घरेलू हिंसा अधिनियम | डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही को आपराधिक शिकायत दर्ज करने के बराबर नहीं माना जा सकता: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

5 Sep 2022 7:16 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम (डीवी एक्ट) की धारा 12 के तहत कार्यवाही को आपराधिक शिकायत दर्ज करने या अभियोजन शुरू करने के बराबर नहीं माना जा सकता है, इसलिए पति और उसके रिश्तेदारों आदि से प्रतिक्रिया पाने के बाद एक मजिस्ट्रेट का सम्मन जारी करने के बाद आदेश को रद्द करना या कार्यवाही को समाप्त करना उसके अधिकार क्षेत्र के भीतर है।

    जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा,

    "विद्वान मजिस्ट्रेट अगर पति और उसके रिश्तेदारों के जवाब को देखने के बाद पाता है कि उन्हें अनावश्यक रूप से फंसाया गया है या अंतरिम मौद्रिक अनुदान का कोई मामला नहीं बनता है, आर्थिक मुआवजे के अंतरिम आदेश को रद्द करना उसके अधिकार क्षेत्र के दायरे में होगा।

    चूंकि डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही, कठोर अर्थों में, आपराधिक प्रकृति की नहीं है, इसलिए मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश को बदलने/निरस्त करने पर लगी रोक इन कार्यवाहियों पर लागू नहीं होती है।"

    मामला

    कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें याचिकाकर्ताओं ने घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत अपने खिलाफ दायर आवेदन को चुनौती दी थी। आवेदन न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी (प्रथम अतिरिक्त मुंस‌िफ) कोर्ट, श्रीनगर में लंबित बताया गया है।

    रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चला कि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ विशेष मोबाइल मजिस्ट्रेट (13वें वित्त), श्रीनगर के समक्ष डीवी एक्ट के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसे बाद में प्रतिवादी ने एक बयान देकर वापस ले लिया कि पार्टियों ने कोर्ट के बाहर अपने विवादों को सुलझा लिया है। जिसके बाद उक्त आवेदन को मजिस्ट्रेट ने वापस लिए जाने के रूप में खारिज कर दिया। बाद में प्रतिवादी ने डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत दूसरा आवेदन दायर किया, जिसे याचिकाकर्ताओं ने पीठ के समक्ष रखा।

    याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि डीवी एक्ट के प्रावधानों के तहत कार्रवाई के एक ही कारण के तहत दूसरा आवेदन कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इस प्रकार इसे रद्द किया जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्रतिवादी ने दूसरा आवेदन दाखिल करते समय डीवी एक्ट के प्रावधानों के तहत पहला आवेदन दाखिल करने के तथ्य को छुपाया था।

    याचिका का विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी संख्या एक की ओर से दायर दो याचिकाओं के संबंध में कार्रवाई का कारण अलग है, क्योंकि पहली याचिका घरेलू हिंसा की घटनाओं से संबंधित है जो अप्रैल, 2018 से उस आवेदन को दाखिल करने की तारीख तक यानि 24 अगस्त, 2021 तक की घटनाओं से संबंध‌ित है।

    जबकि आक्षेपित याचिका का विषय प्रतिवादी संख्या एक के खिलाफ याचिकाकर्ताओं द्वारा की गई घरेलू हिंसा की घटनाओं से है, जो 9 अक्टूबर, 2021 से आक्षेपित याचिका दायर करने की तारीख यानि 21.10.2021 तक की गईं थीं।

    इस प्रकार, प्रतिवादी के एडवोकेट के अनुसार यह नहीं कहा जा सकता है कि दोनों याचिकाओं के संबंध में कार्रवाई का कारण एक ही है।

    निष्कर्ष

    जस्टिस धर ने कहा कि जहां तक डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही का संबंध है, इसे आपराधिक शिकायत दर्ज करने या अभियोजन शुरू करने के बराबर नहीं माना जा सकता है और चूंकि डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत कार्यवाही, कठोर अर्थों में, आपराधिक प्रकृति की नहीं है, इसलिए मजिस्ट्रेट द्वारा किसी आदेश को बदलने/निरस्त करने पर रोक इन कार्यवाहियों पर लागू नहीं होती है।

    याचिका को निस्तारित करते हुए पीठ ने दोनों पक्षों के तर्कों के गुण-दोष पर ध्यान दिए बिना, यह माना जाता है कि याचिकाकर्ता डीवी एक्ट की धारा 12 के तहत सभी उपलब्ध दलीलों को उठाते हुए याचिका पर अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं और वे अपने खिलाफ कार्यवाही समाप्त करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन भी दाखिल कर सकते हैं।

    पीठ ने कहा, यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा ऐसा किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट पक्षकारों को सुनने के बाद, कानून के अनुसार उचित आदेश पारित करेंगे।

    केस टाइटल: अल्ताफ अहमद जरगर बनाम एमएस सना और अन्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 128

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