हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

5 Jun 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (30 मई, 2022 से 3 जून, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    सीपीसी का आदेश XXI नियम 26 | कोर्ट पहले ही दिन निष्पादन पर रोक की अर्जी पर फैसला करने के लिए बाध्य नहीं, डिक्री धारक का जवाब मांगने का हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निष्पादन अदालत को दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI नियम 26 के तहत निष्पादन कार्यवाही पर रोक लगाने की अर्जी पर पहले ही दिन निर्णय लेने का कानून या अन्य प्रकार से कोई जनादेश नहीं है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि निष्पादन कोर्ट अर्जी पर निर्णय लेने से पहले डिक्री धारक को उस पर जवाब दाखिल करने को कहने का हकदार है। कोर्ट ने एक निष्पादन याचिका पर जिला न्यायाधीश (वाणिज्यिक न्यायालय) द्वारा दिनांक 24 मार्च, 2022 को पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए उक्त टिप्पणियां कीं।

    केस का शीर्षक: श्रीमती बबीता शर्मा एवं अन्य बनाम शंकर कोऑपरेटिव शहरी टी/सी सोसायटी

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    एनडीपीएस एक्ट| एफएसएल रिपोर्ट मामले की जड़ तक जाती है, इसके बिना दायर किया गया चालान अधूरा: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 के तहत मामलों में एफएसएल रिपोर्ट मामले की जड़ तक जाती है और इसलिए इसके बिना दायर की गई चार्जशीट को पूर्ण चार्जशीट नहीं माना जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 ए (4) के तहत जांच के लिए अवधि बढ़ाने की मांग करने वाले एक आवेदन को लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट द्वारा समर्थित किया जाना चाहिए, जो जांच की प्रगति को इंगित करता है और आगे 180 दिनों की अवधि से अधिक अभियुक्त की हिरासत की मांग करने के लिए बाध्यकारी कारणों को निर्दिष्ट करता है।

    केस टाइटल: रोहताश @ राजू बनाम हरियाणा राज्य

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    जिन अपराधों में सात साल तक की सजा का प्रावधान हो, उनमें सीआरपीसी की धारा 41A के तहत पुलिस को नोटिस जारी करना अनिवार्य है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस जुवाडी श्रीदेवी ने कहा कि जिन अपराधों में सात साल तक की सजा का प्रावधान हो, उनमें पुलिस को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41-ए के तहत नोटिस जारी करने की आवश्यकता का पालन करना चाहिए, क्योंकि कथित अपराधों के लिए निर्धारित सजा सात साल तक थी। धारा 41ए उन सभी मामलों में पुलिस अधिकारी के समक्ष पेश होने की सूचना है जहां किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की आवश्यकता नहीं है।

    केस टाइटल: ए कालूराम बनाम तेलंगाना राज्य

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    संज्ञान लेना एक न्यायिक कार्य है, आदेश मैकेनिकल या गुप्त तरीके से पारित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने देखा है कि संज्ञान लेना एक न्यायिक कार्य है और न्यायिक आदेश मैकेनिकल या गुप्त तरीके से पारित नहीं किए जा सकते हैं। जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा है कि संज्ञान लेते समय मजिस्ट्रेट को प्रस्तावित आरोपी के बचाव पर विचार करने या जांच के दौरान एकत्र की गई सामग्री के गुणों का मूल्यांकन करने या संज्ञान लेते समय विस्तृत कारण बताते हुए विस्तृत आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि संज्ञान लेने वाला आदेश केवल न्यायिक दिमाग के आवेदन को प्रतिबिंबित करना चाहिए।

    केस टाइटल: संजीत बक्षी बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली एंड अन्य

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    पीड़ित मुआवजे के दावों को 'कानूनी सेवा प्राधिकरण' के माध्यम से प्रशासन को भेजना अनिवार्य नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़ित के लिए लीगल सर्विस अथॉरिटी (एलएसए) के माध्यम से उचित प्राधिकारी को मुआवजे के लिए अपने दावों को भेजना अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एलएसए केवल दावेदारों को प्रशासन को अभ्यावेदन करने के लिए सहायता प्रदान करने के लिए हैं।

    जस्टिस अरिंदम सिन्हा की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "यह नहीं दिखाया जा सकता है कि लीगल सर्विस अथॉरिटी अधिनियम, 1987 पीड़ित मुआवजे के दावेदारों को प्राधिकरण के माध्यम से अपने दावों को प्रशासन को भेजने के लिए अनिवार्य करता है। प्रशासन की मुआवजे पर एक नीति है। प्राधिकरण केवल दावेदारों को प्रशासन को स्थानांतरित करने में सहायता प्रदान करता है।"

    केस टाइटल: सुकुलुदेई सांता बनाम सरकार। ओडिशा और अन्य।

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    [आनुपातिकता का सिद्धांत] संवैधानिक कोर्ट को वादियों के तर्कपूर्ण अपराध के लिए अनुपातहीन रूप से कठोर नहीं होना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक न्यायालयों को वादियों के तर्कपूर्ण अपराध के लिए अनुपातहीन रूप से कठोर नहीं होना चाहिए। जस्टिस कृष्णा एस.दीक्षित और जस्टिस पी.कृष्णा भट की खंडपीठ ने धवड़ में बैठे एकल न्यायाधीश की पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली डॉ यासीन खान और अन्य द्वारा दायर अपील को स्वीकार कर लिया, जिसने 25 अक्टूबर, 2021 को कर्नाटक निजी चिकित्सा प्रतिष्ठान अधिनियम, 2007 की धारा 5 के आधार पर दिशा-निर्देश की मांग करने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था।

    केस टाइटल: डॉ यासीन खान बनाम कर्नाटक राज्य एंड अन्य

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    तकनीकी आधार पर आईटीएटी द्वारा मूल्यांकन आदेशों को रद्द करने से आपराधिक शिकायत का स्वत: निराकरण नहीं होगा: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब तकनीकी आधार पर आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा एक निर्धारण आदेश को रद्द कर दिया जाता है, तो उसे आयकर अधिनियम के तहत संबंधित अदालत के समक्ष आपराधिक मुकदमा चलाने से बचने का आधार नहीं बनाया जा सकता है।

    जस्टिस जी चंद्रशेखरन, सिने अभिनेता एसजे सूर्या द्वारा उनके खिलाफ अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (ईओआई) चेन्नई, अलीकुलम रोड के समक्ष मुकदमा रद्द करने के लिए दायर एक याचिका पर इस आधार पर विचार कर रहे थे कि आयकर अपीलीय प्राधिकरण ने उनके खिलाफ मूल्यांकन आदेश को रद्द कर दिया था।

    केस टाइटल: एसजे सूर्या बनाम आयकर उपायुक्त

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    धारा 482 सीआरपीसी के तहत दूसरी निरस्तीकरण याचिका सुनवाई योग्य, लेकिन केवल असाधारण मामलों में, जहां परिस्थितियां बदली हों: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत एक दूसरी याचिका सुनवाई योग्य होगी, लेकिन केवल असाधारण मामलों में जहां बदली हुई परिस्थितियां हैं।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच की पीठ ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दूसरी याचिका की स्थिरता के संबंध में कानून के प्रतिपादन में कोई हिचक नहीं हो सकती है, लेकिन केवल असाधारण मामलों में जहां बदली हुई परिस्थितियां हैं।"

    केस टाइटल: श्रीकांतैया बनाम एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा राज्य और अन्य।

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    यदि पति मृत्यु के दिन विवादित भूमि का मालिक नहीं था, तो उसकी विधवा स्वाभाविक उत्तराधिकार के माध्यम से संपत्ति के उत्तराधिकार का दावा नहीं कर सकती : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्वाभाविक उत्तराधिकार के आधार पर विवादित संपत्ति पर अधिकार का दावा करने वाली विधवा द्वारा दायर एक अपील पर विचार करते हुए कहा कि अपीलकर्ता का पति अपनी मृत्यु की तिथि पर विवादित भूमि का मालिक नहीं था, इसलिए, संपत्ति के उत्तराधिकार का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है। यह माना गया है कि स्वर्गीय श्री बलदेव सिंह अपनी मृत्यु के दिन विवादित भूमि के स्वामी नहीं थे। अतः सम्पत्ति के उत्तराधिकार का प्रश्न ही नहीं उठता।

    केस शीर्षक: जसवंत कौर बनाम लखविंदर सिंह एवं अन्य

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    आपराधिक मुकदमा एकतरफा आगे नहीं बढ़ सकता, धारा 299 सीआरपीसी को छोड़कर अभियुक्त की अनुपस्थिति में साक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी की अनुपस्थिति में आपराधिक मुकदमा तब तक नहीं चलाया जा सकता जब तक कि वैध कारणों से उसे व्यक्तिगत पेशी से छूट नहीं दी जाती। यदि गवाह के साक्ष्य में आपत्तिजनक साक्ष्य दिखाई देते हैं तो धारा 313 आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत किसी आरोपी की परीक्षा का प्रावधान नहीं किया जा सकता है। जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार की सिंगल जज बेंच ने कहा, "स्पीडी ट्रायल का अर्थ यह नहीं है कि आपराधिक मुकदमे में चरणों को लांघ जाया जाए।"

    केस टाइटल: जीएच अब्दुल कादरी बनाम मोहम्मद इकबाल

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    'दोहरी डिग्री' धारी उम्मीदवारों की पब्लिक ऑफिस में नियुक्ति को मनमाने ढंग से खारिज नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति के लिए प्रयासरत उम्मीदवार की उम्मीदवारी को केवल 'दोहरी डिग्री' के आधार पर ‌सिरे से और मनमाने ढंग से खारिज नहीं किया जा सकता है। एक ऐसे उम्मीदवार को राहत प्रदान करते हुए, जिसका आवेदन ऐसे कारण से खारिज कर दिया गया था, जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की सिंगल जज बेंच ने कहा,"इस मामले में कोर्ट की राय है कि नियुक्ति के मामलों में, नियुक्ति समिति द्वारा प्रदान किए गए नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए। मौजूदा मामले में ओपीएससी ने दोहरी ड‌िग्री धारी उम्मीदवारों के लिए कोई निर्देश प्रदान नहीं किया है। स्थिति को एक विशिष्ट मामले के रूप में माना जा सकता है, लेकिन याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को सिरे से खारिज करना मनमाना है।"

    केस टाइटल: भुबन मोहन बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।

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    ऐसा कोई पक्का नियम नहीं है कि एक तदर्थ कर्मचारी को कभी भी दूसरा तदर्थ कर्मचारी प्रतिस्थापित नहीं कर सकता है: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि ऐसा कोई पक्‍का नियम नहीं है कि एक तदर्थ/अस्थायी कर्मचारी को कभी भी दूसरे तदर्थ कर्मचारी से नहीं बदला जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि एक तदर्थ कर्मचारी का अपने पद पर कोई निहित अधिकार नहीं है और अक्षम पाए जाने पर उसे किसी भी अन्य तदर्थ कर्मचारी द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है। ऐसा कहने में कोर्ट स्पष्ट रूप से मनीष गुप्ता और अन्य बनाम अध्यक्ष, जनभागीदारी समिति और अन्य में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित आदेश से भिन्न था।

    केस टाइटल: सिबा प्रसन्ना पथी बनाम उड़ीसा राज्य और अन्य।

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    आपराधिक मामले के लंबित रहने के दौरान पासपोर्ट जारी करने पर सख्ती तब लागू न हो जब आरोपी भारत लौटना चाहता है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि एक आपराधिक मामला जो प्राथमिकी के चरण में है, पासपोर्ट जारी करने पर सख्ती लागू नहीं होगा। हालांकि, ऐसे मामलों में जहां अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है, पासपोर्ट जारी करने के लिए संबंधित अदालत की अनुमति लेनी होगी।

    जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने आगे कहा कि ऐसी सख्ती तभी लागू होती है जब संबंधित व्यक्ति भारत छोड़ना चाहता है, न कि जब व्यक्ति भारत वापस आना चाहता है। वर्तमान मामले में, मलेशिया में व्यवसाय करने वाले याचिकाकर्ता का पासपोर्ट खो गया और उसने मलेशिया में स्थानीय पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद उन्होंने अपना पासपोर्ट फिर से जारी करने के लिए मलेशिया में भारतीय दूतावास से संपर्क किया। हालांकि, भारतीय दूतावास ने आपराधिक मामलों में याचिकाकर्ता की संलिप्तता का हवाला देते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया।

    केस टाइटल: शेख अब्दुल्ला बनाम भारत संघ एंड अन्य

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    अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य है, भले ही आरोपी देश से बाहर हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने मंगलवार को अभिनेता विजय बाबू (Vijay Babu) को बलात्कार मामले में अंतरिम अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य है, भले ही आरोपी देश से बाहर हो।

    जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस ने स्पष्ट किया कि यह अवलोकन केवल गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान करने पर विचार करने के लिए किया गया है। कोर्ट ने कहा, "मेरा विचार है कि वर्तमान मामले में केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता देश से बाहर है, यह कोर्ट अग्रिम जमानत के उसके आवेदन पर विचार करने के उसके अधिकार से वंचित नहीं कर सकता है। हालांकि, मैं स्पष्ट करता हूं कि उपरोक्त टिप्पणियां केवल गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान करने पर विचार करने के लिए की गई हैं।"

    केस टाइटल: विजय बाबू बनाम केरल राज्य एंड अन्य।

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    जब तक कंपनी को आरोपी नहीं बनाया जाता है तब तक पदाधिकारी को आपराधिक कार्यवाही में उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता: जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब तक कंपनी को आरोपी नहीं बनाया जाता तब तक कंपनी के किसी पदाधिकारी पर प्रतिवर्ती दायित्व नहीं जोड़ा जा सकता है।

    जस्टिस संजय धर ने कहा, "याचिकाकर्ताओं की प्रत्येक कार्रवाई कंपनी के पदाधिकारी के रूप में उनकी क्षमता के दायरे में थी और उन्होंने जो कुछ भी किया, वही कंपनी की ओर से किया गया था। यहां तक कि प्रतिवादी/शिकायतकर्ता से कंपनी के खाते में पैसा प्राप्त हुआ था। इस प्रकार, कंपनी को आरोपी बनाए बिना, याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती थी। इसलिए, विद्वान मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्रक्रिया जारी करने में गलती की है।"

    केस टाइटल: संदीप सिंह और अन्य बनाम निसार अहमद दारी

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    राज्य सूचना एवं प्रसारण विभाग में सहायक निदेशक सूचना (पत्रकारिता) क्लास II के पद पर नियुक्ति के लिए सरकारी संगठन से पत्रकारिता का अनुभव प्राप्त करना अनिवार्य नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सहायक सूचना निदेशक (पत्रकारिता) क्लास II भर्ती नियम, 2015 कहीं भी यह निर्धारित नहीं करता है कि सहायक निदेशक सूचना (पत्रकारिता) क्लास II के पद पर नियुक्ति के लिए पत्रकारिता का अनुभव आवश्यक रूप से किसी सरकारी संगठन से होना चाहिए।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव ने कहा, "भर्ती नियम कहीं भी यह निर्धारित नहीं करता है कि यह केवल एक सरकारी या स्थानीय निकाय या एक सरकारी अंडरटेंकिग बोर्ड या निगम या एक कंपनी में होना चाहिए। यह नियम के प्रतिबंधात्मक पठन के बराबर होगा और इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादी नंबर 3 के पास अपेक्षित अनुभव नहीं है।"

    केस टाइटल: दर्शन बिपिनभाई त्रिवेदी बनाम गुजरात राज्य

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    खेल संहिता का पालन नहीं करने वाले राष्ट्रीय खेल संघों को कोई छूट नहीं दी जानी चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यह जरूरी है कि सभी सरकारी मामलों में निष्पक्षता और वैधता दिखे। कोर्ट ने उक्त टिप्‍पणी के साथ निर्देश दिया है कि भारत सरकार की राष्ट्रीय खेल संहिता 2011 का अनुपालन नहीं कर रहे राष्ट्रीय खेल संघों (एनएसएफ) को कोई और छूट न दी जाए या न ही कोई उदारता दिखाई जाए। जस्टिस नजमी वजीरी और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ ने कहा कि किसी भी एनएसएफ या खेल इकाई को अन्यायपूर्ण लाभ प्राप्त करते हुए नहीं दिखना चाहिए।

    केस टाइटलः राहुल मेहरा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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    सड़क का रखरखाव नागरिकों के मौलिक अधिकार से जुड़ा, धन की कमी का हवाला देते हुए राज्य जिम्मेदारी से बच नहीं सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य के लिए सड़कों को मेंटेन करने के कर्तव्य से बचने के लिए धन की कमी वैध आधार नहीं हो सकती है, क्योंकि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों से संबंधित है। कार्यवाहक चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस सचिन दत्ता की खंडपीठ सड़कों के निर्माण के लिए जन कल्याण विकास समिति द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इससे पहले, हाईकोर्ट ने संगठन की एक रिट याचिका को संबंधित अधिकारियों को शिकायत के रूप में विचार करने के निर्देश के साथ निपटाया था।

    केस टाइटल: जन कल्याण विकास समिति बनाम जीएनसीटीडी

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    मध्यस्थता अधिनियम, 1940 के तहत निष्पादन कार्यवाही में धारा 47 सीपीसी के तहत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि मध्यस्थता अधिनियम, 1940 की धारा 17 के तहत निष्पादन कार्यवाही में सीपीसी की धारा 47 के तहत एक आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।

    जस्टिस पीयूष अग्रवाल की पीठ ने माना कि एक मध्यस्थता अवॉर्ड सीपीसी की धारा 2 (2) के तहत परिभाषित डिक्री नहीं है और इसलिए, सीपीसी की धारा 47 के तहत आपत्ति, जिसे केवल डिक्री के निष्पादन में दायर किया जा सकता है (जैसा कि धारा 2(2) सीपीसी में परिभाषित किया गया है), अवॉर्ड के निष्पादन की मांग वाली कार्यवाही में सुनवाई योग्य नहीं है।

    केस टाइटल: भारत पंप्स एंड कंप्रेशर्स बनाम चोपड़ा फैब्रिकेटर्स,(Civil Revision No. 53 of 2022)

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    अवमानना का आरोप लगाने वाली पार्टी अदालत को न्यायिक आदेश की व्याख्या उस तरीके से अलग तरीके से करने के लिए नहीं कह सकती, जैसे वह समझती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि अवमानना का आरोप लगाते हुए न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाला पक्ष, न्यायालय को अवमानना के क्षेत्राधिकार में, न्यायिक आदेश की व्याख्या करने के तरीके से अलग तरीके से व्याख्या करने के लिए नहीं कह सकता है और केवल वे निर्देश जो स्वयं स्पष्ट हैं, उल्लंघन या अवज्ञा का निर्धारण करने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    जस्टिस ज्योति सिंह एक ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले में पारित न्यायिक आदेशों की अवमानना का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर विचार कर रही थीं, जिससे प्रतिवादियों को घोर, जानबूझकर और आदेशों की निरंतर अवमानना का दोषी ठहराने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल: जीवा वैदिक विज्ञान और संस्कृति संस्थान और अन्य बनाम पुनीत छतवाल और अन्य।

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    धारा 321 सीआरपीसी | लोक अभियोजक को यह दिखाना होगा कि अभियोजन वापस लेने से जनहित कैसे पूरा होगा: सिक्किम हाईकोर्ट

    सिक्किम हाईकोर्ट ने हाल ही में यह माना है कि लोक अभियोजक, जो दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 321 के तहत अभियोजन वापस लेने का प्रयास करता है, उसको यह दिखाना होगा कि अभियोजन वापस लेने से कैसे जनहित की सेवा की जाएगी। ऐसे आवेदनों की अनुमति देते समय न्यायालय को सतर्क रहना चाहिए, यदि यह केवल न्याय के उचित प्रशासन को प्रभावित करने के लिए है और इसमें कोई जनहित शामिल नहीं है। निचली अदालत के आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए जस्टिस मीनाक्षी मदन राय की एकल पीठ ने कहा,

    केस टाइटल: चंद्र सिंह राय और अन्य सिक्किम राज्य

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    सर्च इंजन/ऐप स्टोर पर प्रतिस्पर्धी के ट्रेडमार्क का इस्तेमाल करके किसी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए की-वर्ड का इस्तेमाल ट्रेडमार्क के मालिक के अधिकारों का उल्लंघन है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि प्रतिस्पर्धी के ट्रेडमार्क का उपयोग करके किसी व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए की-वर्ड का इस्तेमाल ट्रेडमार्क के मालिक के अधिकारों का उल्लंघन होगा। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने देखा कि ऐप स्टोर सर्च पर की-वर्ड के रूप में इस्तेमाल किए जाने के विपरीत सर्च इंजन पर एक की-वर्ड के रूप में ट्रेडमार्क के उपयोग में कोई अंतर नहीं होगा।

    केस टाइटल: हेड डिजिटल वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम टिक्टोक स्किल गेम्स प्राइवेट लिमिटेड

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    घरेलू हिंसा अधिनियम और धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरणपोषण का दावा करने का अधिकार परस्पर अनन्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि डीवी एक्ट, 2005 और धारा 125, सीआरपीसी के तहत भरण-पोषण के दावे का अधिकार परस्पर अनन्य नहीं है। जस्टिस आशा मेनन ने माना कि पीड़ित धारा 125, सीआरपीसी की तहत स्थायी भरण पोषण की मांग करते हुए मजिस्ट्रेट के समक्ष अंतरिम भरण पोषण की मांग कर सकता है।

    केस टाइटल: जगमोहन कश्यप बनाम दिल्ली सरकार और अन्‍य

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    सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर एक संवैधानिक जनादेश लेकिन नियुक्ति का पूर्ण अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में कहा कि सार्वजनिक रोजगार के मामलों में समान अवसर दिए जाने चाहिए। जब भी भर्ती के संबंध में कोई निर्णय लिया जाता है, तो सक्षम अधिकारी सभी उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान करके भर्ती नियमों का पालन करने के लिए बाध्य होते हैं। हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि पूर्ण अधिकार के मामले में कभी भी नियुक्तियों का दावा नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: थानासेल्वी मैरी बनाम अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक TANGEDCO

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    पक्षकार को उन दस्तावेजों को दर्ज करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते, जिन पर वह सीपीसी में उल्लेखित कुछ विशिष्ट घटनाओं के अलावा भरोसा नहीं करता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी अदालत पक्षकार को उन दस्तावेजों को दर्ज करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, जिस पर पक्षकार ने सिविल प्रक्रिया संहिता में शामिल कुछ विशिष्ट घटनाओं के संबंध में भरोसा करने के संबंध में नहीं चुना है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि किसी भी मुकदमेबाजी में दस्तावेजों को लाने का विकल्प उस पक्षकार का एकमात्र विशेषाधिकार है, जो दस्तावेजों को दायर करता है। अदालत सिविल सूट में अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा 8 जुलाई, 2021 और 6 मई, 2022 को पारित आदेश को दी गई चुनौती पर सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटल: कृष्ण काककर बनाम किरण चंदर

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