हिरासत में पूछताछ का इस्तेमाल इकबालिया बयान निकालने के लिए नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

10 Jan 2023 8:41 AM GMT

  • हिरासत में पूछताछ का इस्तेमाल इकबालिया बयान निकालने के लिए नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में आरोपी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि हिरासत में पूछताछ का इस्तेमाल इकबालिया बयान निकालने के लिए नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस सत्येन वैद्य ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 408 और धारा 34 के तहत अपराधों के लिए एफआईआर में गिरफ्तारी से पहले जमानत के लिए प्रार्थना कर रहा था।

    याचिकाकर्ता के नियोक्ता द्वारा उसके पेट्रोल स्टेशन पर 28,57,022 रूपए की राशि की हेराफेरी का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज की गई।

    अदालत के समक्ष यह तर्क दिया गया कि आरोपी के बैंक अकाउंट में लेन-देन शिकायतकर्ता और प्रतिष्ठान के अकाउंट प्रबंधक की सहमति पर किए गए। आरोपी ने आगे तर्क दिया कि जांच के दौरान उसने पूरा सहयोग किया और पुलिस को अकाउंट का पूरा विवरण दिया।

    खंडपीठ ने कहा कि मामला 19.11.2022 को दर्ज किया गया और याचिकाकर्ता को 23.11.2022 को अंतरिम जमानत पर रिहा किया गया। अदालत ने कहा कि चूंकि एफआईआर दर्ज किए हुए एक महीने से अधिक समय बीत चुका है और याचिकाकर्ता जब भी आवश्यक हो जांच में शामिल हो गया। फिर जांच एजेंसी के पास पहले से ही जांच पूरी करने के लिए पर्याप्त समय है।

    उपलब्ध रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए बेंच ने आगे कहा कि जांच रिपोर्ट के अनुसार, 2,45,645/- रुपये की राशि याचिकाकर्ता के अकाउंट से शिकायतकर्ता इंटरप्राइसेज अकाउंट में ट्रांसफर की गई, जो प्रथम दृष्टया सुझाव देती है कि शिकायतकर्ता का बैंक अकाउंट "स्टेन एच.पी. इंटरप्राइजेज” याचिकाकर्ता के अकाउंट से भुगतान प्राप्त कर रहा था।

    अदालत ने कहा,

    "कैसे और क्यों पेट्रोल स्टेशन के अकाउंट का पुनर्समाधान नहीं हुआ, यह स्पष्ट नहीं किया गया। यदि याचिकाकर्ता का इरादा अपने अकाउंट में रूपए ट्रांसफर करके राशि का गबन करने का तो उसने पेट्रोल स्टेशन के अकाउंट में कोई राशि नहीं भेजी होती।"

    प्रतिवादियों के इस तर्क से निपटते हुए कि याचिकाकर्ता उन व्यक्तियों के नाम का खुलासा नहीं कर रहा है, जिनके अकाउंट में उसने रूपए ट्रांसफर किए। अदालत ने कहा कि विवाद इस कारण से उचित नहीं लगता कि पुलिस के दस्तावेजी साक्ष्य से बैंक लेनदेन का पता लगाया जा सकता है।

    पीठ ने स्पष्ट किया,

    "याचिकाकर्ता द्वारा अपने अकाउंट से रूपए निकालने के आरोप और उन व्यक्तियों की पहचान का खुलासा न करने के संबंध में जिन्हें यह वितरित किया गया, वे तथ्य याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को साबित करने के लिए इतने प्रासंगिक नहीं हो सकते हैं। साथ ही जांच आपराधिक मामले को वसूली कार्यवाही के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।"

    अदालत ने हिरासत में पूछताछ के लिए प्रतिवादी की दलीलों को आधारहीन पाते हुए कहा,

    "मेरा मानना है कि याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ के लिए कोई मामला नहीं बनता। हिरासत में पूछताछ के उपकरण का इस्तेमाल इकबालिया बयान निकालने के लिए नहीं किया जा सकता। इस तरह की पूछताछ की अनुमति है, जहां जांच एजेंसी के पास तथ्यों को निकालने का कोई साधन नहीं है। जैसा कि ऊपर देखा गया, वर्तमान मामले में बैंक लेनदेन को दस्तावेजी साक्ष्य के माध्यम से आसानी से पता लगाया जा सकता है।"

    याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने आदेश दिया कि गिरफ्तारी के मामले में याचिकाकर्ता जमानत पर रिहा किया जाए।

    केस टाइटल: रोहित चौहान बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

    साइटेशन : लाइव लॉ (एचपी) 3/2023

    कोरम: जस्टिस सत्येन वैद्य

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