सह-अपराधी को क्षमा प्रदान करने की प्रक्रिया और किन अपराधों में क्षमा लागू होती है : धारा 343 BNSS, 2023

Himanshu Mishra

23 Jan 2025 12:34 PM

  • सह-अपराधी को क्षमा प्रदान करने की प्रक्रिया और किन अपराधों में क्षमा लागू होती है : धारा 343 BNSS, 2023

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita), 2023 की धारा 343 में सह-अपराधी (Accomplice) को क्षमा (Pardon) प्रदान करने का प्रावधान है। इस प्रावधान का उद्देश्य है कि अपराध की सच्चाई उजागर करने और न्याय दिलाने के लिए उन व्यक्तियों से सबूत प्राप्त किए जा सकें, जो अपराध में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से शामिल हैं।

    क्षमा प्रदान करने का उद्देश्य

    इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य सह-अपराधी से विश्वसनीय (Reliable) सबूत प्राप्त करना है, जो जाँच (Investigation) या न्यायालय प्रक्रिया (Trial) में सहयोग करता है। यह क्षमा इस शर्त पर दी जाती है कि व्यक्ति अपराध और उससे जुड़े सभी पहलुओं की पूर्ण और सच्ची जानकारी देगा।

    उदाहरण के तौर पर, अगर बड़े वित्तीय धोखाधड़ी (Fraud) के मामले में कोई सह-अपराधी पूरी योजना और अन्य अपराधियों की भूमिका उजागर करने को तैयार होता है, तो उसे क्षमा दी जा सकती है।

    क्षमा देने का अधिकार किन्हें है?

    धारा 343 के अंतर्गत कुछ न्यायिक अधिकारियों (Judicial Authorities) को यह अधिकार दिया गया है कि वे सह-अपराधी को क्षमा प्रदान कर सकते हैं। ये अधिकारी हैं:

    1. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate): किसी भी जाँच, पूछताछ, या सुनवाई के दौरान।

    2. प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (Magistrate of the First Class): पूछताछ या सुनवाई के दौरान।

    यह प्रावधान विभिन्न चरणों पर न्यायिक अधिकारियों को यह तय करने की सुविधा देता है कि क्षमा प्रदान करना आवश्यक है या नहीं।

    क्षमा प्रदान करने की शर्तें

    सह-अपराधी को क्षमा देने के लिए यह आवश्यक है कि वह व्यक्ति:

    1. अपराध से संबंधित सभी सच्चाइयों को उजागर करे।

    2. यह बताए कि अपराध में कौन-कौन लोग शामिल हैं, चाहे वे प्रमुख अपराधी (Principal) हों या सहायक (Abettor)।

    उदाहरण के तौर पर, मादक पदार्थ तस्करी (Drug Trafficking) के मामले में यदि कोई सह-अपराधी तस्करों की पूरी जानकारी देने को तैयार होता है, तो उसे क्षमा दी जा सकती है।

    किन अपराधों में क्षमा लागू होती है?

    धारा 343 निम्नलिखित प्रकार के अपराधों पर लागू होती है:

    1. जो केवल सत्र न्यायालय (Court of Session) या विशेष न्यायाधीश (Special Judge) द्वारा सुने जा सकते हैं।

    2. जिनकी सजा सात वर्ष या उससे अधिक की हो सकती है।

    यह सुनिश्चित करता है कि क्षमा केवल गंभीर मामलों में दी जाए, जहाँ सह-अपराधी की गवाही (Testimony) न्याय के लिए महत्वपूर्ण हो।

    क्षमा प्रदान करने की प्रक्रिया

    जब मजिस्ट्रेट किसी सह-अपराधी को क्षमा देते हैं, तो उन्हें निम्नलिखित प्रक्रियाओं का पालन करना होता है:

    1. कारण दर्ज करना (Recording Reasons): क्षमा देने के कारणों को स्पष्ट रूप से दर्ज करना।

    2. क्षमा का स्वीकार (Acceptance of Pardon): यह दर्ज करना कि क्षमा की पेशकश को स्वीकार किया गया है या नहीं।

    3. प्रतिलिपि प्रदान करना (Providing Copies): यदि अभियुक्त (Accused) द्वारा माँगा जाए, तो दर्ज कारणों की प्रतिलिपि निःशुल्क प्रदान करना।

    उदाहरण के लिए, भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में यदि सह-अपराधी को क्षमा दी जाती है, तो मजिस्ट्रेट को यह दर्ज करना होगा कि यह गवाही न्यायिक प्रक्रिया के लिए क्यों आवश्यक है।

    क्षमा स्वीकार करने वाले व्यक्ति की जिम्मेदारियाँ

    जिस व्यक्ति ने क्षमा स्वीकार की है, उसे कुछ कानूनी जिम्मेदारियों का पालन करना होता है:

    1. गवाह के रूप में गवाही देना (Testimony as a Witness): व्यक्ति को पूछताछ और सुनवाई के दौरान गवाह के रूप में प्रस्तुत होना होगा।

    2. न्यायालय की हिरासत (Judicial Custody): यदि वह पहले से जमानत (Bail) पर नहीं है, तो उसे मुकदमे की समाप्ति तक हिरासत में रखा जाएगा।

    उदाहरण के लिए, अगर डकैती (Dacoity) के मामले में सह-अपराधी ने क्षमा स्वीकार की है, तो उसे पूरी सुनवाई के दौरान गवाही देने के लिए हिरासत में रखा जाएगा।

    क्षमा स्वीकार करने का न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव

    जब सह-अपराधी क्षमा स्वीकार करता है और गवाही देता है, तो न्यायालय की प्रक्रिया में इसका विशेष प्रभाव पड़ता है:

    1. सुनवाई के लिए प्रेषण (Commitment for Trial):

    o यदि मामला केवल सत्र न्यायालय या विशेष न्यायाधीश द्वारा सुना जा सकता है, तो मजिस्ट्रेट मामले को संबंधित न्यायालय में भेजते हैं।

    o उदाहरण के लिए, हत्या (Murder) के मामले में, जहाँ सह-अपराधी क्षमा स्वीकार करता है, मामला सत्र न्यायालय को भेजा जाएगा।

    2. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई (Trial by Chief Judicial Magistrate):

    o अन्य मामलों में, मजिस्ट्रेट मामले को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजते हैं।

    यह सुनिश्चित करता है कि मामला अपराध की प्रकृति और गंभीरता के अनुसार उचित न्यायालय में जाए।

    प्रक्रिया को समझाने के लिए उदाहरण

    उदाहरण 1:

    आतंकवादी बम विस्फोट (Terrorist Bombing) के मामले में, एक सह-अपराधी, जिसने मामूली भूमिका निभाई थी, मुख्य योजनाकारों के बारे में जानकारी देने के लिए सहमत होता है। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उसे धारा 343 के तहत क्षमा देते हैं। उसकी गवाही के आधार पर मुख्य अपराधियों को सजा दी जाती है।

    उदाहरण 2:

    बड़े पैमाने पर वित्तीय गबन (Embezzlement) के मामले में, एक वित्तीय अधिकारी, जो सह-अपराधी है, क्षमा स्वीकार करता है और उच्च अधिकारियों की संलिप्तता का खुलासा करता है। मजिस्ट्रेट इसके कारण दर्ज करते हुए मामला सत्र न्यायालय को भेजते हैं।

    उदाहरण 3:

    मानव तस्करी (Human Trafficking) के मामले में, एक वाहन चालक सह-अपराधी के रूप में जानकारी देने को तैयार होता है। उसकी गवाही के आधार पर पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश होता है।

    धारा 343 का महत्व

    धारा 343 न्यायालय प्रणाली में सह-अपराधियों को सहयोग के लिए प्रोत्साहित करके अपराधों की जाँच और सुनवाई में सहायता करती है। यह प्रावधान:

    1. सह-अपराधी की गवाही के माध्यम से जटिल आपराधिक योजनाओं (Criminal Networks) को उजागर करता है।

    2. सुनिश्चित करता है कि अभियोजन पक्ष को ऐसे सबूत मिलें, जो अन्यथा उपलब्ध नहीं होते।

    3. न्याय के हित में सच्ची गवाही की शर्त पर क्षमा प्रदान करता है।

    दुरुपयोग रोकने के लिए सुरक्षा उपाय

    इस प्रावधान के दुरुपयोग को रोकने के लिए, धारा 343 में निम्नलिखित सुरक्षा उपाय शामिल हैं:

    1. क्षमा देने के कारणों का अनिवार्य दस्तावेजीकरण।

    2. गवाही देने की अनिवार्यता।

    3. पूरी प्रक्रिया पर न्यायिक निगरानी।

    उदाहरण के लिए, यदि क्षमा स्वीकार करने वाला व्यक्ति झूठी गवाही देता है, तो उसे क्षमा का लाभ नहीं मिलेगा और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई जारी रहेगी।

    भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 343 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो सह-अपराधियों से मूल्यवान गवाही प्राप्त करने में मदद करता है। यह न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग को बढ़ावा देता है और अपराधों के निवारण और न्याय दिलाने में सहायता करता है। उचित प्रक्रियाओं और सख्त शर्तों के माध्यम से यह प्रावधान न्याय की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

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