सभी के लिए अज्ञात स्थान से हथियार की बरामदगी आईईए की धारा 27 के तहत पुष्टीकरण सिद्धांत को रेखांकित करती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

9 Sep 2022 6:43 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अब तक जांच अधिकारी सहित सभी के लिए अज्ञात स्थान से एक वस्तु/हथियार की बरामदगी एक ऐसा तथ्य है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों के मुख्य केंद्र में स्थित पुष्टीकरण के सिद्धांत को रेखांकित करता है।

    जस्टिस सुनीत कुमार और जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की पीठ ने हत्या के उस आरोपी की सजा की पुष्टि करते हुए यह टिप्पणी की, जिसने गर्भवती सौतेली मां तथा उसके तीन बच्चों यानी अपने सौतेले भाई-बहनों की हत्या कर दी थी।

    कोर्ट ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि आरोपी ने घटना के अगले ही दिन पुलिस और एक गवाह [पीडब्लू9-इशरार] की उपस्थिति में झाड़ियों के अंदर छिपाकर रखी गई खून से सनी कुल्हाड़ी खुद ही निकालकर दी थी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत यह स्वीकार्य साक्ष्य का हिस्सा था।

    गौरतलब है कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 की प्रयोज्यता के लिए आवश्यक शर्तें [आरोपी से प्राप्त जानकारी किस हद तक साबित हो सकती है] हैं:

    (1) अभियुक्त से प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप तथ्य की खोज;

    (2) इस तरह के तथ्य की खोज का अभिसाक्ष्य देना ;

    (3) सूचना देने के वक्त आरोपी को पुलिस हिरासत में होना चाहिए और

    (4) तथ्य से स्पष्ट रूप से संबंधित इतनी अधिक जानकारी देना, ताकि बरामद सामग्री साक्ष्य के तौर पर स्वीकार्य है।

    संक्षेप में मामला

    प्राथमिकी के अनुसार, शिकायतकर्ता-अब्दुल राशिद (आरोपी के पिता) ने अपने घर लौटने पर अपने दरवाजे पर लोगों का जमघट देखा और भीड़ ने उन्हें बताया कि नशे की हालत में उनके अपने ही बेटे शमशाद ने शिकायतकर्ता की पत्नी (छोटी) और उसके तीन बच्चों के साथ मारपीट की तथा गर्दन पर एक 'कुल्हाड़ी' से वार किये। प्राथमिकी में यह भी उल्लेख किया गया है कि मोहल्ले के लोगों ने आरोपी शमशाद को हाथ में कुल्हाड़ी लेकर भागते देखा था।

    अदालत के समक्ष, अभियोजन के गवाह (पीडब्ल्यू)1-छोटे और पीडब्ल्यू2-सिराजुद्दीन (ग्रामीणों) ने बयान दिया कि पीड़िता को अक्सर उसके सौतेले बेटे (आरोपी) द्वारा उत्पीड़ित किया जाता था और घटना के दिन, जब वे उसके घर गए थे तो उन्होंने अपनी आंखों से देखा कि आरोपी मृतक व्यक्तियों पर कुल्हाड़ी से वार कर घायल कर रहा था। जब उन्होंने बीच-बचाव करने की कोशिश की, तो वह उन पर भी हमला करने के लिए दौड़ा था। चश्मदीदों ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह जंगल की ओर भाग गया और उसे पकड़ा नहीं जा सका।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने पाया कि पीडब्ल्यू-4 (आरोपी के पिता) की गवाही ने भरोसा जगाया और उनकी गवाही इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण साक्ष्यों में से एक थी। यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-छह के दायरे में आता है।

    हथियार की बरामदगी के संबंध में, कोर्ट ने कहा कि पीडब्ल्यू-9-इशरार और पीडब्ल्यू-10-एसआई श्रीराम ने गवाही दी कि (आरोपी की निशानदेही पर बरामद) खून से सनी कुल्हाड़ी अपराध स्थल से अलग से बरामद की गई थी।

    कोर्ट ने पाया कि आरोपी ने अपने बचाव में कोई स्वीकार्य स्पष्टीकरण नहीं दिया था, इसके बाद इसने टिप्पणी की,

    "इस मामले में हमारे सामने, पीडब्ल्यू-9 और पीडब्ल्यू-10 के साक्ष्य कानून के उपरोक्त प्रावधानों के आलोक में अभियोजन के मामले को और मजबूत करते हैं। हमारे विचार में, इस मामले में अभियोजन पक्ष के नेतृत्व में साक्ष्य, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत न केवल स्वीकार्य और प्रासंगिक है, बल्कि आरोपी के आचरण को लेकर साक्ष्य के समान है, यह भी प्रासंगिक है।"

    इसके साथ ही, कोर्ट ने माना कि अपील में दम नहीं है और खारिज किए जाने योग्य है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी और निचली अदालत के फैसले की पुष्टि कर दी।

    केस टाइटल - शमशाद बनाम उत्तर प्रदेश सरकार [जेल अपील संख्या – 2994/2010]

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 422

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