मृत पिता का ऋण बेटे पर 'कानूनी रूप से लागू' होगा, बेटे के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत सुनवाई योग्य: कर्नाटक हाईकोर्ट

Avanish Pathak

12 Jan 2023 9:53 AM GMT

  • मृत पिता का ऋण बेटे पर कानूनी रूप से लागू होगा, बेटे के खिलाफ एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत सुनवाई योग्य: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि कानूनी प्रतिनिधि होने के नाते बेटा निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत मृतक पिता के दायित्व का निर्वहन करने के लिए उत्तरदायी है।

    जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज पीठ ने प्रतिवादी/आरोपी बीटी दिनेश के तर्क को खारिज कर दिया कि उसके खिलाफ कोई कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण नहीं है, क्योंकि ऋण उसके पिता ने लिया था, जो एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करने से पहले मर गए थे।

    पीठ ने कहा,

    "पिता के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में, आरोपी शिकायतकर्ता को ऋण चुकाने के लिए उत्तरदायी है।"

    पीठ ने उक्त निष्कर्ष के लिए अधिनियम की धारा 29 पर भरोसा किया, जो दायित्व के निर्वहन के लिए उत्तरदायी मृत व्यक्ति के कानूनी प्रतिनिधि से संबंधित है।

    मामला

    प्रसाद रायकर द्वारा दायर की गई शिकायत के अनुसार, प्रतिवादी-आरोपी के पिता - भरमप्पा ने शिकायतकर्ता अपीलकर्ता से सात मार्च 2003 को अपने व्यवसाय और अपने परिवार की आवश्यकताओं के लिए 2,60,000 रुपये उधार लिए थे और शिकायतकर्ता के पक्ष में ऑन-डिमांड प्रॉमिसरी नोट निष्पादित करने के बाद प्रति माह 2% ब्याज का भुगतान करने के लिए सहमत हुए थे।

    इस बीच, भारमप्पा की मृत्यु हो गई और उसके उत्तराधिकारी के रूप में उसका पुत्र रहा गया।

    भारमप्पा की मृत्यु पर शिकायतकर्ता ने आरोपी से ऋण राशि चुकाने के लिए कहा और आरोपी ने कुछ समय देने का अनुरोध किया। उसने 10 जून, 2005 को शिकायतकर्ता को 10,000 रुपये का भुगतान किया और शिकायतकर्ता ने आरोपी से अपने पिता का बकाया चुकाने के लिए कहा।

    कहा जाता है कि बाद में आरोपी ने क्रमशः सात जून 2006 और 07 जुलाई 2006 को 2,25,000 रुपये के दो चेक जारी किए। खाता बंद होने के कारण चेक अनादरित हो गया। आरोपी को नोटिस दिया गया, लेकिन उसने राशि का भुगतान नहीं किया। इसलिए, निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धाराओं के तहत मजिस्ट्रेट के समक्ष निजी शिकायत दर्ज की गई।

    ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी करार दिया। हालांकि, अपीलीय अदालत ने आदेश को उलट दिया और आरोपी को बरी कर दिया। जिसके बाद शिकायतकर्ता ने अपील दायर की।

    निष्कर्ष

    पीठ ने कहा कि एनआई एक्ट की धारा 29 के अनुसार, मृतक के कानूनी प्रतिनिधि ने एक चेक जारी किया और वह व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी है। फिर आईसीडीएस लिमिटेड बनाम बीना शबीर और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा,

    “पिता के कानूनी प्रतिनिधि के रूप में, आरोपी शिकायतकर्ता को ऋण चुकाने के लिए उत्तरदायी है। अतः विपक्षी एडवोकेट द्वारा प्रस्तुत आपत्ति स्वीकार योग्य नहीं है। चेक अनादरित होने पर आरोपी को एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत सजा का भागी बनाया गया है। अधिनियम और शिकायत सुनवाई योग्य है।

    न्यायालय ने प्रतिवादी के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि ऋण टाइम-बार्ड है क्योंकि उसके पिता ने वर्ष 2003 में ऋण लिया था और चेक चार साल बाद जारी किया गया था।

    यह देखा गया, "शिकायतकर्ता ने कहा है और यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि आरोपी ने राशि चुकाने का वचन दिया है और उसने अपने पिता की देनदारी के लिए दो साल के भीतर 10,000 रुपये का भुगतान किया है और उसके बाद वर्ष 2006 में उसने दो चेक जारी किए हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसलिए, एक बार जब राशि पहले ही चुका दी गई थी तो यह तर्क देने का सवाल ही नहीं उठता कि यह वर्जित ऋण है और इसे नवीनीकृत किया गया है। इसलिए, आरोपी ने एक बार नकद 10,000 रुपये का भुगतान किया और बाद में, उसने दायित्व का निर्वहन करने के लिए एक चेक जारी किया, वह अपने पिता के दायित्व का निर्वहन करने के लिए उत्तरदायी है।”

    उक्त टिप्‍पणियों के बाद कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया और अपीलीय अदालत के फैसले को रद्द कर दिया और आरोपी को दोषी ठहराने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की।

    केस टाइटल: प्रसाद रायकर और बीटी दिनेश

    केस नंबर : क्रिमिनल अपील 725 ऑफ 2011

    साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (कर) 11

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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