जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में दूसरी शादी की जाती है, केवल उसे ही आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध पर सुनवाई करने का अधिकार हैः जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट
Manisha Khatri
7 Sept 2022 2:00 PM IST
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि पहली वैध शादी के निर्वाह के दौरान दूसरी शादी करने /अनुबंध करने के कारण भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत किए गए अपराध के मामले में सिर्फ उसी न्यायालय के पास आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 177 के तहत मामले की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र है,जिस न्यायालय के अधिकार में दूसरी शादी की गई है।
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जिसमें याचिकाकर्ताओं ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रियासी के समक्ष लंबित शिकायत को रद्द करने की प्रार्थना की थी। साथ ही उस आदेश को भी रद्द करने की मांग की गई थी,जिसके आधार पर ट्रायल कोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया था और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रोसेस जारी की थी।
याचिकाकर्ताओं ने शिकायत व प्रोसेस जारी करने को चुनौती देते हुए कहा था कि ट्रायल कोर्ट के पास उस पर विचार करने के लिए अधिकार क्षेत्र का अभाव था क्योंकि सीआरपीसी की धारा 177 स्पष्ट रूप से एक अपराध की सुनवाई करने के लिए न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बारे में बताती है,जिनके अनुसार हर अपराध की सामान्य रूप से जांच व सुनवाई उस न्यायालय द्वारा की जाएगी जिसके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर यह किया गया था।
उपलब्ध रिकॉर्ड पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता / प्रतिवादी नंबर 1 ने खुद को प्रतिवादी नंबर 2 की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी होने का दावा किया है और उसने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ट्रायल कोर्ट के समक्ष भारतीय दंड संहिता की धारा 494,109,114 और 120-बी के तहत शिकायत दर्ज करवाई है। रिकॉर्ड ने यह भी खुलासा किया है कि निचली अदालत के समक्ष शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया था कि शादी की शुरुआत से ही प्रतिवादी नंबर 2/पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसे दहेज लाने के लिए परेशान करना शुरू कर दिया था।
पीठ ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि शिकायत में यह आरोप लगाया गया था कि प्रतिवादी नंबर 2 -निखिल महाजन ने याचिकाकर्ताओं की मिलीभगत से प्रतिवादी नंबर 3- अनन्या वढेरा के साथ मई 2018 के महीने में अपनी पहली शादी के निर्वाह के दौरान ही दूसरी शादी कर ली और इस दूसरी शादी से 04.02.2019 को उनका एक बच्चा/लड़का भी हुआ है।
मामले के विवाद पर फैसला सुनाते हुए पीठ ने कहा कि कोई भी मजिस्ट्रेट संज्ञान ले सकता है कि भले ही उसके पास अधिकार क्षेत्र है या नहीं, लेकिन मुकदमे की सुनवाई अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट द्वारा की जा सकती है।
इस विषय पर कानून बताते हुए बेंच ने त्रिसुन केमिकल इंडस्ट्री बनाम राजेश अग्रवाल,1999(4) के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को भी रिकॉर्ड में रखा, जहां सुप्रीम कोर्ट ने इस पहलू पर विचार-विमर्श करते हुए कहा था कि,
''न्यायिक पहलू तभी प्रासंगिक होता है जब जांच या मुकदमे का सवाल उठता है। इसलिए यह एक गलत सोच है कि मामले की सुनवाई के लिए अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को ही अपराध पर संज्ञान लेने की शक्ति है। यदि वह प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट है तो अपराध पर संज्ञान लेने की उसकी शक्ति क्षेत्रीय प्रतिबंधों से प्रभावित नहीं होती है। संज्ञान लेने के बाद उसे यह तय करना पड़ सकता है कि किस न्यायालय के पास अपराध की जांच या सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र है और यह स्थिति केवल संज्ञान के बाद के चरण के दौरान ही आएगी और उससे पहले नहीं आती है।''
इस मामले पर आगे विस्तार करते हुए न्यायमूर्ति कौल ने एस. करण सिंह सोढ़ी व अन्य बनाम जतेंद्र जीत कौर,2007 के मामले में जम्मू एंड कश्मीर एंड एल हाईकोर्ट द्वारा दिए गए अन्य फैसले पर बहुत भरोसा किया, जिसमें हाईकोर्ट ने इसी तरह की स्थिति से निपटने के दौरान कहा था कि,
''सवाल यह है कि कौन सा विवाह आर.पी.सी की धारा 494 के तहत दंडनीय अपराध है, आर.पी.सी. धारा 494 के संदर्भ में, पहली वैध शादी के निर्वाह के दौरान दूसरी शादी करना/अनुबंध करना अपराध है। जिस न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में, दूसरा विवाह किया जाता है उसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 177 (संक्षेप में ''संहिता'') के संदर्भ में मामले की सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र है। कानून का यह प्रावधान न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के संबंध में सामान्य सिद्धांतों को निर्धारित करता है। प्रत्येक अपराध की सामान्य रूप से जांच व सुनवाई उस न्यायालय द्वारा की जाएगी जिसके अधिकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर यह किया गया था। आर.पी.सी की धारा 494 के तहत दूसरी शादी अपराध है। जैसा कि यहां ऊपर चर्चा की गई है, दूसरी शादी बारामूला में अनुबंधित की गई है, जैसा कि आरोप लगाया गया है। इस प्रकार, बारामूला कोर्ट को शिकायत पर सुनवाई करने का अधिकार है।''
कोर्ट ने माना कि सीजेएम के पास मामले की सुनवाई के लिए अधिकार क्षेत्र का अभाव है और इस तरह शिकायतकर्ता को उसकी शिकायत के निवारण के लिए उपयुक्त फोरम से संपर्क करने की स्वतंत्रता दी गई है।
केस टाइटल- विजय गुप्ता व अन्य बनाम दीक्षा शर्मा व अन्य
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