालय को लिपिकीय या अंकगणितीय गलतियां को सुधारने के अलावा अपने अंतिम आदेशों को बदलने या उनकी समीक्षा करने से रोकती है।जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने उत्तर प्रदेश से जिला जेल अनंतनाग में हिरासत...
जब जमानत रद्द करना एक उपलब्ध उपाय है तो निवारक निरोध को शॉर्टकट विधि के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष द्वारा जमानत रद्द करने की मांग न करना और इसके बजाय अभियुक्त को सलाखों के पीछे डालने के लिए शॉर्टकट के रूप में निवारक निरोध का उपयोग करना कानूनी रूप से संधारणीय नहीं है।जस्टिस जावेद इकबाल वानी की पीठ ने कहा कि यदि अभियुक्त जमानत पर रिहा होने के बाद राज्य के लिए हानिकारक कृत्यों में शामिल था तो अभियोजन पक्ष को जमानत रद्द करने की मांग करने का पूरा अधिकार है। हालांकि अदालत ने कहा कि अभियुक्त को सलाखों के पीछे भेजने के लिए शॉर्टकट विधि अपनाई गई।अदालत ने...
किसी भी पक्ष को ऐसे मध्यस्थ स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जो हितों का टकराव करता हो: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि किसी पक्ष को ऐसे मध्यस्थ को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जिसके हितों में टकराव हो, क्योंकि ऐसा करना निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा। न्यायालय ने माना कि स्थायी पट्टा विलेख, साथ ही उपनियम, जो याचिकाकर्ता और विभाग के बीच विवादों का निपटारा करने के लिए सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को एकमात्र मध्यस्थ होने का प्रावधान करते हैं, कानून के विरुद्ध होंगे। चीफ जस्टिस ताशी रबस्तान ने कहा कि रजिस्ट्रार, जिन्हें पट्टा विलेख के तहत एकमात्र...
'कोई भी व्यक्ति' में सभी विरोधी कब्जे शामिल, निष्पादन न्यायालयों को आर्डर 21 रूल 97 सीपीसी के तहत बाधा दावों का न्यायनिर्णयन करने का अधिकार: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 21 नियम 97 के तहत निष्पादन न्यायालयों के व्यापक अधिकार क्षेत्र की पुष्टि की है। जस्टिस जावेद इकबाल वानी की अध्यक्षता वाली पीठ ने माना कि नियम 97(1) में "कोई भी व्यक्ति" शब्द जानबूझकर व्यापक है, जिसमें सभी व्यक्ति शामिल हैं, जो कब्जे का विरोध करते हैं या बाधा डालते हैं, निष्पादन न्यायालयों को निष्पादन कार्यवाही के भीतर ही ऐसे विवादों का न्यायनिर्णयन करने का अधिकार देता है। संदर्भ के लिए, आदेश 21 नियम 97 CPC में प्रावधान...
NDPS Act | जब्त किए गए सैंपल सुरक्षित कस्टडी में नहीं थे, यह साबित करना अभियुक्तों के लिए संभव नहीं, सुरक्षित हैंडलिंग स्थापित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में मादक पदार्थों के मामलों में प्रक्रियागत अनुपालन के महत्व को रेखांकित किया। कोर्ट ने माना कि यह साबित करना अभियुक्त का काम नहीं है कि जब्त किए गए नमूने सुरक्षित कस्टडी में नहीं थे, बल्कि अभियोजन पक्ष पर यह दायित्व है कि वह उनके सुरक्षित संचालन को स्थापित करे और यह सुनिश्चित करे कि छेड़छाड़ असंभव थी। नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत अपराधों के लिए दोषी की ओर से आपराधिक दोषसिद्धि अपील की अनुमति देते हुए जस्टिस...
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 28 सप्ताह की गर्भवती बलात्कार पीड़िता के गर्भपात की मंजूरी दी
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने एक यौन उत्पीड़न पीड़िता के 28-29 सप्ताह के भ्रूण को मेहनत हस्तक्षेप के माध्यम से समाप्त करने की अनुमति दी। न्यायालय ने पीड़िता द्वारा झेले गए गंभीर मानसिक आघात और प्रसव को समझने या उससे निपटने में उसकी असमर्थता को स्वीकार किया। न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि जीवन का अधिकार एक ऐसे जीवन की गारंटी देता है जो मानसिक आघात से मुक्त हो।न्यायालय ने कहा कि यह राज्य का दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए कि नागरिक अपनी जीवनशैली के अनुसार चिंताओं से...
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कमजोर गवाहों की सुरक्षा के लिए नए नियम जारी किए, उम्र के अनुसार पूछताछ और वीडियो गवाही पर जोर दिया
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने अदालत में संरक्षित गवाहों की गवाही कैसे दर्ज की जानी चाहिए, इस पर अपडेट दिशा-निर्देशों को मंजूरी दी। नए नियमों का उद्देश्य उन गवाहों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाना है जो अदालत में गवाही देते समय भयभीत महसूस कर सकते हैं।रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार ये अपडेट दिशा-निर्देश बच्चों, दिव्यांग लोगों, यौन हिंसा के पीड़ितों और धमकियों का सामना करने वाले गवाहों पर लागू होते हैं। इस कदम से न्याय प्रणाली को उन लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने की उम्मीद है,...