सीपीसी का आदेश XXI नियम 26 | कोर्ट पहले ही दिन निष्पादन पर रोक की अर्जी पर फैसला करने के लिए बाध्य नहीं, डिक्री धारक का जवाब मांगने का हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

4 Jun 2022 6:19 AM GMT

  • सीपीसी का आदेश XXI नियम 26 | कोर्ट पहले ही दिन निष्पादन पर रोक की अर्जी पर फैसला करने के लिए बाध्य नहीं, डिक्री धारक का जवाब मांगने का हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि निष्पादन अदालत को दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश XXI नियम 26 के तहत निष्पादन कार्यवाही पर रोक लगाने की अर्जी पर पहले ही दिन निर्णय लेने का कानून या अन्य प्रकार से कोई जनादेश नहीं है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि निष्पादन कोर्ट अर्जी पर निर्णय लेने से पहले डिक्री धारक को उस पर जवाब दाखिल करने को कहने का हकदार है।

    कोर्ट ने एक निष्पादन याचिका पर जिला न्यायाधीश (वाणिज्यिक न्यायालय) द्वारा दिनांक 24 मार्च, 2022 को पारित आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए उक्त टिप्पणियां कीं।

    उक्त मामले में, याचिकाकर्ता जजमेंट डेटर्स 1 और 3 थे, जिनके खिलाफ आर्बिट्रेशन मामले में मध्यस्थ द्वारा 31 जुलाई, 2020 को फैसला सुनाया गया था और उन्हें 18 जुलाई, 2020 से मूल राशि की वसूली तक प्रतिवादी को 15,24,168 रुपये और प्रतिवर्ष 18.6 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    मध्यस्थ कार्यवाही में सफल दावेदार के तौर पर प्रतिवादी ने उक्त अवार्ड के निष्पादन की मांग किया था। याचिकाकर्ताओं ने उक्त निष्पादन कार्यवाही में सीपीसी की धारा 151 के साथ पठित आदेश XXI नियम 26 तथा के तहत एक अर्जी दाखिल की और निष्पादन कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की।

    हाईकोर्ट ने पाया कि कमर्शियल कोर्ट ने प्रतिवादी को तीन सप्ताह के भीतर आवेदन का जवाब दाखिल करने के लिए कहा था और इस अवधि के दौरान याचिकाकर्ताओं को अपनी संपत्ति का विवरण दाखिल करने की आवश्यकता थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "मैं, वाकई, पूरी तरह से भ्रमित हूं कि याचिकाकर्ताओं ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत इस आदेश को चुनौती देने का निर्णय कैसे लिया।"

    इसने कहा कि आदेश, पूर्व-दृष्टया, हानिरहित था और इसका परिणाम याचिकाकर्ताओं के लिए किसी भी तरह का पूर्वाग्रह नहीं था।

    कोर्ट ने कहा कि यह याचिकाकर्ताओं की दलील नहीं थी कि कमर्शियल कोर्ट के पास उन्हें संपत्ति का विवरण दाखिल करने के लिए उन्हें कहने का अधिकार या क्षेत्राधिकार नहीं था।

    इसने शुरू में ही कहा,

    "वास्तव में, सीपीसी का आदेश XXI नियम 26 विशेष रूप से कोर्ट को इस तरह का निर्देश जारी करने का अधिकार देता है। इस स्थिति को 'राहुल एस शाह बनाम जिनेंद्र कुमार गांधी' मामले में अपने फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "कानून में, या इससे तरह, कोई जनादेश नहीं है कि निष्पादन कोर्ट को पहले ही दिन आदेश XXI नियम 26 के तहत आवेदन का फैसला करने की आवश्यकता है। इसे कोई भी फैसला लेने से पहले डिक्री धारक को अर्जी पर जवाब दाखिल करने के लिए बुलाने का हक है।"

    इस प्रकार कोर्ट ने पाया कि कमर्शियल कोर्ट ने क्षेत्राधिकार का कोई दुरुपयोग नहीं किया है, जिसके लिए हाईकोर्ट को भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पर्यवेक्षी सुधार के लिए कहा जाए।

    कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए निष्कर्ष निकाला,

    "यह याचिका तदनुसार पूरी तरह से गलत है और जुर्माना आदेश के बिना, खारिज की जाती है।"

    केस का शीर्षक: श्रीमती बबीता शर्मा एवं अन्य बनाम शंकर कोऑपरेटिव शहरी टी/सी सोसायटी

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