धारा 143-ए, एनआई एक्ट | मजिस्ट्रेट को अंतरिम मुआवजे का आदेश देने के लिए विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करने के कारण दर्ज करने होंगे: जेकेएल हाईकोर्ट

Avanish Pathak

9 Jan 2023 9:44 PM IST

  • धारा 143-ए, एनआई एक्ट | मजिस्ट्रेट को अंतरिम मुआवजे का आदेश देने के लिए विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करने के कारण दर्ज करने होंगे: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 143-ए के तहत अंतरिम मुआवजा देने की शक्ति प्रकृति में विवेकाधीन है और इस तरह की अंतरिम राहत कारण और तर्क पर आधारित होनी चाहिए।

    जस्टिस संजय धर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें चेक राशि का 20% अंतरिम मुआवजे का आदेश दिया गया था।

    याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए मुआवजे के आदेश का विरोध किया कि मजिस्ट्रेट ने यह नहीं बताया है कि शिकायतकर्ता के पक्ष में चेक राशि के 20% की राशि क्यों दी गई, खासकर जब अभियुक्त ने प्रतिवादी/शिकायतकर्ता के पक्ष में चेक जारी करने से इनकार कर दिया था।

    जस्टिस धर ने कहा कि एनआई एक्ट की धारा 143-ए का अवलोकन स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है कि एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध के लिए शिकायत पर मुकदमा चलाने वानी वाली अदालत के पास शिकायतकर्ता को अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने के लिए चेक के ड्राअर को आदेश देने का विवेक है, फिर भी यह चेक की राशि के 20% से अधिक नहीं होगा।

    मामले पर आगे विचार करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि एनआई एक्ट की धारा 143-ए में अंतरिम मुआवजे के अनुदान के लिए कोई दिशानिर्देश निर्धारित नहीं किया गया है, फिर भी इस विवेकाधीन शक्ति का उपयोग कारणों से समर्थित अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों पर किया जाना है।

    अदालत को शिकायतकर्ता के पक्ष में अंतरिम मुआवजा देने के कारणों को स्पष्ट करना होगा और उसे अपने आदेश में उसके द्वारा दिए जा रहे अंतरिम मुआवजे की मात्रा को उचित ठहराना भी होगा क्योंकि कथित मात्रा चेक राशि के 1% से 20% तक हो सकती है।

    अदालत ने कहा कि अंतरिम मुआवजा देने के कुछ कारण यह हो सकते हैं कि आरोपी फरार हो जाता है और सेवा के बावजूद अदालत में पेश होने से बचता है या यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर भारी सामग्री है कि अभियुक्त एक प्रवर्तनीय ऋण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है या आरोपी गवाहों से जिरह करने या अपने साक्ष्य पेश करने से बचने के लिए कार्यवाही को लंबा करने का दोषी है।

    कोर्ट ने कहा,

    "शिकायतकर्ता के पक्ष में अंतरिम मुआवजा देने के लिए एक मजिस्ट्रेट के पास कई अन्य कारण हो सकते हैं लेकिन इन कारणों को आदेश में दर्ज किया जाना चाहिए ताकि आदेश की वैधता का परीक्षण श्रेष्ठ न्यायालय द्वारा किया जा सके, जब ऐसा आदेश को चुनौती दी गई हो।"

    उक्त स्थिति को इस मामले में लागू करते हुए बेंच ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के जनादेश को ध्यान में रखते हुए अंतरिम मुआवजे का आदेश दिया है, लेकिन ऐसा करने में मजिस्ट्रेट कारण बताने में विफल रहे हैं।

    आगे यह कहते हुए कि विद्वान मजिस्ट्रेट भी सीआरपीसी की धारा 251 के तहत दर्ज अपने बयान में अभियुक्त द्वारा चेक के निष्पादन से इनकार करने से संबंधित मामले के पहलू से निपटा नहीं है। पूर्वोक्त कारणों से, पीठ ने याचिका को स्वीकार कर लिया और तदनुसार विवादित आदेश को मजिस्ट्रेट को इस मामले में एक नया आदेश पारित करने के निर्देश के साथ रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल: नजीर अहमद चोपन बनाम अब्दुल रहमान चोपन

    साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 8

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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