जानिए हमारा कानून
Right to Information Act में लोक सेवकों से सूचना प्राप्त करना
इस एक्ट की धारा 3 भारत के नागरिकों को शासकीय सेवकों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार देती है एवं शासकीय सेवकों का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने विभाग की जन सूचनाओं को जारी किए जाने का अधिकार उन्हें प्राप्त है। वह सभी सूचनाओं को भारत के नागरिकों को दें। जब भी कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की सूचना जिसे जारी किया जा सकता है किसी भी लोक सेवक से मांगता है तब उसका यह कर्तव्य होता है कि वह सूचना को मांगे गया क्रम में प्रस्तुत करें।मौखिक अनुदेश, आदेश, सुझायों पर कार्य नहीं करना है। उन्हें फाइल पर अनुदेश,...
Right to Information Act Section 3 के प्रावधान
इस एक्ट की इस धारा से सूचना का अधिकार मिलता है मतलब किसी भी व्यक्ति को शासकीय विभागों से एवं शासकीय अधिकारियों से सूचना मांगने का अधिकार मिलता है। यदि एक से अधिक व्यक्ति उसी प्रकार की सूचना की मांग करते हैं, तो उसे लोक सूचना अधिकारियों द्वारा सभी अनुरोधकर्ताओं को उपलब्ध कराया जाना चाहिए। नागरिक को उस सूचना की भी मांग करने का अधिकार दिया गया है, जिसे पहले ही अधिनियम के स्व-प्रकटन अपेक्षाओं के अनुसार प्रकट किया गया है। इसे नागरिक को प्रदान किया जाना चाहिए, जो लोक प्राधिकारी में ऐसी सूचना के लिए...
क्या संविधान पीठ के 2023 के फैसले के बाद दिल्ली सरकार को 'Services' पर नियंत्रण प्राप्त है?
दिल्ली में प्रशासनिक अधिकारों का संवैधानिक विवादसुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने Government of NCT of Delhi बनाम Union of India (2023) मामले में यह तय किया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (NCTD) में प्रशासनिक सेवाओं (Services) का नियंत्रण किसके पास होगा केंद्र सरकार के पास या चुनी हुई दिल्ली सरकार के पास। इस फैसले में संविधान के Article 239AA की व्याख्या की गई, खासकर उस वाक्यांश की, जिसमें कहा गया है "insofar as any such matter is applicable to Union Territories"। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 194 से 199: हिस्सेदारी के लंबित निर्णय, प्रबंधन, मूल्यांकन और प्रारंभिक आदेश
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 194 से 199 हिस्सेदारी की प्रक्रिया के उन महत्वपूर्ण चरणों को स्पष्ट करती हैं जो तब उत्पन्न होते हैं जब अपील लंबित हो, संपत्ति का अस्थायी प्रबंधन करना पड़े, मूल्यांकन का निर्धारण आवश्यक हो, या विभाजन से पहले कोई प्रारंभिक आदेश देना हो।यह धाराएं प्रशासनिक प्रावधानों के साथ-साथ न्यायिक प्रक्रिया को भी संतुलित करती हैं और भूमि के न्यायपूर्ण बंटवारे के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं। इस लेख में इन सभी धाराओं की सरल भाषा में व्याख्या की गई है ताकि...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 520 से 522 : हाईकोर्ट द्वारा किसी अपराध की सुनवाई की प्रक्रिया
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के अंतिम अध्याय अर्थात अध्याय 39 में विविध (Miscellaneous) प्रावधान शामिल किए गए हैं। ये प्रावधान मुख्य रूप से तीन विशिष्ट क्षेत्रों को संबोधित करते हैं:1. जब हाईकोर्ट स्वयं किसी अपराध की सुनवाई करता है (धारा 520) 2. जब अपराध सशस्त्र बलों (armed forces) से संबंधित व्यक्ति द्वारा किया गया हो (धारा 521) 3. कानूनी प्रक्रियाओं में प्रयुक्त होने वाले निर्धारित प्रपत्रों (forms) की वैधता और उपयोग (धारा 522) यह लेख इन...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 71, 72 और 72A: डिजिटल युग में गोपनीयता, अनुबंध और ई-हस्ताक्षर धोखाधड़ी
आज के समय में जब हर छोटी-बड़ी जानकारी डिजिटल रूप में संग्रहीत की जा रही है और सरकारी व निजी सेवाएं इंटरनेट, मोबाइल ऐप और क्लाउड टेक्नोलॉजी जैसे माध्यमों पर आधारित हैं, तब गोपनीयता (Privacy), भरोसे (Trust) और वैधानिक अनुबंधों (Lawful Contracts) का महत्व पहले से कहीं अधिक बढ़ गया है।एक ओर हम डिजिटल सेवाओं से अपने कामकाज को आसान बना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इन सेवाओं के दुरुपयोग की आशंका भी बढ़ती जा रही है। इन्हीं चुनौतियों से निपटने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में कुछ कठोर प्रावधान शामिल...
Right to Information Act में सूचना के अधिकार का अर्थ
इस अधिनियम के अधीन नागरिक को सूचना का अधिकार दिया गया है, जिसका तात्पर्य सभी लोक प्राधिकारियों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार है। सूचना के अधिकार को व्यापक रूप से परिभाषित किया गया है, इसमें कार्यों, दस्तावेजों और अभिलेखों का निरीक्षण करने और दस्तावेजों/अभिलेखों/नमूनों का टिप्पण, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियाँ लेने तथा मुद्रित या इलेक्ट्रानिक प्ररूप में सूचना, उदाहरणार्थ प्रिंट आउट, डिस्केट, फ्लापो, टेप इत्यादि अभिप्राप्त करने का अधिकार शामिल है। लेकिन, दो शर्तें नागरिक द्वारा अधिनियम के अधीन कोई...
Right to Information Act की धारा 2 के प्रावधान
इस एक्ट की धारा 2 में परिभाषाएं दी गयी हैं, यह परिभाषा वह हैं जिनसे इस एक्ट की ईमारत खड़ी होती है। धारा 2 इस प्रकार हैइस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,(क) "समुचित सरकार" से किसी ऐसे लोक प्राधिकरण के संबंध में जो-(i) केन्द्रीय सरकार या संघ राज्यक्षेत्र प्रशासन द्वारा स्थापित, गठित, उसके स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या उसके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से उपलब्ध कराई गई निधियों द्वारा पूर्णतया वित्तपोषित किया जाता है, केन्द्रीय सरकार अभिप्रेत है।(ii) राज्य सरकार...
वाद की सीमा के अपवाद : भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 516 से 519
भूमिकाभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) के अध्याय 38 में यह प्रावधान किया गया है कि कुछ अपराधों को एक निश्चित अवधि (Limitation Period) के भीतर ही संज्ञान में लिया जा सकता है। यह व्यवस्था मुख्यतः छोटे और मध्यम स्तर के अपराधों पर लागू होती है ताकि मुकदमे समयबद्ध रूप से पूरे किए जा सकें और न्यायिक संसाधनों का समुचित उपयोग हो। हालांकि, कई परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं जिनमें वाद की सीमा की सामान्य गणना न्याय के हित में नहीं होती। इन विशेष परिस्थितियों को...
क्या 2015 के संशोधन के बाद दाखिल Section 11 की याचिकाओं पर नया कानून लागू होता है, जब Arbitration पहले ही शुरू हो चुका हो?
परिचय (Introduction): क्या कोर्ट Arbitrator की नियुक्ति में सीमित भूमिका निभा सकता है?सुप्रीम कोर्ट ने Shree Vishnu Constructions बनाम Engineer-in-Chief, Military Engineering Services (2023) में एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न का निपटारा किया। सवाल यह था कि Arbitration and Conciliation (Amendment) Act, 2015 की Section 11(6A) की सीमित भूमिका वाली व्यवस्था उन मामलों पर लागू होगी या नहीं, जहाँ Arbitration की प्रक्रिया तो संशोधन से पहले शुरू हुई थी, लेकिन Section 11 की याचिका संशोधन के बाद दाखिल की गई।...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धाराएं 70, 70A और 70B: महत्वपूर्ण सूचना अवसंरचना की सुरक्षा और भारत की साइबर सुरक्षा
आज के डिजिटल युग में जब सरकारी कामकाज, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवाएं, परिवहन, संचार और रक्षा जैसे तमाम महत्वपूर्ण क्षेत्र कंप्यूटर नेटवर्क और इंटरनेट आधारित प्रणालियों पर निर्भर हो चुके हैं, तो यह आवश्यक हो गया है कि इन प्रणालियों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखी जाए।इन प्रणालियों को यदि नुकसान पहुँचता है या वे काम करना बंद कर देती हैं, तो इसका प्रभाव सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामान्य जनजीवन पर पड़ सकता है। इसी दृष्टिकोण से सूचना...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 187 से 193: हिस्सेदारी आवेदन, प्रक्रिया, आपत्तियां और अधिकार क्षेत्र
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956, राज्य के भू-अधिकारों के नियमन और व्यवस्थापन हेतु एक प्रमुख विधिक दस्तावेज है। इसमें भूमि के विभाजन (partition) से जुड़ी विभिन्न प्रक्रियाएं, अधिकार, आपत्तियां और न्यायिक व्यवस्थाएं दी गई हैं।धाराएं 187 से 193 हिस्सेदारी यानी संयुक्त भूमि के कानूनी विभाजन से संबंधित हैं। यह धाराएं बताती हैं कि हिस्सेदारी के लिए आवेदन कैसे किया जाए, किसके पास किया जाए, यदि संपत्ति एक से अधिक जिलों में हो तो क्या प्रक्रिया होगी, और यदि आपत्तियां उठें तो उन्हें कैसे सुलझाया जाए। इस...
Right to Information Act और सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया
दो दशकों के अधिक से सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने संवैधानिक रूप से संरक्षित मूल अधिकार के रूप में सूचना के अधिकार को मान्यता दी है, जो संविधान के अनुच्छेद 19 (वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (प्राण का अधिकार) के अधीन स्थापित है। न्यायालय ने मान्यता दी है कि सरकारी विभागों से सूचना प्राप्त करने का अधिकार लोकतन्त्र के लिये मूल है। सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने संगत रूप से नागरिकों के जानने के अधिकार के पक्ष में विनिश्चय किया है।बेनेट कोलमैन बनाम भारत संघ, एआईआर 1973 में...
Right to Information का क़ानून
किसी भी लोकतान्त्रिक देश में सरकार जानता चुनती है ऐसी स्थिति में जनता का यह अधिकार होता है कि वह अपनी सरकार से जुड़ी जानकारी को प्राप्त कर सकें। पहले यह क़ानून नहीं था तब सभी जानकारी मिल नहीं पाती लेकिन भारत की पार्लियामेंट ने एक क्रन्तिकारी कदम उठाया और सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया। कंस्टीटूशन ऑफ़ इंडिया में उल्लेखित किए गए मौलिक अधिकारों में एक मौलिक अधिकार जानने का अधिकार भी है जिसे अनुच्छेद 19 का हिस्सा बनाया गया है।यह अधिकार केवल एक मौलिक अधिकार बन कर न रह जाए तथा एक स्वर्णिम उद्घोषणा...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धाराएँ 513 से 515 : आपराधिक मामलों में वाद की सीमा
भूमिका (Introduction)भारतीय न्याय व्यवस्था में केवल अपराध के घटित होने मात्र से आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही (Legal Proceedings) अनिश्चित काल तक नहीं चलाई जा सकती। कुछ मामलों में कानून ने एक निश्चित समय सीमा (Limitation Period) निर्धारित की है, जिसके भीतर संबंधित अदालत को अपराध के संज्ञान (Cognizance) में लेना होता है। यह समय सीमा इसलिए निर्धारित की जाती है ताकि न्याय में अनावश्यक देरी न हो, साक्ष्य समय रहते उपलब्ध हों, और आरोपी को अनिश्चित काल तक कानूनी अनिश्चितता में न रहना पड़े। ...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 178 से 186 : अलवियन द्वारा भूमि का जुड़ना और किराया संशोधन
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 राज्य के भूमि प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण अधिनियम है, जो बंदोबस्त, किराया निर्धारण, भू-प्रबन्ध, और सह-स्वामित्व (co-ownership) जैसी विषयवस्तुओं को विस्तार से नियंत्रित करता है। इस लेख में हम धाराओं 178 से 186 का सरल और क्रमबद्ध विश्लेषण करेंगे, जिसमें हर धारा का उद्देश्य, प्रक्रिया और उदाहरणों सहित विवेचन किया गया है।धारा 178 — अल्पकालिक बंदोबस्त (Short Term Settlement) जब किसी क्षेत्र के लिए धारा 175 के दूसरे अपवाद के तहत संक्षिप्त अवधि के लिए बंदोबस्त किया...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 68 और 69: निगरानी, नियंत्रण और सूचना तक पहुँच की सरकारी शक्ति
आज के डिजिटल युग में इंटरनेट और कंप्यूटर संसाधन हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। सरकारी विभागों, निजी कंपनियों और आम नागरिकों का बड़ा हिस्सा किसी न किसी रूप में डिजिटल साधनों पर निर्भर है। ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि इंटरनेट और डिजिटल डेटा से जुड़ी गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए एक संतुलित और प्रभावी कानूनी ढांचा मौजूद हो। भारत सरकार ने इसी उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (Information Technology Act, 2000) को लागू किया था। इस अधिनियम में कई ऐसे प्रावधान हैं जो...
क्या IBC के अंतर्गत अपील की समय-सीमा में प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का समय जोड़ा जाएगा?
सुप्रीम कोर्ट ने Sanket Kumar Agarwal बनाम APG Logistics Pvt. Ltd. मामले में 1 मई 2023 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह तय किया गया कि क्या NCLT (National Company Law Tribunal) द्वारा दिए गए आदेश की प्रमाणित प्रति (Certified Copy) प्राप्त करने में लगा समय IBC (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) के अंतर्गत अपील की समय-सीमा (Limitation Period) की गणना में से बाहर (Excluded) किया जाना चाहिए।यह फैसला केवल समय-सीमा की तकनीकी व्याख्या तक सीमित नहीं था, बल्कि ई-फाइलिंग (E-Filing) को बढ़ावा...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 174 से 177-A: बंदोबस्त प्रविष्टियों की विधिक और सिंचित भूमि पर किराया वृद्धि
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 ग्रामीण भूमि प्रशासन और बंदोबस्त व्यवस्था को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है। इस अधिनियम की धाराएं 174 से लेकर 177-A तक बंदोबस्त प्रविष्टियों की कानूनी मान्यता, बंदोबस्त की अवधि, उसके समय से पहले समाप्त होने की परिस्थितियां, अस्थायी राहत और सिंचाई सुविधा मिलने पर किराया वृद्धि से संबंधित हैं। इन धाराओं का अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार भूमि उपयोग, किराया निर्धारण, और किसानों के अधिकारों की सुरक्षा में कैसे संतुलन बनाती है।धारा 174 — बंदोबस्त...
क्या पुलिस प्रमुख मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना दोबारा जांच का आदेश दे सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने पीठाम्बरन बनाम राज्य केरल एवं अन्य मामले में 3 मई 2023 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें दो मुख्य कानूनी प्रश्नों का उत्तर दिया गया। पहला, क्या जिला पुलिस प्रमुख (District Police Chief) को भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173(8) के तहत मजिस्ट्रेट (Magistrate) की अनुमति के बिना दोबारा जांच (Further Investigation) का आदेश देने का अधिकार है? दूसरा, हाई कोर्ट द्वारा धारा 482 CrPC (Code of Criminal Procedure) के तहत अपनी अंतर्निहित शक्ति (Inherent Powers) का प्रयोग किन...




















