स्तंभ
'बुलडोजर' न्याय को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कदम उठाने का सही समय
'बुलडोजर जस्टिस' आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ तत्काल प्रतिशोधी कार्रवाई के लिए एक व्यंजना है जिसके तहत उनके घरों को बहुत धूमधाम से ध्वस्त कर दिया जाता है। सनसनीखेज मामलों में जहां बहुत अधिक सार्वजनिक आक्रोश होता है, अधिकारी अक्सर जनता की भावनाओं को शांत करने के लिए इस 'शॉर्ट-कट' तरीके का सहारा लेते हैं।इस प्रवृत्ति की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की थी, जिन्होंने 2017 में कथित तौर पर कहा था, "मेरी सरकार महिलाओं और समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ अपराध को बढ़ावा देने के बारे...
अवैध गिरफ्तारी और लंबे समय तक प्री-ट्रायल कस्टडी से मुक्ति: सुप्रीम कोर्ट के हाल के स्वतंत्रता समर्थक फैसलों ने PMLA, UAPA पर लगाम लगाई
हालांकि सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति के जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का एक उत्साही एडवोकेट और समर्थक रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसके कुछ निर्णयों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है क्योंकि ये सुस्थापित "जमानत नियम है, जेल अपवाद है", न्यायशास्त्र के विपरीत हैं।कुछ मामलों में जमानत से सीधे इनकार करने से लेकर अन्य मामलों की सुनवाई और सूची में देरी तक, अदालत के कामकाज के तरीके ने विभिन्न क्षेत्रों से आलोचना को आकर्षित किया। यह विशेष रूप से उन मामलों के...
एमसीडी एल्डरमैन मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान पीठ के उदाहरणों का खंडन करता है, लोकतंत्र को कमजोर करता है
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (जीएनसीटीडी) की सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) की शक्तियों की रूपरेखा को रेखांकित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के दो संविधान पीठ के फैसलों के बावजूद, राष्ट्रीय राजधानी के शासन में गतिरोध जारी है। चूंकि केंद्र सरकार और जीएनसीटीडी दो प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के नेतृत्व में हैं, इसलिए टकराव और बढ़ गया है।2018 में, सुप्रीम कोर्ट की 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने जोर देकर कहा कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार को उन मामलों में प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिन पर उसका...
1 जुलाई, 2024 के बाद सीआरपीसी की प्रयोज्यता: धुंधले क्षेत्र में संघर्ष
प्रभावी होने के कुछ ही दिनों के भीतर, बहुचर्चित नए आपराधिक कानून, जिन्होंने "औपनिवेशिक अवशेषों" को निरस्त कर दिया, ने 1 जुलाई, 2024 से पहले दर्ज किए गए अपराधों पर उनकी प्रयोज्यता के बारे में कानूनी उलझन को जन्म दे दिया है।उक्त तिथि के बाद की कार्यवाही में पुराने कानूनों की प्रयोज्यता के बारे में भी अनिश्चितता है। यह लेख इनमें से कुछ मुद्दों का विश्लेषण करने का एक प्रयास है।यदि कोई अपराध 1 जुलाई, 2024 को या उसके बाद किया जाता है, तो स्पष्ट रूप से, नव अधिनियमित भारतीय न्याय संहिता (जिसने भारतीय...
भारतीय न्याय संहिता की धारा 69 स्त्री-विरोधी - क्या यही आगे बढ़ने का रास्ता है?
'प्रोजेक्ट पॉश' नामक प्रोजेक्ट के संचालन के दौरान, जिसका मैं हिस्सा हूँ, एक स्टूडेंट ट्रेनी ने तत्कालीन भारतीय न्याय संहिता (BNS) विधेयक की नई धारा 69 पर अपनी हैरानी और अविश्वास व्यक्त किया। मैं युवा लॉ स्टूडेंट में राजनीतिक शुद्धता और संवेदनशीलता देखकर खुश था। उम्मीद भरी एकालाप में कहा कि विधेयक उस रूप में पारित नहीं हो सकता। अधिनियम में धारा को उसी रूप में देखना निराशाजनक था, जैसा कि विधेयक में था।अब जबकि अधिनियम लागू हो गया है, शिक्षाविद और वकील नए नामों और धाराओं को समझने की कोशिश कर रहे...
प्रेस की स्वतंत्रता: ऑनलाइन न्यूज स्पेस को नियंत्रित करने के केंद्र सरकार के कदम क्यों है चिंताजनक
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में दिलचस्प घटना यह देखने को मिली कि समाचार और समसामयिक मामलों की रिपोर्टिंग, चर्चा और विश्लेषण करने वाले व्यक्तिगत YouTubers की लोकप्रियता में उछाल आया। ध्रुव राठी, रवीश कुमार और आकाश बनर्जी (देशभक्त) जैसे YouTubers ने आम लोगों को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाने वाले अपने वीडियो से काफ़ी लोकप्रियता हासिल की।उल्लेखनीय रूप से इन वीडियो को कई मिलियन व्यू मिले, जो अक्सर कई स्थापित टीवी चैनलों के कुल व्यू से भी ज़्यादा होते हैं।...
आत्मपॅम्फ्लेट - भारत की अपनी फॉरेस्ट गंप, जो मराठी भाषा में बनी
साल 2022 रिलीज हुयी आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा हॉलीवुड की कल्ट कलासिक फिल्म फॉरेस्ट गंप (1994) की आधिकारिक रिमेक थी, लेकिन इसमें रिमेक के दावे के अलावा फॉरेस्ट गंप जैसा कुछ भी नही था. यह एक डरी हुयी फिल्म थी जो गैर-विवादास्पद फिल्म बनने के दबाव में एक साधारण फिल्म बन कर रह गयी थी. वहीँ 2023 में रिलीज हुयी मराठी फिल्म 'आत्मपॅम्फ्लेट' एक मौलिक फिल्म है जो बिना किसी महानता का दावा किये हमें लाल सिंह चड्ढा के डिजास्टर को भूल जाने का मौका देती है और अनजाने में ही सही खुद को फॉरेस्ट गंप के...
चंद्रयान-3 की सफलता के बहाने स्पेस मिशनों से सम्बंधित कानूनों की एक झलक
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी के बारे में एक कहानी बहुत प्रचलित है कि एक बार केनेडी ने अमेरिका की स्पेस एजेंसी, NASA (National Aeronautics and Space Administration), में अपने दौरे के दौरान एक झाड़ू लगाते हुए सफाई कर्मचारी से पूछा कि वो क्या कर रहा है तो सफाई कर्मचारी ने जवाब दिया कि वो मनुष्य को चांद तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। केनेडी को सफाई कर्मचारी के द्वारा दिया हुआ जवाब बहुत ही सामान्य तरीके से हमें यह समझाने के लिये काफी है कि अंतरिक्ष में मौजूद आकाशीय पिंडों, जैसे कि चांद...
किफायती दवाओं के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का नोटिस और किफायती जेनेरिक दवाओं के बचाव में लड़ी गयी लंबी कानूनी लड़ाई का लेखा- जोखा
जेनेरिक दवा का कानूनी मतलब और सुप्रीम कोर्ट का जेनरिक दवाओं के पक्ष में नोटिससामान्य बोलचाल की भाषा में 'पेटेंट दवाई' या फिर किसी भी दूसरी पेटेंट चीज का मतलब ये होता कि यदि किसी भी व्यक्ति या फिर संस्था ने किसी चीज की सबसे पहले खोज कर के उस चीज का कानूनी रूप से पेटेंट करा लिया तो उस व्यक्ति या संस्था का यह विशेषाधिकार होगा कि वो पेटेंट चीज को अपनी सुविधा के अनुसार बना कर बेचे या फिर किसी अन्य काम के लिए उसका प्रयोग करे, और अगर कोई अन्य संस्था उस पेटेंट चीज का उत्पादन या प्रयोग करने की कोशिश करती...
जस्टिस एस मुरलीधर के पक्ष में खड़े न होकर, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक और स्वतंत्र जज को विफल कर दिया
फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में, जब दिल्ली के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों के कुछ हिस्से सांप्रदायिक दंगों की चपेट में थे, कई घायल पीड़ित मुस्तफाबाद के एक अपेक्षाकृत छोटे अस्पताल में फंसे हुए थे। उन्हें आपातकालीन गंभीर देखभाल की आवश्यकता थी और उन्हें तुरंत सुविधाओं के साथ एक बड़े अस्पताल में ले जाना पड़ा। हालांकि, भड़के दंगों के कारण एंबुलेंस वहां पहुंचने की स्थिति में नहीं थी। पुलिस सहायता तुरंत नहीं मिल रही थी। इस पृष्ठभूमि में, डॉ. जस्टिस एस मुरलीधर, जो उस समय दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे, के...
सुप्रीम कोर्ट का 'अवैध लेकिन स्वीकार्य' न्यायशास्त्र
कोर्ट के फैसले और अखबार के संपादकीय या विचार के बीच स्पष्ट अंतर होता है। जहां दोनों एक सैद्धांतिक रुख अपनाना चाहते हैं और उच्च नैतिक विवेक की अपील करते हैं, अदालती फैसले में वास्तविक परिणाम पैदा करने की शक्ति होती है, जबकि संपादकीय लेख का उद्देश्य केवल अमूर्त स्तर पर जनता की राय को आकार देना हो सकता है। कोर्ट का निर्णय किसी गैरकानूनी कृत्य के प्रभाव को खत्म कर सकता है, प्रभावित पक्ष को न्याय दे सकता है और गलत पक्ष को दंडात्मक परिणाम दे सकता है ताकि एक अवरोधात्मक मूल्य बनाया जा सके।प्रवर्तनीयता...
जस्टिस केएम जोसेफ: भारतीय लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता हमेशा उनका ऋणी रहेगी
मनु सेबेस्टियनप्रकांड कानूनविद् और बुद्धिजीवी जज जस्टिस केएम जोसेफ ने कई उल्लेखनीय फैसलों का लेखन किया है। फिर भी, हेट स्पीच के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई, जिसकी अगुवाई उन्होंने ही की थी, उनके सबसे महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों में से एक माना जाएगा।कई मौकों पर, उन्होंने हेट स्पीच को एक कैंसर का निदान एक कैंसर के रूप में करने की दूरदर्शिता दिखाई है, जिसे अगर अनियंत्रित रूप से बढ़ने की अनुमति दी जाती है तो हमारे महान राष्ट्र को नरक बना देगा।“हमारा देश किस ओर जा रहा है? धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं? यह...
"विधि आयोग की सिफारिशें राजद्रोह कानून को और अधिक दुरूपयोगी बनाती हैं"
अवस्तिका दासराजद्रोह का कानून हमेशा विवादास्पद रहा है। सभी विचारों की सरकारों ने असहमति पर रोक लगाने के लिए औपनिवेशिक युग के कानून का उदारतापूर्वक इस्तेमाल किया है।पत्रकारों, एक्टिविस्टों, कार्टूनिस्टों, छात्रों और यहां तक कि आम लोगों को भी सरकार की आलोचना करने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह शायद ही रहस्य हो। फिर, यह कानून वापस खबरों में क्यों है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि एक अप्रत्याशित घटनाक्रम में, लॉ कमीशन ऑफ इंडिया ने राजद्रोह के कानून के पूर्ण निरसन की वकालत करने के बजाय, या कम से कम, उक्त...
निशुल्क विधिक सहायता क्या है और कैसे प्राप्त की जाती है
न्याय हर भारतीय का अधिकार है लेकिन न्याय महंगा होने से बहुत लोग इससे वंचित रह जाते हैं। इस परेशानी से निपटने के लिए भारतीय संसद द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 बनाया गया है। यह अधिनियम देशभर में लागू है और तीन स्तरों पर काम करता है। पहला स्तर राष्ट्रीय स्तर है, दूसरा स्तर राज्य स्तर एवं तीसरा स्तर जिला स्तर है। पहले स्तर से लेकर निचले स्तर तक इस अधिनियम के ज़रिए ज़रूरतमंद लोगों को न्याय दिलवाने के प्रयास किए गए हैं।विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत हर ज़रूरतमंद व्यक्ति को निशुल्क...
प्रतिबंधात्मक खंड बनाम परिसीमा का कानून: क्या मध्यस्थता के अधिकार को परिसीमा अधिनियम के तहत प्रदान की गई अवधि से कम अवधि तक सीमित किया जा सकता है?
धृतिमान रॉय, अरशद अय्यूब, औसाफ अय्यूब मध्यस्थता व्यवसायियों का ऐसे समझौते से टकराना असामान्य बात नहीं है, जिसके प्रावधान एकपक्षीय हों और प्रभावशाली पक्ष या नियोक्ता के पक्ष के लिए बनाए गए हों। ये खंड लगभग ऐसे होते हैं कि मोल-भाव न हो सके, और एक पक्ष को अक्सर डॉटेड लाइंस पर हस्ताक्षर कराया जाता है।इनमें अन्य बातों के साथ-साथ ऐसे समएझौतों में अनिवार्य मध्यस्थता पूर्व पेशगी की आवश्यकता जैसे खंड [1] एकपक्षीय विकल्प खंड [2] एकपक्षीय नियुक्ति खंड, [3] ऐसे खंड, जिनसे एक संकीर्ण पैनल से मध्यस्थ के...
साक्ष्य के विलुप्तिकरण का क्या परिणाम होता है?
Stars, hide your fires; Let not light see my black and deep desires.—William Shakespeare, Macbeth अक्सर कई बार ऐसा देखा जाता है कि अपराधी के नजदीकी या कोई अन्य हितबद्ध व्यक्ति उसे कानूनी दंड से बचाने के इरादे से अपराध के साक्ष्य (evidence) को गायब कर देते हैं या कोई प्रकार की गलत जानकारी देकर अपराधी को बचाने के लिए पूरी कोशिश करते हैं, जिससे या तो उसको सजा ना मिल सके या कम दंड की सजा मिले। ऐसा किया जाना एक मानव आचरण के लिए स्वाभाविक या प्राकृतिक है, लेकिन सहायता कर के ऐसे व्यक्ति स्वयं...
फैसला सुनाने में 17 महीने का विलंब: जब सुप्रीम कोर्ट ने त्वरित फैसला सुनाने के अपने ही निर्देशों की अनदेखी की
अवस्तिका दाससुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और अन्य के खिलाफ सामूहिक बलात्कार और आपराधिक धमकी के एक आरोप की पुलिस जांच का निर्देश देने वाले कोलकाता के एक मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द करने का फैसला किया। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट, जिसने पूर्व में तर्कों के समापन के बाद हाईकोर्टों को शीघ्र निर्णय सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे, ने मौजूदा मामले में सुरक्षित रखने के लगभग 17 महीने बाद यह फैसला सुनाया।भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और दो अन्य पर एक महिला से...
एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट समय की आवश्यकता
- नमन शर्माहाल ही में जोधपुर में एक वकील की नृशंस हत्या के मामले ने एक बार फिर भारत में वकीलों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है। हाल के वर्षों में भारत में वकीलों के खिलाफ अपराधों में अचानक वृद्धि हुई है। आगरा बार काउंसिल की पहली महिला अध्यक्ष दरवेश यादव की हत्या, गुजरात के कच्छ में वकील देवजी माहेश्वरी की उनके कार्यालय में हत्या, तेलंगाना के पेड्डापल्ली में हाईकोर्ट के वकील दंपती गट्टू वामनराव और गट्टू नागमणि की हत्या, जैसे कई उदाहरण हैं।मध्यप्रदेश के जबलपुर के वकील अक्षत सहगल पर हमला, मुंबई...
सीआरपीसी की धारा 161 और 162 की साक्षिक मूल्य का विश्लेषण (भाग 2)
पिछेल लेख में दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) की धारा 161 व 162 की विधिक प्रस्थिति का परीक्षण किया गया था। यहां एक बार पुनः उल्लेख करना उचित होगा कि इन दोनों धाराओं में अन्वेषण के क्रम में पुलिस अधिकारी द्वारा मामले से परिचित व्यक्तियों के कथन रिकॉर्ड करने के संबंध में प्रक्रिया का वर्णन किया गया है। जहां धारा 161 कथन कैसे रिकॉर्ड किए जाने के संदर्भ में बताती है, वहीं धारा 162 उनके कथनों के उपयोग के संबंध में चर्चा करता है। आइए; अब इस लेख में इनके साक्षिक मूल्य की परख की जाए।कथन का अर्थ- “विशेषतः...
जानिए नार्को टेस्ट और इसकी वैधानिकता के बारे में महत्वपूर्ण बातें
हम वर्तमान में देखते हैं कि अलग अलग मीडिया हाउसेस अपनी रिपोर्टिंग की समय और आम जनता भी किसी अपराध के संदिग्ध के पकड़ते ही न्यायालय के समक्ष उसके नार्को परीक्षण की गुहार लगाने लगते हैं। जैसा कि पिछले साल हुए श्रद्धा मर्डर केस में आफताब पूनावाला के लिए जनता द्वारा ऐसे परीक्षण की मांग की गई थी और बाद में माननीय दिल्ली हाईकोर्त ने इसे स्वीकार भी किया था। इसके पीछे आम जनता का ये मानना है कि इस परीक्षण के बाद सच्चाई सामने निश्चित ही आ जायेगी, जबकि ऐसा 100% सत्य नहीं है। इस कारण यह हमेशा से एक...