सीआरपीसी की धारा 102(3) के तहत पुलिस अधिकारी को संपत्ति की जब्ती रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपना प्रकृति में केवल निर्देशिका की तरह: जेकेएल हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

11 Jan 2023 5:05 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 102(3) के तहत पुलिस अधिकारी को संपत्ति की जब्ती रिपोर्ट मजिस्ट्रेट को सौंपना प्रकृति में केवल निर्देशिका की तरह: जेकेएल हाईकोर्ट

    जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि चूंकि सीआरपीसी में धारा 102 (3) के पालन न करने के परिणामों के बारे में उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए यह निष्कर्ष लगाया जा सकता है कि उक्त प्रावधान प्रकृति में अनिवार्य नहीं है, भले ही "होगा" (शैल) शब्द का इस्तेमाल प्रावधान में किया गया हो।

    संबंधित प्रावधान यह निर्धारित करता है कि एक पुलिस अधिकारी को किसी भी संपत्ति को जब्त करने के बाद, अधिकार क्षेत्र वाले मजिस्ट्रेट को तुरंत जब्ती की सूचना देनी होगी और यदि जब्त की गई संपत्ति को कोर्ट ले जाना सुविधाजनक न हो, तो वह आवश्यकता पड़ने पर जब्त संपत्ति को पेश करने की शर्त का बॉण्ड भरवाकर किसी व्यक्ति को सौंप सकता है।

    जस्टिस संजय धर उस याचिका की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें याचिकाकर्ता ने भ्रष्टाचार निरोधक मामलों के जज के एक आदेश को चुनौती दी थी। विशेष जज ने उस महिला याचिकाकर्ता के फ्रीज बैंक खातों को डीफ्रीज़ करने की अर्जी भी नामंजूर कर दी थी। महिला के जम्मू एवं कश्मीर के एडवोकेट जनरल कार्यालय में फर्जी भर्ती घोटाले में शामिल होने के आरोपों की वजह से उसके बैंक खातों को फ्रीज किया गया था।

    याचिकाकर्ता ने इस आधार पर अपनी चुनौती पेश की थी कि खाते को फ्रीज करने से पहले प्रतिवादी द्वारा सीआरपीसी की धारा 102(3) की आवश्यकताओं का पालन नहीं किया गया है, क्योंकि मामले को संबंधित मजिस्ट्रेट को कानून के तहत अनिवार्य रूप से रिपोर्ट नहीं किया गया है।

    बेंच के समक्ष निर्णय के लिए विवादास्पद प्रश्न यह था कि मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता के बैंक खाते को जब्त करने के बारे में संबंधित मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट पेश न करने का क्या प्रभाव होगा।

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि इस प्रश्न के बारे में विभिन्न हाईकोर्ट की राय में भिन्नता रही है। यद्यपि मद्रास, बॉम्बे और दिल्ली के हाईकोर्ट ने यह दृष्टिकोण अपनाया है कि धारा 102 (3) प्रकृति में अनिवार्य है, लेकिन पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक खंडपीठ द्वारा एक विपरीत दृष्टिकोण प्रदर्शित किया गया है।

    सीआरपीसी की धारा 102(3) के पीछे की मंशा का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करते हुए, जस्टिस धर ने कहा कि मजिस्ट्रेट को जब्ती की रिपोर्ट करने का उद्देश्य मजिस्ट्रेट को जब्त की गई संपत्ति के निपटान के संबंध में आदेश पारित करने में सक्षम बनाना है और यदि खास तथ्यात्मक स्थिति में केवल उक्त प्रावधान का अनुपालन न करना जब्त संपत्ति के मालिक/व्यक्ति के प्रति पूर्वाग्रह होता है, तो वही जब्ती के कार्य के लिए घातक होगा, न कि इसके उलट।

    कोर्ट ने आगे कहा कि चूंकि संहिता में सीआरपीसी की धारा 102 (3) के पालन न करने के परिणामों के बारे में उल्लेख नहीं किया गया है, इसलिए ‘शैल’ शब्द का इस्तेमाल प्रावधान में किये जाने के बावजूद यह निष्कर्ष लगाया जा सकता है कि उक्त प्रावधान प्रकृति में अनिवार्य नहीं है, बल्कि प्रकृति में केवल निर्देशिका है।

    बेंच ने अपने रूख को मजबूत करने के लिए ‘अमित सिंह बनाम उप्र सरकार (क्रिमिनल मिसलेनियस रिट याचिका संख्या 11201/2021 निर्णय की तारीख 18.04.2022)’ मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिये गये एक फैसले पर भरोसा जताते हुए कहा -

    "जब्त संपत्ति के बारे में रिपोर्ट न करने के परिणाम धारा के तहत प्रदान नहीं किए गए हैं। चूंकि परिणाम निर्दिष्ट नहीं किए गए हैं, इसलिए यह सुरक्षित होगा कि सीआरपीसी की धारा 102 (3) सीआरपीसी की आवश्यकता को अनिवार्य नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसकी प्रकृति निर्देशिका की होगी।"

    यह देखते हुए कि चूंकि मौजूदा मामले में संबंधित मजिस्ट्रेट को जब्ती की सूचना न देने से संपत्ति के मालिक पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है, यह अवैधता का मामला नहीं हो सकता है, लेकिन इस तरह की चूक केवल एक अनियमितता हो सकती है।

    बेंच ने उल्लेखित किया,

    "जब्त संपत्ति की प्रकृति को देखें तो बैंक खाते की जब्ती के बारे में संबंधित मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट न करने के कारण, इसकी जब्ती को अवैध नहीं माना जाएगा।’’

    तदनुसार, पीठ ने याचिका में कोई दम नहीं पाया और उसे खारिज कर दिया।

    केस टाइटल : रुकाया अख्तर बनाम केंद्र शासित प्रदेश क्राइम ब्रांच के जरिये।

    साइटेशन : 2023 लाइवलॉ (जेकेएल) 9

    कोरम: न्यायमूर्ति संजय धर

    याचिकाकर्ता के वकील: श्री भट फैयाज

    प्रतिवादी के वकील: सुश्री आसिफा पडरू

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