हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

11 Sep 2022 5:00 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (5 सितंबर, 2022 से 9 सितंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 141 एनआई एक्ट| धारा 138 के तहत अपराध के लिए एकमात्र मालिक पर मुकदमा नहीं किया जा सकता है, बल्‍कि एकमात्र स्वामित्व वाले प्रतिष्ठान को भी आरोपी के रूप में पेश किया जाना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब एकल स्वामित्व वाली इकाई द्वारा जारी किया गया चेक अनादरित हो जाता है, तो एकमात्र मालिक के साथ-साथ एक आरोपी के रूप में मालिकाना प्रतिष्ठान को प्रस्तुत करना आवश्यक है।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने आगे कहा कि इसके अलावा यह स्पष्ट किया जाता है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 141 के मद्देनजर केवल एकमात्र मालिक पर मुकदमा करना पर्याप्त नहीं होगा।

    केस शीर्षक: सरदार भूपेंद्र सिंह बनाम एमएस ग्रीन फीड्स अपने पार्टनर विपिन कुमार के माध्यम से

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    पासपोर्ट अधिकारी जन्म प्रमाण पत्र जारी करने या आवेदक की जन्म तिथि की स्वतंत्र जांच करने की शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने कहा कि पासपोर्ट अधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि पासपोर्ट धारक द्वारा प्रस्तुत रिकॉर्ड के आधार पर वे अपनी स्वतंत्र जांच करेंगे, यदि जन्म तिथि या पासपोर्ट में दर्ज नाम के संबंध में कोई विवाद या मतभेद है, खासकर जब ऐसी प्रविष्टियां की जाती हैं।

    जस्टिस अशोक कुमार गौड़ ने कहा कि पासपोर्ट प्राधिकरण हमेशा पार्टियों को निर्देश देने के लिए सक्षम होते हैं कि वे या तो जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम के तहत काम कर रहे अधिकारियों से या न्यायिक मजिस्ट्रेट या सिविल कोर्ट से प्रासंगिक दस्तावेज पेश करें, जैसा भी मामला हो। .

    केस टाइटल: सिमरन राज @ सलमा नट बनाम भारत संघ और अन्य।

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    मजिस्ट्रेट, हाईकोर्ट द्वारा गठित एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करने के बाद पुलिस को जांच का निर्देश नहीं दे सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि एक मजिस्ट्रेट अदालत हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त जांच एजेंसी द्वारा दायर बी रिपोर्ट (क्लोजर रिपोर्ट) को खारिज करने के बाद किसी अन्य जांच एजेंसी द्वारा आगे की जांच का निर्देश नहीं दे सकती है।

    ज‌स्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने एक मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर एक याचिका की अनुमति दी और मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया, क्योंकि उन्होंने विशेष जांच दल की बी रिपोर्ट को खारिज करने के बाद एचएएल पुलिस स्टेशन को आगे की जांच करने का निर्देश दिया था।

    केस टाइटल: एम मंजुला बनाम कर्नाटक राज्य

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    पार्टियों के बीच समझौता हो जाए तो धारा 498A आईपीसी सहित वैवाहिक अपराधों को धारा 482 सीआरपीसी के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए रद्द किया जा सकता है: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि विवाह से उत्पन्न अपराध, जहां गलती मूल रूप से निजी या व्यक्तिगत प्रकृति की हो और पार्टियों ने पूरा विवाद सुलझा लिया हो तो हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक कार्यवाही रद्द करना उसके अधिकार क्षेत्र में होगा।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने धारा 498 ए आईपीसी के तहत अपराधों के लिए एफआईआर और विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट श्रीनगर की अदालत के समक्ष लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

    केस टाइटल: अब्दुल्ला दानिश शेरवानी बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    कानूनी उत्तराधिकारी शिकायत के मामलों में शिकायतकर्ता को प्रतिस्थापित कर सकते हैं और उसकी मृत्यु के बाद मुकदमा जारी रख सकते हैं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि एक शिकायतकर्ता के कानूनी उत्तराधिकारी, जहां शिकायत पर एक आपराधिक मामला स्थापित किया जाता है, उसकी मृत्यु पर उसकी जगह ले सकता है और उसकी ओर से मामले को आगे बढ़ा सकता है।

    जस्टिस शशिकांत मिश्रा की सिंगल जज बेंच ने कहा, "... एक विशिष्ट प्रावधान की अनुपस्थिति के बावजूद, संहिता के प्रावधानों का वैधानिक उद्देश्य शिकायतकर्ता की मृत्यु पर अभियोजन जारी रखने के किसी व्यक्ति के अधिकार को रोकना नहीं है। दूसरे शब्दों में, यह निहित रूप से स्वीकार किया जाता है कि अपराध के शिकार व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है लेकिन उसके खिलाफ किया गया अपराध समाप्त नहीं होता। न ही अपराधी का अपराध केवल इसलिए धुल जाता है क्योंकि पीड़ित की मृत्यु हो चुकी है। इसके विपरीत अपराधी अभी भी अपने कर्मों के खिलाफ मुकदमा चलने और दंडित होने के लिए उत्तरदायी रहेगा, अगर दोषी पाया गया।"

    केस टाइटल: संजीत कुमार मिश्रा और अन्य बनाम रंजीत मिश्रा

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    पक्षकारों के आपसी समझौता करने पर नाबालिग के खिलाफ पॉक्सो मामला रद्द किया जा सकता है : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को नाबालिग लड़के द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और आपसी समझौता होने के बाद नाबालिग लड़की का कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने के लिए यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धाराओं के तहत उसके खिलाफ शुरू की गई जांच रद्द कर दी। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने याचिका की अनुमति दी और ओपन कोर्ट में अपना आदेश सुनाते हुए कहा, "याचिका की अनुमति है, याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्यवाही समाप्त की जाती है।"

    केस टाइटल: एजे बनाम कर्नाटक राज्य

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    सभी के लिए अज्ञात स्थान से हथियार की बरामदगी आईईए की धारा 27 के तहत पुष्टीकरण सिद्धांत को रेखांकित करती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अब तक जांच अधिकारी सहित सभी के लिए अज्ञात स्थान से एक वस्तु/हथियार की बरामदगी एक ऐसा तथ्य है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों के मुख्य केंद्र में स्थित पुष्टीकरण के सिद्धांत को रेखांकित करता है। जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने हत्या के उस आरोपी की सजा की पुष्टि करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने गर्भवती सौतेली मां तथा उसके तीन बच्चों यानी अपने सौतेले भाई-बहनों की हत्या कर दी थी।

    केस टाइटल - शमशाद बनाम उत्तर प्रदेश सरकार [जेल अपील संख्या – 2994/2010]

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    मारे गए आतंकवादी के अंतिम संस्कार पर प्रार्थना करना राष्ट्र-विरोधी गतिविधि नहीं मानी जा सकती : जे एंड के एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि मारे गए किसी आतंकवादी के अंतिम संस्कार पर बड़े पैमाने पर जनता द्वारा प्रार्थना करना को उस मात्रा की राष्ट्र-विरोधी गतिविधि नहीं माना जा सकता जिससे उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई गारंटी के अनुसार उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सके।

    जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस एमडी अकरम चौधरी की पीठ विशेष न्यायाधीश अनंतनाग (गैरकानूनी गतिविधिया (रोकथाम) अधिनियम के लिए नामित न्यायालय) द्वारा 11 फरवरी, 2022 और 26 फरवरी, 2022 को पारित आदेशों को चुनौती देने वाली सरकार द्वारा दायर दो अपीलों पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दो अलग-अलग आवेदनों में प्रतिवादियों को जमानत दी गई।

    केस: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बनाम जाविद अहमद शाह

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    [ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट] निर्माता को 28 दिनों के भीतर सरकारी एनालिस्ट रिपोर्ट की शुद्धता पर विवाद करने का अधिकार: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एक दवा निर्माता को ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट,1940 की धारा 25 (3) के अनुसार रिपोर्ट प्राप्त होने की तारीख से 28 दिनों की वैधानिक अवधि के भीतर सरकारी विश्लेषक की रिपोर्ट की शुद्धता पर विवाद करने का अधिकार है।

    जस्टिस रजनीश ओसवाल की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ताओं ने जम्मू के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में इसके खिलाफ लंबित कार्यवाही को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: सिम्बायोसिस फार्मास्युटिकल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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    रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब या तो वह व्यक्ति या प्राधिकरण जिसे रिट जारी किया गया हो, या कार्रवाई उसके क्षेत्र के भीतर हो: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग तब कर सकता है जब रिट अधिकार क्षेत्र का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब या तो वह व्यक्ति या प्राधिकरण जिसे रिट जारी किया गया हो, या कार्रवाई उसके क्षेत्र के भीतर हो।

    जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने एचएस राय, प्रोजेक्ट्स एंड डेवलपमेंट इंडिया लिमिटेड (पीडीआईएल) के पीड़ित कर्मचारी, जिसने कथित तौर पर कंपनी के फंड के दुरुपयोग के लिए अनुशासनात्मक जांच के दौरान उन पर लगाए गए दंड को रद्द करने के लिए अदालत का रुख किया।

    केस टाइटल: एच.एस. राय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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    जेजे एक्ट | "जघन्य अपराध" वह है जहां 7 साल या उससे अधिक तक की सजा का प्रावधान हो: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब आरोपी ने रात में घर में घुसकर या रात में घर का ताला तोड़ने का अपराध करते हुए स्वेच्छा से मौत का कारण बना या मौत का प्रयास किया तो अदालत पूरी तरह से कानून का उल्लंघन करने वाले दोषी किशोर को आजीवन कारावास की सजा दे सकती है।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने आगे कहा कि रात में घर में घुसकर या घर का ताला तोड़ने के सरल अपराध के लिए सजा सात साल से कम हो सकती है, जबकि "अपराध" "जघन्य अपराध" है, ऐसे में केवल तभी दोषी पर अनिवार्य रूप से 7 साल या उससे अधिक की अवधि तक बढ़ाने के लिए वैधानिक रूप से प्रावधान हो।

    केस टाइटल : सुहैल अहमद बनाम हरियाणा राज्य

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    जब सीपीसी के तहत स्पष्ट प्रावधान दिया गया है तो सीपीसी की धारा 151 के तहत यथास्थिति आदेश टिकाऊ नहीं : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि सीपीसी की धारा 151 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए अदालत द्वारा पारित यथास्थिति का आदेश टिकाऊ नहीं है, क्योंकि नागरिक प्रक्रिया संहिता के तहत इसके लिए स्पष्ट प्रावधान प्रदान किया गया है।

    जस्टिस एस ए धर्माधिकारी की पीठ ने कहा, बेशक निचली अदालत ने आयुक्त की नियुक्ति में गलती की, क्योंकि संहिता के आदेश 39 नियम 1 और नियम 2 के तहत आवेदन का फैसला करते समय साक्ष्य के संग्रह की अनुमति नहीं दी जा सकती। आवेदन पर प्रथम दृष्टया कानून के तीन ठोस सिद्धांतों पर निर्णय लिया जाना है। यहां तक कि यथास्थिति का आदेश अपीलीय न्यायालय द्वारा संहिता की धारा 151 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए नहीं दिया जा सकता, जब संहिता के तहत स्पष्ट प्रावधान प्रदान किया गया हो।

    केस टाइटल: ओमप्रकाश अग्रवाल एवं अन्य बनाम संदीप कुमार अग्रवाल एवं अन्य।

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    जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में दूसरी शादी की जाती है, केवल उसे ही आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध पर सुनवाई करने का अधिकार हैः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि पहली वैध शादी के निर्वाह के दौरान दूसरी शादी करने /अनुबंध करने के कारण भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत किए गए अपराध के मामले में सिर्फ उसी न्यायालय के पास आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 177 के तहत मामले की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र है,जिस न्यायालय के अधिकार में दूसरी शादी की गई है।

    जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जिसमें याचिकाकर्ताओं ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रियासी के समक्ष लंबित शिकायत को रद्द करने की प्रार्थना की थी। साथ ही उस आदेश को भी रद्द करने की मांग की गई थी,जिसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया था और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रोसेस जारी की थी।

    केस टाइटल- विजय गुप्ता व अन्य बनाम दीक्षा शर्मा व अन्य

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    एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 का भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 या धारा 27 के साथ कोई विरोधाभास नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने हाल ही में माना कि एनडीपीएस अधिनियम (NDPS Act) की धारा 67, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 27 के प्रभाव को स्पष्ट रूप से बाहर नहीं करती। इस तरह यह धारा एनडीपीएस अधिनियम के तहत गठित अपराध के लिए इसके संचालन का बचाव करती है।

    इसके अलावा, एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 भी जब गैर-अवरोधक खंड के माध्यम से नहीं होती है तो उसमें होने वाली भारतीय साक्ष्य अधिनियम (सुप्रा) की धारा 27 की व्यावहारिकता या प्रभाव को स्पष्ट रूप से बाहर कर देती है, जो कि वनरोपण के रूप में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 25 का अपवाद है।

    केस टाइटल: अमित खुराना बनाम हरियाणा राज्य

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    आपराधिक न्यायशास्त्र के बुनियादी सिद्धांतों की अनदेखी करके जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि आरोपी को पहले अक्षम अदालत ने जमानत पर रिहा कर दिया: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को अपनी पत्नी का गला घोंटने और बिजली के करंट देकर मारने के आरोपी व्यक्ति को इस टिप्पणी के साथ जमानत दे दी कि केवल इसलिए कि उसे पहले अक्षम अधिकार क्षेत्र की अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया गया, उसे हिरासत में रखने का कारण नहीं होगा। आपराधिक न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांत हैं कि आरोपी को दोषी साबित होने तक निर्दोष माना जाता है।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने कहा, "प्रक्रिया और निश्चित रूप से विकृत और कानून के खिलाफ जिस तरीके से याचिकाकर्ता को शुरू में जमानत दी गई, उसमें आपराधिक मुकदमे में जमानत देने के मूल सिद्धांतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, भले ही उपरोक्त अवैधता एक गलत आदेश द्वारा लाई गई हो।

    केस टाइटल: अरुण बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    यदि जांच अधिकारी मृतक के राइटिंग सोर्स के बारे में नहीं बताता है तो सुसाइड नोट के बारे में हैंड राइटिंग एक्सपर्ट की राय संदिग्ध हो जाती है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हरियाणा ने माना कि मृतक द्वारा लिखे गए सुसाइड नोट के संबंध में हैं, राइटिंग एक्सपर्ट की राय निर्णायक प्रमाण नहीं हो सकती है यदि वह व्यक्ति (पुलिस), जिसने जांच के लिए मृतक की हैं राइटिंग को स्वीकार किया और सौंप दिया, लेकिन अपने साक्ष्य में इस तरह के तथ्य का खुलासा करने में विफल रहता है।

    केस टाइटल: रवि भारती बनाम हरियाणा राज्य

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    जाति प्रमाण पत्र- आवेदक का सामान्य निवास एक संक्षिप्त पूछताछ में निर्धारित नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर पीठ ने हाल ही में कहा कि जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन के उद्देश्य से किसी व्यक्ति के सामान्य निवास का प्रश्न सतर्कता सेल की जांच के बिना और व्यक्ति को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किए बिना निर्धारित नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा, "एक निष्कर्ष यह है कि आवेदक एक सामान्य निवासी नहीं है, एक संक्षिप्त पूछताछ करके दर्ज नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल - कुमारी प्रियंका बनाम जिला जाति प्रमाण पत्र जांच समिति, चंद्रपुर

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    जब तक अनुच्छेद 226 के तहत मूल अधिकार क्षेत्र का प्रयोग शामिल नहीं है, तब तक अनुच्छेद 227 के तहत आदेश के खिलाफ इंट्रा-कोर्ट अपील सुनवाई योग्य नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने संविधान के अनुच्छेद 226 और अनुच्छेद 227 के तहत 'इंट्रा-कोर्ट अपील' के अधिकार के बीच अंतर बताया और कहा है कि एक इंट्रा-कोर्ट अपील एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ नहीं होती है जब अधीक्षण की शक्ति अधीनस्थ न्यायालय के आदेश का परीक्षण कर रहा हो। दूसरे शब्दों में, लेटर्स पेटेंट एक्ट का क्लॉज 15, कोर्ट के सिंगल जज द्वारा अनुच्छेद 227 के तहत याचिका में पारित आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति नहीं देता है।

    केस टाइटल: विट्ठल बोगरा शेट्टी बनाम न्यासी बोर्ड

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    सगाई और शादी के बीच की अवधि के दौरान मंगेतर की सहमति के बिना उसका यौन शोषण करने का कोई अधिकार नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि पक्षकारों की सगाई हो गई है और वह एक-दूसरे से मिल रहे हैं, यह तथ्य भावी (होने वाले)दूल्हे को उसकी मंगेतर की सहमति के बिना उसका यौन शोषण करने का कोई अधिकार या स्वतंत्रता नहीं देता है। जस्टिस विवेक पुरी की खंडपीठ ने उस व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया,जिसके खिलाफ उसकी मंगेतर ने बलात्कार का केस दर्ज करवाया है। पीठ ने कहा कि, ''याचिकाकर्ता को सगाई और शादी के बीच की अवधि के दौरान अपनी मंगेतर की सहमति के बिना उसका शारीरिक शोषण करने की कोई छूट नहीं मिल सकती है।''

    केस टाइटल -सागर कपूर बनाम हरियाणा राज्य,सीआरएम-एम-35393-2022 (ओ एंड एम)

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    जब कोई आरोपी चार्जशीट दाखिल करने के लिए पुलिस स्टेशन से नोटिस प्राप्त करने के बाद ट्रायल के समक्ष पेश होता है, तो सीआरपीसी की धारा 439 के तहत उसकी जमानत याचिका सुनवाई योग्य : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (Madhya Pradesh High Court) ने हाल ही में दोहराया कि जब कोई आरोपी चार्जशीट दाखिल करने के लिए पुलिस स्टेशन से नोटिस प्राप्त करने के बाद निचली अदालत के समक्ष पेश होता है, तो उसकी उपस्थिति पर ऐसे आरोपी व्यक्ति को न्यायालय की हिरासत में माना जाता है और धारा 439 सीआरपीसी के तहत उसका आवेदन सुनवाई योग्य है और इसे इस तकनीकी पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए कि उसे पुलिस द्वारा कभी गिरफ्तार नहीं किया गया था।

    केस टाइटल: चंद्रभान कलोसिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    सरकारी अनुबंधों की न्यायिक समीक्षा की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब निर्णय लेने की प्रक्रिया अवैध हो: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी अनुबंधों के मामलों में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है और इसका प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब प्राधिकरण की निर्णय लेने की प्रक्रिया में पेटेंट अनुचितता, अनियमितता, तर्कहीनता या अवैधता हो, जो सार्वजनिक हित को बड़े पैमाने पर जोखिम पर रखता है।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि उक्त परिस्थितियों की अनुपस्थिति में न्यायालयों को संविदात्मक मामलों पर विचार-विमर्श करते समय सामान्य रूप से न्यायिक संयम का प्रयोग करना चाहिए ताकि राज्य में प्रवेश करने की क्षमता को प्रभावित करने वाले "समस्याग्रस्त प्रभाव" उत्पन्न न हों।

    केस टाइटल: मेसर्स वर्वे ह्यूमन केयर लेबोरेटरीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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    जहां मां को नाबालिग की एक्सक्लूसिव कस्टडी सौंपी जा चुकी है, वहां पासपोर्ट अधिकारी पिता की सहमति पर जोर नहीं दे सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि फैमिली कोर्ट जब एक बार बच्चे की एक्सक्लुसिव कस्टडी मां को सौंप चुका हो तो रीजनल पासपोर्ट ऑफिसर द्वारा पासपोर्ट जारी करने के लिए बच्चे के पिता की मौजूदगी पर या उसकी सहमति पर जोर देना उचित नहीं है।

    जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल जज बेंच ने एक महिला की याचिका को अनुमति देते हुए उक्त टिप्पणी की। याचिका में मांग की गई थी कि पासपोर्ट प्राधिकरण को महिला के नाबालिग बच्चे का पासपोर्ट जारी करने के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया जाए, जिसकी एक्सक्लूसिव कस्टडी फैमिली कोर्ट महिला को दे चुका है।

    केस टाइटल: पौलामी बसु बनाम भारत सरकार

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    सीपीसी का आदेश 16 नियम 1 | अदालत को गवाहों की सूची उपलब्ध कराने के लिए 15 दिनों की अवधि प्रकृति में निर्देश: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अदालत को गवाहों की सूची उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सीपीसी के आदेश 16 नियम 1 के तहत निर्धारित 15 दिनों की अवधि नियम 16 (3) के मद्देनजर प्रकृति में निर्देश है, जो किसी भी पक्षकार को सूची में नामित गवाहों के अलावा किसी अन्य गवाह को बुलाने की अनुमति देती है। हालांकि, अदालत को गवाहों की सूची उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सीपीसी के आदेश 16 नियम 1 के तहत 15 दिनों की अवधि निर्धारित की गई है। हालांकि, एक बार अदालत को किसी भी पक्षकार को अनुमति देने के लिए नियम 16 के उप-नियम 3 के तहत शक्ति दी गई है। उप-नियम 1 में निर्दिष्ट सूची में नामित गवाहों के अलावा किसी अन्य गवाह को बुलाने के लिए आदेश 16 के उप-नियम 1 के तहत निर्धारित प्रक्रिया को निर्देशिका के रूप में माना जाना चाहिए, विशेष रूप से जब यह अपनी चूक के लिए परिणाम निर्धारित नहीं करता है।

    केस टाइटल: गुरजीत सिंह बनाम करतार सिंह और अन्य

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    धारा 125 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट अपनी शक्तियों को इस्तेमाल करते हुए किसी वयस्क बेटे या बेटी को भरण-पोषण का अधिकार नहीं दे सकताः जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा एक मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक वयस्क बेटा या बेटी के पक्ष में भरण-पोषण का फैसला नहीं दे सकता, जबकि एक उपयुक्त मामले में फैमिली कोर्ट के पास सीआरपीसी की धारा 125 और हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 20(3) के संयुक्त पठन के आधार पर एक वयस्क हिंदू बेटी के पक्ष में भरण-पोषण का फैसला देने का अधिकार क्षेत्र है।

    केस टाइटल: शौकत अजीज जरगर बनाम नबील शौकत और अन्य।

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    ऑडिट की आपत्ति मूल्यांकन अधिकारी के 'विश्वास करने के कारणों' का आधार नहीं हो सकती, वह भी 6 साल बीत जाने के बाद: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने पुनर्मूल्यांकन की कार्यवाही को रद्द कर दिया है और कहा कि एक ऑडिट आपत्ति मूल्यांकन अधिकारी की आवश्यकता को पूरा नहीं करती है, जिसके पास एक स्वतंत्र "विश्वास करने का कारण" है कि आय मूल्यांकन से बच गई है, वह भी लगभग छह साल बीत जाने के बाद। जस्टिस अनीता सुमंत की एकल पीठ ने देखा कि मैट के प्रावधानों के तहत कर की गणना के संबंध में सभी सामग्री मूल मूल्यांकन कार्यवाही के दौरान निर्धारण प्राधिकारी के समक्ष उपलब्ध है।

    केस टाइटल: ईआईएच एसोसिएटेड होटल्स लिमिटेड बनाम सहायक आयकर आयुक्त

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    आर्य समाज द्वारा जारी प्रमाण पत्र के एकमात्र आधार पर विवाह साबित नहीं होता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में आर्य समाज द्वारा विवाह आयोजित करने के तरीके के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि 'समाज' ने दस्तावेजों की वास्तविकता पर विचार किए बिना विवाह आयोजित करने में अपने विश्वासों का दुरुपयोग किया है। जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने आगे कहा कि आर्य समाज द्वारा जारी किया गया केवल प्रमाण पत्र विवाह की वैधता को साबित नहीं करता। इसके साथ ही कोर्ट ने पति द्वारा अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल - श्रीमती। नीलम शर्मा और अन्य बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य [हैबियस कॉर्पस रिट याचिका नंबर - 635/2022]

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    ऑर्डर 6 रूल 17 सीपीसी | सीमा अवधि की समा‌प्‍ति के बाद 'अंतर्निहित दोष' को ठीक करने के लिए चुनाव याचिका में संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 6, नियम 17 के तहत एक संशोधन आवेदन को निर्धारित सीमा अवधि की समाप्ति के बाद चुनाव याचिका में शामिल कुछ अंतर्निहित दोषों को ठीक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जस्टिस विश्वनाथ रथ की एकल पीठ ने कहा, "इस कोर्ट की राय में, चुनाव विवाद अवधि समाप्त होने के बाद गांवों के नामों में परिवर्तन की अनुमति देना एक अंतर्निहित गलती प्रतीत होती है( यह ग्राम पंचायत चुनाव नियमावली में निर्धारित समय सीमा से परे चुनाव विवादों को दाखिल करने की अवधि बढ़ाने के बराबर है। चुनाव विवाद में निहित गलती का पता लगाना और इस प्रकार के चुनाव विवाद को दर्ज करने पर 15 दिनों के प्रतिबंध के बाद संशोधन लाया जाना कानून की नजर में अनुचित है।"

    केस टाइटल: अशोक कुमार गेदी बनाम ज्योतिर्मयी बेहरा और अन्य।

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    मोटर वाहन अधिनियम : अनाधिकारिक या गैर-अनाधिकारिक दावाकर्ता अधिनियम के प्रावधानों के तहत बीमाकर्ता पर देयता का दावा नहीं कर सकता: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि मालवाहन/मालगाड़ी से यात्रा कर रहे माल मालिक का अपवाद छोड़कर यात्रा कर रहे किसी अन्य व्यक्ति (भले ही वह 'मुफ्त यात्रा कर रहा हो या पैसे देकर') की मौत या दिव्यांगता से संबंधित दावे में मोटर वाहन अधिनियम के वैधानिक प्रावधानों के इस्तेमाल के जरिये बीमाकर्ता को देयता के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

    जस्टिस एम ए चौधरी की एक पीठ उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अपीलकर्ता-बीमा कंपनी ने एक दावा याचिका में विद्वान एमएसीटी, श्रीनगर द्वारा पारित पुरस्कार को चुनौती दी थी, जिसमें अपीलकर्ता बीमा कंपनी को प्रतिवादियों/दावेदारों के पक्ष में मुआवजे के तौर पर 3,27,864/- की राशि दावा याचिका की तारीख से छह फीसदी प्रति वर्ष की ब्याज दर के साथ देने का आदेश दिया गया था।

    केस शीर्षक: न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी बनाम मेहरा बेगम

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    घरेलू हिंसा अधिनियम | डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही को आपराधिक शिकायत दर्ज करने के बराबर नहीं माना जा सकता: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम (डीवी एक्ट) की धारा 12 के तहत कार्यवाही को आपराधिक शिकायत दर्ज करने या अभियोजन शुरू करने के बराबर नहीं माना जा सकता है, इसलिए पति और उसके रिश्तेदारों आदि से प्रतिक्रिया पाने के बाद एक मजिस्ट्रेट का सम्मन जारी करने के बाद आदेश को रद्द करना या कार्यवाही को समाप्त करना उसके अधिकार क्षेत्र के भीतर है।

    केस टाइटल: अल्ताफ अहमद जरगर बनाम एमएस सना और अन्य

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    एकपक्षीय नियुक्त आर्बिट्रेटर द्वारा पारित अवॉर्ड नॉन-एस्ट, यह एएंडसी एक्ट की धारा 11 के तहत याचिका की सुनवाई के लिए बाधा नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एकतरफा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा पारित अवॉर्ड नॉन-एस्ट (non-est) है, इसलिए यह एएंडसी एक्‍ट की धारा 11 के तहत याचिका की सुनवाई के लिए बाधा नहीं हो सकता। जस्टिस संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि अवॉर्ड पारित करने से नॉन-एस्ट कार्यवाही पवित्र नहीं हो जाती और केवल यह तथ्य कि याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 14 के तहत एकतरफा नियुक्ति को चुनौती नहीं दी थी, यह उसे स्वतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए कोर्ट से अपील करने के अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है।

    केस टाइटल: गीता पोद्दार बनाम सत्या डेवलपर्स प्रा. लिमिटेड

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    एससी/एसटी एक्ट | अग्रिम जमानत आवेदन केवल स्पेशल कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है, हाईकोर्ट के समक्ष नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत कथित अपराधों के मामलों में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन केवल स्पेशल कोर्ट या एक्ट के तहत गठित एक्सक्लूसिव स्पेशल कोर्ट के समक्ष दायर किया जा सकता है न कि हाईकोर्ट के समक्ष।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने स्पष्ट किया कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जमानत देने के लिए हाईकोर्ट का न तो धारा 438 सीआरपीसी के तहत समवर्ती क्षेत्राधिकार है और न ही धारा 482 सीआरपीसी के तहत मूल क्षेत्राधिकार है और केवल धारा 14 ए के तहत अपीलीय अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकते हैं।

    केस टाइटल: केएम बशीर बनाम रजनी केटी.और अन्य और जुड़े मामले

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