हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

15 Jan 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (09 जनवरी, 2023 से 13 जनवरी, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    केरल सेवा नियम | कर्मचारी को सीमित अवधि के लिए नियुक्त किए जाने पर पेंशन का कोई दावा नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब एक कर्मचारी को सीमित अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है तब केरल सेवा नियमों के नियम 4 और नियम 14ई (ए) के अनुसार पेंशन के लिए कोई दावा स्वीकार्य नहीं ‌होगा। कोर्ट ने कहा कि एक सहायता प्राप्त विद्यालय में नियमित पूर्णकालिक सेवा की अवधि ही पेंशन के लिए अर्हकारी सेवा मानी जाएगा।

    जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि, "अवकाश रिक्तियों में याचिकाकर्ता की नियुक्तियों को केवल सीमित समय के लिए नियुक्तियों के रूप में माना जा सकता है और नियम 4, भाग तीन केएसआर के आलोक में, याचिकाकर्ता द्वारा उक्त रिक्तियों में प्रदान की गई सेवाओं के लिए पेंशन का कोई दावा स्वीकार्य नहीं है, विशेष रूप से नियम 14ई(ए) में किए गए स्पष्टीकरण के आलोक में कि पेंशन के लिए केवल नियमित पूर्णकालिक सहायता प्राप्त स्कूल सेवा की गणना की जाएगी।"

    केस टाइटल: केरल राज्य और अन्य बनाम रवींद्रन पिल्लई एस और अन्य।

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    अनंतिम मूल्यांकन को चुनौती देने के लिए जम्मू-कश्मीर विद्युत अधिनियम के तहत उपलब्ध पर्याप्त उपचार, याचिका सुनवाई योग्य नहीं: हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जम्मू और कश्मीर विद्युत अधिनियम 2010 अनंतिम बिजली मूल्यांकन से पीड़ित किसी भी व्यक्ति के लिए पर्याप्त अंतर्निहित अपीलीय उपचार प्रदान करता है। इसलिए, रिट क्षेत्राधिकार को लागू करना इसे चुनौती देने के लिए उपयुक्त मैकेनिज्म नहीं होगा। जस्टिस वसीम सादिक नर्गल ने एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके अनुसार प्रतिवादी जम्मू-कश्मीर बिजली विकास विभाग ने अतिरिक्त जुर्माना लगाया था और याचिकाकर्ता-स्कूल को बिजली की आपूर्ति काट दी थी।

    केस टाइटल: जेके मोंटेसरी स्कूल बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य और अन्य।

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    बिना अधिकार क्षेत्र के गारंटर के खिलाफ अवार्ड पारित नहीं किया जा सकता, जो मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी का सदस्य नहीं है, : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट, 2002 (MSCS एक्ट) की धारा 84(1) के तहत किए गए आर्बिट्रेटर संदर्भ के अनुसार दिया गया फैसला रद्द कर दिया, क्योंकि अवार्ड देनदार सहकारी समिति का सदस्य नहीं था। जस्टिस मनीष पिटाले की पीठ ने फैसला सुनाया कि जो विवाद MSCS एक्ट की धारा 84 (1) के तहत नहीं आता है, उसको आर्बिट्रेशन के लिए संदर्भित करने में सक्षम नहीं होगा। इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि आर्बिट्रेटर निर्णय याचिकाकर्ता/निर्णय देनदार के खिलाफ अधिकार क्षेत्र के बिना प्रदान किया गया।

    केस टाइटल: दीप्ति प्रकाश घाटे बनाम एनकेजीएसबी कंपनी ऑप. बैंक लिमिटेड

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    धारा 37 एनडीपीएस एक्ट की कठोरता को शाश्वत रूप से लागू कर शीघ्र सुनवाई के अधिकार को कमजोर नहीं किया जा सकताः हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट, 1985 की धारा 37 के तहत जमानत से संबंधित कड़े प्रावधानों को अभियुक्तों के शीघ्र परीक्षण के अधिकार को कमजोर करने के लिए सदा के लिए लागू नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सत्येन वैद्य ने एक मामले में जमानत की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह घोषणा की, जहां याचिकाकर्ता-आरोपी 30 मार्च, 2021 से एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20 और 29 के तहत अपराधों के लिए हिरासत में थे।

    केस टाइटल: दीप राज @नीतू बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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    मृत पिता का ऋण बेटे पर 'कानूनी रूप से लागू' होगा, बेटे के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत सुनवाई योग्य: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि कानूनी प्रतिनिधि होने के नाते बेटा निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत मृतक पिता के दायित्व का निर्वहन करने के लिए उत्तरदायी है। जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज पीठ ने प्रतिवादी/आरोपी बीटी दिनेश के तर्क को खारिज कर दिया कि उसके खिलाफ कोई कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण नहीं है, क्योंकि ऋण उसके पिता ने लिया था, जो एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने से पहले मर गए थे।

    केस टाइटल: प्रसाद रायकर और बीटी दिनेश

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    अगर जुवेनाइल स्वेच्छा से काम करता है वहां जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 75 और 79 लागू नहीं होती: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट (Telangana High Court) के जस्टिस के. सुरेंदर ने कहा कि जहां जुवेनाइल स्वेच्छा से काम करता है, वहां किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 75 और 79 लागू नहीं होती हैं।

    दोनों धाराएं क्या कहती हैं?

    धारा 75 में सजा का प्रावधान है, अगर कोई व्यक्ति बच्चे को अपने नियंत्रण में रखता है, हमला करता है, दुर्व्यवहार करता है या जानबूझकर बच्चे की उपेक्षा करता है। धारा 79 बाल कर्मचारी के शोषण के लिए सजा से संबंधित है। यह किसी बच्चे को प्रत्यक्ष रूप से काम पर लगाने और उसे रोजगार के उद्देश्य से बंधन में रखने या उसकी कमाई को रोकने या ऐसी कमाई को अपने स्वयं के उद्देश्यों के लिए उपयोग करने के कृत्यों के लिए सजा निर्धारित करता है।

    केस टाइटल: कोथाकोंडा ऐश्वर्या बनाम तेलंगाना राज्य

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    अर्धसैनिक बल केंद्र के सशस्त्र बल हैं, सभी सीएपीएफ पर पुरानी पेंशन योजना लागू होगी : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के अनुसार पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) का लाभ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के सभी कर्मियों के लिए लागू होगा और केंद्र को आठ सप्ताह के भीतर आवश्यक आदेश जारी करने का निर्देश दिया है।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्ण की पीठ ने सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ और आईटीबीपी के कर्मियों को ओपीएस का लाभ देने से इनकार करने वाले आदेशों को रद्द करने की मांग वाली 82 याचिकाओं के एक बैच पर अपने फैसले में कहा, अधिसूचना दिनांक 22.12.2003 साथ ही पुरानी पेंशन योजना का लाभ प्रदान करने वाले दिनांक 17.02.2020 के कार्यालय ज्ञापन " सही में लागू होगा।"

    केस: पवन कुमार और अन्य

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    मुस्लिम लॉ-पत्नी को दिए अपने उपहार को मान्य करने के लिए पति के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह उपहार में दी गई संपत्ति से फिजिकल रूप से अलग हो : जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि जहां एक पति अपनी पत्नी को उपहार देता है (दोनों के कब्जे वाले वैवाहिक घर या उससे संबंधित कोई अन्य संपत्ति) तो उपहार को निष्पादित करने के लिए दाता या उपहार देने वाले द्वारा फिजिकल रूप से अलग होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें अपीलकर्ता ने मृतक मोहम्मद अशरफ डार द्वारा अपनी पत्नी (प्रतिवादी नंबर 1) को दिए गए मौखिक उपहार को इस आधार पर चुनौती दी थी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अनिवार्य रूप से उपहार में दी गई संपत्ति को उसके एकमात्र अधिकार में नहीं रखा गया था।

    केस टाइटल- सुश्री हलीमा व अन्य बनाम सुश्री दिलशादा व अन्य

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    कोर्ट को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर रहने वाले व्यक्ति के खिलाफ भरण-पोषण के आदेश को निष्पादित करने की शक्ति प्राप्त है : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि भरण-पोषण का आदेश उस स्थान पर रहने वाले व्यक्ति पर लागू किया जा सकता है, जहां इस व्यक्ति के खिलाफ यह आदेश दिया गया है, भले ही वह व्यक्ति का निवास आदेश पारित करने वाली अदालत के अधिकार क्षेत्र के बाहर हो, ऐसी अदालत को इस आदेश को निष्पादित करने की शक्ति प्राप्त है।

    जस्टिस ए. बदरुद्दीन की एकल न्यायाधीश पीठ ने कानूनी प्रश्न पर विचार किया कि क्या वह अदालत, जिसने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 और 127 के तहत भरण-पोषण का आदेश पारित किया, उस व्यक्ति के खिलाफ आदेश को निष्पादित करने के लिए सक्षम है, जो उस अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर किसी स्थान पर रह रहा हो।

    केस टाइटल: अस्वती और अन्य बनाम राजेश रमन और अन्य और बेट्टी फिलिप बनाम विलियम चाको

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    धारा 14 (1) आईबीसी में निहित मोहलत प्रावधान केवल कॉरपोरेट देनदारों पर लागू होगा, गैर-कॉरपोरेट देनदारों पर धारा 141 एनआई एक्ट के तहत वैधानिक दायित्व जारी रहेगा : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि दिवाला और दिवालियापन संहिता की धारा 14 (1) में निहित मोहलत प्रावधान केवल कॉरपोरेट देनदारों पर लागू होगा, और गैर-कॉरपोरेट देनदारों पर निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 141 के तहत वैधानिक दायित्व अधिनियम के अध्याय XVII के तहत जारी रहेगा। जैसा कि एनआई अधिनियम की धारा 141 के तहत प्रदान किए गए आपराधिक कानून के तहत प्रतिनियुक्त दायित्व के सिद्धांतों के आवेदन का संबंध है, जस्टिस ए बदरुद्दीन की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि सिविल दायित्व के कारण इसे ठीक नहीं किया जा सकता है।

    केस : एम/एस पीवीएस मेमोरियल हॉस्पिटल व बनाम डॉ सतीश इयपे और अन्य

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    विदेशी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता का उसकी ओर से आह्वान नहीं किया जा सकता, जब व्यक्ति स्वयं भारत में नहीं है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि व्यक्ति (विदेशी नागरिक) भारतीय संविधान के तहत जीवन और स्वतंत्रता का आह्वान नहीं कर सकता, यदि वह स्वयं भारत में मौजूद नहीं है। इसमें कहा गया कि अगर कोई अमेरिकी नागरिक भारत में नहीं है तो वह संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 के तहत रियायत की मांग नहीं कर सकता।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव ने भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह अवलोकन किया, जिसे सजायाफ्ता यौन अपराधी के दोषी होने के कारण भारत में प्रवेश से वंचित कर दिया गया और दुबई भेज दिया गया। याचिकाकर्ता ने अपनी शादी का जश्न मनाने के लिए भारत लौटने की मांग की।

    केस टाइटल: धनराज राजेंद्र पटेल बनाम भारत संघ

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    सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत याचिका को शिकायत में बदलना एक अंतर्वर्ती आदेश नहीं है; इसके खिलाफ संशोधन सुनवाई योग्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट हाल ही में कहा कि एक मजिस्ट्रेट का धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत एक आवेदन को खारिज करने का आदेश या इसे एक शिकायत में परिवर्तित करना, एक अंतर्वर्ती आदेश है और पीड़ित पक्ष धारा 397 सीआरपीसी के तहत इसके खिलाफ पुनरीक्षण दायर कर सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि मजिस्ट्रेट के इस तरह के आदेश को धारा 482 सीआरपीसी के तहत दी गई याचिका में चुनौती नहीं दी जा सकती है क्योंकि धारा 397 सीआरपीसी के तहत संशोधन दाखिल करने का वैकल्पिक उपाय पीड़ित पक्ष के लिए उपलब्ध है।

    केस टाइटलः रुचि मित्तल @ श्रीमती रूचि गर्ग बनाम यूपी राज्य और अन्य[आवेदन U/S 482 No. - 26037 of 2022]

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    मिसाल को संदर्भ में लागू किया जाना चाहिए, न कि उसे यूक्लिड के प्रमेय के रूप में पढ़ा जाना चा‌‌हिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि मामलों के निर्णयादेशों में पुराने निर्णयों का यांत्रिक रूप से शब्दानुवाद नहीं किया जा सकता है। उन्हें मामले के दिए गए तथ्यों के संबंध में लागू किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने जिस प्रकार निर्णयों पर भरोसा करने की मांग की थी, उसे अस्वीकार करते हुए जस्टिस वी नरसिंह की सिंगल जज बेंच ने कहा, "उन तथ्यों की अनदेखी कर जिनमें निर्णय लिया गया था, उन निर्णयों पर भरोसा कर याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने निर्णय की व्याख्या के मौलिक सिद्धांत की दृष्टि खो दी है। चूंकि यह सामान्य नियम है कि निर्णयों में टिप्पणियों को "यूक्लिड के प्रमेय" के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है। इसे किसी विशेष मामले के दिए गए तथ्यों में लागू किया जाना है।"

    केस टाइटल: एसके जुम्मन @ बदरुद्दीन बनाम ओडिशा राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 102(3) के तहत पुलिस अधिकारी को संपत्ति की जब्ती रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपना प्रकृति में केवल निर्देशिका की तरह: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि चूंकि सीआरपीसी में धारा 102 (3) के पालन न करने के परिणामों के बारे में उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए यह निष्कर्ष लगाया जा सकता है कि उक्त प्रावधान प्रकृति में अनिवार्य नहीं है, भले ही "होगा" (शैल) शब्द का इस्तेमाल प्रावधान में किया गया हो।

    संबंधित प्रावधान यह निर्धारित करता है कि एक पुलिस अधिकारी को किसी भी संपत्ति को जब्त करने के बाद, अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को तुरंत जब्ती की सूचना देनी होगी और यदि जब्त की गई संपत्ति को कोर्ट ले जाना सुविधाजनक न हो, तो वह आवश्यकता पड़ने पर जब्त संपत्ति को पेश करने की शर्त का बॉण्ड भरवाकर किसी व्यक्ति को सौंप सकता है।

    केस टाइटल : रुकाया अख्तर बनाम केंद्र शासित प्रदेश क्राइम ब्रांच के जरिये।

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    सीआरपीसी की धारा 438(4)-आईपीसी की धारा 376(3) के तहत एफआईआर में अग्रिम जमानत याचिका दायर करने पर कोई रोक नहीं,यदि कथित घटना 2018 के संशोधन से पहले की होः दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 376 (3) के तहत दर्ज एक एफआईआर में सीआरपीसी की धारा 438 (4) के तहत अग्रिम जमानत दाखिल करने पर कोई रोक नहीं है, जब कथित घटना आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 लागू होने से पहले घटित हुई हो।

    जस्टिस जसमीत सिंह की पीठ ने अपनी नाबालिग बेटी के साथ 15 साल की उम्र में बलात्कार करने के आरोपी पिता को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की है। इस मामले में कथित घटना वर्ष 2017 में हुई थी और एफआईआर पिछले साल दर्ज की गई थी।

    केस टाइटल-वीपी बनाम दिल्ली राज्य व अन्य

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    राज्य इस आधार पर चिकित्सा प्रतिपूर्ति से इनकार नहीं कर सकता कि अस्पताल ने स्वीकृत दरों से अधिक राशि वसूल की: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि केंद्रीय सेवा (चिकित्सा उपस्थिति) नियम, 1944 के तहत चिकित्सा व्यय की प्रतिपूर्ति से इस आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है कि अस्पताल ने अनुमोदित दरों से अधिक राशि वसूल की है, ऐसे मामले में जहां मरीज को ऐस अस्पताल में रेफर किया जाता है। जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि केवल 51,824 रुपये की प्रतिपूर्ति की मांग की गई है। याचिका पिछले 16 वर्षों से लंबित है और दिल्ली सरकार इसका विरोध कर रही है।

    केस टाइटल: महेंद्र कुमार वर्मा बनाम दिल्ली एनसीटी सरकार और अन्य

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    निजी शिक्षण संस्थान के खिलाफ दायर सिर्व‌िस विवाद संबंधित रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निजी शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों को सर्विस संबंधित मामलों में, जहां वे वैधानिक प्रावधानों द्वारा शासित या नियंत्रित नहीं हैं, हाईकोर्ट की रिट पॉवर का उपयोग करने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने याचिकाकर्ता देवेश वर्मा को राहत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे जुलाई 1992 में कॉलेज के प्राचार्य के साथ दुर्व्यवहार के बाद क्राइस्ट चर्च कॉलेज, लखनऊ में लेक्चरर के पद से हटा दिया गया था।

    केस टाइटल: देवेश वर्मा बनाम क्राइस्ट चर्च कॉलेज हजरतगंज लखनऊ प्र‌िंसिपल और अन्य [SPECIAL APPEAL DEFECTIVE No. - 2 of 2018]

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    हिरासत में पूछताछ का इस्तेमाल इकबालिया बयान निकालने के लिए नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि हिरासत में पूछताछ का इस्तेमाल इकबालिया बयान निकालने के लिए नहीं किया जा सकता। जस्टिस सत्येन वैद्य ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 408 और धारा 34 के तहत अपराधों के लिए एफआईआर में गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए प्रार्थना कर रहा था।

    केस टाइटल: रोहित चौहान बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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    केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकारियों को केवल सेवा के वर्षों की संख्या के आधार पर मैकेनिकली अपग्रेड नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य सेवाओं की डायनेमिक एश्योर्ड करियर प्रोग्रेशन (डीएसीपी) योजना के तहत अपग्रेशन मैकेनिकली तरीके से वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में कर्मचारी की ग्रेडिंग पर विचार किए बिना नहीं की जा सकती।

    चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि केवल कर्मचारी द्वारा पूरी की गई सेवा के वर्षों की संख्या के आधार पर भर्ती नियमों और सेवाओं में अपग्रेशन को नियंत्रित करने वाले अन्य प्रावधानों के आधार पर पद का उन्नयन नहीं हो सकता।

    केस टाइटल: डॉ. शिल्पी अग्रवाल और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।

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    यौन उत्पीड़न की शिकायत की जांच कार्यवाही केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती, क्योंकि आईसीसी 90 दिनों के भीतर जांच पूरी करने में विफल रही: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि यौन उत्पीड़न की शिकायत और जांच की कार्यवाही केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती, क्योंकि आंतरिक शिकायत समिति कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (आईसीसी) धारा 11(4) के तहत उल्लिखित 90 दिनों की समय-सीमा के भीतर जांच पूरी करने में विफल रही है।

    जस्टिस विकास महाजन ने कहा, "कहने की जरूरत नहीं कि यौन उत्पीड़न के आरोपों वाली ऐसी शिकायतों को निश्चित मात्रा में गंभीरता और जिम्मेदारी के साथ माना जाना चाहिए। तदनुसार, इसकी जांच की जानी चाहिए और उनके तार्किक निष्कर्ष पर ले जाया जाना चाहिए, यह दोनों के हित में है। शिकायतकर्ता के साथ-साथ वह व्यक्ति जिसके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं।"

    केस टाइटल: सीए नितेश पराशर बनाम इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया आईसीएआई और अन्य।

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    संविदा कर्मचारियों को नोटिस जारी किए बिना बर्खास्त नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविदा कर्मचारियों (Contractual Employees) को नोटिस जारी किए बिना या इस आशय की खोज के बिना सेवा के 'असंतोषजनक प्रदर्शन' के आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता। जस्टिस अनु शिवरामन ने आयुष एनएचएम होम्योपैथिक डिस्पेंसरी में याचिकाकर्ताओं की सेवा बंद करने के मनंथवाडी नगर पालिका द्वारा पारित आदेश रद्द करते हुए कहा कि अनुबंध की सेवाओं को समाप्त करने का प्राथमिक कारण यह है कि उनकी सेवाएं असंतोषजनक पाई गईं।

    केस टाइटल: टिंटू के और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।

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    धारा 143-ए, एनआई एक्ट | मजिस्ट्रेट को अंतरिम मुआवजे का आदेश देने के लिए विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करने के कारण दर्ज करने होंगे: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 143-ए के तहत अंतरिम मुआवजा देने की शक्ति प्रकृति में विवेकाधीन है और इस तरह की अंतरिम राहत कारण और तर्क पर आधारित होनी चाहिए। जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें चेक राशि का 20% अंतरिम मुआवजे का आदेश दिया गया था।

    केस टाइटल: नजीर अहमद चोपन बनाम अब्दुल रहमान चोपन

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    धारा 361 सीआरपीसी के प्रावधान अनिवार्य; परिवीक्षा पर दोषी को रिहा नहीं करने के कारणों को ट्रायल कोर्ट को रिकॉर्ड करना होगा: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाई‌‌‌कोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने दोहराया कि धारा 361 सीआरपीसी के तहत प्रावधान अनिवार्य है और निचली अदालत को लिखित रूप में इसके कारणों को रिकॉर्ड करना चाहिए कि क्यों दोषी को परिवीक्षा का लाभ देना उचित नहीं होगा जो अन्यथा उसके लिए पात्र है। जस्टिस दीपक कुमार अग्रवाल की पीठ ने कहा- सीआरपीसी की धारा 361 के प्रावधान अनिवार्य है और यदि ट्रायल कोर्ट की राय है कि परिवीक्षा पर रिहा करने का आदेश उचित नहीं है, तो उसे लाभ न देने के कारण बताने होंगे। इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 360(4) के अनुसार, यह लाभ अपीलीय न्यायालय या हाईकोर्ट द्वारा पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्रदान किया जा सकता है।

    केस टाइटल: महेश बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    सबरीमाला तीर्थयात्री फिल्म स्टार,राजनेता के पोस्टर नहीं ले जा सकते, पूजा का अधिकार परंपरा के अधीन : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी भी तीर्थयात्री को सबरीमाला सन्निधानम में फिल्म स्टार, मशहूर हस्तियों, राजनेताओं के पोस्टर आदि की बड़ी तस्वीरें लेकर प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायालय ने त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) को यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया कि भगवान अय्यप्पा के प्रत्येक उपासक सबरीमाला सन्निधानम में पूजा के अपने अधिकार का उपयोग सबरीमाला में रीति और परंपरा के अधीन प्रचलित प्रथा से करें।

    केस टाइटल : स्वत: संज्ञान बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    नर्सिंग कॉलेजों के प्रदर्शन का अध्ययन करने के लिए कमेटियों का गठन हमेशा विधान परिषद ही कर सकती हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने एकल न्यायाधीश पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली एक अपील को खारिज कर दिया है, जिसने एक विशेष सदन समिति के गठन को बरकरार रखा है, जो राज्य में सभी नर्सिंग कॉलेजों और संबद्ध स्वास्थ्य विज्ञान संस्थानों का दौरा करने और यह पता लगाने के लिए निरीक्षण करने का अधिकार रखती है कि क्या वे भारतीय नर्सिंग परिषद के निर्देशों के अनुसार कार्य कर रही हैं और क्या उनके पास आवश्यक बुनियादी ढांचा और अन्य सुविधाएं हैं।

    केस टाइटल: कर्नाटक स्टेट एसोसिएशन ऑफ द मैनेजमेंट ऑफ नर्सिंग बनाम एलाइड हेल्थ साइंस इंस्टीट्यूशन एंड स्टेट ऑफ कर्नाटक व अन्य

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