सगाई और शादी के बीच की अवधि के दौरान मंगेतर की सहमति के बिना उसका यौन शोषण करने का कोई अधिकार नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Manisha Khatri

6 Sep 2022 12:00 PM GMT

  • सगाई और शादी के बीच की अवधि के दौरान मंगेतर की सहमति के बिना उसका यौन शोषण करने का कोई अधिकार नहींः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    Punjab & Haryana High court

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि पक्षकारों की सगाई हो गई है और वह एक-दूसरे से मिल रहे हैं, यह तथ्य भावी (होने वाले)दूल्हे को उसकी मंगेतर की सहमति के बिना उसका यौन शोषण करने का कोई अधिकार या स्वतंत्रता नहीं देता है।

    जस्टिस विवेक पुरी की खंडपीठ ने उस व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया,जिसके खिलाफ उसकी मंगेतर ने बलात्कार का केस दर्ज करवाया है। पीठ ने कहा कि, ''याचिकाकर्ता को सगाई और शादी के बीच की अवधि के दौरान अपनी मंगेतर की सहमति के बिना उसका शारीरिक शोषण करने की कोई छूट नहीं मिल सकती है।''

    संक्षेप में मामला

    याचिकाकर्ता (भावी दूल्हे) और उसकी मंगेतर (पीड़िता) का रोका समारोह 30 जनवरी, 2022 को आयोजित किया गया था, और परिवार की सहमति से 6 दिसंबर, 2022 के लिए शादी की तारीख तय की गई थी। 18 जून, 2022 को, पीड़िता को एक होटल के एक कमरे में ले जाया गया, जहां उसकी अनिच्छा के बावजूद, याचिकाकर्ता ने पीड़िता के साथ शारीरिक संबंध बनाए और उसके वीडियो भी बनाएं।

    इसके बाद 17 जुलाई 2022 को याचिकाकर्ता (भावी दूल्हे) की मां ने पीड़िता की बहन की सास को सूचित किया कि याचिकाकर्ता पिछले दो महीनों से घर पर झगड़ा कर रहा है क्योंकि वह पीड़िता से शादी नहीं करना चाहता है।

    याचिकाकर्ता का यह मामला था कि जब उसके परिवार को पता चला कि पीड़िता के अन्य पुरुष मित्रों के साथ प्रेम संबंध हैं, तो उन्होंने 2 जुलाई, 2022 को शादी न करने का फैसला किया था।

    हालांकि, उसकी मंगेतर (पीड़िता) ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत मामला दर्ज कराया और आरोप लगाया कि उसने 18 जून, 2022 को उसके साथ बलात्कार किया।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि सगाई के बाद, याचिकाकर्ता और पीड़िता स्वेच्छा से होटल गए थे और उनके नाम होटल के रिकॉर्ड में गेस्टके रूप में दर्शाए गए हैं।

    आगे यह तर्क दिया गया कि पीड़िता की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए गए थे। इस घटना के बाद भी, व्हाट्सएप संदेशों का आदान-प्रदान किया गया जो यह दर्शाता है कि यह संबंध सहमति से बनाए गए थे। इसलिए, आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई मामला नहीं बनता है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा जिन व्हाट्सएप संदेशों पर भरोसा करने की मांग की गई है, वे घटना के बाद के थे और यह इंगित करने के लिए सामग्री की कमी है कि 18 जून, 2022 (कथित घटना की तारीख) को पीड़ित पक्ष ने ऐसे किसी भी संबंध के लिए सहमति दी थी।

    अदालत ने कहा कि,

    ''हो सकता है कि घटना के बाद व्हाट्सएप चैट का आदान-प्रदान इसलिए किया गया हो क्योंकि उस समय वैवाहिक गठबंधन मौजूद था। हालांकि, यह संदेश यह इंगित नहीं करते हैं कि यह कृत्य याचिकाकर्ता द्वारा पीड़िता की सहमति से किया गया था। किसी भी समय यह पता नहीं चला है कि पीड़िता ने स्वेच्छा से संभोग के लिए सहमति दी थी और यह एक सहमति से संबंध बनाने का मामला है।''

    इस पृष्ठभूमि में, अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि याचिकाकर्ता की मां से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जब शारीरिक संबंध विकसित हुए थे, उस समय भी याचिकाकर्ता की ओर से शादी करने के लिए अनिच्छा जाहिर की गई थी।

    कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि,

    ''यह इंगित करने के लिए सामग्री की कमी है कि याचिकाकर्ता की ओर से शादी करने का का वास्तविक इरादा था और पीड़िता प्रासंगिक समय पर सहमति देने वाला पक्ष थी। मामले की अजीब परिस्थितियों में, यह साबित नहीं हुआ है कि यह संबंध सहमति से बनाए गए थे...पीड़िता का स्पष्ट बयान है कि याचिकाकर्ता ने उसकी अनिच्छा, अस्वीकृति और इनकार के बावजूद उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। पीड़िता की ओर से कृत्य के प्रति निष्क्रिय प्रस्तुतिकरण को, यह मानने के लिए एक परिस्थिति के रूप में नहीं माना जा सकता है कि यह संबंध सहमति से बनाए गए थे।''

    केस टाइटल -सागर कपूर बनाम हरियाणा राज्य,सीआरएम-एम-35393-2022 (ओ एंड एम)

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