निजी शिक्षण संस्थान के खिलाफ दायर सिर्व‌िस विवाद संबंधित रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Jan 2023 9:38 AM GMT

  • Allahabad High Court

    Allahabad High Court

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निजी शिक्षण संस्थान के कर्मचारियों को सर्विस संबंधित मामलों में, जहां वे वैधानिक प्रावधानों द्वारा शासित या नियंत्रित नहीं हैं, हाईकोर्ट की रिट पॉवर का उपयोग करने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की पीठ ने याचिकाकर्ता देवेश वर्मा को राहत देने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे जुलाई 1992 में कॉलेज के प्राचार्य के साथ दुर्व्यवहार के बाद क्राइस्ट चर्च कॉलेज, लखनऊ में लेक्चरर के पद से हटा दिया गया था।

    सितंबर 2017 में सिंगल जज ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने डिवीजन बेंच के समक्ष इंट्रा-कोर्ट अपील दायर की।

    सेंट मैरी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट बनाम राजेंद्र प्रसाद भार्गव 2022 लाइवलॉ (एससी) 708 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, डिवीजन बेंच ने सितंबर 2017 में पारित सिंगल जज के आदेश को बरकरार रखा।

    खंडपीठ ने सिंगल जज के इस दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की कि एक पूर्व शिक्षक द्वारा निजी गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थान के खिलाफ दायर रिट याचिका, जिसमें उसकी बर्खास्तगी के आदेश को चुनौती दी गई थी और उसकी सेवा की बहाली की मांग की गई थी, सुनवाई योग्य नहीं है।

    मामला

    याचिकाकर्ता/अपीलकर्ता ने यह दलील देते हुए रिट याचिका दायर की थी कि उसे क्राइस्ट चर्च कॉलेज में भौतिकी के लेक्चरर के रूप में नियुक्त किया गया था और वह 7 अक्टूबर, 1991 को अपनी ड्यूटी पर शामिल हो गया था।

    31 मार्च, 1992 को कॉलेज के प्राचार्य ने उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 504/506 के तहत एफआईआर दर्ज की और उन्हें 16 जुलाई, 1992 को गिरफ्तार कर लिया गया।

    हालांकि उन्हें उसी दिन जमानत दे दी गई, लेकिन उन्हें कॉलेज में अपनी ड्यूटी फिर से शुरू करने की अनुमति नहीं दी गई।

    आखिरकार, मई 1996 में वह मामले में बरी हो गए और उसके बाद, जब वह कॉलेज में अपनी ड्यूटी को फिर से शुरू करने गए, तो उन्हें बताया गया कि उनके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त किया गया है और उनकी सेवाएं उनकी गिरफ्तारी के एक दिन बाद 17 जुलाई, 1992 से स्वतः समाप्त हो गई हैं।

    अपनी सेवाओं की उक्त मौखिक समाप्ति को इस आधार पर चुनौती देते हुए कि उनकी सेवाओं को समाप्त करने से पहले, यूपी इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम, 1921 की धारा 16 जी (3) के तहत कोई अनुमोदन प्राप्त नहीं किया गया था, अपीलकर्ता/याचिकाकर्ता ने सिंगल जज के समक्ष अपील दायर की थी।

    सिंगल जज ने उनकी याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि 1921 के अधिनियम की धारा 16 जी (3) अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होती है। सिंगल जज ने यह भी कहा कि एक निजी अल्पसंख्यक संस्थान के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    सिंगल जज के आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता ने यह तर्क देते हुए मौजूदा याचिका दायर की कि चूंकि कॉलेज बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में लगा हुआ है, जो कि एक सार्वजनिक कर्तव्य है, इसलिए, ऐसी संस्था के खिलाफ दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य होगी।

    निष्कर्ष

    शुरुआत में, कोर्ट ने सेंट मैरी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (सुप्रा) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखा, जिसमें यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया था कि "जबकि एक निकाय सार्वजनिक कार्य का निर्वहन कर रहा है या एक सार्वजनिक कर्तव्य निभा रहा है और इस प्रकार एक संवैधानिक न्यायालय द्वारा न्यायिक समीक्षा के लिए उत्तरदायी होने के कारण, इसके कर्मचारियों को सेवा से संबंधित मामलों के संबंध में अनुच्छेद 226 द्वारा प्रदत्त हाईकोर्ट की शक्तियों का उपयोग करने का अधिकार नहीं होगा, जहां वे वैधानिक प्रावधानों द्वारा शासित या नियंत्रित नहीं हैं।"

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी कहा गया था कि सेवा के एक सामान्य अनुबंध की सीमा के भीतर पूरी तरह से लिए गए कार्यों या निर्णयों को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत चुनौती के लिए उत्तरदायी नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने कहा कि रिट याचिका एक और कारण से सुनवाई योग्य नहीं होगी कि मामले में तथ्य के कई विवादित प्रश्न शामिल हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "अपीलकर्ता को विधिवत रूप से चुना और नियुक्त किया गया था या नहीं, और उसकी सेवा शर्तें क्या थीं, ये ऐसे तथ्य हैं जो विवाद में हैं और जिसके बारे में कोई सामग्री रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं है। इस कारण से भी रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।”

    खंडपीठ ने 2017 के अपने आदेश में सिंगल जज द्वारा लिए गए दृष्टिकोण से सहमत होते हुए विशेष अपील को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: देवेश वर्मा बनाम क्राइस्ट चर्च कॉलेज हजरतगंज लखनऊ प्र‌िंसिपल और अन्य [SPECIAL APPEAL DEFECTIVE No. - 2 of 2018]

    केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 9

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