मुस्लिम लॉ-पत्नी को दिए अपने उपहार को मान्य करने के लिए पति के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह उपहार में दी गई संपत्ति से फिजिकल रूप से अलग हो : जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

Manisha Khatri

11 Jan 2023 9:15 PM IST

  • मुस्लिम लॉ-पत्नी को दिए अपने उपहार को मान्य करने के लिए पति के लिए यह आवश्यक नहीं कि वह उपहार में दी गई संपत्ति से फिजिकल रूप से अलग हो : जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    JKL High Court

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि जहां एक पति अपनी पत्नी को उपहार देता है (दोनों के कब्जे वाले वैवाहिक घर या उससे संबंधित कोई अन्य संपत्ति) तो उपहार को निष्पादित करने के लिए दाता या उपहार देने वाले द्वारा फिजिकल रूप से अलग होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है, जिसमें अपीलकर्ता ने मृतक मोहम्मद अशरफ डार द्वारा अपनी पत्नी (प्रतिवादी नंबर 1) को दिए गए मौखिक उपहार को इस आधार पर चुनौती दी थी कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अनिवार्य रूप से उपहार में दी गई संपत्ति को उसके एकमात्र अधिकार में नहीं रखा गया था।

    मौजूदा मामले में अदालत ने कहा कि मृतक मोहम्मद अशरफ डार ने अपने जीवनकाल में उस घर का निर्माण किया था और वह उक्त घर में कभी-कभी रहा करता था। जबकि रिकॉर्ड से पता चला है कि उसने अपने जीवनकाल के दौरान अपनी पत्नी (प्रतिवादी नंबर 1) को मौखिक रूप से यह संपत्ति उपहार में दी थी, परंतु यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं था कि प्रतिवादी नंबर 1 का किसी भी समय इस संपत्ति पर एकमात्र कब्जा था या उसके पति ने संपत्ति को अकेले उसके कब्जे में रखा था।

    बेंच के समक्ष विवादास्पद सवाल यह था कि क्या मुस्लिम कानून के तहत वैध मौखिक उपहार देते समय दानकर्ता के लिए यह आवश्यक था कि वह उपहार में दी जा रही संपत्ति के वास्तविक कब्जे में दानकर्ता को रखे?

    उक्त प्रश्न का उत्तर देने के लिए अदालत ने कहा कि मुस्लिम कानून के तहत उपहार के वैध होने के लिए तीन आवश्यक विशेषताएं मौजूद हैं, (1) दाता या उपहार देने वाले द्वारा उपहार की घोषणा, (2) प्राप्तकर्ता द्वारा या उसकी ओर से उपहार की स्वीकृति, अभिव्यक्त या निहित और (3) प्राप्त करने वाले को उपहार के विषय के कब्जे की डिलीवरी करना, वास्तव में या रचनात्मक रूप से, इन्हें संतुष्ट किया जाना होता है।

    जस्टिस धर ने कहा कि इस मामले में उपहार लेने वाले और उपहार देने वाले के बीच संबंध पति और पत्नी का है और जहां एक पति अपनी पत्नी को दोनों के कब्जे वाले वैवाहिक घर या उससे संबंधित किसी अन्य संपत्ति में से एक उपहार देता है, वहां उपहार देने वाले द्वारा किसी वास्तविक फिजिकल प्रस्थान की कोई आवश्यकता नहीं है।

    ‘‘इसका कारण यह है कि पति और पत्नी का रिश्ता किसी भी अन्य रिश्ते से अलग होता है। संयुक्त निवास इस रिश्ते का एक अभिन्न पहलू है और यह तथ्य कि पति पत्नी की संपत्ति का प्रबंधन और देखभाल करता है, एक निहित अनुमान द्वारा समर्थित है कि वह अपनी पत्नी की ओर से ऐसा करता है।’’

    अदालत ने कहा कि चूंकि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य यह साबित करते हैं कि मृतक मोहम्मद अशरफ डार का संपत्ति पर कब्जा था, इसका मतलब यह है कि उसकी पत्नी, प्रतिवादी नंबर 1, का भी संपत्ति पर कब्जा था और मौखिक उपहार निष्पादन के बाद, उसका पति उसकी ओर से उक्त संपत्ति की देखभाल कर रहा था।

    कोर्ट ने अंत में कहा कि अपीलकर्ता के वकील का तर्क है कि प्रतिवादी नंबर 1 का एकमात्र कब्जा साबित नहीं हुआ है जो मौखिक उपहार को अमान्य बनाता है, लेकिन इस तर्क में कोई मैरिट नहीं है।

    केस टाइटल- सुश्री हलीमा व अन्य बनाम सुश्री दिलशादा व अन्य

    साइटेशन- 2023 लाइव लॉ (जेकेएल) 10

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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